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उत्तराखंड: 300 से ज्यादा गांवों को आज भी है विस्थापन का इंतजार, खौफ के साए में जी रहे कई परिवार

उत्तराखंड में इस समय तकरीबन 300 से ज्यादा गांव ऐसे हैं, जो आपदा की दृष्टि से संवेदनशील हैं. इसके कारण यहां के रहवासी डर-डर के जीने को मजूबर हैं. हालांकि सरकार अपने स्तर पर इन गांवों के विस्थापन में लगी हुई है, मगर इसकी गति काफी धीमी है.

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उत्तराखंड के 300 से ज्यादा गांवों को है विस्थापन का इंतजार
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Published : Aug 14, 2021, 8:03 AM IST

देहरादून: उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में इन दिनों बारिश का दौर जारी है. जिसके कारण यहां लोगों की परेशानियां बढ़ रही हैं. भूकंप, भूस्खलन और अतिवृष्टि के कारण पहाड़ों में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. उत्तरकाशी जिले के कई गांवों के ग्रामीण दहशत में जीने को मजबूर हैं. निराकोट, मांडौ, मस्ताड़ी और बग्याल गांव में बीते दिनों की आपदा के मंजर को कौन भूल सकता है. यही कारण है कि उत्तराखंड के सैकड़ों गांव आज भी डर के साये में जीने को मजबूर हैं. इन गांवों में रह रहे परिवारों के भविष्य पर हर बीतते दिन से साथ खतरे के बादल मंडरा रहे हैं. बारिश, लैंडस्लाइड और भूकंप से उपजी परिस्थितियों के कारण इन गांवों के रहवासियों का जीवन दुभर होता जा रहा है. जिसके कारण यहां के लोग सरकार से विस्थापन की मांग कर रहे हैं. आंकड़ों के लिहाज से बात करें तो उत्तराखंड के 300 से ज्यादा गांव ऐसे में जो खतरे की जद में हैं. साल-दर साल प्रदेश में ऐसे गांवों की संख्या बढ़ती जा रही है.

क्यों होता है विस्थापन: पहाड़ी क्षेत्रों में बाढ़, सूखा और भूकंप के कारण बड़ी जनहानि होती है. जिसके कारण बड़ी मात्रा में जानमाल का नुकसान होता है. भूकंप के कारण घरों में दरारें पड़ जाती हैं, जिससे आवासीय भवनों पर खतरा मंडराता रहता है. भूस्खलन के कारण भी यहां की कई पहाड़ियां मौत बनकर लोगों की जान लील लेती है. जिसके कारण गांव के गांव प्रभावित होते हैं. बारिश अतिवृष्टि से तो पहाड़ों में सबसे ज्यादा हानि होती है. ये पहाड़ों में सबसे ज्यादा विस्थापन की वजह है. हर साल बादल फटने और भूस्खलन की घटनाओं से कई गांवों के नामोनिशान तक मिट गये हैं. हाल के दिनों में पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी जैसे जिलों में बारिश और भूस्खलन ने तांडव मचाया. जिसके कारण इन इलाकों के कई गांव अब विस्थापन की बाट जो रहे हैं.

उत्तराखंड के 300 से ज्यादा गांवों को आज भी है विस्थापन का इंतजार

विस्थापन की हकीकत में अंतर: मॉनसून सीजन शुरू होते ही उत्तराखंड के सैकड़ों गांवों में रहने वाली की जिंदगी भगवान भरोसे हो जाती है. दरअसल, प्रदेश के कई पर्वतीय क्षेत्रों में बसें गांव ऐसे हैं, जो खतरे की जद में हैं. बारिश के दौरान इन ग्रामीण इलाकों में खतरा और भी बढ़ जाता है. मॉनसून की दस्तक के साथ ये इलाके संवेदनशील हो जाते हैं. संवेदनशील क्षेत्रों में रह रहे परिवारों को विस्थापित करने का दावा तो सरकारी तंत्र खूब कर रहा है लेकिन धरातल पर इसकी हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है.

