देहरादून: स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत ने कहा कि प्रदेश के मेडिकल एवं नर्सिंग कॉलेजों में दीक्षात सत्रारंभ के अवसर पर हिप्पोक्रेटिक शपथ की बजाय छात्र-छात्राएं अब महर्षि चरक शपथ लेंगे. ये भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के सर्वोच्च ग्रंथ चरक संहिता से ली जायेगी. प्रदेश के प्रत्येक मेडिकल शिक्षण संस्थानों में भारतीय चिकित्सा पद्धति की महान विभूतियों चरक, सुश्रुत एवं धन्वंतरि की मूर्तियां स्थापित की जायेंगी. जिसकी शुरूआत राज्य के मेडिकल कॉलेजों से की जायेगी. साथ ही मंत्री ने सभी राजकीय मेडिकल कॉलेज एवं नर्सिंग कॉलेज में निर्माण कार्यों की धीमी गति पर नाराजगी जताते हुए महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा को निर्माण कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिये.
प्रदेश के चिकित्सा स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने सचिवालय स्थित डीएमएमसी सभागार में चिकित्सा शिक्षा विभाग की समीक्षा बैठक ली. उन्होंने कहा कि मेडिकल, नर्सिंग एवं अन्य चिकित्सा शिक्षण संस्थानों में दीक्षा सत्रारंभ (प्रोग्राम इंडक्शन ओरिएंटेशन सेरेमनी) के दौरान ली जाने वाली हिप्पोक्रेटिक शपथ की जगह छात्र-छात्राएं महर्षि चरक शपथ लेंगी.
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मंत्री धन सिंह रावत ने कहा कि महर्षि चरक शपथ को भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के सर्वोच्च ग्रंथ चरक संहिता से लिया जायेगा. इसको तैयार करने के निर्देश विभागीय अधिकारियों को दे दिये गये हैं. उन्होंने कहा कि देश में स्वास्थ्य शिक्षा ढांचे में नये बदलाव के अनुसार राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने भी मेडिकल छात्रों की ओर से ली जाने वाली हिप्पोक्रेटिक शपथ को बदल कर महर्षि चरक शपथ लेने की सिफारिश की है.
बैठक में स्वास्थ्य मंत्री ने चिकित्सा संस्थानों में एनएमसी मानकों के अनुसार फैकल्टी की तैनाती करने, श्रीनगर मेडिकल कॉलेज में कार्यरत नर्सिंग एवं लैब टैक्नीशियनों के एकमुश्त समाधान के तहत नियमित करने के निर्देश दिए. इसके साथ ही मेडिकल कॉलेजों में कार्यरत संविदा कार्मिकों को न्यूनतम वेतनमान दिये जाने का निर्देश भी धन सिंह रावत ने दिया. फैकल्टी के नियमित चयन हेतु मेडिकल कॉलेजों में प्रोफेसरों, एसोसिएट एवं असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती नियमावली में आयु सीमा संशोधन किये जाने सहित अन्य बिन्दुओं पर विस्तार से चर्चा की गई. विभागीय अधिकारियों को आवश्यक कार्रवाई करने के निर्देश दिये.
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क्या होती है हिप्पोक्रेटिक शपथ: हिपोक्रेटिक की शपथ (Hippocratic Oath) ऐतिहासिक रूप से चिकित्सकों एवं चिकित्सा व्यवसायियों द्वारा ली जाने वाली शपथ है. माना जाता है कि यह हिपोक्रीत्ज़ द्वारा लिखी गयी है. यह आयोनिक ग्रीक में लिखा गया है.
हिप्पोक्रेटिक शपथ में क्या बोलते हैं:
मैं अपोलो वैद्य, अस्क्लीपिअस, ईयईआ, पानाकीआ और सारे देवी-देवताओं की कसम खाता हूं और उन्हें हाज़िर-नाज़िर मानकर कहता हूं कि मैं अपनी योग्यता और परख-शक्ति के अनुसार इस शपथ को पूरा करूँगा.जिस इंसान ने मुझे यह पेशा सिखाया है, मैं उसका उतना ही गहरा सम्मान करूँगा जितना अपने माता-पिता का करता हूं. मैं जीवन-भर उसके साथ मिलकर काम करूंगा और उसे अगर कभी पैसों की ज़रूरत पड़ी, तो उसकी मदद करूंगा. उसके बेटों को अपना भाई समझूंगा और अगर वे चाहें, तो बगैर किसी फीस या शर्त के उन्हें सिखाऊंगा. मैं सिर्फ अपने बेटों, अपने गुरु के बेटों और उन सभी विद्यार्थियों को शिक्षा दूंगा जिन्होंने चिकित्सा के नियम के मुताबिक शपथ खायी और समझौते पर दस्तखत किए हैं. मैं उन्हें चिकित्सा के सिद्धान्त सिखाऊंगा, ज़बानी तौर पर हिदायतें दूंगा और जितनी बाकी बातें मैंने सीखी हैं, वे सब सिखाऊंगा.
