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यतीश्वरानंद चुनाव हारे फिर भी आश्रम में 'उत्सव', मदन कौशिक जीतकर भी हैं 'तन्हा'

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Published : Apr 28, 2022, 10:17 AM IST

Updated : Apr 28, 2022, 2:07 PM IST

दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जो पारिवारिक या खून से संबंधित न होने के बावजूद भी इनसे कम भरोसेमंद नहीं होता. इन दिनों उत्तराखंड के सीएम धामी की अपने हारे विधायकों स्वामी यतीश्वरानंद और संजय गुप्ता से दोस्ती की चर्चा हर तरफ है. इससे भी ज्यादा चर्चा स्वामी यतीश्वरानंद के आश्रम में लग रही फरियादियों की भीड़ और अफसरों के जमावड़े की है. कहा जा रहा है कि स्वामी यतीश्वरानंद चुनाव हारकर भी जीते हैं. वहीं जीतकर भी बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के यहां सन्नाटा है.

YATISHWARANAND NEWS
स्वामी यतीश्वरानंद समाचार

देहरादून: उत्तराखंड के विधानसभा चुनावों में इस बार कई तरह के मिथक टूटे और कई नए मिथक बने. लेकिन सबसे ज्यादा प्रदेश में अगर चर्चाओं में कुछ रहा तो वह रहा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का दोस्ती भरा अंदाज. सीएम बनने से पहले जब पुष्कर सिंह धामी एक विधायक हुआ करते थे, तब विधानसभा में आते-जाते हुए उन्हें शायद ही किसी ने अकेला देखा होगा. क्योंकि उनके साथ उस वक्त हरिद्वार से विधायक संजय गुप्ता और स्वामी यतीश्वरानंद ही रहते थे. लिहाजा पुष्कर सिंह धामी ने यह दोस्ती मुख्यमंत्री बनने के बाद भी नहीं छोड़ी.

हारकर भी स्वामी के द्वार पर भीड़: पुष्कर सिंह धामी के दोबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद भले ही उनके दोनों दोस्त चुनाव हार गए हों, लेकिन आज भी उत्तराखंड के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण जिले हरिद्वार में अगर सत्ता का केंद्र कहीं पर बना हुआ है, तो वह स्वामी यतीश्वरानंद का आश्रम ही है. यह बात इसलिए भी अजीब है, क्योंकि कल तक जो अधिकारी, जो फरियादी प्रदेश अध्यक्ष और हरिद्वार से 5 बार के विधायक मदन कौशिक के यहां दिखाई देते थे, आज वह हारे हुए प्रत्याशी और बीजेपी नेता स्वामी यतीश्वरानंद के यहां दिखाई दे रहे हैं. शायद यही कारण है कि आम लोग यह कहने लगे हैं कि स्वामी हार कर भी जीते हुए हैं जबकि मदन कौशिक जीतने के बाद भी हार गए.
ये भी पढ़ें: कांग्रेस और बसपा पर जमकर बरसे यतीश्वरानंद, बोले- शांत फिजाओं में फैला रहे सांप्रदायिकता जहर

हार कर भी जीत गए स्वामी और गुप्ता !: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी गढ़वाल से लेकर कुमाऊं कहीं पर भी विशेष दौरे या बैठक में जा रहे हैं तो उनके साथ कोई और नहीं बल्कि हरिद्वार ग्रामीण क्षेत्र से विधायक रहे स्वामी यतीश्वरानंद ही दिखाई दे रहे हैं. चुनावों के बाद स्वामी यतीश्वरानंद को हार का पछतावा ना हो इसलिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उनको अपने साथ हमेशा रख रहे हैं.

राजनीतिक जानकार सुनील पांडे.

