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चिंता की बातः बदलता मौसम और वनाग्नि बना ग्लेशियर के लिए बड़ा खतरा, वैज्ञानिक कर रहे आगाह

फरवरी से अभी तक वनों में 970 आग लगने के मामले सामने आए हैं, जिससे अभी तक 1274.36 हेक्टेयर वन क्षेत्र जल चुका है. वनाग्नि के चलते  हिमालयी क्षेत्रों में भी तापमान बढ़ने लगा है. तेजी से बदल रहे मौसम चक्र और पहाड़ों में वनाग्नि का असर ग्लेशियरों के लिए बड़ा खतरा बनने लगा है. वैज्ञानिक भी इन घटनाओं को भविष्य के लिए खतरे की घंटी मान रहे हैं.

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Published : May 22, 2019, 12:26 AM IST

वनाग्नि का असर ग्लेशियरों के लिए बन रहा बड़ा खतरा.

देहरादून: उत्तराखंड के वनों में आए-दिन आग लगने के मामले सामने आ रहे हैं. मौजूदा सीजन में फरवरी से अभी तक वनों में 970 आग लगने के मामले सामने आए हैं, जिससे अभी तक 1274.36 हेक्टेयर वन क्षेत्र जल चुका है. वनाग्नि के चलते हिमालयी क्षेत्रों में भी तापमान बढ़ने लगा है. तेजी से बदल रहे मौसम चक्र और पहाड़ों में वनाग्नि का असर ग्लेशियरों के लिए बड़ा खतरा बनने लगा है. वैज्ञानिक भी इन घटनाओं को भविष्य के लिए खतरे की घंटी मान रहे हैं. आखिर जंगलों में लगी आग कैसे हिमालय के ग्लेशियरों पर असर डाल रहा हैं, देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

जानकारी देते डाक्टर, वैज्ञानिक और पर्यावरणविद.

आपको बता दें कि जंगलों में लगातार हो रही वनाग्नि की घटनाओं के चलते वातावरण में तपिश बढ़ती जा रही है, जिसका खासा असर हिमालय के ग्लेशियरों पर पड़ता नजर आ रहा है.
ग्लेशियरों के बढ़ते तापमान पर वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक समीर तिवारी ने बताया कि ग्लेशियर हिमनद यानी जमी हुई नदी का एक रूप है. जिसे बनने में हजारों साल लगते हैं. ग्लेशियर शुद्ध जल के स्रोत हैं, दुनिया में जितनी भी मुख्य नदियां हैं, उनकी उत्पत्ति ग्लेशियर से ही होती है.

उन्होंने कहा कि हमारे देश में ग्लेशियर तीन-चार हज़ार मीटर की ऊंचाई से शुरू है जो कि बहुत कम ऊंचाई है, इस वजह से यहां के ग्लेशियर, आबादी के बेहद नजदीक हैं जब जंगलों में आग लगती है तो आग की तपिश सीधा ग्लेशियरों पर असर डालती है. आग की तपिश से ग्लेशियर के माइक्रोक्लाइमेट पर फर्क पड़ता है, साथ ही जंगलों में आग लगने से निकलने वाली डस्ट भी ग्लेशियरों के लिए हानिकारक है. इन सबसे ग्लेशियरों का तापमान बढ़ता है और ग्लेशियर अपनी जगह से आगे बढ़ने लगते हैं. उन्होंने कहा कि भविष्य में पीने के साफ और प्रयाप्त पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए 21वीं सदी में ग्लेशियरों का संरक्षण करना बेहद जरूरी है. इसके लिए जंगलों को वनाग्नि से बचाना बेहद जरूरी है.

वहीं पर्यावरणविद अनिल जोशी ने बताया कि वातावरण में तापक्रम किसी भी कारण से बढ़ता है तो इसका सीधा असर ग्लेशियर पर पड़ता है. हिमालय क्षेत्र सबसे संवेदनशील हैं, हम पहले ही जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणाम झेल रहे हैं. वहीं पहाड़ों के जंगलों में आग लगना एक गंभीर विषय है. उन्होंने बताया कि जंगल वातावरण के तापक्रम को नियंत्रित करने का सबसे बड़ा माध्यम है, जंगल में ही आग लग जाने से जंगल विपरीत व्यवहार करता है. लगातार वनाग्नि से तापमान बढ़ता है जिसका सीधा असर ग्लेशियरों पर पड़ता है.

आपको पिछले कुछ वर्षों के दौरान जंगल में लगी आग के आंकड़ों से रूबरू कराते हैं.

