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उत्तराखंड में स्कूल खुले तो छात्र हुए पढ़ाई में व्यस्त, नेता छात्रों पर राजनीति में मस्त ! - politics on opening of dehradun school

मिडिल और हाईस्कूल, इंटर के विद्यालयों के साथ उत्तराखंड में प्राइमरी स्कूल भी खुल चुके हैं. कोरोना काल में एक नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है. निजी विद्यालयों से ज्यादा उपस्थिति सरकारी स्कूलों में है. छात्र पढ़ाई में जुट गए हैं तो उधर राजनीतिक दल भी स्कूल खुलने पर राजनीति करने लगे हैं.

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स्कूलों पर राजनीति
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Published : Oct 2, 2021, 2:12 PM IST

Updated : Oct 2, 2021, 7:13 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में स्कूलों को खोले जाने के फैसले के बाद सरकारी विद्यालयों और निजी स्कूलों में छात्र संख्या को लेकर बड़ा अंतर देखने को मिल रहा है. एक तरफ निजी स्कूलों में ऑनलाइन पर ही जोर है, तो सरकारी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ने लगी है. हालांकि इस सब के बीच कोरोना काल में स्कूलों के खुलने पर राजनीतिक तर्क-वितर्क भी जारी हैं, जो स्कूलों को खोले जाने के आदेश पर सामान्य बहस को बढ़ा रहे हैं.

प्राइमरी स्कूल भी खुल गए: प्रदेश में भाजपा सरकार ने अब छोटी कक्षाओं के लिए भी स्कूलों को खोलने का निर्णय ले लिया है. यह सब तब किया गया है जब राज्य में संक्रमण के मामले काफी कम हो गए हैं. हालांकि इन आंकड़ों से हटकर राजनीतिक रूप से सरकार पर स्कूलों को खोलने में जल्दबाजी करने के आरोप भी लग रहे हैं.

उत्तराखंड में स्कूल खुले तो छात्र हुए पढ़ाई में व्यस्त.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड में खुल गए प्राइमरी स्कूल, पहले दिन कम है उपस्थिति

निजी और सरकारी स्कूलों में उपस्थिति में अंतर: इस बीच स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति पर भी सामने आए आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं. दरअसल राज्य में सरकारी विद्यालयों और प्राइवेट स्कूलों में बच्चों की हाजिरी के आंकड़े में काफी अंतर देखने को मिल रहा है. एक तरफ सरकारी स्कूलों में अभिभावक अपने बच्चों को शारीरिक रूप से पढ़ने के लिए भेजने की अनुमति दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ निजी स्कूलों में अभिभावक अब भी कोरोना संक्रमण के डर से ऑनलाइन कक्षाओं पर ही ज्यादा भरोसा कर रहे हैं.

सरकारी में 60 फीसदी तो निजी स्कूलों में 10 फीसदी उपस्थिति: उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में शुरू के दिनों में कम बच्चों की उपस्थिति दर्ज हुई. अब राज्य भर में 60% बच्चे स्कूलों में पढ़ने के लिए पहुंच रहे हैं. निजी स्कूलों में अभी 10% बच्चे भी क्लास में नहीं आ रहे हैं. निजी स्कूलों के बच्चों की पहली पसंद अब भी ऑनलाइन क्लास ही हैं. सरकारी विद्यालयों में ऑनलाइन की पढ़ाई को लेकर कोई खास सुविधाएं नहीं होना बच्चों के स्कूल पहुंचने की एक वजह है. ग्रामीण और गरीब परिवारों के बच्चे सरकारी विद्यालयों में कोरोना की बेफिक्री या कोरोना के कम मामलों के कारण भी पहुंच रहे हैं. निजी विद्यालयों के बच्चों के पास ऑनलाइन क्लास के साथ ट्यूशन जैसी पढ़ाई की अतिरिक्त व्यवस्थाएं मौजूद हैं.

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स्कूल खुलने पर शुरू हुई राजनीति

ये भी पढ़ें: कुमाऊं के 6 जिलों में अबतक 443 प्राइमरी स्कूल बंद, 1200 से अधिक पर जल्द लटकने वाला है ताला

स्कूलों के लिए है विशेष गाइडलाइन: उत्तराखंड में विद्यालयों को शिक्षा विभाग के साथ ही मुख्य सचिव स्तर पर SOP जारी की गई है. इसमें विद्यालयों को एक तरफ अभिभावकों की अनुमति लेना बेहद जरूरी है, तो दूसरी तरफ कोविड-19 को लेकर एहतियात के रूप में गाइडलाइन भी जारी की गई है. सरकारी विद्यालयों के साथ निजी स्कूलों को भी इन नियमों का पालन करना जरूरी है. खास बात यह है कि इस गाइडलाइन को विद्यालय फॉलो कर रहे हैं. इसके लिए जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देशित भी किया गया है. जिला शिक्षा अधिकारियों के स्तर पर तमाम विद्यालयों की मॉनिटरिंग के लिए व्यवस्थाएं करने के भी आदेश जारी हुए हैं.

