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हरीश रावत समेत जिन 7 नेताओं को लगानी थी कांग्रेस की नैया पार, उन्हीं के गले पड़ी 'हार' - Congress lost in Uttarakhand

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में कांग्रेस मुंह के बल गिरी है. पार्टी की इतनी बुरी गत हुई है कि उसके नेताओं के बोल नहीं फूट रहे. ऐसा हो भी क्यों ना. हरीश रावत और गणेश गोदियाल समेत कांग्रेस के सात बड़े पदाधिकारी चुनाव जो हारे हैं. 70 में से कांग्रेस को सिर्फ 19 सीटें मिली हैं. बीजेपी 47 सीटें जीतकर सरकार बनाने जा रही है.

Congress lost in Uttarakhand
कांग्रेस चुनाव हारी
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Published : Mar 12, 2022, 10:11 AM IST

Updated : Mar 12, 2022, 10:44 AM IST

देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 के लिए कांग्रेस ने इस बार जोर-शोर से तैयारी की थी. पिछले साल जुलाई के महीने में अपने चुनाव अभियान को धार देने के लिए कांग्रेस ने उत्तराखंड कांग्रेस के संगठन में अभिनव प्रयोग किया था. पार्टी ने एक प्रदेश अध्यक्ष के साथ 5 कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए थे. इसके अलावा भी चुनाव प्रचार समिति, कोर कमेटी, समन्वय समिति, घोषणापत्र समिति, चुनाव प्रबंधन समिति समेत अनेक कमेटियां गठित की थी. लेकिन ये सब 'ढाक के तीन पात' साबित हुए.

अध्यक्ष समेत कांग्रेस के 7 बड़े पदाधिकारी हारे: आप ये पढ़कर चौंक जाएंगे कि कांग्रेस की इन समितियों के 7 अध्यक्ष बुरी तरह चुनाव हार गए. ऐसे में कांग्रेस उत्तराखंड में चुनाव कैसे जीतती ये सहज अनुमान लगाया जा सकता है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष, चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष, दो कार्यकारी अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष, चुनाव प्रचार समिति के संयोजक और घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष अपनी-अपनी सीटों से चुनाव हार गए. जब ये महत्वपूर्ण पद संभाल रहे पदाधिकारी नेता खुद अपनी सीट नहीं बचा पाए तो फिर कांग्रेस को कहां से बचा पाते.
ये भी पढ़ें: Election 2022: उत्तराखंड में BJP दोबारा सत्ता में काबिज, टूट गया 20 साल का मिथक

हरीश रावत की हार ने दिया सदमा: हरीश रावत को कांग्रेस ने बड़े जोर-शोर से उत्तराखंड कांग्रेस चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया था. हरीश रावत खुद को लगातार मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताते रहे. हालांकि इसको लेकर उनकी नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह से नोकझोंक भी होती रही. मामला हाईकमान तक भी गया. हाईकमान को कहना पड़ा कि सीएम चुनाव के रिजल्ट आने के बाद ही तय होगा. लेकिन हरीश रावत पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और वो आए दिन मुख्यमंत्री बनेंगे तो क्या करेंगे इसकी अपनी कार्ययोजना सोशल मीडिया के माध्यमों से लोगों के सामने लाते रहे.

10 मार्च को CM बनने का सपना टूट गया: 10 मार्च की सुबह मतगणना से पहले तक बढ़-चढ़कर बयान दे रहे हरीश रावत जब काउंटिंग शुरू होते ही पीछे चल रहे थे तो उनके समेत अन्य लोगों ने भी नहीं समझा होगा कि हरदा के साथ 'खेला' होने जा रहा है. आखिर दोपहर 12 बजे तक साफ हो गया कि हरीश रावत की मुख्यमंत्री बनने की तमन्ना का दम अगले 5 साल के लिए तो निकल ही गया है. हरीश रावत लालकुआं से प्रतिष्ठित चुनाव हार चुके थे. इसके साथ ही कांग्रेस को भी उनकी हार का बड़ा झटका लग चुका था.

ये भी पढ़ें: चुनावी नतीजों से बीजेपी की बढ़ी 'चमक', कांग्रेस को 'झटका', AAP 'फ्यूज'

गणेश गोदियाल भी फुस्स पटाखा साबित हुए: मतगणना शुरू होने से पहले कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के एक से बढ़कर एक बयान आ रहे थे. वो हर उस कड़े शब्द को बीजेपी के लिए प्रयोग कर रहे थे जो वो संसदीय ढंग से बोल सकते थे. जब मतगणना चल रही थी तो तब भी परिणाम कभी आगे कभी पीछे जा रहा था और गणेश गोदियाल समेत बाकी कांग्रेसियों को भी उनकी जीत की उम्मीद बनी हुई थी. लेकिन जैसे ही बीजेपी के धनसिंह रावत ने अपराजेय बढ़त बनाई, गणेश गोदियाल के 'हाथों के तोते उड़ गए'. कहां उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार बनाने का सपना था और कहां कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अपनी सीट ही नहीं बचा पाए.

