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कांवड़ यात्रा की चकाचौंध में इनको होता है 1400 करोड़ का नुकसान, जानें कौन ?

हरिद्वार, ऋषिकेश और जहां-जहां तक कांवड़िए जाते हैं, वहां के व्यापारियों को कांवड़ यात्रा के दौरान अच्छी कमाई की उम्मीद होती है. व्यापारी कांवड़ियों को लेकर उत्साहित होते हैं. लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जिसे कांवड़ यात्रा के दौरान हफ्ते भर में ही 1400 करोड़ का नुकसान होता है. कौन हैं ये, कैसे होता है इतना बड़ा नुकसान, पढ़िए ये रिपोर्ट...

kanwar yatra
कांवड़ यात्रा 2022
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Published : Jul 23, 2022, 1:36 PM IST

Updated : Jul 23, 2022, 9:02 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड के हरिद्वार और ऋषिकेश में आयोजित होने वाले कांवड़ मेले से हजारों लाखों परिवार पलते हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि कांवड़ मेले का इंतजार उत्तराखंड से लेकर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों को भी रहता है. करोड़ों की संख्या में गंगाजल लेने आने वाले श्रद्धालुओं से लगभग 10 दिन धर्मनगरी हरिद्वार रंगी रहती है. लेकिन कांवड़ियों की इस भीड़ से रोजाना लगभग डेढ़ सौ करोड़ रुपए का नुकसान भी हो रहा है. हैरानी की बात यह है कि इसकी खबर सरकार को भी है, प्रशासन को भी है और लोगों को भी है. बावजूद इसके आज तक इसका कोई भी समाधान नहीं निकला है.

शून्य रहता है बैठकों का नतीजा: हम बात कर रहे हैं देहरादून और हरिद्वार के सिडकुल की. कांवड़ यात्रा से पहले जिले के तमाम अधिकारी इंडस्ट्री के लोगों के साथ बैठ कर बात करते हैं. आश्वासन दिया जाता है कि इंडस्ट्री को किसी भी तरह का कोई नुकसान होने नहीं दिया जाएगा. लेकिन ऐसा होता नहीं है. इस बार भी हाईवे बंद होने की वजह से इंडस्ट्री से जुड़े लोग बेहद निराश और परेशान हैं.

जानकारी देते एक्सपर्ट.
ये भी पढ़ें:
हरिद्वार में कांवड़ियों की भीड़ के बीच भी नाखुश हैं 70% व्यापारी, ये है कारण

16 साल से होता आ रहा है ये काम: कांवड़ यात्रा के समय पुलिस प्रशासन हर साल रूट डायवर्जन प्लान तैयार करता है. यह रूट डायवर्जन प्लान तैयार होता है, ताकि हरिद्वार और ऋषिकेश में आने वाले शिव भक्तों को आसानी से यहां से विदा किया जा सके. करोड़ों की संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं का ये एकमात्र रास्ता होता है. लिहाजा सालों से पुलिस प्रशासन जलाभिषेक से लगभग 6 दिन पहले इसको बंद कर देता है. इसके साथ ही वाहनों का प्रवेश प्रदेश की सीमा में पूरी तरह से प्रतिबंधित हो जाता है. इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए हर साल सिडकुल एसोसिएशन सहित फैक्ट्रियों से जुड़े तमाम अधिकारियों के साथ प्रशासन बैठक भी करता है. एक ब्लूप्रिंट तैयार किया जाता है. लेकिन नतीजा हर साल ढाक के तीन पात ही रहता है. ऐसे में हाईवे बंद होने की वजह से ना तो माल सिडकुल तक पहुंच पाता है. ना ही यहां से बना हुआ माल बाहर जाता है.

6 दिन में लगभग 1400 करोड़ का नुकसान: उत्तराखंड सिडकुल मैन्युफेक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष हरेंद्र गर्ग का कहना है कि यात्रा होनी चाहिए और ये बहुत जरूरी है. लेकिन अब तो सड़कें अच्छी हैं. सब सुविधा है. उसके बाद भी वही सब हो रहा है जो आज से 16 साल पहले होता था जब उत्तराखंड में सिडकुल बने थे. हाईवे के बंद या वनवे होने की वजह से एक तरफ कांवड़ चलती है तो दूसरी ओर आने व जाने वाली गाड़ियां, शहर में या ये कहें कि राज्य की सीमा में किसी भी बड़े ट्रक को आने नहीं दिया जाता है.