  • साल 2014 में जंगलों में आग लगने के 515 मामले सामने आये थे, जिसमें करीब 930.33 हेक्टेयर वन जले और 23.57 लाख का नुकसान हुआ था.
  • साल 2015 में जंगलों में आग लगने के 412 मामले सामने आये थे, जिनमें लगभग 701.61 हेक्टेयर वन जले और 7. 94 लाख की संपदा का नुकसान हुआ.
  • साल 2016 में जंगलों में तकरीबन 4433.75 हेक्टेयर वन जलकर राख हुए और 46.50 लाख का नुकसान हुआ था. साल 2017 में जंगलों में आग लगने के 805 मामले सामने आये, जिसमें करीब 1244.64 हेक्टेयर वन जल कर राख हुए और 18.34 लाख का नुकसान हुआ. साल 2018 में जंगलों में आग लगने के 2150 मामले सामने आये थे, जिनसे लगभग 4480.04 हेक्टेयर वन जले थे, और 86.05 लाख की संपदा का नुकसान हुआ था.

साल 2019 में 15 फरवरी से अभी तक तकरीबन 970 वनाग्नि के मामले सामने आए हैं. जिनसे अभी तक 1274.36 हेक्टेयर क्षेत्र में वन जल चुके हैं और 21.86 लाख की संपदा का नुकसान हुआ है.


वहीं जंगलों में लगने वाली आग से स्थानीय निवासियों को भी कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जंगलों के आस- पास रहने वाले स्थानीय निवासियों के लिए कई तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. डॉक्टर विमलेश जोशी ने बताया कि जंगलों की आग से निकलने वाले धुएं से स्वास और अस्थमा के मरीजों को दिक्कत होती है, साथ ही इसका असर बच्चों पर भी पड़ता है और चर्म रोग का खतरा भी बना रहता है.

देहरादून: उत्तराखंड के वनों में आए-दिन आग लगने के मामले सामने आ रहे हैं. मौजूदा सीजन में फरवरी से अभी तक वनों में 970 आग लगने के मामले सामने आए हैं, जिससे अभी तक 1274.36 हेक्टेयर वन क्षेत्र जल चुका है. वनाग्नि के चलते हिमालयी क्षेत्रों में भी तापमान बढ़ने लगा है. तेजी से बदल रहे मौसम चक्र और पहाड़ों में वनाग्नि का असर ग्लेशियरों के लिए बड़ा खतरा बनने लगा है. वैज्ञानिक भी इन घटनाओं को भविष्य के लिए खतरे की घंटी मान रहे हैं. आखिर जंगलों में लगी आग कैसे हिमालय के ग्लेशियरों पर असर डाल रहा हैं, देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

जानकारी देते डाक्टर, वैज्ञानिक और पर्यावरणविद.

आपको बता दें कि जंगलों में लगातार हो रही वनाग्नि की घटनाओं के चलते वातावरण में तपिश बढ़ती जा रही है, जिसका खासा असर हिमालय के ग्लेशियरों पर पड़ता नजर आ रहा है.
ग्लेशियरों के बढ़ते तापमान पर वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक समीर तिवारी ने बताया कि ग्लेशियर हिमनद यानी जमी हुई नदी का एक रूप है. जिसे बनने में हजारों साल लगते हैं. ग्लेशियर शुद्ध जल के स्रोत हैं, दुनिया में जितनी भी मुख्य नदियां हैं, उनकी उत्पत्ति ग्लेशियर से ही होती है.

उन्होंने कहा कि हमारे देश में ग्लेशियर तीन-चार हज़ार मीटर की ऊंचाई से शुरू है जो कि बहुत कम ऊंचाई है, इस वजह से यहां के ग्लेशियर, आबादी के बेहद नजदीक हैं जब जंगलों में आग लगती है तो आग की तपिश सीधा ग्लेशियरों पर असर डालती है. आग की तपिश से ग्लेशियर के माइक्रोक्लाइमेट पर फर्क पड़ता है, साथ ही जंगलों में आग लगने से निकलने वाली डस्ट भी ग्लेशियरों के लिए हानिकारक है. इन सबसे ग्लेशियरों का तापमान बढ़ता है और ग्लेशियर अपनी जगह से आगे बढ़ने लगते हैं. उन्होंने कहा कि भविष्य में पीने के साफ और प्रयाप्त पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए 21वीं सदी में ग्लेशियरों का संरक्षण करना बेहद जरूरी है. इसके लिए जंगलों को वनाग्नि से बचाना बेहद जरूरी है.

वहीं पर्यावरणविद अनिल जोशी ने बताया कि वातावरण में तापक्रम किसी भी कारण से बढ़ता है तो इसका सीधा असर ग्लेशियर पर पड़ता है. हिमालय क्षेत्र सबसे संवेदनशील हैं, हम पहले ही जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणाम झेल रहे हैं. वहीं पहाड़ों के जंगलों में आग लगना एक गंभीर विषय है. उन्होंने बताया कि जंगल वातावरण के तापक्रम को नियंत्रित करने का सबसे बड़ा माध्यम है, जंगल में ही आग लग जाने से जंगल विपरीत व्यवहार करता है. लगातार वनाग्नि से तापमान बढ़ता है जिसका सीधा असर ग्लेशियरों पर पड़ता है.