स्कूल खुलने पर हो रही है राजनीति: स्कूलों को खोले जाने के फैसले के बाद से ही राजनीतिक रूप से भी इस पर विपक्ष सरकार को लानत भेजता रहा है. खास तौर पर बच्चों के संक्रमित होने की आशंकाओं और तीसरी लहर को देखते हुए कांग्रेस पार्टी भाजपा सरकार पर निजी विद्यालयों को फायदा पहुंचाने के इरादे से यह फैसला लेने का आरोप लगाती रही है. कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री मथुरा दत्त जोशी कहते हैं कि सरकार ने चुनाव को देखते हुए निजी विद्यालयों से कोई साठगांठ की है. इसीलिए उन्हें फायदा पहुंचाने के लिए राज्य में स्कूलों को खोलने का फैसला लिया है. जबकि अभी कोरोना की तीसरी लहर की आशंका व्यक्त की जा रही है. ऐसे में बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए था.

ये भी पढ़ें: स्कूल की तरफ नहीं बढ़ रहे छात्रों के कदम, घर रहने की आदत से हाजिरी हुई कम

कांग्रेस के आरोप का बीजेपी ने दिया जवाब: यह मामला बेहद गंभीर है. आम लोगों से जुड़ा होने के कारण बीजेपी भी इस विषय पर अपने बचाव और कांग्रेस के सवालों का जवाब देने के लिए तैयार दिख रही है. भाजपा के नेता मानते हैं कि डेढ़ साल से स्कूल बंद थे. ऑनलाइन कक्षाओं के जरिए बच्चों को इतनी बेहतर शिक्षा नहीं मिल पा रही थी. लिहाजा कोरोना के मामले कम होने के बाद ही पूरी एहतियात के साथ स्कूलों को खोलने का फैसला लिया गया है. यही नहीं कोविड-19 की गाइडलाइन को भी विद्यालयों को फॉलो करने के निर्देश दिए गए हैं. ऐसे में कांग्रेस की तरफ से जो आरोप लगाए जा रहे हैं, वह केवल राजनीतिक हैं. कांग्रेस शिक्षा जैसे विषय पर भी राजनीति कर रही है.

देहरादून: उत्तराखंड में स्कूलों को खोले जाने के फैसले के बाद सरकारी विद्यालयों और निजी स्कूलों में छात्र संख्या को लेकर बड़ा अंतर देखने को मिल रहा है. एक तरफ निजी स्कूलों में ऑनलाइन पर ही जोर है, तो सरकारी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ने लगी है. हालांकि इस सब के बीच कोरोना काल में स्कूलों के खुलने पर राजनीतिक तर्क-वितर्क भी जारी हैं, जो स्कूलों को खोले जाने के आदेश पर सामान्य बहस को बढ़ा रहे हैं.

प्राइमरी स्कूल भी खुल गए: प्रदेश में भाजपा सरकार ने अब छोटी कक्षाओं के लिए भी स्कूलों को खोलने का निर्णय ले लिया है. यह सब तब किया गया है जब राज्य में संक्रमण के मामले काफी कम हो गए हैं. हालांकि इन आंकड़ों से हटकर राजनीतिक रूप से सरकार पर स्कूलों को खोलने में जल्दबाजी करने के आरोप भी लग रहे हैं.

उत्तराखंड में स्कूल खुले तो छात्र हुए पढ़ाई में व्यस्त.

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निजी और सरकारी स्कूलों में उपस्थिति में अंतर: इस बीच स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति पर भी सामने आए आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं. दरअसल राज्य में सरकारी विद्यालयों और प्राइवेट स्कूलों में बच्चों की हाजिरी के आंकड़े में काफी अंतर देखने को मिल रहा है. एक तरफ सरकारी स्कूलों में अभिभावक अपने बच्चों को शारीरिक रूप से पढ़ने के लिए भेजने की अनुमति दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ निजी स्कूलों में अभिभावक अब भी कोरोना संक्रमण के डर से ऑनलाइन कक्षाओं पर ही ज्यादा भरोसा कर रहे हैं.

