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कारगिल शहीद की वो आखिरी चिट्ठी जिसे लिखकर उसने सिर पर बांध लिया था कफन...

राजेश गुरुंग  का जन्म 3 मई 1975 में एक सैन्य परिवार में हुआ था, उनके पिता भी फौज में ही थे. शायद यही वजह थी कि देशभक्ति उनके खून में थी. बचपन में राजेश गुरुंग  का मन पढ़ाई से ज्यादा खेलकूद में लगता था.

शहीद की वो आखिरी चिट्ठी.
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Published : Jul 22, 2019, 5:31 AM IST

Updated : Jul 22, 2019, 9:23 AM IST

देहरादून: कारगिल शहीदों के शौर्य और पराक्रम की अनगिनत कहानियां हैं. जो हमें समय-समय पर उनके बलिदान की याद दिलाती है. एक ऐसी ही कहानी नागा रेजीमेंट के जाबांज शहीद राजेश गुरुंग की भी है. जो 6 जुलाई 1999 को अपने साथी जवानों के साथ टाइगर हिल पर पाकिस्तानी सैनिकों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए. लेकिन शहादत के 20 साल बाद भी राजेश गुरुंग के जब्बे का अंदाजा आप उनकी लिखी एक चिट्ठी से लगा सकते हैं. जो उन्होंने शहीद होने से कुछ रोज पहले अपने परिवार को लिखी थी. देखिए खास रिपोर्ट...

राजेश गुरुंग का जन्म 3 मई 1975 में एक सैन्य परिवार में हुआ था, उनके पिता भी फौज में ही थे. शायद यही वजह थी कि देशभक्ति उनके खून में थी. बचपन में राजेश गुरुंग का मन पढ़ाई से ज्यादा खेलकूद में लगता था. अपनी स्कूलिंग करने के बाद उन्होंने भारतीय सेना में भर्ती होने के तीन प्रयास किए लेकिन असफल रहे. बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सेना में जाने की ठान ली.

शहीद की वो आखिरी चिट्ठी.

पढ़ें- कारगिल विजय: शहीद जवान जाकिर हुसैन की अनकही दास्तां

भाई अजय गुरुंग बताते हैं कि राजेश ने बिना आर्मी में भर्ती हुए गढ़वाल रेजिमेंट हेडक्वार्टर लैंसडाउन में तीन महीने तक मेस में काम किया. इसी दौरान उन्होंने कोटद्वार में एक भर्ती रैली में भाग लिया. ये राजेश की मेहनत का ही नतीजा था कि इस बार वो सफल हो गए और 12 जुलाई 1994 को भारतीय सेना का हिस्सा बन गए. राजेश की इस उपलब्धि पर पूरे परिवार में खुशी का माहौल था. लेकिन नियति की कुछ और ही मंजूर था.

पढ़ें-कारगिल में शहीद हुए थे वीर सपूत विजय भंडारी, जानें बूढ़ी मां की दर्द भरी कहानी

शहीद के भाई अजय गुरुंग का कहना है कि कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल पर दुश्मनों के कब्जे वाली अपनी चौकियों को वापस पाने के लिए भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर चढाई की थी. जिसमें सबसे आगे सेकेंड नागा रेंजिमेंट की पहली टुकड़ी के 8 जवानों में से एक राजेश गुरंग भी थे. कई हफ्तों तक चले इस ऑपरेशन के दौरान टाइगर हिल पर राजेश गुरुंग को जब दुश्मनों से लड़ते-लड़ते अहसास हुआ कि अब आर-पार की लड़ाई है, तो उन्होंने आखिरी समय में अपने घर वालों के लिए एक चिट्ठी लिखी थी.


शहीद होने से पहले राजेश गुरुंग की लिखी चिट्ठी

मां-पिताजी को सादर प्रणाम,
आपके आशीर्वाद से मैं सकुशल हूं और परमात्मा से आप सभी के ठीक होने की कामना करता हूं. पिताजी आज हम युद्ध के मैदान में जहां मौजूद हैं. वहां से हम कभी वापस लौट पाएंगे या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता. मैं अगर जिंदा बचकर आ गया तो दो या तीन दिन बाद आपको फोन करूंगा. अगर बचकर नहीं आया तो किसी और का फोन आएगा. फिर भी आप चिंता मत करना, आप लोगों का आशीर्वाद मेरे साथ है. मुझे कुछ नहीं होगा. महेंद्र दाज्यू भी ठीक है. कोई चिंता मत करना.

