नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में चल रहे भारत रंग महोत्सव में कलाकारों ने छोलिया लोकनृत्य पेश किया. छोलिया लोकनृत्य पहाड़ी राज्य उत्तराखंड का सबसे जाना-माना नृत्य है. छोलिया नृत्य बहुत प्राचीन नृत्य है. इस नृत्य में कलाकार नृत्य के साथ संगीत की जुगलबंदी भी करते हैं.
भारत रंग महोत्सव 2020 दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) में चल रहा है. इस महोत्सव में अलग-अलग राज्यों से कलाकार वहां की संस्कृति पेश करने के लिए पहुंच रहे हैं. इसी कड़ी में उत्तराखंड से कलाकार छोलिया नृत्य पेश करने के लिए राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में पहुंचे.
छोलिया नृत्य में बजाए जाते हैं महत्वपूर्ण यंत्र
छोलिया नृत्य में मशकबीन का एक अलग महत्व होता है. इस संगीत वाद्य यंत्र को बजाने के लिए सालों का अनुभव होना तो जरूरी है ही, साथ ही इसका ज्ञान होना भी आवश्यक है. इस यंत्र को बजाने वाले वादक रमेश उपाध्याय ने बताया कि प्राचीन काल से युद्ध के दौरान इस बीन को बजाया जाता था.
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इसके बाद वर्तमान में शादी-ब्याह, पूजा-पाठ में मशकबीन बजाई जाती है. मशकबीन को बजाना शुभ माना जाता है. इसे बजाना आसान नहीं होता क्योंकि इसके साथ तीन यंत्र जुड़े होते हैं. पहली बीन से हवा भरती है, दूसरी और फिर तीसरी बीन से आवाज निकल कर यह बीन बजती है.
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संगीत और नृत्य की होती है जुगलबंदी
छोलिया नृत्य के बारे में बताते हुए कलाकारों ने बताया कि यह नृत्य एक ऐसा नृत्य है, जिसमें संगीत और नृत्य दोनों किया जाता है. मशकबीन, तुरही, ढोल, दमामा, रणसिंघा जैसे यंत्र बजाए जाते हैं. इन्हें बजाना भी आसान नहीं होता है. कहा जाता है युद्ध के दौरान सैनिकों द्वारा इस्तेमाल किए गए दांव पेचों की इस नृत्य में नकल की जाती है. जिसके जरिए सैनिक शत्रु को परास्त कर विजय हासिल करते थे.
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'खत्म होते जा रहे लोक नृत्य'
छोलिया नृत्य को सिखाने वाले कलाकार भुवन रावत ने बताया कि यह नृत्य उत्तराखंड का लोक नृत्य है. लेकिन आज के वक्त में तमाम लोक नृत्य कहीं न कहीं खत्म होते जा रहे हैं. क्योंकि लोगों को इनके बारे में पता नहीं है.
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वहीं, उन्होंने सरकार से कहा कि सरकार हमारी पुरानी परंपरा की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दे रही है. यह जरूरी है कि पुरानी संस्कृति को जीवित रखने के लिए सरकार बेहतर कदम उठाएं.