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दूसरों के घरों को रोशन करने वाली 'आंखों' को 'उजाले' का इंतजार

देहरादून की कुम्हार मंडी में रहने वाले सैकड़ों परिवारों को बड़ी बेसब्री से दीपावली का इंतजार रहता है. उन्हें उम्मीद रहती है कि इस दीपावली में बेचे गये दीयों और बर्तनों से वे अच्छा पैसा कमा लेंगे. लेकिन ये दीपावली इन कुम्हारों के लिए उदासी के सिवा और कुछ नहीं है. सरकार और स्थानीय प्रशासन की नीतियां इन कुम्हारों के सपनों पर भारी पड़ रही हैं.

कुम्हारों पर भारी पड़ रही सरकार और प्रशासन की नीतियां
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Published : Oct 20, 2019, 5:31 AM IST

Updated : Oct 20, 2019, 12:18 PM IST

देहरादून: 'बना के मिट्टी के दीये मैनें एक आस पाली है, मेरी मेहनत भी खरीद लो लोगों क्योंकि मेरे घर भी दीपावली है'... ये शब्द देहरादून की कुम्हार मंडी में रहने वाले कुम्हारों के हैं, जो हर साल दीपावली का इंतजार करते हैं. यहां के कुम्हार दीपावली में ढे़र सारे सपने देखते हैं और उन्हीं सपनों को पूरा करने के लिए वे जी तोड़ मेहनत से मिट्टी के दीयों को बनाते हैं, लेकिन बाजार में सस्ते चाइनीज दीयों और अन्य सजावटी सामानों के कारण उनकी ये उम्मीदें धुंधली हो जाती हैं. इसके अलावा सरकार और प्रशासन की बेरुखी कुम्हार की रही सही उम्मीदों पर पानी फेर देते हैं.

कुम्हारों पर भारी पड़ रही सरकार और प्रशासन की नीतियां

देहरादून की कुम्हार मंडी में रहने वाले सैकड़ों परिवारों को बड़ी बेसब्री से दीपावली का इंतजार रहता है. उन्हें उम्मीद रहती है कि इस दीपावली में बेचे गये दीयों और बर्तनों से अच्छे पैसे कमा लेंगे. जिससे वे बेटी की शादी, बच्चों की फीस और घर की रंगाई पुताई कर सकेंगे. इसके अलावा कई ऐसे सपने होते हैं जो वे अपनी आंखों में लिए दीपावली का इंतजार करते हैं, लेकिन ये दीपावली इन कुम्हारों के लिए उदासी के सिवा और कुछ नहीं लाई है. सरकार और स्थानीय प्रशासन की नीतियां इन कुम्हारों के सपनों पर भारी पड़ रही हैं. ईटीवी भारत ने देहरादून की कुम्हार मंडी में जाकर वहां के लोगों की समस्याओं को जानने की कोशिश की. साथ ही हमने कोशिश की कि इन मजबूर कुम्हारों की आवाज को सरकार और प्रशासन तक पहुंचाया जाय. जिससे ये लोग भी दीपावली मना सके.

पढ़ें-देहरादून: स्वास्थ्य निदेशालय के दावों की निकली हवा, बढ़ते जा रहे डेंगू के मरीज

चाइनीज आइटम ने बाजार पर कब्जा करके कुम्हारों के काम को खत्म कर दिया है. जिसके कारण इससे जुड़े हुए लोग बेहद मायूस हैं. देहरादून की कुम्हार मंडी में कभी 200 से ज्यादा परिवार मिट्टी के दीपक, मूर्तियां और घड़े बनाने का काम करते थे. कहा जाता है कि उत्तराखंड के गढ़वाल में इस गली से ही बनाए हुए दीपों से दीपावली मनाई जाती थी. माणा से लेकर हरिद्वार तक इस कुम्हार मंडी का सामान जाता था. जैसे-जैसे चाइनीज आइटम ने बाजार में अपने पैर पसारे वैसे वैसे ही यहां के लोगों के हाथों से रोजगार छीनने लगा, जिसके कारण अब ये परिवार दूसरा छोटा मोटा कारोबार करके अपने परिवार का गुजर बसर कर रहे हैं.