रोगी की सेहत के लिये यदि मुझे खान-पान में परहेज़ करना पड़े, तो मैं अपनी योग्यता और परख-शक्ति के मुताबिक ऐसा अवश्य करूंगा. किसी भी नुकसान या अन्याय से उनकी रक्षा करूंगा.
मैं किसी के मांगने पर भी उसे विषैली दवा नहीं दूंगा और ना ही ऐसी दवा लेने की सलाह दूंगा. उसी तरह मैं किसी भी स्त्री को गर्भ गिराने की दवा नहीं दूंगा. मैं पूरी शुद्धता और पवित्रता के साथ अपनी ज़िंदगी और अपनी कला की रक्षा करूंगा.
मैं किसी की सर्जरी नहीं करूंगा, उसकी भी नहीं जिसके किसी अंग में पथरी हो गयी हो, बल्कि यह काम उनके लिए छोड़ दूंगा जिनका यह पेशा है.
मैं जिस किसी रोगी के घर जाऊंगा, उसके लाभ के लिए ही काम करूंगा, किसी के साथ जानबूझकर अन्याय नहीं करूंगा, हर तरह के बुरे काम से, खासकर स्त्रियों और पुरुषों के साथ लैंगिक संबंध रखने से दूर रहूंगा, फिर चाहे वे गुलाम हों या नहीं.
चिकित्सा के समय या दूसरे समय, अगर मैंने रोगी के व्यक्तिगत जीवन के बारे में कोई ऐसी बात देखी या सुनी जिसे दूसरों को बताना बिलकुल गलत होगा, तो मैं उस बात को अपने तक ही रखूगा, ताकि रोगी की बदनामी न हो.
अगर मैं इस शपथ को पूरा करूं और कभी इसके विरुद्ध न जाऊं, तो मेरी दुआ है कि मैं अपने जीवन और कला का आनंद उठाता रहूं और लोगों में सदा के लिए मेरा नाम ऊंचा रहे. लेकिन अगर मैंने कभी यह शपथ तोड़ी और झूठा साबित हुआ, तो इस दुआ का बिलकुल उल्टा असर मुझ पर हो.
कौन थे महर्षि चरक: चरक एक महर्षि एवं आयुर्वेद विशारद के रूप में विख्यात हैं. वे कुषाण राज्य के राजवैद्य थे. इनके द्वारा रचित चरक संहिता एक प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रन्थ है. इसमें रोगनाशक एवं रोगनिरोधक दवाओं का उल्लेख है तथा सोना, चांदी, लोहा, पारा आदि धातुओं के भस्म एवं उनके उपयोग का वर्णन मिलता है. आचार्य चरक ने आचार्य अग्निवेश के अग्निवेशतन्त्र में कुछ स्थान तथा अध्याय जोड़कर उसे नया रूप दिया. इसी को आज चरक संहिता के नाम से जाना जाता है. 300-200 ई. पूर्व लगभग आयुर्वेद के आचार्य महर्षि चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में होती है.
चरक की शिक्षा तक्षशिला में हुई. इनका रचा हुआ ग्रंथ 'चरक संहिता' आज भी वैद्यक का अद्वितीय ग्रंथ माना जाता है. इन्हें ईसा की प्रथम शताब्दी का बताते हैं. कुछ विद्वानों का मत है कि चरक कनिष्क के राजवैद्य थे परंतु कुछ लोग इन्हें बौद्ध काल से भी पहले का मानते हैं. आठवीं शताब्दी में इस ग्रंथ का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ और यह शास्त्र पश्चिमी देशों तक पहुंचा. चरक संहिता में व्याधियों के उपचार तो बताए ही गए हैं. प्रसंगवश स्थान-स्थान पर दर्शन और अर्थशास्त्र के विषयों का भी उल्लेख है. उन्होंने आयुर्वेद के प्रमुख ग्रन्थों और उसके ज्ञान को इकट्ठा करके उसका संकलन किया. चरक ने भ्रमण करके चिकित्सकों के साथ बैठकें की, विचार एकत्र किए और सिद्धांतों को प्रतिपादित किया और उसे पढ़ाई लिखाई के योग्य बनाया.