आपको पिछले कुछ वर्षों के दौरान जंगल में लगी आग के आंकड़ों से रूबरू कराते हैं.

  • साल 2014 में जंगलों में आग लगने के 515 मामले सामने आये थे, जिसमें करीब 930.33 हेक्टेयर वन जले और 23.57 लाख का नुकसान हुआ था.
  • साल 2015 में जंगलों में आग लगने के 412 मामले सामने आये थे, जिनमें लगभग 701.61 हेक्टेयर वन जले और 7. 94 लाख की संपदा का नुकसान हुआ.
  • साल 2016 में जंगलों में तकरीबन 4433.75 हेक्टेयर वन जलकर राख हुए और 46.50 लाख का नुकसान हुआ था. साल 2017 में जंगलों में आग लगने के 805 मामले सामने आये, जिसमें करीब 1244.64 हेक्टेयर वन जल कर राख हुए और 18.34 लाख का नुकसान हुआ. साल 2018 में जंगलों में आग लगने के 2150 मामले सामने आये थे, जिनसे लगभग 4480.04 हेक्टेयर वन जले थे, और 86.05 लाख की संपदा का नुकसान हुआ था.

साल 2019 में 15 फरवरी से अभी तक तकरीबन 970 वनाग्नि के मामले सामने आए हैं. जिनसे अभी तक 1274.36 हेक्टेयर क्षेत्र में वन जल चुके हैं और 21.86 लाख की संपदा का नुकसान हुआ है.


वहीं जंगलों में लगने वाली आग से स्थानीय निवासियों को भी कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जंगलों के आस- पास रहने वाले स्थानीय निवासियों के लिए कई तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. डॉक्टर विमलेश जोशी ने बताया कि जंगलों की आग से निकलने वाले धुएं से स्वास और अस्थमा के मरीजों को दिक्कत होती है, साथ ही इसका असर बच्चों पर भी पड़ता है और चर्म रोग का खतरा भी बना रहता है.

Intro:धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले उत्तराखण्ड के वन्य क्षेत्र इन दिनों धू-धू कर जल रहे हैं, प्रदेश के वन्य क्षेत्रो में लगी आग की लपटों की तपिस अब हिमालय को भी जलाने लगी हैं। बदलते मौसम के चक्र का प्रभाव यू तो पूरी दुनिया के लिए एक चिंता का विषय बना हुआ हैं। तेजी से बदलते मौसम चक्र के साथ ही पहाड़ो की आग का असर ग्लेशियरो के लिए भी एक बड़ा खतरा बनने लगा हैं। जिसे वैज्ञानिक भी भविष्य के लिए एक खतरे की घंटी मान रहे हैं। आखिर जंगलों में लगी की आग की तपिस कैसे हिमालय के ग्लेशियरों पर असर डाल रहा हैं, देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट में......