पढ़ें- गोदियाल को रास नहीं आया 12 हजार करोड़ की ऑल वेदर रोड का कॉन्सेप्ट, पैसों की बर्बादी बताया

विपक्ष ने भी सरकार की मंशा पर उठाये सवाल: दैवीय आपदा के लिहाज से संवेदनशील माने जाने वाले उत्तराखंड के इन क्षेत्रों में विस्थापन की मांग उठती आयी है. सिस्टम के जिम्मेदार आला अधिकारी भले ही इन तमाम ग्रामीणों को विस्थापित किए जाने की कार्य योजना को धरातल पर उतारने दावे करते हो, लेकिन विस्थापन के आंकड़े कुछ और ही बयां कर रहे हैं. यही वजह है कि पुनर्वास किए जाने वाले ग्रामीण, खौफ के साए में जीने को मजबूर हो रहे हैं. पहाड़ी क्षेत्रों के ग्रामीणों की जिंदगी से जुड़े इस गंभीर मामले पर अब विपक्ष ने भी सरकार की नीयत पर ही सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं.

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विस्थापन का इंतजार...

पढ़ें- सोमेश्वर में मकान गिरने से एक महिला की मौत, 3 लोग हुए घायल

प्रदेश के करीब 300 गांवों का होना है विस्थापन: प्रदेश के 13 जिलों में से 12 जिले ऐसे हैं, जिन जनपदों के कई गांव खतरे की जद में हैं. आपदा विभाग के आंकड़ों की मानें तो पिथौरागढ़ जिले में सबसे ज्यादा 129 गांव खतरे की जद में हैं. बावजूद इसके इस जिले के सिर्फ 235 परिवारों को ही विस्थापित किया गया है. साथ ही अगर आकड़ों पर गौर करें तो सबसे ज्यादा पहाड़ी क्षेत्रों में बसे गांव हैं, जो खतरे की जद में हैं. वहीं, मैदानी क्षेत्रों में बहुत कम ही गांव ऐसे हैं, जो खतरे की जद में हैं.

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पढ़ें- उत्तराखंड STF ने 'गजनी' को किया गिरफ्तार, कई डकैतियों का रहा है मास्टरमाइंड

अभी मात्र 58 गांव ही किये गए विस्थापित: राज्य के 12 जिलों में से विस्थापन के लिए 395 गांव चिन्हित किए गए हैं. पुनर्वास नीति, 2011 के तहत इन गांव को अन्य जगह विस्थापित किया जाना था, लेकिन बीते 5 सालों में अभी तक मात्र 58 गांवों के 1035 परिवारों को ही विस्थापित किया गया है. जिसमें करीब 40 करोड़ 9 लाख 08 हज़ार रुपये का खर्च आया है. अभी भी प्रदेश के 369 गांव ऐसे हैं, जो खतरे की जद में हैं.

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पढ़ें- इस वीकेंड को यादगार बनाना चाहते हैं तो चकराता चले आइए, ये है वजह

इस साल 336 परिवारों को किया गया विस्थापित: पुनर्वास योजना के तहत वित्तीय वर्ष 2021-22 में अब तक 31 गांवों के 336 परिवारों का पुनर्वास किया गया है. जिसमे पिथौरागढ़ के 235, उत्तरकाशी के 94 , अल्मोड़ा के 4 और रुद्रप्रयाग के 3 परिवार शमिल हैं. इन आपदा प्रभावित परिवारों के लिए राज्य सरकार द्वारा पुनर्वास मानकों के अंतर्गत 13 करोड़ 35 लाख 30 हजार की धनराशि जारी की गई. पिछले वित्तीय वर्ष 2019-20 में 360 आपदा प्रभावित परिवारों का पुनर्वास किया गया था.

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विस्थापन का इंतजार...

पढ़ें- हिमालयी ग्लेशियरों पर मंडरा रहा खतरा, वैज्ञानिकों ने किये चौंकाने वाले खुलासे

133 परिवारों का जल्द होगा विस्थापन: आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास मंत्री डा. धन सिंह रावत ने बताया कि राज्य सरकार दैवीय आपदा से प्रभावित लोगों के प्रति काफी संवेदनशील है. सरकार प्राथमिकता के आधार पर लोगों के पुनर्वास में जुटी है. उन्होंने बताया पुनर्वास कार्यों में तेजी लाई जाएगी. जल्द ही 133 और आपदा प्रभावित परिवारों का पुनर्वास किया जाएगा. जिसमे पिथौरागढ़ जिले के कनालीछीना तहसील के चार , रुद्रप्रयाग जिले की ऊखीमठ तहसील के 73, अल्मोड़ा जिले में चार परिवार, बागेश्वर जिले की गरूड़ तहसील के दो परिवार एवं कपकोट तहसील के सात परिवार, टिहरी गढ़वाल के 21 परिवार, उत्तरकाशी जिले की बड़कोट तहसील के 20 परिवार और चमोली जिले की घाट तहसील के दो परिवार शामिल हैं.