रणजीत रावत के अरमान भी रहे अधूरे: कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत रावत के साथ इस चुनाव में कुछ भी अच्छा नहीं हुआ. हरीश रावत के साथ उनकी लड़ाई ने दोनों नेताओं समेत कांग्रेस को भी भारी नुकसान पहुंचाया. रणजीत रावत रामनगर में रहते हैं. उन्होंने पांच साल रामनगर सीट से चुनाव लड़ने के लिए मेहनत की. जब टिकट बंटने की बारी आई तो हरीश रावत ने रामनगर से चुनाव लड़ने की मांग कर दी. रणजीत रावत ने इशारों-इशारों में कड़ा विरोध भी किया. लेकिन हरीश रावत को रामनगर से टिकट दे दिया गया.

हरीश रावत और रणजीत की कलह में गई रामनगर सीट: कांग्रेस हाईकमान ने हरीश रावत के दबाव में उन्हें रामनगर से टिकट तो दे दिया, लेकिन वहां पहुंचकर पता चला कि मामला बहुत गड़बड़ है. हरीश रावत ने तुरंत कांग्रेस हाईकमान से सीट बदलने को कहा. इसके बाद हरीश रावत को लालकुआं सीट से मैदान में उतारा गया. कभी हरीश रावत के लंगोटिया यार रहे रणजीत रावत अब उनके कट्टर दुश्मन हैं. कट्टर दुश्मन को रामनगर सीट से चुनाव कैसे लड़ने दिया जा सकता था. रणजीत रावत को रामनगर से टिकट न देकर सल्ट भेज दिया गया. रणजीत रावत सल्ट में बीजेपी के महेश जीना के हाथों पराजित हो गए. कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष ही चुनाव मैदान में चित हो गया तो फिर पार्टी कैसे जीत पाती.

ये भी पढ़ें: Uttarakhand Assembly Election Result 2022: कुमाऊं में जीत ने BJP को सौंपी सत्ता की चाभी

थराली से जीत राम भी हारे चुनाव: कांग्रेस के एक और कार्यकारी अध्यक्ष जीत राम भी चुनाव हार गए. जीत राम को कांग्रेस ने चमोली जिले की थराली सीट से चुनाव मैदान में उतारा था. लेकिन जीत राम अपनी सीट ही नहीं बचा पाए तो पार्टी की उम्मीदों को कैसे परवान चढ़ा पाते. जीत राम को बीजेपी के भूपाल राम टम्टा ने शिकस्त दी. चमोली की थराली सीट एससी उम्मीदवार के लिए रिजर्व है.

कांग्रेस के कोषाध्यक्ष का कोष भी रहा खाली: उत्तराखंड कांग्रेस के कोषाध्यक्ष आर्येंद्र शर्मा भी उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में हार गए. कांग्रेस ने आर्येंद्र शर्मा को देहरादून जिले की सहसपुर सीट से बीजेपी के सहदेव पुंडीर के खिलाफ मैदान में उतारा था. लेकिन कोषाध्यक्ष आर्येंद्र शर्मा के कोष में इतने वोट नहीं आए कि वो सहदेव को वोटों की शक्ति से हरा पाते. इस तरह कांग्रेस के कोषाध्यक्ष आर्येंद्र ने भी कांग्रेस की जीत का कोष खाली रखा.

प्रचार समिति के संयोजक दिनेश अग्रवाल भी हुए धड़ाम: उत्तराखंड कांग्रेस चुनाव प्रचार समिति के संयोजक दिनेश अग्रवाल अपना प्रचार ही सही से नहीं कर पाए तो वो कांग्रेस के प्रचार का संयोजन कैसे करते. पार्टी ने उन्हें देहरादून जिले की धरमपुर विधानसभा सीट से बीजेपी के विनोद चमोली के खिलाफ मैदान में उतारा था. चमोली की चमक के आगे कांग्रेस के प्रचार समिति के संयोजक कोई चमत्कार नहीं कर सके और चुनाव हार कर पार्टी की भी लुटिया डुबो बैठे.