Body:गर्मी के सीजन में अमूमन उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की घटना तो आम हो गई है लेकिन जंगलों में लग रही आग की वजह से ना सिर्फ वन संपदा का नुकसान हो रहा है बल्कि इन जंगलों में लगने वाली आग के लपटों की तपिश अब हिमालय को भी जलाने लगी है। जी हां लगातार जंगलों में लग रही आग की वजह से वातावरण मे तपिस बढ़ती जा रही है जिस वजह से हिमालय के ग्लेशियरों पर इसका अच्छा खासा असर पड़ता नजर आ रहा है। क्या है ग्लेशियर...... वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक ने बताया कि ग्लेशियर का मतलब होता है हिमनद यानी जमी हुई नदी, और ग्लेशियर को बनने में हजारों साल लग जाते हैं। ग्लेशियर शुद्ध पानी का एक स्रोत है जो बहुत ही जरूरी है। और जितनी भी मुख्य नदियां हैं, उनकी उत्पत्ति ग्लेशियर से ही होती है। क्योंकि जैसे- जैसे ग्लेशियर पिघलता है वैसे-वैसे पानी पहाड़ों के रास्ते होते हुए जमीन पर आती है। और यही वजह है की 21वी सदी में ग्लेशियरों का संरक्षण करना बेहद जरूरी है। क्योंकि आने वाले भविष्य में अगर पीने का प्रयाप्त और साफ पानी चाहिए, तो अभी से ही ग्लेशियरों का संरक्षण करना पड़ेगा। वनों में लग रही आग ग्लेशियर पर सीधा डाल रहा असर.... देश में ग्लेशियर तीन-चार हज़ार मीटर की ऊंचाई से शुरू हो जाती है। और हमारे देश के ग्लेशियर बहुत कम ऊँचाई पर है इसी वजह से कि यहाँ के ग्लेशियर, ह्यूमन पापुलेशन के बेहद नजदीक है। जब जंगलों में आग लगती है तो आग की तपिस सीधा ग्लेशियरों पर असर डालती है। क्योकि आग की तपिस से ग्लेशियर के माइक्रोक्लाइमेट पर फर्क पड़ता है। इसके साथ ही जंगलों में आग लगने से जो डस्ट निकलती है। वह भी ग्लेशियरों में जमा होती है। जो ग्लेशियर के बहुत हानिकारक है। इसके लिए जंगलों में आग ना लगने इसकी व्यवस्था होनी चाहिए ताकि ग्लेशियर के नजदीक पहाड़ी जंगलों में आग ना लग सके। बाइट - समीर तिवारी (वैज्ञानिक) जंगलों में आग लगने गंभीर विषय...... वही पर्यावरणविद अनिल जोशी ने बताया कि वातावरण में तापक्रम किसी भी कारण से अगर बढ़ता है तो इसका असर ग्लेशियर पर पड़ता है। क्योंकि हिमालय सबसे संवेदनशील है और अगर इसके बाद भी पहाड़ों के जंगलों आग लगती है तो यह एक गंभीर विषय है, क्योंकि अगर इस पर गंभीरता नहीं दिखाई गई तो हम पहले ही जलवायु परिवर्तन के बड़े गंभीर परेशानी से झूझ रहे है। जंगल अपने आप मे तापक्रम को नियंत्रित करने का एक बड़ा माध्यम है लेकिन अगर जंगल मे ही आग लग जाती है तो जंगल उसके विपरीत व्यवहार करता है। तो इससे साफ है कि स्थानीय तापमान भी बढ़ने से ग्लेशियर पर फर्क पड़ेगा।  बाइट - अनिल जोशी (पर्यावरण विद)  जंगलों में लगे आग के आंकड़े..... - साल 2014 में जंगलों में आग लगने के 515 मामले सामने आये थे जिसमें से तकरीबन 930.33 हैक्टियर वन जल कर राख हो गया था और 23.57 लाख का नुकसान हुआ था।  - साल 2015 में जंगलों में आग लगने के 412 मामले सामने आये थे जिसमें से तकरीबन 701.61 हैक्टियर वन जल कर राख हो गया था और 7. 94 लाख का नुकसान हुआ था।  - साल 2016 में जंगलों में तकरीबन 4433.75 हैक्टियर वन जल कर राख हो गया था और 46.50 लाख का नुकसान हुआ था।  - साल 2017 में जंगलों में आग लगने के 805 मामले सामने आये थे जिसमें से तकरीबन 1244.64 हैक्टियर वन जल कर राख हो गया था और 18.34 लाख का नुकसान हुआ था।  - साल 2018 में जंगलों में आग लगने के 2150 मामले सामने आये थे जिसमें से तकरीबन 4480.04 हैक्टियर वन जल कर राख हो गया था और 86.05 लाख का नुकसान हुआ था।  - साल 2019 में मौजूदा सीजन की बात की जाए तो हालत इस बार भी गभींर है। 15 फरवरी से अभी तक तकरीबन 970 मामले सामने आये है। और अभी तक वनाग्नि से 1274.36 हैक्टियर वन जल कर राख हो गया है और अभी तक 21.86 लाख का नुकसान हुआ है।  जंगलों में आग से स्थानीय निवासियों को भी पड़ता है फर्क...... जगलो में आग लगने से वन संपदा का नुकसान तो होता ही है इसके साथ ही जंगलों के आस- पास रहने वाले स्थानियो निवासियों को कई तरह की बीमारियां होने का खतरा भी बढ़ जाता है। वही डॉक्टर विमलेश जोशी ने बताया कि जंगलों में आग लगने के बाद निकलने वाले धुंआ से स्वास और अस्थमा के मरीजों को दिक्कत होगी साथ ही इसका असर बच्चों पर भी पड़ेगा। इसके साथ ही चर्म रोग भी हो सकता है और जंगलों में आग लगने से उस क्षेत्र में गर्मी बढ़ेगी जिसे वह के लोगो को डिहाइड्रेशन भी हो सकती है। ऐसे में स्थानीय निवशियो को सावधानी बरतनी चाहिए।  बाइट - विमलेश जोशी (डॉक्टर)


Conclusion:उत्तराखंड के जंगलों में लग रही आग से न सिर्फ वन संपदा का नुकसान हो रहा है बल्कि ग्लेशियर पर भी आग के तपिस का असर पड़ रहा है। लेकिन मौजूद समय मे भविष्य की इस गंभीर चुनोती से निपटने के लिए फिलहाल धरातल पर कोई ठोस कार्य होता हुआ दिखाई नही दे रहा हैं। 
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