देहरादून: सरकारी फीस देकर बॉन्ड के तहत एमबीबीएस करने वाले डॉक्टर्स पिछले लम्बे समय से विभाग में नियुक्ति मिलने के बावजूद भी दुर्गम क्षेत्रों में सेवाएं नहीं दे रहे थे, जिसे लेकर कुछ चिकित्सकों ने कोर्ट दलील दी थी. लेकिन कोर्ट ने ऐसे डॉक्टरों को झटका देते हुए स्वास्थ्य विभाग को 6 सप्ताह में सभी को नियुक्ति देने का आदेश दिए हैं. वहीं, स्वास्थ्य विभाग ने भी ऐसे डॉक्टर्स पर कार्रवाई के लिए चिकित्सा चयन बोर्ड को पत्र लिखा दिया है. कुछ डॉक्टर्स ने बॉन्ड के तहत फीस जमाकर नौकरी करने से मना कर दिया है.
बुधवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने दस चिकित्सकों से संबंधित आदेशों के खिलाफ सरकार की ओर से दायर विशेष अपील पर सुनवाई की. जिसमें हाईकोर्ट ने निर्देश दिए कि छह सप्ताह के अंदर इन चिकित्सकों के नियुक्ति पत्र जारी किए जाएं.
पढ़ें-उत्तराखंडः प्लास्टिक इस्तेमाल पर शासन सख्त, मुख्य सचिव ने अधिकारियों को दिए ये निर्देश
बता दें कि मेडिकल कॉलेजों के प्रोस्पेक्टस में साफ तौर पर उल्लेख है कि जो छात्र सरकारी कोटे में प्रवेश लेे रहे हैं उन्हे उत्तराखंड में सेवा के लिए पांच साल का बॉन्ड भरना होगा. ऐसा करने वाले छात्रों को ही फीस में छूट दी जाएगी. कॉलेजों का साफ चौर पर कहना था कि जो छात्र बॉन्ड नहीं भरना चाहते हैं वे पूरी फीस वहन करें. खंडपीठ ने सरकार की विशेष अपील स्वीकार करते हुए सरकार से छह सप्ताह में नियुक्ति पत्र जारी करने को कहा है. साथ ही साफ किया है कि जो ज्वाइन डॉक्टर ज्वाइन नहीं करेंगे, उन्हें सब्सिडाइज्ड शुल्क घटाते हुए सरकार को बिना सब्सिडी वाली शुल्क की धनराशि 18 फीसद ब्याज के साथ लौटानी होगी.
पढ़ें-गंगोत्री हाई-वे के लिए 'भागीरथी' का तेज बहाव बना मुसीबत, खतरे की जद में बाल कंडार मंदिर
स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. आरके पांडेय ने बताया इस तरह के डॉक्टर्स पर कार्रवाई के लिए चिकित्सा चयन बोर्ड को पत्र लिखा जा चुका है. उन्होंने बताया कि कुछ डॉक्टर्स ने बॉन्ड के तहत फीस जमा कर नौकरी करने से मना कर दिया है. शेष डॉक्टर्स पर कोर्ट के अनुसार कार्रवाई की जाएगी.