आपसे एक शिकायत है कि आप लोग मुझे आजकल चिट्ठी क्यों नहीं लिखते हो, क्या मैं इसी दिन के लिए फौज में भर्ती हुआ था. हां कुछ चिट्ठियां मिली थी मुझको और फोटो भी ...सब अच्छे लग रहे हो. मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है. अभी टाइगर हिल पर हूं और ये जरूरी भी नहीं कि मुझे यहां आपकी सारी चिट्ठियां मिल रही हो, खैर सपना कैसी है? सपना को भी मेरी ये चिट्ठी जरूर पहुंचा देना. उसे कहना कि चिंता न करें और कहना मैं ठीक हूं , जल्द ही वापस लौटूगा. हां, उसको कहना कि कभी चिट्ठी लिख दिया कर. चलो सभी को नमस्ते बोलना....
बस ये लड़ाई खत्म हो जाए, देखना आपका ये बेटा आपका और देश का नाम रोशन करके आएगा.

पढ़ें-कारगिल दिवस: 'यार मैं कारगिल युद्ध में जा रहा हूं, छोटे ये बात किसी को मत बताना'

वहीं, शहीद राजेश गुरुंग की मां बसंती देवी को अपने बेटे के बलिदान पर गर्व है. शहीद की मां का कहना है कि किसी भी मां को भगवान ये दिन न दिखाए. उन्हें गर्व तो है कि उनका बेटा देश के काम आया. लेकिन जो भी जवान भारत मां कि रक्षा के लिए सीमा पर तैनात है. उसकी घर सकुशल वापसी हो. कोई उनके बेटे की तरह ताबूत में बंद होकर न आए. बहरहाल, शहीद के इस परिवार को बस इतना मलाल है कि सरकार ने उनसे जो बड़े-बड़े वादे किए थे, वो अभी तक पूरे नहीं हो पाए.

देहरादून: कारगिल शहीदों के शौर्य और पराक्रम की अनगिनत कहानियां हैं. जो हमें समय-समय पर उनके बलिदान की याद दिलाती है. एक ऐसी ही कहानी नागा रेजीमेंट के जाबांज शहीद राजेश गुरुंग की भी है. जो 6 जुलाई 1999 को अपने साथी जवानों के साथ टाइगर हिल पर पाकिस्तानी सैनिकों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए. लेकिन शहादत के 20 साल बाद भी राजेश गुरुंग के जब्बे का अंदाजा आप उनकी लिखी एक चिट्ठी से लगा सकते हैं. जो उन्होंने शहीद होने से कुछ रोज पहले अपने परिवार को लिखी थी. देखिए खास रिपोर्ट...

राजेश गुरुंग का जन्म 3 मई 1975 में एक सैन्य परिवार में हुआ था, उनके पिता भी फौज में ही थे. शायद यही वजह थी कि देशभक्ति उनके खून में थी. बचपन में राजेश गुरुंग का मन पढ़ाई से ज्यादा खेलकूद में लगता था. अपनी स्कूलिंग करने के बाद उन्होंने भारतीय सेना में भर्ती होने के तीन प्रयास किए लेकिन असफल रहे. बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सेना में जाने की ठान ली.

शहीद की वो आखिरी चिट्ठी.

पढ़ें- कारगिल विजय: शहीद जवान जाकिर हुसैन की अनकही दास्तां

भाई अजय गुरुंग बताते हैं कि राजेश ने बिना आर्मी में भर्ती हुए गढ़वाल रेजिमेंट हेडक्वार्टर लैंसडाउन में तीन महीने तक मेस में काम किया. इसी दौरान उन्होंने कोटद्वार में एक भर्ती रैली में भाग लिया. ये राजेश की मेहनत का ही नतीजा था कि इस बार वो सफल हो गए और 12 जुलाई 1994 को भारतीय सेना का हिस्सा बन गए. राजेश की इस उपलब्धि पर पूरे परिवार में खुशी का माहौल था. लेकिन नियति की कुछ और ही मंजूर था.

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शहीद के भाई अजय गुरुंग का कहना है कि कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल पर दुश्मनों के कब्जे वाली अपनी चौकियों को वापस पाने के लिए भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर चढाई की थी. जिसमें सबसे आगे सेकेंड नागा रेंजिमेंट की पहली टुकड़ी के 8 जवानों में से एक राजेश गुरंग भी थे. कई हफ्तों तक चले इस ऑपरेशन के दौरान टाइगर हिल पर राजेश गुरुंग को जब दुश्मनों से लड़ते-लड़ते अहसास हुआ कि अब आर-पार की लड़ाई है, तो उन्होंने आखिरी समय में अपने घर वालों के लिए एक चिट्ठी लिखी थी.


शहीद होने से पहले राजेश गुरुंग की लिखी चिट्ठी

मां-पिताजी को सादर प्रणाम,
आपके आशीर्वाद से मैं सकुशल हूं और परमात्मा से आप सभी के ठीक होने की कामना करता हूं. पिताजी आज हम युद्ध के मैदान में जहां मौजूद हैं. वहां से हम कभी वापस लौट पाएंगे या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता. मैं अगर जिंदा बचकर आ गया तो दो या तीन दिन बाद आपको फोन करूंगा. अगर बचकर नहीं आया तो किसी और का फोन आएगा. फिर भी आप चिंता मत करना, आप लोगों का आशीर्वाद मेरे साथ है. मुझे कुछ नहीं होगा. महेंद्र दाज्यू भी ठीक है. कोई चिंता मत करना.

