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राज्य में बढ़ रही मानव और वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं, क्या कहते हैं सरकारी आंकड़ें

उत्तराखंड में वन्यजावों की संख्या में हर साल बढ़ोतरी हो रही है. जिस कारण राज्य में मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही है. मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष के वन विभाग के आंकड़ें.

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Published : Oct 4, 2019, 4:58 PM IST

Updated : Oct 5, 2019, 4:40 PM IST

मानव और वन्यजीवों के बीच बढ़ रहा संघर्ष.

देहरादून: उत्तराखंड वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर लगातार वाहवाही लूटता रहा है. राज्य में साल दर साल बाघों, गुलदार और हाथियों की संख्या बढ़ती रही है. जिस वजह से प्रदेश में मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही है. वन महकमे के आंकड़े यह बताते हैं कि कैसे सैकड़ों वन्यजीव और इंसान एक दूसरे के लिए खतरा बनते जा रहे हैं.

पढ़ें: देवभूमि के इस मंदिर में होता है चमत्कार, पूरी दुनिया हो चुकी है हैरान

बाघ, गुलदार और हाथियों को लेकर क्या कहते हैं सरकारी आंकड़ें
राष्ट्रीय पशु बाघ की संख्या के लिहाज से उत्तराखंड देश का तीसरा सबसे ज्यादा बाघों की संख्या वाला राज्य है. कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों की संख्या यहां मौजूद क्षेत्रफल के लिहाज से काफी ज्यादा हो चुकी है. यही कारण है कि प्रदेश में बाघों की मौत के मामले भी बढ़ गए हैं. उत्तराखंड बनने के बाद से अब तक 137 बाघ अलग-अलग कारणों की वजह से मरे हैं. इसमें करीब 50% बाघ किसी दुर्घटना के चलते मरे हैं.

मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष.

बाघों की तरह ही गुलदार को लेकर भी हालात बेहद चिंताजनक हैं. राज्य स्थापना के बाद से अब तक कुल 1179 गुलदार मरे हैं. जिसमें 50% गुलदार किसी दुर्घटना के चलते ही मरे हैं. हाथियों की स्थिति पर गौर करें तो राज्य में अब तक 399 हाथियों की मौत हो चुकी है. हाथियों की मौत में दुर्घटनाओं का आंकड़ा 50% से भी ज्यादा है.

वहीं, जानकारी के अनुसार साल 2012 से अब तक करीब 326 लोग जंगली जानवरों के हमले में अपनी जान गवा चुके हैं. जबकि 1300 सौ से ज्यादा लोगों इन हमलों में घायल हुए हैं.

चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन राजीव भरतरी बताते हैं कि यह दुखद पहलू है कि वन्यजीव और मानवों के बीच संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं. लेकिन वन महकमा लगातार इन्हें कम करने के लिए प्रयास कर रहा है. इसके लिए वन महकमे ने तमाम कार्यक्रम भी चलाए हैं और विभिन्न फोर्स तैयार कर इस संघर्ष को रोकने की कोशिश भी की है.

वन पंचायत सलाहकार परिषद के अध्यक्ष वीरेंद्र बिष्ट बताते हैं कि अधिकारियों की लापरवाही के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में लोग जंगली जानवरों का निवाला बन रहे हैं. जिस कारण लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है. वीरेंद्र बिष्ट कहते हैं कि वन महकमे के अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाए तो ऐसी घटनाओं को कम किया जा सकता है.

क्यों बढ़ रही है मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं
उत्तराखंड में 71 प्रतिशत वन क्षेत्र है और इसके आसपास रहने वाले लोगों की संख्या लाखों में है. ऐसे में जंगली जानवरों का सिकुड़ता क्षेत्र कई बार उन्हें आबादी वाले क्षेत्रों में ले आता है. जिस कारण वन्यजीव और मानव के बीच संघर्ष बढ़ता है. इसके अलावा जंगलों में मानवों का अतिक्रमण, जंगलों में आसानी से जंगली जानवरों को भोजन नहीं मिलना जैसे कारण भी इसमें शामिल हैं.

बता दें कि राज्य में मानव और वन्यजीवों के बीच बढ़ते संघर्ष के कारण साल 2006 से अब तक कुल 193 गुलदार इंसानों के लिए खतरनाक घोषित किए जा चुके हैं. 18 बाघों को 2006 से अब तक इंसानी जीवन के लिए खतरा माना जा चुका है. इसी तरह 3 हाथी भी इंसानों के लिए खतरनाक घोषित हो चुके हैं. यानी कुल 214 जंगली जानवरों को इंसानों के लिए खतरनाक मानकर इन्हें चिन्हित किया गया है.