सुपर पावर में यतीश्वरानंद और संजय गुप्ता: राजनीति के जानकार यह मानते हैं कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और संगठन के लोग भी स्वामी यतीश्वरानंद और संजय गुप्ता सहित आदेश चौहान को अधिक तवज्जो दे रहे हैं. ये वही सब विधायक हैं जिन्होंने रिजल्ट आने से पहले संगठन पर बड़े-बड़े आरोप लगाए थे. लिहाजा स्वामी और गुप्ता की दोस्ती चर्चाओं में है. आखिरकार क्या है इस दोस्ती का राज चलिए हम आपको बताते हैं.

हरिद्वार की सत्ता का केंद्र बिंदु बना आश्रम: दरअसल जब आज के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, भगत सिंह कोश्यारी के तत्कालीन ओएसडी हुआ करते थे, तब संजय गुप्ता से उनकी मुलाकात हुई थी. संजय गुप्ता लक्सर से ना केवल विधायक रह चुके हैं, बल्कि जिला पंचायत के वह बड़े नेता भी माने जाते हैं. लिहाजा ओएसडी से शुरू हुआ यह दोस्ती का सफर मुख्यमंत्री बनने के बाद भी जारी रहा.

खंडूड़ी की सरकार में परवान चढ़ी दोस्ती: फिर बारी आई राज्य में भुवन चंद खंडूड़ी की सरकार की. खंडूरी सरकार में स्वामी यतीश्वरानंद को दर्जा धारी मंत्री बनाया गया. इसके बाद स्वामी यतीश्वरानंद, संजय गुप्ता और पुष्कर सिंह धामी की दोस्ती आगे बढ़ती रही. अब यह दोस्ती हरिद्वार में इसलिए भी चर्चा का विषय है, क्योंकि तमाम जीते हुए या यह कहें कि प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के यहां जो भीड़ दिखाई देती थी, वह भीड़ व अधिकारी अब स्वामी यतीश्वरानंद के आश्रम और उनकी बैठकों में दिखाई दे रहे हैं.

स्वामी बोले मेरे यहां भीड़ से किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए: इस बारे में जब हमने स्वामी यतीश्वरानंद से बातचीत की और यह पूछा कि आखिरकार आप हारने के बाद भी अधिकारियों को बुला रहे हैं. इस पर आपका क्या कहना है. इस पर स्वामी यतीश्वरानंद ने कहा कि वह बीजेपी पार्टी के नेता हैं. उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार है. ऐसे में अगर कोई फरियादी उनके पास आ रहा है तो अधिकारियों को समस्या का समाधान करने के लिए बुलाया जाता है. रही बात मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से दोस्ती की तो पुष्कर सिंह धामी से मेरी विधायक बनने के बाद की दोस्ती नहीं है. उससे पहले की दोस्ती है.
ये भी पढ़ें: मोदी लहर में भी डूबी इन तीन दोस्तों की नैय्या, जानें कैसे तीन तिगाड़ा का काम बिगड़ा!

स्वामी ने याद किए 1994 के वो दिन: स्वामी यतीश्वरानंद कहते हैं कि जब 1994 में वह छात्र नेता थे, तब हरिद्वार में कोई विधायक या संगठन का बड़ा नेता नहीं था, जो आज बड़े नेता बने हुए हैं. हां, इतना जरूर है कि 2002 और 2007 का चुनाव प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने उनके ही आश्रम से लड़ा था. इतना ही नहीं, मदन कौशिक और वो खुद एक साथ काम कर चुके हैं. जब मदन कौशिक जिला अध्यक्ष थे तो वो जिला महामंत्री थे. स्वामी यतीश्वरानंद से जब हमने ये पूछा कि आपके यहां भीड़ होने से किसी को कोई दिक्कत तो नहीं होती, क्योंकि वो हारे हुए उम्मीदवार हैं. इस पर स्वामी यतीश्वरानंद कहते हैं कि इस बात से किसी को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए. अगर उनको यहां फरियादियों की भीड़ ज्यादा लग रही है तो इसमें दिक्कत क्या है? वो पार्टी के नेता हैं और लोगों के लिए हारने के बाद भी काम कर रहे हैं. उनको लोग आज भी पसंद करते हैं और वो लोगों का काम हमेशा करवाते रहेंगे.