ये भी पढ़ें: धामी इन दो रास्तों से फिर बन सकते हैं उत्तराखंड के CM, ये रहे बाकी दावेदारों के नाम

नवप्रभात नहीं ला पाए कांग्रेस के लिए जीत का सवेरा: उत्तराखंड कांग्रेस घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष नवप्रभात भी चुनाव हार गए. जिन कंधों पर चुनाव में जीत के लिए दमदार और लोक-लुभावन घोषणा पत्र बनाने की जिम्मेदारी थी, वो अपना ही घोषणा पत्र सही से नहीं बना पाए और देहरादून जिले की विकासनगर सीट से चुनाव हार बैठे. नवप्रभात को बीजेपी के मुन्ना सिंह चौहान ने करारी हार दी. इसके साथ ही कांग्रेस के घोषणा पत्र को भी मतदाताओं ने अगले पांच साल के लिए भुला दिया.

देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 के लिए कांग्रेस ने इस बार जोर-शोर से तैयारी की थी. पिछले साल जुलाई के महीने में अपने चुनाव अभियान को धार देने के लिए कांग्रेस ने उत्तराखंड कांग्रेस के संगठन में अभिनव प्रयोग किया था. पार्टी ने एक प्रदेश अध्यक्ष के साथ 5 कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए थे. इसके अलावा भी चुनाव प्रचार समिति, कोर कमेटी, समन्वय समिति, घोषणापत्र समिति, चुनाव प्रबंधन समिति समेत अनेक कमेटियां गठित की थी. लेकिन ये सब 'ढाक के तीन पात' साबित हुए.

अध्यक्ष समेत कांग्रेस के 7 बड़े पदाधिकारी हारे: आप ये पढ़कर चौंक जाएंगे कि कांग्रेस की इन समितियों के 7 अध्यक्ष बुरी तरह चुनाव हार गए. ऐसे में कांग्रेस उत्तराखंड में चुनाव कैसे जीतती ये सहज अनुमान लगाया जा सकता है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष, चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष, दो कार्यकारी अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष, चुनाव प्रचार समिति के संयोजक और घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष अपनी-अपनी सीटों से चुनाव हार गए. जब ये महत्वपूर्ण पद संभाल रहे पदाधिकारी नेता खुद अपनी सीट नहीं बचा पाए तो फिर कांग्रेस को कहां से बचा पाते.
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हरीश रावत की हार ने दिया सदमा: हरीश रावत को कांग्रेस ने बड़े जोर-शोर से उत्तराखंड कांग्रेस चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया था. हरीश रावत खुद को लगातार मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताते रहे. हालांकि इसको लेकर उनकी नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह से नोकझोंक भी होती रही. मामला हाईकमान तक भी गया. हाईकमान को कहना पड़ा कि सीएम चुनाव के रिजल्ट आने के बाद ही तय होगा. लेकिन हरीश रावत पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और वो आए दिन मुख्यमंत्री बनेंगे तो क्या करेंगे इसकी अपनी कार्ययोजना सोशल मीडिया के माध्यमों से लोगों के सामने लाते रहे.

10 मार्च को CM बनने का सपना टूट गया: 10 मार्च की सुबह मतगणना से पहले तक बढ़-चढ़कर बयान दे रहे हरीश रावत जब काउंटिंग शुरू होते ही पीछे चल रहे थे तो उनके समेत अन्य लोगों ने भी नहीं समझा होगा कि हरदा के साथ 'खेला' होने जा रहा है. आखिर दोपहर 12 बजे तक साफ हो गया कि हरीश रावत की मुख्यमंत्री बनने की तमन्ना का दम अगले 5 साल के लिए तो निकल ही गया है. हरीश रावत लालकुआं से प्रतिष्ठित चुनाव हार चुके थे. इसके साथ ही कांग्रेस को भी उनकी हार का बड़ा झटका लग चुका था.

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गणेश गोदियाल भी फुस्स पटाखा साबित हुए: मतगणना शुरू होने से पहले कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के एक से बढ़कर एक बयान आ रहे थे. वो हर उस कड़े शब्द को बीजेपी के लिए प्रयोग कर रहे थे जो वो संसदीय ढंग से बोल सकते थे. जब मतगणना चल रही थी तो तब भी परिणाम कभी आगे कभी पीछे जा रहा था और गणेश गोदियाल समेत बाकी कांग्रेसियों को भी उनकी जीत की उम्मीद बनी हुई थी. लेकिन जैसे ही बीजेपी के धनसिंह रावत ने अपराजेय बढ़त बनाई, गणेश गोदियाल के 'हाथों के तोते उड़ गए'. कहां उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार बनाने का सपना था और कहां कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अपनी सीट ही नहीं बचा पाए.