देहरादून: उत्तराखंड वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर लगातार वाहवाही लूटता रहा है. राज्य में साल दर साल बाघों, गुलदार और हाथियों की संख्या बढ़ती रही है. जिस वजह से प्रदेश में मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही है. वन महकमे के आंकड़े यह बताते हैं कि कैसे सैकड़ों वन्यजीव और इंसान एक दूसरे के लिए खतरा बनते जा रहे हैं.

पढ़ें: देवभूमि के इस मंदिर में होता है चमत्कार, पूरी दुनिया हो चुकी है हैरान

बाघ, गुलदार और हाथियों को लेकर क्या कहते हैं सरकारी आंकड़ें
राष्ट्रीय पशु बाघ की संख्या के लिहाज से उत्तराखंड देश का तीसरा सबसे ज्यादा बाघों की संख्या वाला राज्य है. कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों की संख्या यहां मौजूद क्षेत्रफल के लिहाज से काफी ज्यादा हो चुकी है. यही कारण है कि प्रदेश में बाघों की मौत के मामले भी बढ़ गए हैं. उत्तराखंड बनने के बाद से अब तक 137 बाघ अलग-अलग कारणों की वजह से मरे हैं. इसमें करीब 50% बाघ किसी दुर्घटना के चलते मरे हैं.

मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष.

बाघों की तरह ही गुलदार को लेकर भी हालात बेहद चिंताजनक हैं. राज्य स्थापना के बाद से अब तक कुल 1179 गुलदार मरे हैं. जिसमें 50% गुलदार किसी दुर्घटना के चलते ही मरे हैं. हाथियों की स्थिति पर गौर करें तो राज्य में अब तक 399 हाथियों की मौत हो चुकी है. हाथियों की मौत में दुर्घटनाओं का आंकड़ा 50% से भी ज्यादा है.

वहीं, जानकारी के अनुसार साल 2012 से अब तक करीब 326 लोग जंगली जानवरों के हमले में अपनी जान गवा चुके हैं. जबकि 1300 सौ से ज्यादा लोगों इन हमलों में घायल हुए हैं.

चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन राजीव भरतरी बताते हैं कि यह दुखद पहलू है कि वन्यजीव और मानवों के बीच संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं. लेकिन वन महकमा लगातार इन्हें कम करने के लिए प्रयास कर रहा है. इसके लिए वन महकमे ने तमाम कार्यक्रम भी चलाए हैं और विभिन्न फोर्स तैयार कर इस संघर्ष को रोकने की कोशिश भी की है.

वन पंचायत सलाहकार परिषद के अध्यक्ष वीरेंद्र बिष्ट बताते हैं कि अधिकारियों की लापरवाही के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में लोग जंगली जानवरों का निवाला बन रहे हैं. जिस कारण लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है. वीरेंद्र बिष्ट कहते हैं कि वन महकमे के अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाए तो ऐसी घटनाओं को कम किया जा सकता है.

क्यों बढ़ रही है मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं
उत्तराखंड में 71 प्रतिशत वन क्षेत्र है और इसके आसपास रहने वाले लोगों की संख्या लाखों में है. ऐसे में जंगली जानवरों का सिकुड़ता क्षेत्र कई बार उन्हें आबादी वाले क्षेत्रों में ले आता है. जिस कारण वन्यजीव और मानव के बीच संघर्ष बढ़ता है. इसके अलावा जंगलों में मानवों का अतिक्रमण, जंगलों में आसानी से जंगली जानवरों को भोजन नहीं मिलना जैसे कारण भी इसमें शामिल हैं.

बता दें कि राज्य में मानव और वन्यजीवों के बीच बढ़ते संघर्ष के कारण साल 2006 से अब तक कुल 193 गुलदार इंसानों के लिए खतरनाक घोषित किए जा चुके हैं. 18 बाघों को 2006 से अब तक इंसानी जीवन के लिए खतरा माना जा चुका है. इसी तरह 3 हाथी भी इंसानों के लिए खतरनाक घोषित हो चुके हैं. यानी कुल 214 जंगली जानवरों को इंसानों के लिए खतरनाक मानकर इन्हें चिन्हित किया गया है.

Intro:feed ftp से भेजी है।।

special report....

summary- दुनिया आज भले ही विश्व पशु दिवस मना रही हो लेकिन हकीकत यह है कि इंसान ही पशुओं के लिए खतरा बन हुए हैं...वन्यजीवों के लिहाज से दिखाई दे रहे आंकड़े तो इसी बात की तस्दीक कर रहे हैं...बात कुछेक वन्यजीवों की नही बल्कि सैकड़ों वन्यजीवों और मानवों की आपसी संघर्ष में मौत से जुड़ी है...देखिये विश्व पशु दिवस पर ये स्पेशल रिपोर्ट.....


