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मूलनिवासी असमिया मुसलमानों को अलग पहचान पत्र, जनगणना क्यों चाहते हैं?

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Published : Apr 29, 2022, 1:43 PM IST

Updated : Apr 29, 2022, 2:39 PM IST

असम सरकार द्वारा गठित एक पैनल ने हाल ही में सिफारिश की थी कि असमिया मुसलमानों को राज्य के स्वदेशी असमिया भाषी समुदाय के रूप में मान्यता देने और उन्हें पहचान पत्र जारी करने के लिए एक अधिसूचना पारित की जाए.

असमिया मुस्लिम समुदाय के लिए गठित उपसमिति की रिपोर्ट
असमिया मुस्लिम समुदाय के लिए गठित उपसमिति की रिपोर्ट

गुवाहाटी : असमिया मुसलमानों को राज्य के स्वदेशी असमिया भाषी समुदाय के रूप में मान्यता देने और उन्हें पहचान पत्र जारी करने की सिफारिश की गई है. यह सिफारिश असम सरकार द्वारा गठित एक पैनल ने हाल ही में सरकार को सौंपे गए अपनी रिपोर्ट में की है. उनकी सिफारिश है कि सरकार इसके एक अधिसूचना जारी करे. हालांकि सिफारिशों में इसके उद्देश्य पर सवाल उठाए हैं और क्या इससे समुदाय को लाभ होगा या इस क्षेत्र में एक और विभाजन होगा. बता दें कि मूलनिवासी असमिया मुस्लिम समुदाय के समग्र विकास के लिए उप-समितियों के गठन की गई थी. जिसमें सात उप-समितियों ने 21 अप्रैल को गुवाहाटी में आयोजित एक कार्यक्रम में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को अपनी सिफारिशों वाली अपनी रिपोर्ट सौंप दी है.

"असमिया मुसलमानों के पांच उप-समूह - सैयद, गोरिया, मोरिया, देशी और जुल्हा - का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए. साथ ही सरकारी अधिसूचना में इनको भी मान्यता दी जानी चाहिए. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 333 के समान एक प्रावधान को प्रतिनिधित्व देने के लिए अधिनियमित किया जा सकता है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 169 के अनुसार संसद और असम विधान सभा में असमिया मुस्लिम, एक उच्च सदन (विधान परिषद) असम में मनोनीत किया जा सकता है और एक बार विधान परिषद बनने के बाद, असमिया मुस्लिम समुदाय के लिए एक विशिष्ट संख्या में सीटें आरक्षित की जा सकती हैं. इस परिषद में राज्य सरकार द्वारा गठित उप-समितियों ने सिफारिश की. पैनल ने यह भी सिफारिश की कि असमिया मुसलमानों के लिए एक अलग प्राधिकरण स्थापित किया जाए ताकि निदेशालय इस समुदाय के लोगों को उनकी विशिष्ट पहचान के लिए आवश्यक दस्तावेज जारी कर सके. यह एक पहचान पत्र या प्रमाण पत्र के रूप मान्य में हो सकता है.

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, "सिफारिशों के आधार पर राज्य सरकार असम में मूलनिवासी असमिया मुस्लिम समुदाय के सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक सशक्तिकरण के लिए सिफारिशों को लागू करने के लिए अल्पकालिक, मध्यम अवधि और दीर्घकालिक योजना तैयार करेगी. मोमिनुल अवल - जनगोष्ठी समनय परिषद के मुख्य संयोजक, जो 21 स्वदेशी मुस्लिम संगठनों का एक सर्वेच्च निकाय है. उसने बताया कि वे असम सरकार द्वारा लिए गए निर्णय का स्वागत कर रहे हैं. और हमारी मांग है कि गोरिया, मोरिया, देसी समुदाय के लोगों के लिए भी एक अलग जनगणना की जाए और सरकार उन्हें पहचान पत्र जारी करे क्योंकि राज्य में बांग्लादेश मूल के मुसलमानों की आबादी लगभग एक करोड़ है. वर्तमान में मूलनिवासी मुसलमानों को राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक रूप से पहचान संकट का सामना करना पड़ रहा है.

असम सरकार ने उप-समितियों का गठन किया था और पैनल पहले ही अपनी रिपोर्ट और सिफारिशें मुख्यमंत्री को सौंप चुके हैं. अवल ने कहा कि सरकार को असम में स्वदेशी मुसलमानों को संवैधानिक सुरक्षा देना चाहिए. पैनल ने राज्य सरकार से यह भी सिफारिश की कि महिलाओं को व्यक्तिगत पोशाक के मामले में सामाजिक अधीनता को त्यागने के लिए स्वतंत्र होने के लिए विशेष रूप से सार्वजनिक स्थानों पर नकाब, बुर्का और हिजाब पहनने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए.