इस वजह से होता है नुकसान: ये समस्या सिर्फ उत्तराखंड की नहीं है, बल्कि यूपी में भी इन्हें रोक दिया जाता है. जिसकी वजह से रोजाना सैकड़ों टन माल इधर उधर नहीं जा पाता है. एक अनुमान के मुताबिक देहरादून और हरिद्वार सिडकुल को रोजाना लगभग डेढ़ सौ करोड़ का नुकसान हो रहा है और ये सब लगभग 6 से 7 दिन तक यूं ही चलेगा. इस बार प्रशासन ने ये व्यवस्था 20 जुलाई से शुरू की है जो 26 जुलाई तक जारी रहेगी. अब शहर को जोड़ने के लिए बड़े फ्लाईओवर हैं. उसके बाद भी यही हाल है. ऐसे में इन 6 दिनों में लगभग 1400 करोड़ रुपए का नुकसान सिडकुल को सीधा-सीधा हो रहा है. इसके साथ ही सभी जगह फैक्ट्री पूरी तरह शटडाउन हो जाती हैं. क्योंकि ना तो वर्कर्स का मूवमेंट हो पाता है, न किसी और का. ऐसे में फैक्ट्री का चलना मुश्किल होता है.
ये भी पढ़ें: हरिद्वार में कांवड़ियों पर हेलीकॉप्टर से बरसाये गये फूल

रात में ढील का कोई नहीं मिलता फायदा: इसी समस्या से उत्तराखंड के वो ट्रांसपोर्टर भी जूझते आ रहे हैं जो सालों से फैक्ट्रियों का माल इधर से उधर लेकर जाते हैं. ट्रांसपोर्टर सुरेश शर्मा की मानें तो वो लगातार प्रशासन ये इस बाबत बातचीत करते हैं. लेकिन होता कुछ नहीं है. हां इतना जरूर है कि रात को कभी-कभी भीड़ काम दिखने पर हाईवे खोला जा रहा है. वो भी 3 घंटे के लिए. ऐसे में ख़तरा ये रहता है कि बड़ी गाड़ियां अगर शहर की तरफ आएंगी तो कहीं किसी दुर्घटना का शिकार ना हो जाएं. क्योंकि पूरे हाईवे पर शिव भक्त रहते हैं. इसलिए भी ड्राइवर ऐसा रिस्क लेने से बचते हैं. यही नहीं यूपी में अगर किसी गाड़ी को रोका गया है तो वो अगर रात को भी कुछ किलोमीटर गाड़ी चला भी ले तो उत्तराखंड आने में एक-एक गाड़ी को बहुत समय लग रहा है. इसके साथ ही सभी गाड़ियों को नहीं भेजा जाता है. कुछ एक गाड़ियों को धीरे-धीरे आगे बढ़ने की परमिशन होती है.

पुलिस प्रशासन का अपना राग: उधर हरिद्वार एसएसपी योगेंद्र रावत की मानें तो ये सभी व्यवस्थाएं शिव भक्तों की भीड़ के हिसाब से होती हैं. इस बार भी यही आकलन है कि संख्या करोड़ों में पहुंचेगी. इसलिए हाईवे पर एक तरफ गाड़ियों को चलाया जा रहा है. प्रशासन इस बात का ध्यान रखते हुए रात को कुछ देर के लिए ढील देता है. बाकी जैसे-जैसे व्यवस्थाएं और अधिक बढ़ रही हैं, सिडकुल या अन्य किसी भी व्यक्ति को कोई परेशानी ना हो इसके लिए भी हम प्रयासरत हैं.
ये भी पढ़ें: हरिद्वार में पंचक खत्म होने के बाद डाक कांवड़ ने पकड़ा जोर, आधा हाईवे कांवड़ियों के हवाले

रोजाना उत्तराखंड के दो जिलों में दाखिल होती हैं 3500 गाडियां: आपको बता दें कि हरिद्वार के भगवानपुर में रोजाना 1 हजार बड़े वाहनों का आना-जाना होता है. जबकि हरिद्वार सिडकुल में ये संख्या 1500 तक जाती है. इसके साथ ही देहरादून के सेलाकुई में भी लगभग एक हजार गाड़ियां रोजाना माल को इधर से उधर ले जाने के लिए इस्तमाल होती हैं जो फ़िलहाल जहां की तहां खड़ी हुई हैं.