पढ़ें- धारचूला क्षेत्र में भूकंप की वजह का वैज्ञानिकों ने लगाया पता, ये है वजह

पुनर्वास की नीति नहीं है व्यवहारिक: वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने बताया कि विस्थापन को लेकर सरकार ने जो नीति बनायी है वह मानवीय और व्यावहारिक नहीं है. यही नहीं, विस्थापन की नीति पर पद्म भूषण चंडी प्रसाद भट्ट ने भी एतराज जताया था. उनका कहना था कि पुनर्वास की नीति हरियाणा की तर्ज पर बनाई जानी चाहिए. पुनर्वास दो तरह का होता है, पहला रिलोकेशन और दूसरा रिहैबिलिटेशन. प्रदेश में मौजूदा समय में करीब 400 गांव ऐसे हैं जिन्हें रीलोकेट किया जाना है.

पढ़ें- चमोली आपदा के बाद से हिमालय में हो रही हलचल तबाही का संकेत तो नहीं?

दरअसल, प्रदेश भर के 12 जिलों में 300 से ज्यादा गांव ऐसे हैं जिन्हें विस्थापित किए जाने की बात हो रही है. इन गांवों के लोग बारिश का मौसम शुरू होते ही खौफ में जीने के लिए मजबूर हो जाते हैं. इस मामले पर आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पीयूष रौतेला ने बताया कि कुछ ग्रामीणों को विस्थापित करने की कवायद चल रही है, जो गांव किसी भी प्रकार के रिस्क जोन में आते हैं, ऐसे गांवों की मैपिंग पहले ही कर ली गयी है. इन गांवों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था गांव वालो की सहमति के आधार पर ही की जाएगी.

पढ़ें- मसूरी में लैंडस्लाइड के खतरे के बीच CM धामी का काफिला रूका, डेंजर जोन बना गलोगी बैंड

विस्थापन के लिए चिन्हित गांव: जिला उधमसिंह नगर में एक गांव का विस्थापन होना है. देहरादून जिले के 2, नैनीताल के 6, अल्मोड़ा के 9, चंपावत के 10, रुद्रप्रयाग के 14, पौड़ी गढ़वाल के 26 गांवों, टिहरी गढ़वाल के भी 33 गांवों का विस्थापन होना है. टिहरी में अभी तक मात्र 4 गावों यानी 311 परिवारों का विस्थापन हो पाया है.

बागेश्वर में 42 गांव ऐसे हैं जो खतरे के जद में है. बावजूद इसके भी अभी तक 4 गांवो यानी 46 परिवारों का विस्थापन हो पाया है. चमोली के 61 गांवों का विस्थापन होना है. जिसमें से सिर्फ 8 गांवों यानी 189 परिवारों का विस्थापन हो पाया है. उत्तरकाशी के 62 गांवों का विस्थापन होना है. जिसमें में 94 परिवारों का विस्थापन किया गया है. पिथौरागढ़ के सबसे ज्यादा 129 गांव खतरे की जद में हैं. जिसमें से 235 परिवारों का ही विस्थापन किया जा चुका है.

पढ़ें- भारत चीन सीमा से लगी नीति घाटी में लैंडस्लाइड, चट्टान टूटने से जोशीमठ-नीति बॉर्डर मार्ग बंद

1035 परिवारों का हो चुका है विस्थापन: साल-दर साल अगर विस्थापन की गति की बात करें तो 2016-17 में 2 गांवों के 11 परिवारों को विस्थापित किया गया था. साल 2017-18 में 12 गांवो के 177 परिवारों का विस्थापन किया गया. साल 2018-19 में 6 गांवों के 151 परिवारों को विस्थापित किया गया. साल 2019-20 में 7 गांवों के 360 परिवारों का विस्थापन किया गया. साल 2020-21 में 31 गांवों के 336 परिवारों का विस्थापन किया गया है.