जानकार कहते हैं कौशिक वाली भीड़ के स्वामी के यहां जाने का ये है कारण: अब इस पूरी राजनीति को समझते हैं. वरिष्ठ पत्रकार और उत्तराखंड को उत्तराखंड की राजनीति को बेहद बारीकी से समझने वाले सुनील पांडे बताते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं कि बीते दिनों में प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक का ग्राफ गिरा है. संगठन के पास चुनावों में भितरघात को लेकर जिस तरह की रिपोर्ट गई हैं, उसके बाद से ही ऐसे हालात बने हैं. इतना ही नहीं, पार्टी को यह लगता है कि हरिद्वार हिंदुओं का क्षेत्र है. उसके बावजूद भी बीजेपी 5 सीटें इस बार कम लेकर आई है.

हरिद्वार जिला वह क्षेत्र है जो प्रदेश अध्यक्ष का गढ़ है इसलिए भी संगठन कहीं न कहीं इन सब बातों को भी सोच रहा है. सुनील पांडे बताते हैं कि इन सब बातों को मद्देनजर रखते हुए भी मुख्यमंत्री धामी संजय गुप्ता और स्वामी यतीश्वरानंद को अपने बेहद करीब रख रहे हैं. इसका जीता-जागता उदाहरण सामने भी है. उपचुनाव की घोषणा हो गई और चंपावत में चुनाव लड़ने की जिम्मेदारी और पूरे चंपावत की जिम्मेदारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष को आधिकारिक रूप से नहीं बल्कि कैलाश गहतोड़ी को मिली है. कैलाश गहतोड़ी ने ही सीएम धामी के लिए अपनी विधायकी छोड़ी है.

ये भी पढ़ें: चंपावत में रोड-शो कर उपचुनाव का बिगुल फूंकेंगे CM धामी, लोगों की सुनेंगे समस्याएं

इन सभी बातों को अगर देखा जाए तो अधिकारी हो या जनता ये बात समझ रही है कि मुख्यमंत्री के आसपास अगर कोई रह रहा है तो वो स्वामी ही हैं. इसलिए चाहे प्रशासनिक अधिकारी हो या पुलिस के अधिकारी, हरिद्वार शहर की जनता हो या रुड़की शहर या ग्रामीण की जनता, वो स्वामी यतीश्वरानंद के पास ही अपनी फरियाद लेकर पहुंच रही है. क्योंकि सभी को यह लग रहा है कि इस वक्त सत्ता का केंद्र अगर कोई है तो वो स्वामी यतीश्वरानंद ही हैं.

देहरादून: उत्तराखंड के विधानसभा चुनावों में इस बार कई तरह के मिथक टूटे और कई नए मिथक बने. लेकिन सबसे ज्यादा प्रदेश में अगर चर्चाओं में कुछ रहा तो वह रहा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का दोस्ती भरा अंदाज. सीएम बनने से पहले जब पुष्कर सिंह धामी एक विधायक हुआ करते थे, तब विधानसभा में आते-जाते हुए उन्हें शायद ही किसी ने अकेला देखा होगा. क्योंकि उनके साथ उस वक्त हरिद्वार से विधायक संजय गुप्ता और स्वामी यतीश्वरानंद ही रहते थे. लिहाजा पुष्कर सिंह धामी ने यह दोस्ती मुख्यमंत्री बनने के बाद भी नहीं छोड़ी.