पढ़ें-शहर में नहीं थम रहा डेंगू का आतंक, 55 नये मरीजों में डेंगू की पुष्टि

ऐसा नहीं है कि यहां रहने वाले सभी कुम्हार परिवारों ने ये काम छोड़ दिया. यहां अभी भी कई परिवार ऐसे हैं जो कि बरसों से चली आ रही परंपरा को निभाते हुए दीये, मिट्टी के बर्तन आदि बनाते हैं. हालांकि यहां के कुम्हारों का कहना है कि अब उनके बनाये बर्तनों और सामानों में ग्राहक दिलचस्पी नहीं दिखाते. जिसके कारण सामान बनाने में लगने वाली लागत भी बमुश्किल ही निकल पाती है. वहीं कुम्हारों का कहना है कि अगर सरकार और स्थानीय प्रशासन का सहयोग मिल जाये तो उनके द्वारा बनाये गये दीयों और अन्य मिट्टी के सामानों को बाहर भेजा जा सकता है. जिससे उन्हें आमदनी तो होगी ही साथ ही प्रदेश सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा.

पढ़ें-छात्रवृत्ति घोटाला: आरोपी गीताराम नौटियाल की मुश्किलें बढ़ी, घर पर कुर्की का नोटिस चस्पा

कुम्हार मंडी में रहने वाले लोगों का कहना है उन्होंने दीपावली को देखते हुए पिछले दो महीनों में लाखों रुपए का सामान बनाकर रखा हुआ है. लेकिन बीते दिनों देहरादून प्रशासन ने नगर निगम के साथ मिलकर फुटपाथ पर लगने वाली छोटी बड़ी दुकानों को हटाने का निर्देश दिया है. जिसके कारण वे अपना सामान नहीं बेच पा रहे हैं. कारीगरों का कहना है कि वे इस मामले में कई बार प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं कि उन्हें दुकान लगाने के लिए थोड़ी सी जमीन उपलब्ध करवा दें. जिससे वे दीपावली के लिए तैयार किये गये सामानों को बेचकर अपनी भी दीपावली मना सकें.

पढ़ें-सिंचाई गूल में बहने से डेढ़ वर्षीय मासूम की मौत, परिजनों में मचा कोहराम

अपनी समस्याओं को बताते हुए कुम्हारों ने कहा कि मिट्टी के सामान तैयार करने में अब हजारों रुपये खर्च हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि पहले सरकार मिट्टी खोदने के लिए जगह दिया करती थी, लेकिन अब यह व्यवस्था खत्म कर दी गई है. देहरादून की नदियों से आने वाली मिट्टी में अब न तो जान है और न ही उतना फायदा है. उन्होंने बताया कि मिट्टी महंगी होने के साथ ही अब बिजली के उपकरणों से सामान बनाने का काम किया जाता है. जिससे ये खर्च और बढ़ जाता है.

पढ़ें-देहरादून शहर में नहीं थम रहा डेंगू का आतंक, 55 नये मरीजों में पुष्टि

एक अनुमान के मुताबिक कुम्हार मंडी में लगभग 30 से ज्यादा परिवार इस समय दीये, मूर्ति, मटके आदि बनाने का काम कर रहे हैं. इस वक्त ये लगभग 50 लाख से ज्यादा का सामान तैयार कर चुके हैं. प्रशासन और सरकार ने अगर इन्हें जल्द ही दुकानें लगाने की इजाजत दे तो शायद इनके ऊपर आने वाले आर्थिक संकट को दूर किया जा सकता है. सरकार, प्रशासन और हम सबके सामूहिक प्रयास से दूसरों के घरों को रोशन करने का सपना देखने वाले इन कुम्हारों के घरों को जगमगाया जा सकता है.