रणजीत रावत के अरमान भी रहे अधूरे: कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत रावत के साथ इस चुनाव में कुछ भी अच्छा नहीं हुआ. हरीश रावत के साथ उनकी लड़ाई ने दोनों नेताओं समेत कांग्रेस को भी भारी नुकसान पहुंचाया. रणजीत रावत रामनगर में रहते हैं. उन्होंने पांच साल रामनगर सीट से चुनाव लड़ने के लिए मेहनत की. जब टिकट बंटने की बारी आई तो हरीश रावत ने रामनगर से चुनाव लड़ने की मांग कर दी. रणजीत रावत ने इशारों-इशारों में कड़ा विरोध भी किया. लेकिन हरीश रावत को रामनगर से टिकट दे दिया गया.

हरीश रावत और रणजीत की कलह में गई रामनगर सीट: कांग्रेस हाईकमान ने हरीश रावत के दबाव में उन्हें रामनगर से टिकट तो दे दिया, लेकिन वहां पहुंचकर पता चला कि मामला बहुत गड़बड़ है. हरीश रावत ने तुरंत कांग्रेस हाईकमान से सीट बदलने को कहा. इसके बाद हरीश रावत को लालकुआं सीट से मैदान में उतारा गया. कभी हरीश रावत के लंगोटिया यार रहे रणजीत रावत अब उनके कट्टर दुश्मन हैं. कट्टर दुश्मन को रामनगर सीट से चुनाव कैसे लड़ने दिया जा सकता था. रणजीत रावत को रामनगर से टिकट न देकर सल्ट भेज दिया गया. रणजीत रावत सल्ट में बीजेपी के महेश जीना के हाथों पराजित हो गए. कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष ही चुनाव मैदान में चित हो गया तो फिर पार्टी कैसे जीत पाती.

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थराली से जीत राम भी हारे चुनाव: कांग्रेस के एक और कार्यकारी अध्यक्ष जीत राम भी चुनाव हार गए. जीत राम को कांग्रेस ने चमोली जिले की थराली सीट से चुनाव मैदान में उतारा था. लेकिन जीत राम अपनी सीट ही नहीं बचा पाए तो पार्टी की उम्मीदों को कैसे परवान चढ़ा पाते. जीत राम को बीजेपी के भूपाल राम टम्टा ने शिकस्त दी. चमोली की थराली सीट एससी उम्मीदवार के लिए रिजर्व है.

कांग्रेस के कोषाध्यक्ष का कोष भी रहा खाली: उत्तराखंड कांग्रेस के कोषाध्यक्ष आर्येंद्र शर्मा भी उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में हार गए. कांग्रेस ने आर्येंद्र शर्मा को देहरादून जिले की सहसपुर सीट से बीजेपी के सहदेव पुंडीर के खिलाफ मैदान में उतारा था. लेकिन कोषाध्यक्ष आर्येंद्र शर्मा के कोष में इतने वोट नहीं आए कि वो सहदेव को वोटों की शक्ति से हरा पाते. इस तरह कांग्रेस के कोषाध्यक्ष आर्येंद्र ने भी कांग्रेस की जीत का कोष खाली रखा.

प्रचार समिति के संयोजक दिनेश अग्रवाल भी हुए धड़ाम: उत्तराखंड कांग्रेस चुनाव प्रचार समिति के संयोजक दिनेश अग्रवाल अपना प्रचार ही सही से नहीं कर पाए तो वो कांग्रेस के प्रचार का संयोजन कैसे करते. पार्टी ने उन्हें देहरादून जिले की धरमपुर विधानसभा सीट से बीजेपी के विनोद चमोली के खिलाफ मैदान में उतारा था. चमोली की चमक के आगे कांग्रेस के प्रचार समिति के संयोजक कोई चमत्कार नहीं कर सके और चुनाव हार कर पार्टी की भी लुटिया डुबो बैठे.

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नवप्रभात नहीं ला पाए कांग्रेस के लिए जीत का सवेरा: उत्तराखंड कांग्रेस घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष नवप्रभात भी चुनाव हार गए. जिन कंधों पर चुनाव में जीत के लिए दमदार और लोक-लुभावन घोषणा पत्र बनाने की जिम्मेदारी थी, वो अपना ही घोषणा पत्र सही से नहीं बना पाए और देहरादून जिले की विकासनगर सीट से चुनाव हार बैठे. नवप्रभात को बीजेपी के मुन्ना सिंह चौहान ने करारी हार दी. इसके साथ ही कांग्रेस के घोषणा पत्र को भी मतदाताओं ने अगले पांच साल के लिए भुला दिया.

Last Updated : Mar 12, 2022, 10:44 AM IST
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