देहरादून: उत्तराखंड के हरिद्वार और ऋषिकेश में आयोजित होने वाले कांवड़ मेले से हजारों लाखों परिवार पलते हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि कांवड़ मेले का इंतजार उत्तराखंड से लेकर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों को भी रहता है. करोड़ों की संख्या में गंगाजल लेने आने वाले श्रद्धालुओं से लगभग 10 दिन धर्मनगरी हरिद्वार रंगी रहती है. लेकिन कांवड़ियों की इस भीड़ से रोजाना लगभग डेढ़ सौ करोड़ रुपए का नुकसान भी हो रहा है. हैरानी की बात यह है कि इसकी खबर सरकार को भी है, प्रशासन को भी है और लोगों को भी है. बावजूद इसके आज तक इसका कोई भी समाधान नहीं निकला है.

शून्य रहता है बैठकों का नतीजा: हम बात कर रहे हैं देहरादून और हरिद्वार के सिडकुल की. कांवड़ यात्रा से पहले जिले के तमाम अधिकारी इंडस्ट्री के लोगों के साथ बैठ कर बात करते हैं. आश्वासन दिया जाता है कि इंडस्ट्री को किसी भी तरह का कोई नुकसान होने नहीं दिया जाएगा. लेकिन ऐसा होता नहीं है. इस बार भी हाईवे बंद होने की वजह से इंडस्ट्री से जुड़े लोग बेहद निराश और परेशान हैं.

जानकारी देते एक्सपर्ट.
ये भी पढ़ें: हरिद्वार में कांवड़ियों की भीड़ के बीच भी नाखुश हैं 70% व्यापारी, ये है कारण

16 साल से होता आ रहा है ये काम: कांवड़ यात्रा के समय पुलिस प्रशासन हर साल रूट डायवर्जन प्लान तैयार करता है. यह रूट डायवर्जन प्लान तैयार होता है, ताकि हरिद्वार और ऋषिकेश में आने वाले शिव भक्तों को आसानी से यहां से विदा किया जा सके. करोड़ों की संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं का ये एकमात्र रास्ता होता है. लिहाजा सालों से पुलिस प्रशासन जलाभिषेक से लगभग 6 दिन पहले इसको बंद कर देता है. इसके साथ ही वाहनों का प्रवेश प्रदेश की सीमा में पूरी तरह से प्रतिबंधित हो जाता है. इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए हर साल सिडकुल एसोसिएशन सहित फैक्ट्रियों से जुड़े तमाम अधिकारियों के साथ प्रशासन बैठक भी करता है. एक ब्लूप्रिंट तैयार किया जाता है. लेकिन नतीजा हर साल ढाक के तीन पात ही रहता है. ऐसे में हाईवे बंद होने की वजह से ना तो माल सिडकुल तक पहुंच पाता है. ना ही यहां से बना हुआ माल बाहर जाता है.

6 दिन में लगभग 1400 करोड़ का नुकसान: उत्तराखंड सिडकुल मैन्युफेक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष हरेंद्र गर्ग का कहना है कि यात्रा होनी चाहिए और ये बहुत जरूरी है. लेकिन अब तो सड़कें अच्छी हैं. सब सुविधा है. उसके बाद भी वही सब हो रहा है जो आज से 16 साल पहले होता था जब उत्तराखंड में सिडकुल बने थे. हाईवे के बंद या वनवे होने की वजह से एक तरफ कांवड़ चलती है तो दूसरी ओर आने व जाने वाली गाड़ियां, शहर में या ये कहें कि राज्य की सीमा में किसी भी बड़े ट्रक को आने नहीं दिया जाता है.