देहरादून: 'बना के मिट्टी के दीये मैनें एक आस पाली है, मेरी मेहनत भी खरीद लो लोगों क्योंकि मेरे घर भी दीपावली है'... ये शब्द देहरादून की कुम्हार मंडी में रहने वाले कुम्हारों के हैं, जो हर साल दीपावली का इंतजार करते हैं. यहां के कुम्हार दीपावली में ढे़र सारे सपने देखते हैं और उन्हीं सपनों को पूरा करने के लिए वे जी तोड़ मेहनत से मिट्टी के दीयों को बनाते हैं, लेकिन बाजार में सस्ते चाइनीज दीयों और अन्य सजावटी सामानों के कारण उनकी ये उम्मीदें धुंधली हो जाती हैं. इसके अलावा सरकार और प्रशासन की बेरुखी कुम्हार की रही सही उम्मीदों पर पानी फेर देते हैं.

कुम्हारों पर भारी पड़ रही सरकार और प्रशासन की नीतियां

देहरादून की कुम्हार मंडी में रहने वाले सैकड़ों परिवारों को बड़ी बेसब्री से दीपावली का इंतजार रहता है. उन्हें उम्मीद रहती है कि इस दीपावली में बेचे गये दीयों और बर्तनों से अच्छे पैसे कमा लेंगे. जिससे वे बेटी की शादी, बच्चों की फीस और घर की रंगाई पुताई कर सकेंगे. इसके अलावा कई ऐसे सपने होते हैं जो वे अपनी आंखों में लिए दीपावली का इंतजार करते हैं, लेकिन ये दीपावली इन कुम्हारों के लिए उदासी के सिवा और कुछ नहीं लाई है. सरकार और स्थानीय प्रशासन की नीतियां इन कुम्हारों के सपनों पर भारी पड़ रही हैं. ईटीवी भारत ने देहरादून की कुम्हार मंडी में जाकर वहां के लोगों की समस्याओं को जानने की कोशिश की. साथ ही हमने कोशिश की कि इन मजबूर कुम्हारों की आवाज को सरकार और प्रशासन तक पहुंचाया जाय. जिससे ये लोग भी दीपावली मना सके.

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चाइनीज आइटम ने बाजार पर कब्जा करके कुम्हारों के काम को खत्म कर दिया है. जिसके कारण इससे जुड़े हुए लोग बेहद मायूस हैं. देहरादून की कुम्हार मंडी में कभी 200 से ज्यादा परिवार मिट्टी के दीपक, मूर्तियां और घड़े बनाने का काम करते थे. कहा जाता है कि उत्तराखंड के गढ़वाल में इस गली से ही बनाए हुए दीपों से दीपावली मनाई जाती थी. माणा से लेकर हरिद्वार तक इस कुम्हार मंडी का सामान जाता था. जैसे-जैसे चाइनीज आइटम ने बाजार में अपने पैर पसारे वैसे वैसे ही यहां के लोगों के हाथों से रोजगार छीनने लगा, जिसके कारण अब ये परिवार दूसरा छोटा मोटा कारोबार करके अपने परिवार का गुजर बसर कर रहे हैं.

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ऐसा नहीं है कि यहां रहने वाले सभी कुम्हार परिवारों ने ये काम छोड़ दिया. यहां अभी भी कई परिवार ऐसे हैं जो कि बरसों से चली आ रही परंपरा को निभाते हुए दीये, मिट्टी के बर्तन आदि बनाते हैं. हालांकि यहां के कुम्हारों का कहना है कि अब उनके बनाये बर्तनों और सामानों में ग्राहक दिलचस्पी नहीं दिखाते. जिसके कारण सामान बनाने में लगने वाली लागत भी बमुश्किल ही निकल पाती है. वहीं कुम्हारों का कहना है कि अगर सरकार और स्थानीय प्रशासन का सहयोग मिल जाये तो उनके द्वारा बनाये गये दीयों और अन्य मिट्टी के सामानों को बाहर भेजा जा सकता है. जिससे उन्हें आमदनी तो होगी ही साथ ही प्रदेश सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा.