आपसे एक शिकायत है कि आप लोग मुझे आजकल चिट्ठी क्यों नहीं लिखते हो, क्या मैं इसी दिन के लिए फौज में भर्ती हुआ था. हां कुछ चिट्ठियां मिली थी मुझको और फोटो भी ...सब अच्छे लग रहे हो. मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है. अभी टाइगर हिल पर हूं और ये जरूरी भी नहीं कि मुझे यहां आपकी सारी चिट्ठियां मिल रही हो, खैर सपना कैसी है? सपना को भी मेरी ये चिट्ठी जरूर पहुंचा देना. उसे कहना कि चिंता न करें और कहना मैं ठीक हूं , जल्द ही वापस लौटूगा. हां, उसको कहना कि कभी चिट्ठी लिख दिया कर. चलो सभी को नमस्ते बोलना....
बस ये लड़ाई खत्म हो जाए, देखना आपका ये बेटा आपका और देश का नाम रोशन करके आएगा.

पढ़ें-कारगिल दिवस: 'यार मैं कारगिल युद्ध में जा रहा हूं, छोटे ये बात किसी को मत बताना'

वहीं, शहीद राजेश गुरुंग की मां बसंती देवी को अपने बेटे के बलिदान पर गर्व है. शहीद की मां का कहना है कि किसी भी मां को भगवान ये दिन न दिखाए. उन्हें गर्व तो है कि उनका बेटा देश के काम आया. लेकिन जो भी जवान भारत मां कि रक्षा के लिए सीमा पर तैनात है. उसकी घर सकुशल वापसी हो. कोई उनके बेटे की तरह ताबूत में बंद होकर न आए. बहरहाल, शहीद के इस परिवार को बस इतना मलाल है कि सरकार ने उनसे जो बड़े-बड़े वादे किए थे, वो अभी तक पूरे नहीं हो पाए.

Intro:Note- ये खबर कारगिल दिवस स्पेशल है। खबर की फीड FTP से (uk_deh_01_last letter of kargil shaheed_vis_byte_7205800) नाम से भेजी गई है।

एंकर- कारगिल शहीदों के शौर्य और पराक्रम की अनगिनत कहानियों देश के सम्मान में चार चांद लगाने का काम करती है। एसी एक कहानी है कारगिल युद्ध में शहीद हुए राजेश गुरंग की। कारगित युद्ध के दौरान 06 जुलाई 1999 को सेकेंड नागा रेजमेंट के जाबाज सिपाही राजेश गुंरग अपने अन्य 7 नागा जवानों के साथ टाइगर हिल पर पाकिस्तानी सैनिकों से लोहा लेते हुए शहीद हो गये। लेकिन शहादत के 20 साल बाद भी शहीद राजेश गुरंग के जब्बे का अंदाजा आप उस चिट्ठी से लगा सकते हैं जो उन्होने अपने हाथों से शहीद होने से बस कुछ रोज पहले लिखी थी। क्या है इस चिट्ठी की कहानी और शहीद राजेश गुरंग की कहानी जानिए हमारी इस स्पेशल रिपोर्ट में। Body:वीओ- 3 मई 1975 को जन्म लेने वाले राजेश गुरंग ने एक एसे परिवार में जन्म लिया था जिसमें पिता भी फौजी थे और यही वजह थी की देश भक्ती उनके खून में ही मौजूद थी। बचपन से राजेश गुरंग का पढ़ाई से ज्यादा खेल कूद में ध्यान था और स्कूल पास करने के बाद उन्होने कई बार आर्मी भर्ती में कोशिस की लेकिन वो तीन बार भर्ती में असफल रहे लेकिन उन्होने हिम्मत नही हारी और सेना में जाने का जिद् ठान ली। जब भर्ती नही हुए तो उन्होने बिना आर्मी से भर्ती के ही लेंसिडोंन में आर्मी लंगर में तीन महीने तक काम किया और खूब मेहनत की और फिर एक बार और राजेश ने कोटद्वार के लेंसीडोन में ही भर्ती में भाग लिया लेकिन इस बार ईश्वर ने उनकी सुन ली और 12 जुलाई 1994 को वो सेना में भर्ती हो गये। राजेश का खुशी से कोई ठिकाना नही था और पूरे घर में खुशी की लहर थी लेकिन किसे पता था कि भर्ती के 5 साल बाद ही राजेश परिवार को छोड़ कर चले जाएंगे। कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल पर दुश्मनो के कब्जे वाली अपनी चौकियों को वापिस पाने के लिए भारतीय सेना ने टाहगर हिल पर चढाई की थी जिसमें बससे आगे सेंकेड नागा रेंजमेंट की पहली टूकडी के 8 जवानों में से एक राजेश गुरगं भी थे। कई हफ्तों तक चले इस आपरेशन के दौरान टाइगर हिल पर राजेश गुरंग और उनके साथी रोज दुश्मनो लड़ते और लड़ते लड़ते जब उन्हे यह अहसास हुआ कि अब आर पार की लड़ाई है तो उन्होने आखिरी समय में अपने घर वालों के लिए एक चिट्ठी लिखी और उसके बाद बिना पीछे मुड़े आगे बड़ गये। उस चिट्ठी में आज भी हम उस अहसास को छू सकते हैं जो टाइगर हिल पर शहीद होने से पहले एक सिपाही अपने परिवार और अपने देश के प्रति हमसूस कर रहा था। .

