देहरादून: देश के किसी भी राज्य के गांवों का स्थानीय स्तर पर विकास करने में पंचायतों का बड़ा योगदान होता है. क्योंकि गांव की जमीनी समस्याएं पंचायतों को बेहतर तरीके से पता होती है. यही वजह है कि पंचायतों को गांव का सरकार कहा जाता है. लेकिन उत्तराखंड के गांव के सरकार की बात करें तो प्रदेश के गांव के सरकार के पास एक भी अधिकार नहीं है. आखिर क्या है असल स्तिथि, देखिए ईटीवी भारत की रिपोर्ट...
बता दें कि पंचायतों के पास वो तमाम अधिकार होते हैं, जिससे वो अपने स्तर की समस्या को सुलझा सकता हैं. लेकिन उत्तराखंड राज्य में संविधान के जरिए सौंपे गए अधिकारों में से एक भी अधिकार पंचायत के पास नहीं है. उन अधिकारों पर सरकारी विभाग ही अपना अधिकार चला रहा है. हालांकि, गांव की समस्याओं में सबसे अहम है पेयजल, शिक्षा और स्वास्थ्य, इसके लिए भी पंचायतों को सरकार का मुंह ताकना पड़ता है.
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पंचायतों के अधिकारों को लेकर संविधान में संशोधन
केंद्र सरकार ने स्थानीय स्तर पर गांवों के विकास के लिए और पंचायतों को अधिकार देने को लेकर साल 1992 में 73वें संविधान में संशोधन किया था. जिसमे पंचायतों को 29 विषयों पर अधिकार दिया गया था. ताकि पंचायतों से सरकारी विभागों के अधिकारों को खत्म किया जा सके. लेकिन अभी भी मूलभूत सुविधाओं पर सरकारी विभागों का ही अधिकार है. ग्रामीण क्षेत्र में बने प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय पर शिक्षा विभाग, गांवों में पेयजल आपूर्ति की व्यवस्था पेयजल विभाग और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्वास्थ्य विभाग के अधीन है.
73वें संविधान अधिनियम के अनुसार पंचायतों को अधिकार
केंद्र सरकार ने साल 1992 में पंचायतों को संवैधानिक दर्जा देते हुए संविधान में संशोधन किया था. जिसमें पंचायतों को कृषि एवं कृषि विस्तार, भूमि सुधार, चकबंदी, लघु सिंचाई, जल व्यवस्था, पशुपालन, डेयरी एवं मुर्गी पालन, मछली पालन, सामाजिक वानिकी, वन उपज, लघु उद्योग, खादी एवं कुटीर उद्योग, ग्रामीण आवास, पेयजल, ईंधन एवं चारा, सड़क, पुलिया, ग्रामीण विद्युतीकरण एवं सप्लाई, गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत, गरीबी उन्मूलन के कार्य, प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा, तकनीकी एवं व्यवसायिक शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, पुस्तकालय, सांस्कृतिक कार्यक्रम, मंडियां एवं मेले, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एवं स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, महिला एवं बाल कल्याण, समाज कल्याण, अनुसूचित जाति एवं जनजातियों का कल्याण, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, सार्वजनिक संपत्तियों का रख रखाव जैसे विषयों का अधिकार सौंपा गया था.
गौरतलब है कि उत्तराखंड राज्य बने 19 साल होने को है, लेकिन अभी तक प्रदेश में पंचायतों को अधिकार देने को लेकर कोई ठोस पहल नहीं की गई. हालांकि राज्य सरकार ने पंचायतों के 29 अधिकारों में से 14 अधिकारों के विभागों की एक्टिविटी मैपिंग तो की लेकिन पंचायतों को असल में अधिकार देने को लेकर विभागों के नियमविली में संसोधन नहीं किया. ऐसे में पंचायतों को उनके अधिकार असल रूप से कब तक मिल पाएंगे, ये एक बड़ा सवाल है.