पढ़ें-छात्रवृत्ति घोटाला: आरोपी गीताराम नौटियाल की मुश्किलें बढ़ी, घर पर कुर्की का नोटिस चस्पा

कुम्हार मंडी में रहने वाले लोगों का कहना है उन्होंने दीपावली को देखते हुए पिछले दो महीनों में लाखों रुपए का सामान बनाकर रखा हुआ है. लेकिन बीते दिनों देहरादून प्रशासन ने नगर निगम के साथ मिलकर फुटपाथ पर लगने वाली छोटी बड़ी दुकानों को हटाने का निर्देश दिया है. जिसके कारण वे अपना सामान नहीं बेच पा रहे हैं. कारीगरों का कहना है कि वे इस मामले में कई बार प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं कि उन्हें दुकान लगाने के लिए थोड़ी सी जमीन उपलब्ध करवा दें. जिससे वे दीपावली के लिए तैयार किये गये सामानों को बेचकर अपनी भी दीपावली मना सकें.

पढ़ें-सिंचाई गूल में बहने से डेढ़ वर्षीय मासूम की मौत, परिजनों में मचा कोहराम

अपनी समस्याओं को बताते हुए कुम्हारों ने कहा कि मिट्टी के सामान तैयार करने में अब हजारों रुपये खर्च हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि पहले सरकार मिट्टी खोदने के लिए जगह दिया करती थी, लेकिन अब यह व्यवस्था खत्म कर दी गई है. देहरादून की नदियों से आने वाली मिट्टी में अब न तो जान है और न ही उतना फायदा है. उन्होंने बताया कि मिट्टी महंगी होने के साथ ही अब बिजली के उपकरणों से सामान बनाने का काम किया जाता है. जिससे ये खर्च और बढ़ जाता है.

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एक अनुमान के मुताबिक कुम्हार मंडी में लगभग 30 से ज्यादा परिवार इस समय दीये, मूर्ति, मटके आदि बनाने का काम कर रहे हैं. इस वक्त ये लगभग 50 लाख से ज्यादा का सामान तैयार कर चुके हैं. प्रशासन और सरकार ने अगर इन्हें जल्द ही दुकानें लगाने की इजाजत दे तो शायद इनके ऊपर आने वाले आर्थिक संकट को दूर किया जा सकता है. सरकार, प्रशासन और हम सबके सामूहिक प्रयास से दूसरों के घरों को रोशन करने का सपना देखने वाले इन कुम्हारों के घरों को जगमगाया जा सकता है.

Intro:सरकार और प्रसासन चाहेगा तो ही बन पायेगी इनकी दीपवाली और हो पायेगी घर में शादी