यह भी पढ़ें-'स्वदेशी असमिया मुसलमानों' के लिए बने पैनल ने अपनी रिपोर्ट असम सरकार को सौंपी

एएनआई

गुवाहाटी : असमिया मुसलमानों को राज्य के स्वदेशी असमिया भाषी समुदाय के रूप में मान्यता देने और उन्हें पहचान पत्र जारी करने की सिफारिश की गई है. यह सिफारिश असम सरकार द्वारा गठित एक पैनल ने हाल ही में सरकार को सौंपे गए अपनी रिपोर्ट में की है. उनकी सिफारिश है कि सरकार इसके एक अधिसूचना जारी करे. हालांकि सिफारिशों में इसके उद्देश्य पर सवाल उठाए हैं और क्या इससे समुदाय को लाभ होगा या इस क्षेत्र में एक और विभाजन होगा. बता दें कि मूलनिवासी असमिया मुस्लिम समुदाय के समग्र विकास के लिए उप-समितियों के गठन की गई थी. जिसमें सात उप-समितियों ने 21 अप्रैल को गुवाहाटी में आयोजित एक कार्यक्रम में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को अपनी सिफारिशों वाली अपनी रिपोर्ट सौंप दी है.

"असमिया मुसलमानों के पांच उप-समूह - सैयद, गोरिया, मोरिया, देशी और जुल्हा - का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए. साथ ही सरकारी अधिसूचना में इनको भी मान्यता दी जानी चाहिए. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 333 के समान एक प्रावधान को प्रतिनिधित्व देने के लिए अधिनियमित किया जा सकता है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 169 के अनुसार संसद और असम विधान सभा में असमिया मुस्लिम, एक उच्च सदन (विधान परिषद) असम में मनोनीत किया जा सकता है और एक बार विधान परिषद बनने के बाद, असमिया मुस्लिम समुदाय के लिए एक विशिष्ट संख्या में सीटें आरक्षित की जा सकती हैं. इस परिषद में राज्य सरकार द्वारा गठित उप-समितियों ने सिफारिश की. पैनल ने यह भी सिफारिश की कि असमिया मुसलमानों के लिए एक अलग प्राधिकरण स्थापित किया जाए ताकि निदेशालय इस समुदाय के लोगों को उनकी विशिष्ट पहचान के लिए आवश्यक दस्तावेज जारी कर सके. यह एक पहचान पत्र या प्रमाण पत्र के रूप मान्य में हो सकता है.

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, "सिफारिशों के आधार पर राज्य सरकार असम में मूलनिवासी असमिया मुस्लिम समुदाय के सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक सशक्तिकरण के लिए सिफारिशों को लागू करने के लिए अल्पकालिक, मध्यम अवधि और दीर्घकालिक योजना तैयार करेगी. मोमिनुल अवल - जनगोष्ठी समनय परिषद के मुख्य संयोजक, जो 21 स्वदेशी मुस्लिम संगठनों का एक सर्वेच्च निकाय है. उसने बताया कि वे असम सरकार द्वारा लिए गए निर्णय का स्वागत कर रहे हैं. और हमारी मांग है कि गोरिया, मोरिया, देसी समुदाय के लोगों के लिए भी एक अलग जनगणना की जाए और सरकार उन्हें पहचान पत्र जारी करे क्योंकि राज्य में बांग्लादेश मूल के मुसलमानों की आबादी लगभग एक करोड़ है. वर्तमान में मूलनिवासी मुसलमानों को राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक रूप से पहचान संकट का सामना करना पड़ रहा है.

असम सरकार ने उप-समितियों का गठन किया था और पैनल पहले ही अपनी रिपोर्ट और सिफारिशें मुख्यमंत्री को सौंप चुके हैं. अवल ने कहा कि सरकार को असम में स्वदेशी मुसलमानों को संवैधानिक सुरक्षा देना चाहिए. पैनल ने राज्य सरकार से यह भी सिफारिश की कि महिलाओं को व्यक्तिगत पोशाक के मामले में सामाजिक अधीनता को त्यागने के लिए स्वतंत्र होने के लिए विशेष रूप से सार्वजनिक स्थानों पर नकाब, बुर्का और हिजाब पहनने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए.

यह भी पढ़ें-'स्वदेशी असमिया मुसलमानों' के लिए बने पैनल ने अपनी रिपोर्ट असम सरकार को सौंपी

एएनआई

Last Updated : Apr 29, 2022, 2:39 PM IST

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