हारकर भी स्वामी के द्वार पर भीड़: पुष्कर सिंह धामी के दोबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद भले ही उनके दोनों दोस्त चुनाव हार गए हों, लेकिन आज भी उत्तराखंड के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण जिले हरिद्वार में अगर सत्ता का केंद्र कहीं पर बना हुआ है, तो वह स्वामी यतीश्वरानंद का आश्रम ही है. यह बात इसलिए भी अजीब है, क्योंकि कल तक जो अधिकारी, जो फरियादी प्रदेश अध्यक्ष और हरिद्वार से 5 बार के विधायक मदन कौशिक के यहां दिखाई देते थे, आज वह हारे हुए प्रत्याशी और बीजेपी नेता स्वामी यतीश्वरानंद के यहां दिखाई दे रहे हैं. शायद यही कारण है कि आम लोग यह कहने लगे हैं कि स्वामी हार कर भी जीते हुए हैं जबकि मदन कौशिक जीतने के बाद भी हार गए.
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हार कर भी जीत गए स्वामी और गुप्ता !: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी गढ़वाल से लेकर कुमाऊं कहीं पर भी विशेष दौरे या बैठक में जा रहे हैं तो उनके साथ कोई और नहीं बल्कि हरिद्वार ग्रामीण क्षेत्र से विधायक रहे स्वामी यतीश्वरानंद ही दिखाई दे रहे हैं. चुनावों के बाद स्वामी यतीश्वरानंद को हार का पछतावा ना हो इसलिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उनको अपने साथ हमेशा रख रहे हैं.

राजनीतिक जानकार सुनील पांडे.

सुपर पावर में यतीश्वरानंद और संजय गुप्ता: राजनीति के जानकार यह मानते हैं कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और संगठन के लोग भी स्वामी यतीश्वरानंद और संजय गुप्ता सहित आदेश चौहान को अधिक तवज्जो दे रहे हैं. ये वही सब विधायक हैं जिन्होंने रिजल्ट आने से पहले संगठन पर बड़े-बड़े आरोप लगाए थे. लिहाजा स्वामी और गुप्ता की दोस्ती चर्चाओं में है. आखिरकार क्या है इस दोस्ती का राज चलिए हम आपको बताते हैं.

हरिद्वार की सत्ता का केंद्र बिंदु बना आश्रम: दरअसल जब आज के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, भगत सिंह कोश्यारी के तत्कालीन ओएसडी हुआ करते थे, तब संजय गुप्ता से उनकी मुलाकात हुई थी. संजय गुप्ता लक्सर से ना केवल विधायक रह चुके हैं, बल्कि जिला पंचायत के वह बड़े नेता भी माने जाते हैं. लिहाजा ओएसडी से शुरू हुआ यह दोस्ती का सफर मुख्यमंत्री बनने के बाद भी जारी रहा.

खंडूड़ी की सरकार में परवान चढ़ी दोस्ती: फिर बारी आई राज्य में भुवन चंद खंडूड़ी की सरकार की. खंडूरी सरकार में स्वामी यतीश्वरानंद को दर्जा धारी मंत्री बनाया गया. इसके बाद स्वामी यतीश्वरानंद, संजय गुप्ता और पुष्कर सिंह धामी की दोस्ती आगे बढ़ती रही. अब यह दोस्ती हरिद्वार में इसलिए भी चर्चा का विषय है, क्योंकि तमाम जीते हुए या यह कहें कि प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के यहां जो भीड़ दिखाई देती थी, वह भीड़ व अधिकारी अब स्वामी यतीश्वरानंद के आश्रम और उनकी बैठकों में दिखाई दे रहे हैं.