इस वजह से होता है नुकसान: ये समस्या सिर्फ उत्तराखंड की नहीं है, बल्कि यूपी में भी इन्हें रोक दिया जाता है. जिसकी वजह से रोजाना सैकड़ों टन माल इधर उधर नहीं जा पाता है. एक अनुमान के मुताबिक देहरादून और हरिद्वार सिडकुल को रोजाना लगभग डेढ़ सौ करोड़ का नुकसान हो रहा है और ये सब लगभग 6 से 7 दिन तक यूं ही चलेगा. इस बार प्रशासन ने ये व्यवस्था 20 जुलाई से शुरू की है जो 26 जुलाई तक जारी रहेगी. अब शहर को जोड़ने के लिए बड़े फ्लाईओवर हैं. उसके बाद भी यही हाल है. ऐसे में इन 6 दिनों में लगभग 1400 करोड़ रुपए का नुकसान सिडकुल को सीधा-सीधा हो रहा है. इसके साथ ही सभी जगह फैक्ट्री पूरी तरह शटडाउन हो जाती हैं. क्योंकि ना तो वर्कर्स का मूवमेंट हो पाता है, न किसी और का. ऐसे में फैक्ट्री का चलना मुश्किल होता है.
ये भी पढ़ें: हरिद्वार में कांवड़ियों पर हेलीकॉप्टर से बरसाये गये फूल

रात में ढील का कोई नहीं मिलता फायदा: इसी समस्या से उत्तराखंड के वो ट्रांसपोर्टर भी जूझते आ रहे हैं जो सालों से फैक्ट्रियों का माल इधर से उधर लेकर जाते हैं. ट्रांसपोर्टर सुरेश शर्मा की मानें तो वो लगातार प्रशासन ये इस बाबत बातचीत करते हैं. लेकिन होता कुछ नहीं है. हां इतना जरूर है कि रात को कभी-कभी भीड़ काम दिखने पर हाईवे खोला जा रहा है. वो भी 3 घंटे के लिए. ऐसे में ख़तरा ये रहता है कि बड़ी गाड़ियां अगर शहर की तरफ आएंगी तो कहीं किसी दुर्घटना का शिकार ना हो जाएं. क्योंकि पूरे हाईवे पर शिव भक्त रहते हैं. इसलिए भी ड्राइवर ऐसा रिस्क लेने से बचते हैं. यही नहीं यूपी में अगर किसी गाड़ी को रोका गया है तो वो अगर रात को भी कुछ किलोमीटर गाड़ी चला भी ले तो उत्तराखंड आने में एक-एक गाड़ी को बहुत समय लग रहा है. इसके साथ ही सभी गाड़ियों को नहीं भेजा जाता है. कुछ एक गाड़ियों को धीरे-धीरे आगे बढ़ने की परमिशन होती है.

पुलिस प्रशासन का अपना राग: उधर हरिद्वार एसएसपी योगेंद्र रावत की मानें तो ये सभी व्यवस्थाएं शिव भक्तों की भीड़ के हिसाब से होती हैं. इस बार भी यही आकलन है कि संख्या करोड़ों में पहुंचेगी. इसलिए हाईवे पर एक तरफ गाड़ियों को चलाया जा रहा है. प्रशासन इस बात का ध्यान रखते हुए रात को कुछ देर के लिए ढील देता है. बाकी जैसे-जैसे व्यवस्थाएं और अधिक बढ़ रही हैं, सिडकुल या अन्य किसी भी व्यक्ति को कोई परेशानी ना हो इसके लिए भी हम प्रयासरत हैं.
ये भी पढ़ें: हरिद्वार में पंचक खत्म होने के बाद डाक कांवड़ ने पकड़ा जोर, आधा हाईवे कांवड़ियों के हवाले

रोजाना उत्तराखंड के दो जिलों में दाखिल होती हैं 3500 गाडियां: आपको बता दें कि हरिद्वार के भगवानपुर में रोजाना 1 हजार बड़े वाहनों का आना-जाना होता है. जबकि हरिद्वार सिडकुल में ये संख्या 1500 तक जाती है. इसके साथ ही देहरादून के सेलाकुई में भी लगभग एक हजार गाड़ियां रोजाना माल को इधर से उधर ले जाने के लिए इस्तमाल होती हैं जो फ़िलहाल जहां की तहां खड़ी हुई हैं.

Last Updated : Jul 23, 2022, 9:02 PM IST
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