पढ़ें- हिमाचल और उत्तराखंड में क्यों तेजी से दरक रहे पहाड़? वैज्ञानिकों ने बताई वजह

उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां अन्य राज्यों से भिन्न हैं. यही वजह है कि उत्तराखंड सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है. प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियां न सिर्फ राज्य की आर्थिकी पर असर डाल रही हैं बल्कि प्रदेश के तमाम ऐसे गांव भी हैं जहां इसके कारण खतरा बना रहता है. प्राकृतिक आपदाओं के चलते राज्य के इन गावों का दूसरे इलाकों से संपर्क कट जाता है. इन गांवों की स्थितियों को समझते हुए सरकार आपदा के मद्देनजर संवेदनशील गांवों के विस्थापन के लिए नए सिरे से काम कर रही है. विस्थापित किए जाने वाले गांवों की सूची तैयार है. जिन्हें धीरे-धीरे करके विस्थापित किया भा जा रहा है.

देहरादून: उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में इन दिनों बारिश का दौर जारी है. जिसके कारण यहां लोगों की परेशानियां बढ़ रही हैं. भूकंप, भूस्खलन और अतिवृष्टि के कारण पहाड़ों में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. उत्तरकाशी जिले के कई गांवों के ग्रामीण दहशत में जीने को मजबूर हैं. निराकोट, मांडौ, मस्ताड़ी और बग्याल गांव में बीते दिनों की आपदा के मंजर को कौन भूल सकता है. यही कारण है कि उत्तराखंड के सैकड़ों गांव आज भी डर के साये में जीने को मजबूर हैं. इन गांवों में रह रहे परिवारों के भविष्य पर हर बीतते दिन से साथ खतरे के बादल मंडरा रहे हैं. बारिश, लैंडस्लाइड और भूकंप से उपजी परिस्थितियों के कारण इन गांवों के रहवासियों का जीवन दुभर होता जा रहा है. जिसके कारण यहां के लोग सरकार से विस्थापन की मांग कर रहे हैं. आंकड़ों के लिहाज से बात करें तो उत्तराखंड के 300 से ज्यादा गांव ऐसे में जो खतरे की जद में हैं. साल-दर साल प्रदेश में ऐसे गांवों की संख्या बढ़ती जा रही है.

क्यों होता है विस्थापन: पहाड़ी क्षेत्रों में बाढ़, सूखा और भूकंप के कारण बड़ी जनहानि होती है. जिसके कारण बड़ी मात्रा में जानमाल का नुकसान होता है. भूकंप के कारण घरों में दरारें पड़ जाती हैं, जिससे आवासीय भवनों पर खतरा मंडराता रहता है. भूस्खलन के कारण भी यहां की कई पहाड़ियां मौत बनकर लोगों की जान लील लेती है. जिसके कारण गांव के गांव प्रभावित होते हैं. बारिश अतिवृष्टि से तो पहाड़ों में सबसे ज्यादा हानि होती है. ये पहाड़ों में सबसे ज्यादा विस्थापन की वजह है. हर साल बादल फटने और भूस्खलन की घटनाओं से कई गांवों के नामोनिशान तक मिट गये हैं. हाल के दिनों में पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी जैसे जिलों में बारिश और भूस्खलन ने तांडव मचाया. जिसके कारण इन इलाकों के कई गांव अब विस्थापन की बाट जो रहे हैं.

उत्तराखंड के 300 से ज्यादा गांवों को आज भी है विस्थापन का इंतजार

विस्थापन की हकीकत में अंतर: मॉनसून सीजन शुरू होते ही उत्तराखंड के सैकड़ों गांवों में रहने वाली की जिंदगी भगवान भरोसे हो जाती है. दरअसल, प्रदेश के कई पर्वतीय क्षेत्रों में बसें गांव ऐसे हैं, जो खतरे की जद में हैं. बारिश के दौरान इन ग्रामीण इलाकों में खतरा और भी बढ़ जाता है. मॉनसून की दस्तक के साथ ये इलाके संवेदनशील हो जाते हैं. संवेदनशील क्षेत्रों में रह रहे परिवारों को विस्थापित करने का दावा तो सरकारी तंत्र खूब कर रहा है लेकिन धरातल पर इसकी हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है.