स्वामी बोले मेरे यहां भीड़ से किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए: इस बारे में जब हमने स्वामी यतीश्वरानंद से बातचीत की और यह पूछा कि आखिरकार आप हारने के बाद भी अधिकारियों को बुला रहे हैं. इस पर आपका क्या कहना है. इस पर स्वामी यतीश्वरानंद ने कहा कि वह बीजेपी पार्टी के नेता हैं. उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार है. ऐसे में अगर कोई फरियादी उनके पास आ रहा है तो अधिकारियों को समस्या का समाधान करने के लिए बुलाया जाता है. रही बात मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से दोस्ती की तो पुष्कर सिंह धामी से मेरी विधायक बनने के बाद की दोस्ती नहीं है. उससे पहले की दोस्ती है.
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स्वामी ने याद किए 1994 के वो दिन: स्वामी यतीश्वरानंद कहते हैं कि जब 1994 में वह छात्र नेता थे, तब हरिद्वार में कोई विधायक या संगठन का बड़ा नेता नहीं था, जो आज बड़े नेता बने हुए हैं. हां, इतना जरूर है कि 2002 और 2007 का चुनाव प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने उनके ही आश्रम से लड़ा था. इतना ही नहीं, मदन कौशिक और वो खुद एक साथ काम कर चुके हैं. जब मदन कौशिक जिला अध्यक्ष थे तो वो जिला महामंत्री थे. स्वामी यतीश्वरानंद से जब हमने ये पूछा कि आपके यहां भीड़ होने से किसी को कोई दिक्कत तो नहीं होती, क्योंकि वो हारे हुए उम्मीदवार हैं. इस पर स्वामी यतीश्वरानंद कहते हैं कि इस बात से किसी को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए. अगर उनको यहां फरियादियों की भीड़ ज्यादा लग रही है तो इसमें दिक्कत क्या है? वो पार्टी के नेता हैं और लोगों के लिए हारने के बाद भी काम कर रहे हैं. उनको लोग आज भी पसंद करते हैं और वो लोगों का काम हमेशा करवाते रहेंगे.

जानकार कहते हैं कौशिक वाली भीड़ के स्वामी के यहां जाने का ये है कारण: अब इस पूरी राजनीति को समझते हैं. वरिष्ठ पत्रकार और उत्तराखंड को उत्तराखंड की राजनीति को बेहद बारीकी से समझने वाले सुनील पांडे बताते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं कि बीते दिनों में प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक का ग्राफ गिरा है. संगठन के पास चुनावों में भितरघात को लेकर जिस तरह की रिपोर्ट गई हैं, उसके बाद से ही ऐसे हालात बने हैं. इतना ही नहीं, पार्टी को यह लगता है कि हरिद्वार हिंदुओं का क्षेत्र है. उसके बावजूद भी बीजेपी 5 सीटें इस बार कम लेकर आई है.

हरिद्वार जिला वह क्षेत्र है जो प्रदेश अध्यक्ष का गढ़ है इसलिए भी संगठन कहीं न कहीं इन सब बातों को भी सोच रहा है. सुनील पांडे बताते हैं कि इन सब बातों को मद्देनजर रखते हुए भी मुख्यमंत्री धामी संजय गुप्ता और स्वामी यतीश्वरानंद को अपने बेहद करीब रख रहे हैं. इसका जीता-जागता उदाहरण सामने भी है. उपचुनाव की घोषणा हो गई और चंपावत में चुनाव लड़ने की जिम्मेदारी और पूरे चंपावत की जिम्मेदारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष को आधिकारिक रूप से नहीं बल्कि कैलाश गहतोड़ी को मिली है. कैलाश गहतोड़ी ने ही सीएम धामी के लिए अपनी विधायकी छोड़ी है.

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इन सभी बातों को अगर देखा जाए तो अधिकारी हो या जनता ये बात समझ रही है कि मुख्यमंत्री के आसपास अगर कोई रह रहा है तो वो स्वामी ही हैं. इसलिए चाहे प्रशासनिक अधिकारी हो या पुलिस के अधिकारी, हरिद्वार शहर की जनता हो या रुड़की शहर या ग्रामीण की जनता, वो स्वामी यतीश्वरानंद के पास ही अपनी फरियाद लेकर पहुंच रही है. क्योंकि सभी को यह लग रहा है कि इस वक्त सत्ता का केंद्र अगर कोई है तो वो स्वामी यतीश्वरानंद ही हैं.

Last Updated : Apr 28, 2022, 2:07 PM IST
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