सरकारी में 60 फीसदी तो निजी स्कूलों में 10 फीसदी उपस्थिति: उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में शुरू के दिनों में कम बच्चों की उपस्थिति दर्ज हुई. अब राज्य भर में 60% बच्चे स्कूलों में पढ़ने के लिए पहुंच रहे हैं. निजी स्कूलों में अभी 10% बच्चे भी क्लास में नहीं आ रहे हैं. निजी स्कूलों के बच्चों की पहली पसंद अब भी ऑनलाइन क्लास ही हैं. सरकारी विद्यालयों में ऑनलाइन की पढ़ाई को लेकर कोई खास सुविधाएं नहीं होना बच्चों के स्कूल पहुंचने की एक वजह है. ग्रामीण और गरीब परिवारों के बच्चे सरकारी विद्यालयों में कोरोना की बेफिक्री या कोरोना के कम मामलों के कारण भी पहुंच रहे हैं. निजी विद्यालयों के बच्चों के पास ऑनलाइन क्लास के साथ ट्यूशन जैसी पढ़ाई की अतिरिक्त व्यवस्थाएं मौजूद हैं.

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स्कूल खुलने पर शुरू हुई राजनीति

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स्कूलों के लिए है विशेष गाइडलाइन: उत्तराखंड में विद्यालयों को शिक्षा विभाग के साथ ही मुख्य सचिव स्तर पर SOP जारी की गई है. इसमें विद्यालयों को एक तरफ अभिभावकों की अनुमति लेना बेहद जरूरी है, तो दूसरी तरफ कोविड-19 को लेकर एहतियात के रूप में गाइडलाइन भी जारी की गई है. सरकारी विद्यालयों के साथ निजी स्कूलों को भी इन नियमों का पालन करना जरूरी है. खास बात यह है कि इस गाइडलाइन को विद्यालय फॉलो कर रहे हैं. इसके लिए जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देशित भी किया गया है. जिला शिक्षा अधिकारियों के स्तर पर तमाम विद्यालयों की मॉनिटरिंग के लिए व्यवस्थाएं करने के भी आदेश जारी हुए हैं.

स्कूल खुलने पर हो रही है राजनीति: स्कूलों को खोले जाने के फैसले के बाद से ही राजनीतिक रूप से भी इस पर विपक्ष सरकार को लानत भेजता रहा है. खास तौर पर बच्चों के संक्रमित होने की आशंकाओं और तीसरी लहर को देखते हुए कांग्रेस पार्टी भाजपा सरकार पर निजी विद्यालयों को फायदा पहुंचाने के इरादे से यह फैसला लेने का आरोप लगाती रही है. कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री मथुरा दत्त जोशी कहते हैं कि सरकार ने चुनाव को देखते हुए निजी विद्यालयों से कोई साठगांठ की है. इसीलिए उन्हें फायदा पहुंचाने के लिए राज्य में स्कूलों को खोलने का फैसला लिया है. जबकि अभी कोरोना की तीसरी लहर की आशंका व्यक्त की जा रही है. ऐसे में बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए था.

ये भी पढ़ें: स्कूल की तरफ नहीं बढ़ रहे छात्रों के कदम, घर रहने की आदत से हाजिरी हुई कम

कांग्रेस के आरोप का बीजेपी ने दिया जवाब: यह मामला बेहद गंभीर है. आम लोगों से जुड़ा होने के कारण बीजेपी भी इस विषय पर अपने बचाव और कांग्रेस के सवालों का जवाब देने के लिए तैयार दिख रही है. भाजपा के नेता मानते हैं कि डेढ़ साल से स्कूल बंद थे. ऑनलाइन कक्षाओं के जरिए बच्चों को इतनी बेहतर शिक्षा नहीं मिल पा रही थी. लिहाजा कोरोना के मामले कम होने के बाद ही पूरी एहतियात के साथ स्कूलों को खोलने का फैसला लिया गया है. यही नहीं कोविड-19 की गाइडलाइन को भी विद्यालयों को फॉलो करने के निर्देश दिए गए हैं. ऐसे में कांग्रेस की तरफ से जो आरोप लगाए जा रहे हैं, वह केवल राजनीतिक हैं. कांग्रेस शिक्षा जैसे विषय पर भी राजनीति कर रही है.

Last Updated : Oct 2, 2021, 7:13 PM IST
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