देहरादून: मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कोई भी मुश्किल आड़े नहीं आती. हौसलों के सहारे भरी गई उड़ान जीत के प्लेटफार्म पर आकर ही रुकती है. कुछ ऐसी ही उम्मीदों के साथ एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर अमीषा चौहान ने पर्वतारोहण का सफर शुरू किया, जो कि उन्हें माउंट एवरेस्ट की ऊंचाइयों पर ले गया. अमीषा चौहान की कामयाबी पर Etv भारत की टीम उनसे खास बातचीत की.
जज्बाः हौसलों से मिली उम्मीदों को उड़ान और फतह कर लिया माउंट एवरेस्ट
माउंट एवरेस्ट फतह कर नकरौंदा वापस लौटीं अमीषा चौहान ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया कि वह बचपन में पायलट बनने का सपना देखती थीं, लेकिन किन्हीं कारणों के चलते उनका यह सपना पूरा नहीं हो पाया.
अमीषा चौहान ने माउंट एवरेस्ट पर लहराया भारत का तिरंगा.
देहरादून: मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कोई भी मुश्किल आड़े नहीं आती. हौसलों के सहारे भरी गई उड़ान जीत के प्लेटफार्म पर आकर ही रुकती है. कुछ ऐसी ही उम्मीदों के साथ एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर अमीषा चौहान ने पर्वतारोहण का सफर शुरू किया, जो कि उन्हें माउंट एवरेस्ट की ऊंचाइयों पर ले गया. अमीषा चौहान की कामयाबी पर Etv भारत की टीम उनसे खास बातचीत की.
Intro:special Interview
one to one Amisha chauhan . sending the still photo from mail.
देहरादून- मन में कुछ कर गुजर जाने का जज्बा हो तो कोई भी मुश्किल बाधा नहीं बन सकती । एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर से पर्वतारोही का सफर शुरू करने वाली अमीषा चौहान की दास्तान यह बात बखूबी साबित करती है।
बता दें कि देहरादून के नकरौंदा की रहने वाली 29 वर्षीय अमीषा चौहान ने विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर प्रदेश के साथ ही देश का नाम विश्व भर में रोशन किया है ।
गौरतलब है कि 23 मई 2019 अमीषा की जिंदगी का वह दिन था जब उन्होंने कठिन परिस्तिथियों का सामना कर विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट में देश का तिरंगा फहराया था ।
विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर शनिवार को अपने घर नकरौंदा लौटे अमीषा चौहान से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की। इस दौरान अमीषा ने बताया कि बचपन में वह पायलट बनने का सपना देखती थी ।लेकिन कई कारणों के चलते उनका यह सपना पूरा नही हो पाया । जिसके बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर वह उन्होंने नोएडा में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर काम करना शुरू किया लेकिन इस काम में उनका मन ज्यादा दिन नही लग पाया और साल 2017 में उन्होंने उत्तरकाशी में पहली ट्रैकिंग की । जिसके बाद उनकी मुलाकात बचेंद्री पाल से हुई जो कि भारत की माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली महिला हैं । अमीषा बताते हैं कि बचेंद्री पाल से मिलने के बाद उन्हें लगा कि पायलट बन आसमान छूने का सपना तो उनका पूरा नहीं हुआ पर एक पर्वतारोही बन कर भी पर आसमान छूने का एहसास कर सकती हैं। इस तरह एक पर्वतारोही के तौर पर उनकी नई यात्रा की शुरुआत हुई । जिसमें उनके परिवारजनों ने उन्हें अपना पूरा सहयोग किया ।
Body:बता दे की अमीषा चौहान माउंट एवेरेस्ट फतह करने से पहले विश्व के 7 महाद्वीपों की कुछ अन्य ऊंची चोटियों को भी फतह कर चुकी है । जिसमे अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी किलिमंजारो शामिल है । इसके साथ ही अमीषा यूरोप की अल्ब्यूश चोटी को भी फतह कर चुकी है ।
Conclusion:ईटीवी भारत से खास बातचीत में अमीषा चौहान का कहना था कि किसी भी ऊंची चोटी को फतह करने में लाखों रुपए का खर्च आता है। इस खर्च को बार-बार उठा पाना एक मध्यमवर्गीय परिवार के लिए काफी कठिन हो जाता है । वह चाहती हैं कि प्रदेश सरकार को भी देश के अन्य राज्यों तर्ज पर पर्वतारोहियों को और अधिक वित्तीय मदद प्रदान करनी चाहिए । जिससे कि प्रदेश के अन्य पर्वतारोही भी विश्व की ऊंची चोटियों को छूकर देश का नाम रोशन कर सकें ।
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देहरादून- मन में कुछ कर गुजर जाने का जज्बा हो तो कोई भी मुश्किल बाधा नहीं बन सकती । एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर से पर्वतारोही का सफर शुरू करने वाली अमीषा चौहान की दास्तान यह बात बखूबी साबित करती है।
बता दें कि देहरादून के नकरौंदा की रहने वाली 29 वर्षीय अमीषा चौहान ने विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर प्रदेश के साथ ही देश का नाम विश्व भर में रोशन किया है ।
गौरतलब है कि 23 मई 2019 अमीषा की जिंदगी का वह दिन था जब उन्होंने कठिन परिस्तिथियों का सामना कर विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट में देश का तिरंगा फहराया था ।
विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर शनिवार को अपने घर नकरौंदा लौटे अमीषा चौहान से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की। इस दौरान अमीषा ने बताया कि बचपन में वह पायलट बनने का सपना देखती थी ।लेकिन कई कारणों के चलते उनका यह सपना पूरा नही हो पाया । जिसके बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर वह उन्होंने नोएडा में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर काम करना शुरू किया लेकिन इस काम में उनका मन ज्यादा दिन नही लग पाया और साल 2017 में उन्होंने उत्तरकाशी में पहली ट्रैकिंग की । जिसके बाद उनकी मुलाकात बचेंद्री पाल से हुई जो कि भारत की माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली महिला हैं । अमीषा बताते हैं कि बचेंद्री पाल से मिलने के बाद उन्हें लगा कि पायलट बन आसमान छूने का सपना तो उनका पूरा नहीं हुआ पर एक पर्वतारोही बन कर भी पर आसमान छूने का एहसास कर सकती हैं। इस तरह एक पर्वतारोही के तौर पर उनकी नई यात्रा की शुरुआत हुई । जिसमें उनके परिवारजनों ने उन्हें अपना पूरा सहयोग किया ।
Body:बता दे की अमीषा चौहान माउंट एवेरेस्ट फतह करने से पहले विश्व के 7 महाद्वीपों की कुछ अन्य ऊंची चोटियों को भी फतह कर चुकी है । जिसमे अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी किलिमंजारो शामिल है । इसके साथ ही अमीषा यूरोप की अल्ब्यूश चोटी को भी फतह कर चुकी है ।
Conclusion:ईटीवी भारत से खास बातचीत में अमीषा चौहान का कहना था कि किसी भी ऊंची चोटी को फतह करने में लाखों रुपए का खर्च आता है। इस खर्च को बार-बार उठा पाना एक मध्यमवर्गीय परिवार के लिए काफी कठिन हो जाता है । वह चाहती हैं कि प्रदेश सरकार को भी देश के अन्य राज्यों तर्ज पर पर्वतारोहियों को और अधिक वित्तीय मदद प्रदान करनी चाहिए । जिससे कि प्रदेश के अन्य पर्वतारोही भी विश्व की ऊंची चोटियों को छूकर देश का नाम रोशन कर सकें ।