शहीद होने से पहले सैनिक ने लिखी ये चिट्ठी----
सेंकेड नागा रेंजमेंट के जवान आर्मी नम्बर -14702915 सिपाही राजेश गुरंग।-------
सबसे पहले सैनिक राजेश गुंरग अपने इस पल में जहां वो मौत से सीधा मुकाबला करने जा रहा है वहां से अपने घऱ में मौजूद हर किसी को जो कि उसके दिल में बसते हैं सभी को अपना प्यार देता है और अपने मां और पिता को बता ता है कि उसके आर्शीवाद से अभी वो ठीक है और घर में भी सबके ठीक होने की कामना करता है। उसके बाद सैनिक अपने पिता को संबोधित करते हुए लिखता है कि पिता जी जिस जगह पर हम अभी मोजूद है वहां से हम वापिस लौट पाएंगे या नही कुछ कहा नही जा सकता है हां अगर मै जिंदा बच गया तो 2 या 3 दिन बाद आपको फोन आयेगा और अगर नही बचा तो मेरी जगह किसी और का फोन आयेगा लेकिन फिर भी आप चिंता मत करना आप लोगों का आश्रिवाद मेरे साथ है तो मुझे कुछ नही होगा। इसके बाद सैनिक भावुक माहोल को बदलते हुए अपने परिवार से अपने साथ मौजूद अन्य साथियों की बात करता है और बताता है कि उसके साथ मौजूद उनके सीनीयर महेन्द्रु दाजू भी ठीक है लेकिन आप लोग क्यों नही चिच्ठी लिखते हो मुझे, क्या इस दिन के लिए में फौज में भर्ति हुआ था, घर वालों से शिकायत करते हुए सैनिक कहता है। इसके बाद सैनिक कुछ परानी चिच्ठीयों का जिक्र करता है जिनमें से कुछ उसको मिली है कुछ नही, कुछ फोटो भी मिले थे जिनका जिक्र सैनिक अपनी इस चिट्ठी में करता है । दरसल टाइगर हिल पर जरुरी नही की सारी चिट्ठीयां वहां पहुंचे, लड़ाई के दौरान स्थीती गंभीर थी। इसके बाद सैनिक आखिरी में कांगज की सीमित बंदिशों में अपनी भावनाओं को समेटते हुए अपनी मंगेतर सपना को याद करता है और कहता है कि सपना को भी मेरी चिट्ठी पंहूचा देना और कहना कि में ठीक हूं और उसे कहना की वो भी कभी चिट्ठी लिख दिया करें और इन्ही सारी बातों शिकायतों के साथ सैनिक लिखता है कि बस ये लड़ाई खतम हो जाए और फिर आपका ये बेटा आपका नाम पूरे देश में रौशन कर के आयेगा।


शहीद राजेश गुरंग के भाई अजय गुंरग और मां बंसती देवी ने बाताय कि उनके भाई के शौर्य और बलीदान पर उन्हे गर्व है और देश भक्ती-देश प्रेम की भावना उनके भाई के शहीद होने के बाद कम नही हुई ब्लकी बड़ी है। शहीद राजेश गुरंग ने के भाई अयज गुंरग ने बाताय कि उनके परिवार में तीन सैनिक रह चुकें है। उनके पिता, उनके शहीद भाई राजेश गुरंग और शहीद होने के बाद उनके एक और भाई भी सेना में चले गये हैं। इसके अलावा शहीद राजेश गुरंग के परिवार को अगर मलाल है तो बस इतना कि सरकार द्वारा उनके भाई के शहीद होने पर जो तमाम दावे और वादे किये गये वो पूरे नही किये गये।

बाइट- अजय गुरंग, शहीद राजेश गुरंग के भाई
बाइट- बंसती देवी, शहीद राजेश गुंरग की मांConclusion:
Last Updated : Jul 22, 2019, 9:23 AM IST
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