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उत्तराखंड में दीपावली पर जिस गली में सबसे ज्यादा रौनक रहती थी आज वह गली सूनी पड़ी है इस सुने पन से ना जाने कितने घरों के लोग परेशान हैं दरअसल यह गली है देहरादून की कुम्हार मंडी दीपावली के मौके पर इस गली में रहने वाले सैकड़ों परिवारों को इंतजार रहता है पूरे साल भर इस दीपावली का उन्हें उम्मीद रहती है कि बेटी की शादी हो घर के कार्यक्रम बच्चे के स्कूल की फीस या फिर कोई नया सपना साकार करना हो इन सभी परिवारों को यह सब काम करने के लिए दीपावली का ही इंतजार रहता है लेकिन यह दीपावली उनके लिए उदासी के सिवा और कुछ नहीं लेकर आई है और इसकी वजह है सरकार और स्थानीय प्रशासन की नीतियांBody:
कुम्हारों का काम वैसे ही चाइनीस आइटम ने बाजार में कब्जा जमा कर खत्म सही कर दिया है लेकिन जो लोग आज भी इस काम से जुड़े हुए हैं वह अब बेहद मायूस है देहरादून की कुम्हार मंडी में कभी 200 से ज्यादा परिवार मिट्टी के दीपक मूर्तियां और घने बनाने का काम करते थे कहा जाता है कि उत्तराखंड के गढ़वाल में इस गली से ही बनाए हुए दीपों से दीपावली मनाई जाती थी माना से लेकर हरिद्वार तक इस कुम्हार मंडी से ही सारा सामान जाया करता था लेकिन जैसे-जैसे चाइनीस आइटम ने बाजार में अपने पैर पसारे वैसे वैसे ही यहां के लोगों को लगने लगा कि अब यह पूछता नहीं काम उन्हें छोड़ना पड़ेगा और शायद यही कारण है कि 200 से ज्यादा परिवार अब इस काम को छोड़कर छोटे-मोटे दूसरे रोजगार कर रहा है लेकिन जो लोग इस काम को अभी भी अपनाए हुए हैं उन्हें भी अब लगता है कि उनके द्वारा बनाए गए मिट्टी के बर्तनों को वैसे तो कोई खरीदता नहीं है और अगर कोई खरीदने वाला भी मिल जाए तो स्थानीय प्रशासन और शासन उन्हें 2 गज जमीन मुहैया नहीं करवा पा रहा है ताकि वह 1 हफ्ते के लिए इंसानों को बाजार में भेज सकें
Conclusion:कुम्हार मंडी में रहने वाले लोगों का कहना है उन्होंने दीपावली की रौनक को देखते हुए लाखों रुपए का सामान पिछले 2 महीनों से बनाकर रखा हुआ है और अभी भी यह सामान लगातार बना रहे हैं लेकिन बीते दिनों राजधानी देहरादून के प्रशासन ने नगर निगम के साथ मिलकर ऐसी तमाम फुटपाथ पर लगाने वाली छोटी-छोटी दुकानों को हटाने के निर्देश दिए हैं और अब आलम यह है कि उन्होंने सामान तो लाखों रुपए का बना लिया है लेकिन उन्हें बेचने के लिए जगह इनके पास नहीं है कारीगरों का कहना है कि वह इस बाबत सरकार से लेकर स्थानीय प्रशासन तक से यह गुहार लगा चुके हैं कि अगर उन्हें 2 गज जमीन कहीं मिल जाती है तो वह 1 हफ्ते के लिए ही सही दुकान लगाकर अपना सामान बेचकर अपनी भी दीपावली को रोशन कर लेंगे ईटीवी भारत ने ऐसे ही लोगों से कुम्हार मंडी में जाकर बात की और उनसे उनकी समस्याएं जानने की कोशिश भी की लोगों का कहना है कि जिन मिट्टी से दीपक और मूर्तियां तैयार होती हैं उस मिट्टी को घर तक लाने में ही उनके हजारों रुपए खर्च हो जा रहे हैं पहले सरकार उन्हें मिट्टी खोदने के लिए जगा दिया करती थी लेकिन अब यह व्यवस्था बिल्कुल खत्म कर दी गई है देहरादून कि दूरदराज नदियों से आने वाली मिट्टी मैं ना तो अब वो जान है और ना ही उतना उन्हें फायदा हो पाता है जितना पहले हो जाता था मिट्टी महंगी होने के साथ ही अब बिजली के उपकरणों से यह दीपक और मूर्तियां बनाने का काम कर रहे हैं लेकिन 2 महीने तक चलने वाली बिजली की मशीन इतना बिल ले आती है जिसके बाद यह सोचने पर मजबूर वह लोग हो जाते हैं कि अगले साल यह काम करें भी या ना करें बहराल कुम्हार मंडी के लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि अगर दीपावली के 5 दिन रहते हुए भी उन्हें अब तक जगह नहीं दी गई है तो वह यह सारा सामान कहां पर रखेंगे क्योंकि अपने मकानों के अलावा उन्होंने इतना सामान बना लिया है कि उसको रखने के लिए भी किराए के कमरे लिए गए हैं



एक अनुमान के मुताबिक कुम्हार मंडी में लगभग 30 से ज्यादा परिवार इस समय दीपक मूर्ति मटके बनाने का काम कर रहा है और लगभग 50 लाख से ज्यादा का सामान इस वक्त इनके पास पड़ा हुआ है प्रशासन और सरकार ने अगर इन्हें जल्द ही दुकान लगाने की इजाजत और जगह नहीं दी तो हो सकता है कि दीपावली के बाद इनके ऊपर आर्थिक संकट आ जाए
Last Updated : Oct 20, 2019, 12:18 PM IST
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