Body:उत्तराखंड वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर वाहवाही लूटता रहा है.. यह सच है कि राज्य में साल दर साल बाघों गुलदार और हाथियों की संख्या बढ़ती रही है.. लेकिन दूसरे पहलू से देखें तो यह भी हकीकत है कि प्रदेश में मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही है.. वन महकमे के आंकड़े यह बताते हैं कि कैसे सैकड़ों वन्यजीव इंसानी संघर्ष में जान गवा रहे हैं... तो सैकड़ों इंसान भी इन जंगली जानवरों का निवाला बने हैं... सबसे पहले देखिए की बाघ, गुलदार और हाथियों को लेकर क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े...

राष्ट्रीय पशु बाघ की संख्या के लिहाज से उत्तराखंड देश का तीसरा सबसे ज्यादा बाघों की संख्या वाला राज्य है.. कॉर्बेट नेशनल पार्क में तो बाघों की संख्या यहां मौजूद क्षेत्रफल के लिहाज से बेहद ज्यादा हो चुकी है...यही कारण है कि प्रदेश में बाघों की मौत के मामले भी बढ़ गए हैं... उत्तराखंड बनने के बाद से अब तक 137 बाघ विभिन्न कारणों से मरे हैं... इसमें करीब 50% बाघ किसी दुर्घटना के चलते मारे गए...

बाघों की तरह ही गुलदार को लेकर भी हालात बेहद चिंताजनक है... राज्य स्थापना के बाद से अब तक कुल 1179 गुलदार मरे हैं.… यहां भी करीब 50% गुलदार किसी दुर्घटना के चलते ही मारे गए...

इस लिहाज से हाथियों की स्थिति पर गौर करें तो राज्य में अब तक 399 हाथियों की मौत हो चुकी है.... हाथियों की मौत में दुर्घटनाओं का आंकड़ा 50% से भी ज्यादा है...

जंगली जानवरों की मौत को लेकर काफी हद तक इंसान जिम्मेदार हैं... लेकिन इंसानों को भी कई बार इसकी कीमत चुकानी पड़ती है... जानकारी के अनुसार 2012 से अब तक करीब 326 लोग जंगली जानवरों के हमले में अपनी जान गवा चुके हैं... जबकि 1300 सौ से ज्यादा लोगों इन हमलों में घायल हुए है...

चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन राजीव भरतरी बताते हैं कि यह दुखद पहलू है कि वन्य जीव और मानवों के बीच संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं...लेकिन वन महकमा लगातार इन्हें कम करने के लिए प्रयास कर रहा है... इसके लिए वन महकमे ने तमाम कार्यक्रम भी चलाए हैं और विभिन्न फोर्स तैयार कर इस संघर्ष को रोकने की कोशिश भी की है।।

बाइट राजीव भरतरी, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन उत्तराखंड

उत्तराखंड में 71% वन क्षेत्र है और वनों के आसपास रहने वाले लोगों की संख्या लाखों में है... ऐसे में जंगली जानवरों का सिकुड़ता क्षेत्र कई बार उन्हें आबादी वाले क्षेत्रों में ले जाता है... इससे वन्यजीव और मानव के बीच संघर्ष बढ़ता है... वन्यजीवों के इंसानों पर हमलों के बाद उनकी मौत की घटनाओं ने ग्रामीणों में आक्रोश भी पैदा किया है... यही कारण है कि लोग भी जंगली जानवरों को लेकर क्रूरता करने पर हिंसक दिखाई देते हैं... वन पंचायत सलाहकार परिषद के अध्यक्ष वीरेंद्र विश्व बताते हैं कि अधिकारियों की लापरवाही के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में लोग जंगली जानवरों का निवाला बन रहे हैं... और इससे लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है... वीरेंद्र बिष्ट कहते हैं कि वन महकमे के अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाए तो ऐसी घटनाओं को कम किया जा सकता है....

बाइट वीरेंद्र बिष्ट अध्यक्ष वन पंचायत सलाहकार परिषद

वन्यजीव मानव संघर्ष की क्यों बढ़ रही है घटनाएं

वन्य जीव और मानव संघर्ष की घटनाओं के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण वन्यजीवों के क्षेत्र का सिकुड़ना है...इसके अलावा जंगलों में मानवों का अतिक्रमण, जंगलों में आसानी से जंगली जानवरों को भोजन नही मिलना..जैसे कारण भी इसमें शामिल हैं....

राज्य में मानव और वन्यजीवों के बीच बढ़ते संघर्ष का कारण ही है की प्रदेश में 2006 से अब तक कुल 193 गुलदार इंसानों के लिए खतरनाक घोषित किए जा चुके हैं, 18 बाघों को 2006 से अब तक इंसानी जीवन के लिए खतरा माना जा चुका है... इसी तरह 3 हाथी भी इंसानों के लिए खतरनाक घोषित हो चुके हैं... यानी कुल 214 जंगली जानवरों को इंसानों के लिए खतरनाक मानकर इन्हें चिन्हित किया गया है....



Conclusion:
Last Updated : Oct 5, 2019, 4:40 PM IST
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