देहरादून (उत्तराखंड): अक्सर आपने रंगों की होली खेलते हुए लोगों को देखा होगा, लेकिन कभी आपने मक्खन की होली देखी है. शायद आपको सुनकर हैरानी हो होगी, लेकिन यह सच है. यह होली अगस्त महीने में बुग्यालों में खेली जाती है. जिसे बटर फेस्टिवल या अढूंडी उत्सव कहा जाता है, जो अपने आप में बेहद अनूठा और खास उत्सव होता है. इस उत्सव में देवभूमि की संस्कृति और विरासत की झलक का समागम देखने को मिलता है. इस दौरान एक दूसरे पर मक्खन और दही लगाकर होली खेली जाती है.
उच्च हिमालय में 11 हजार फीट पर खेली जाती है मक्खन की होलीः दरअसल, मक्खन की यह होली उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के दयारा बुग्याल में खेली जाती है. इस बार भी आगामी 17 अगस्त को दयारा बुग्याल में बटर फेस्टिवल मनाई जाएगी. ऐसे में एक बार फिर से दूध, मट्ठा, घी, मक्खन की होली खेलने के लिए रैथल, नटीण, भटवाड़ी, क्यार्क, बंद्राणी के ग्रामीण तैयारी में हैं.
उत्तरकाशी के दयारा बुग्याल में मनाया जाने वाला यह पर्व पूरी तरह से कुदरत को समर्पित है. इस पर्व को अढूंडी उत्सव के रूप में मनाया जाता है. उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर और समुद्र तल से तकरीबन 11 हजार फीट की उंचाई पर मौजूद कई वर्ग किलोमीटर में फैले दयारा बुग्याल में पारंपरिक तौर तरीके से ग्रामीण अढूंडी उत्सव मनाते हैं.
दयारा बुग्याल में मनाए जाने वाले इस अढूंडी उत्सव में स्थानीय लोगों के साथ पर्यटक भी पहुंचने लगे हैं. इतना नहीं विदेशी पर्यटक भी इस पर्व में हिस्सा लेने पहुंचते हैं. यही वजह है कि उत्तरकाशी के पारंपरिक पर्व को वैश्विक लोकप्रियता मिली है. जिसकी वजह से कुछ लोग स्पेन में होने वाले 'ला टोमाटीना' यानी टमाटर की होली से जोड़ते हुए इसका बटर फेस्टिवल नाम दिया है.
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इसलिए मनाया जाता है बटर फेस्टिवलः रैथल गांव के ग्रामीण हर साल अपने मवेशियों के साथ गर्मियों की दस्तक के साथ ही दयारा बुग्याल स्थित छानियों में चले जाते हैं. दयारा बुग्याल रैथल गांव से 7 किमी की पैदल दूरी पर है. कई किमी तक फैले बुग्याल मवेशियों के आदर्श चारागाह होते हैं. यहां उगने वाले औषधीय गुणों से भरपूर पौधों से गायों की दुग्ध उत्पादन बढ़ती है.
मॉनसून बीतने के साथ ही जब बुग्याल में सर्दियां दस्तक देने लगती है तो ग्रामीण अपने मवेशियों के साथ वापस गांव लौटने की तैयारियों में जुट जाते हैं, लेकिन इससे पहले ग्रामीण दयारा बुग्याल में मवेशियों एवं उन्हें सुरक्षित रखने, दुधारू पशुओं के दूध में वृद्धि के लिए प्रकृति और स्थानीय देवताओं का आभार जताना नहीं भूलते. प्रकृति का आभार जताने के लिए ही ग्रामीण सदियों से इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं.
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ऐसे मनाया जाता है बटर फेस्टिवलः ग्रामीण सदियों से ही भाद्रपद महीने की संक्रांति को पारंपरिक रूप से दूध, मक्खन, मट्ठा की होली खेलते आ रहे हैं. प्रकृति का आभार जताने वाले यह उत्सव ग्रामीणों और प्रकृति के बीच के मधुर संबंध को दर्शाता है. साल 2006 में रैथल के ग्रामीणों की दयारा पर्यटन उत्सव समिति ने इस अनोखी होली को देश विदेश के पर्यटकों से जोड़ने के लिए प्रयास किए और बड़े स्तर पर आयोजन करने का फैसला लिया.
साल 2006 से लेकर अब तक दयारा पर्यटन उत्सव समिति हर साल भाद्रपद माह की संक्रांति यानी अगस्त महीने के मध्य में दयारा बुग्याल में अढूंडी उत्सव का भव्य आयोजन करती आ रही है. पूरी दुनिया में मक्खन, मट्ठा, दूध की यह अनोखी होली का आयोजन केवल दयारा बुग्याल में ही होता है. देश विदेश से हजारों पर्यटक भी हर साल इस अनोखे मक्खन की होली में भाग लेने के लिए दयारा बुग्याल पहुंचते हैं.
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दयारा के मक्खन की होली के अलावा स्पेन में खेली जाती है टमाटर की अनोखी होलीः उत्तरकाशी के बटर फेस्टिवल के आयोजकों का कहना है कि हिमालय क्षेत्र में मनाया जाने वाला यह दुनिया का एक तरह का आयोजन है. जिस तरह की स्पेन में टमाटर की होली की जाती है, उसी तरह से दयारा बुग्याल में मक्खन की होली खेली जाती है. बता दें कि बटर फेस्टिवल की तरह ही स्पेन में भी टमाटर की होली खेली जाती है. जिसे 'ला टोमाटीना' फेस्टिवल के नाम से जाना जाता है.
स्पेन में होने वाले इस टमाटर की होली में हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं. यह फेस्टिवल भी अगस्त महीने में होती है. जहां एक तरफ उत्तरकाशी के बटर फेस्टिवल में तकरीबन 2 क्विंटल मठ्ठा और 100 किलो मक्खन की होली खेली जाती है तो वहीं स्पेन के टमाटर की होली में अनुमानित तौर पर करीब 2,50,000 पाउंड टमाटरों का प्रयोग किया जाता है.
स्पेन में ऐसे हुई थी टमाटर की होली की शुरुआत: दरअसल, स्पेन में टोमाटो फेस्टिवल की शुरुआत साल 1945 में हुई थी. जब एक धरना प्रदर्शन के चलते कुछ लोगों ने स्पेन के शहर में अनोखे तरीके से प्रदर्शन किया था. प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए जब पुलिस आगे बढ़ी तो तब लोगों ने पास में मौजूद सब्जी की दुकानों से सब्जियों और फलों को उठाकर पुलिस पर हमला कर दिया. आखिर में जिस मांग को लेकर धरना दिया गया था, उसे सरकार ने माना और उत्सव की तरह तब से इस फेस्टिवल को मनाया जाता है.
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