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विपक्ष ने भी सरकार की मंशा पर उठाये सवाल: दैवीय आपदा के लिहाज से संवेदनशील माने जाने वाले उत्तराखंड के इन क्षेत्रों में विस्थापन की मांग उठती आयी है. सिस्टम के जिम्मेदार आला अधिकारी भले ही इन तमाम ग्रामीणों को विस्थापित किए जाने की कार्य योजना को धरातल पर उतारने दावे करते हो, लेकिन विस्थापन के आंकड़े कुछ और ही बयां कर रहे हैं. यही वजह है कि पुनर्वास किए जाने वाले ग्रामीण, खौफ के साए में जीने को मजबूर हो रहे हैं. पहाड़ी क्षेत्रों के ग्रामीणों की जिंदगी से जुड़े इस गंभीर मामले पर अब विपक्ष ने भी सरकार की नीयत पर ही सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं.

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प्रदेश के करीब 300 गांवों का होना है विस्थापन: प्रदेश के 13 जिलों में से 12 जिले ऐसे हैं, जिन जनपदों के कई गांव खतरे की जद में हैं. आपदा विभाग के आंकड़ों की मानें तो पिथौरागढ़ जिले में सबसे ज्यादा 129 गांव खतरे की जद में हैं. बावजूद इसके इस जिले के सिर्फ 235 परिवारों को ही विस्थापित किया गया है. साथ ही अगर आकड़ों पर गौर करें तो सबसे ज्यादा पहाड़ी क्षेत्रों में बसे गांव हैं, जो खतरे की जद में हैं. वहीं, मैदानी क्षेत्रों में बहुत कम ही गांव ऐसे हैं, जो खतरे की जद में हैं.

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अभी मात्र 58 गांव ही किये गए विस्थापित: राज्य के 12 जिलों में से विस्थापन के लिए 395 गांव चिन्हित किए गए हैं. पुनर्वास नीति, 2011 के तहत इन गांव को अन्य जगह विस्थापित किया जाना था, लेकिन बीते 5 सालों में अभी तक मात्र 58 गांवों के 1035 परिवारों को ही विस्थापित किया गया है. जिसमें करीब 40 करोड़ 9 लाख 08 हज़ार रुपये का खर्च आया है. अभी भी प्रदेश के 369 गांव ऐसे हैं, जो खतरे की जद में हैं.

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इस साल 336 परिवारों को किया गया विस्थापित: पुनर्वास योजना के तहत वित्तीय वर्ष 2021-22 में अब तक 31 गांवों के 336 परिवारों का पुनर्वास किया गया है. जिसमे पिथौरागढ़ के 235, उत्तरकाशी के 94 , अल्मोड़ा के 4 और रुद्रप्रयाग के 3 परिवार शमिल हैं. इन आपदा प्रभावित परिवारों के लिए राज्य सरकार द्वारा पुनर्वास मानकों के अंतर्गत 13 करोड़ 35 लाख 30 हजार की धनराशि जारी की गई. पिछले वित्तीय वर्ष 2019-20 में 360 आपदा प्रभावित परिवारों का पुनर्वास किया गया था.

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133 परिवारों का जल्द होगा विस्थापन: आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास मंत्री डा. धन सिंह रावत ने बताया कि राज्य सरकार दैवीय आपदा से प्रभावित लोगों के प्रति काफी संवेदनशील है. सरकार प्राथमिकता के आधार पर लोगों के पुनर्वास में जुटी है. उन्होंने बताया पुनर्वास कार्यों में तेजी लाई जाएगी. जल्द ही 133 और आपदा प्रभावित परिवारों का पुनर्वास किया जाएगा. जिसमे पिथौरागढ़ जिले के कनालीछीना तहसील के चार , रुद्रप्रयाग जिले की ऊखीमठ तहसील के 73, अल्मोड़ा जिले में चार परिवार, बागेश्वर जिले की गरूड़ तहसील के दो परिवार एवं कपकोट तहसील के सात परिवार, टिहरी गढ़वाल के 21 परिवार, उत्तरकाशी जिले की बड़कोट तहसील के 20 परिवार और चमोली जिले की घाट तहसील के दो परिवार शामिल हैं.

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पुनर्वास की नीति नहीं है व्यवहारिक: वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने बताया कि विस्थापन को लेकर सरकार ने जो नीति बनायी है वह मानवीय और व्यावहारिक नहीं है. यही नहीं, विस्थापन की नीति पर पद्म भूषण चंडी प्रसाद भट्ट ने भी एतराज जताया था. उनका कहना था कि पुनर्वास की नीति हरियाणा की तर्ज पर बनाई जानी चाहिए. पुनर्वास दो तरह का होता है, पहला रिलोकेशन और दूसरा रिहैबिलिटेशन. प्रदेश में मौजूदा समय में करीब 400 गांव ऐसे हैं जिन्हें रीलोकेट किया जाना है.

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दरअसल, प्रदेश भर के 12 जिलों में 300 से ज्यादा गांव ऐसे हैं जिन्हें विस्थापित किए जाने की बात हो रही है. इन गांवों के लोग बारिश का मौसम शुरू होते ही खौफ में जीने के लिए मजबूर हो जाते हैं. इस मामले पर आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पीयूष रौतेला ने बताया कि कुछ ग्रामीणों को विस्थापित करने की कवायद चल रही है, जो गांव किसी भी प्रकार के रिस्क जोन में आते हैं, ऐसे गांवों की मैपिंग पहले ही कर ली गयी है. इन गांवों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था गांव वालो की सहमति के आधार पर ही की जाएगी.

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विस्थापन के लिए चिन्हित गांव: जिला उधमसिंह नगर में एक गांव का विस्थापन होना है. देहरादून जिले के 2, नैनीताल के 6, अल्मोड़ा के 9, चंपावत के 10, रुद्रप्रयाग के 14, पौड़ी गढ़वाल के 26 गांवों, टिहरी गढ़वाल के भी 33 गांवों का विस्थापन होना है. टिहरी में अभी तक मात्र 4 गावों यानी 311 परिवारों का विस्थापन हो पाया है.

बागेश्वर में 42 गांव ऐसे हैं जो खतरे के जद में है. बावजूद इसके भी अभी तक 4 गांवो यानी 46 परिवारों का विस्थापन हो पाया है. चमोली के 61 गांवों का विस्थापन होना है. जिसमें से सिर्फ 8 गांवों यानी 189 परिवारों का विस्थापन हो पाया है. उत्तरकाशी के 62 गांवों का विस्थापन होना है. जिसमें में 94 परिवारों का विस्थापन किया गया है. पिथौरागढ़ के सबसे ज्यादा 129 गांव खतरे की जद में हैं. जिसमें से 235 परिवारों का ही विस्थापन किया जा चुका है.

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1035 परिवारों का हो चुका है विस्थापन: साल-दर साल अगर विस्थापन की गति की बात करें तो 2016-17 में 2 गांवों के 11 परिवारों को विस्थापित किया गया था. साल 2017-18 में 12 गांवो के 177 परिवारों का विस्थापन किया गया. साल 2018-19 में 6 गांवों के 151 परिवारों को विस्थापित किया गया. साल 2019-20 में 7 गांवों के 360 परिवारों का विस्थापन किया गया. साल 2020-21 में 31 गांवों के 336 परिवारों का विस्थापन किया गया है.

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उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां अन्य राज्यों से भिन्न हैं. यही वजह है कि उत्तराखंड सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है. प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियां न सिर्फ राज्य की आर्थिकी पर असर डाल रही हैं बल्कि प्रदेश के तमाम ऐसे गांव भी हैं जहां इसके कारण खतरा बना रहता है. प्राकृतिक आपदाओं के चलते राज्य के इन गावों का दूसरे इलाकों से संपर्क कट जाता है. इन गांवों की स्थितियों को समझते हुए सरकार आपदा के मद्देनजर संवेदनशील गांवों के विस्थापन के लिए नए सिरे से काम कर रही है. विस्थापित किए जाने वाले गांवों की सूची तैयार है. जिन्हें धीरे-धीरे करके विस्थापित किया भा जा रहा है.

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