देहरादूनः इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) में आना देश की रक्षा करने का जज्बा रखने वाले हर युवा का सपना होता है. देश सेवा का जज्बा लिए जवान चाहता है कि वह आईएमए की पासिंग आउट परेड (पीओपी) का हिस्सा बने. देहरादून स्थित आईएमए से हर साल पास आउट होकर सैकड़ों देसी-विदेशी जेंटलमैन कैडेट (जीसी) अधिकारी बनकर निकलते हैं. एक बार फिर जीसी आईएमए देहरादून से अंतिम पग पार कर देश सेवा की शपथ लेने जा रहे हैं. 10 जून 2023 को आईएमए देहरादून में पासिंग आउट परेड होने जा रही है. लेकिन खास बात ये है कि इस पीओपी से सलामी में दौरान घोड़ा बग्घी रस्म को खत्म किया जा रहा है. रक्षा मंत्रालय भारत सरकार के जारी आदेश में पासिंग आउट परेड में घोड़ा बग्घी को शामिल करने की प्रथा को खत्म करने का आदेश दिया गया है.
क्या और कब से चल रही प्रथा: ब्रिटिश काल के समय से ही सलामी के लिए आने वाले मेहमान (मुख्य अतिथि) को बग्घी में लाए जाने की प्रथा चल रही है. पीओपी में शामिल जीसी घोड़ा बग्घी में सवार मेहमान को सलामी देते हैं. लेकिन अब बदलते जमाने और आधुनिकता को देखते हुए रक्षा मंत्रालय ने अपना फैसला बदल दिया है. अब घोड़ा बग्घी की जगह अतिथि सरकारी गाड़ी का उपयोग करेंगे. ऐसे में 10 जून को होने वाली पीओपी में अब घोड़ों की टाप की जगह धीमी गति से चलने वाली गाड़ी की आवाज सुनाई देगी.
क्या कहते हैं अधिकारी: आईएमए की जनसंपर्क अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल इशानी मैत्रा का कहना है कि ये फैसला रक्षा मंत्रालय द्वारा लिया गया है. रही बात बग्घी बंद होने की तो कोई भी काम परंपरा को तोड़कर नहीं किया जा रहा है, बल्कि आधुनिकता के आधार पर किया जा रहा है. इतना जरूर है कि 10 जून की परेड में गाड़ी का इस्तमाल किया जाएगा.
वहीं, रिटायर्ड ब्रिगेडियर केजी बहल ने भी इसका समर्थन करते हुए कहा है कि समय के साथ बदलाव जरूरी है. लेकिन इतना भी ध्यान में रखना होगा पुरानी परंपराओं और चीजों से छेड़छाड़ या बदलाव न हो.
कैसे शुरू हुई घोड़ा-बग्घी की प्रथा: आईएमए देहरादून में शामिल होने वाली बग्घी के बारे में बताया जाता है कि साल 1969 के समय पंजाब स्थित पटियाला के तत्कालीन राजा द्वारा गिफ्ट के तौर पर दी गई थी. बाद में इसका उपयोग परेड की सलामी के लिए होने लगा. इसे परेड के दौरान वरिष्ठ मेहमान के लिए लाया जाता है, जो परेड की सलामी और स्थलीय निरिक्षण करते हैं. पटियाला के अलावा विक्टोरिया और जयपुर राजघराने की बग्घी भी आईएमए देहरादून में मौजूद है. अब आईएमए इन बग्घियों को प्रदर्शनी के तौर पर इस्तमाल करने या फिर वापस भेजने को लेकर पत्राचार कर रहा है.
आईएमए का गौरवशाली इतिहास: बता दें कि, भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून की शुरुआत 1932 में हुई. 1932 से 10 दिसंबर 2022 तक 64,489 भारतीय कैडेट पास आउट हो चुके हैं. जबकि 2893 विदेशी कैडेट ट्रेनिंग ले चुके हैं. IMA का इतिहास कितना पुराना और गौरवशाली है, इसका सबूत आईएमए में मौजूद म्यूजियम है, जिसमें बेहद पुरानी यादों को संजोकर रखा गया है. भारत में ब्रिटिश सरकार के कमांडर इन चीफ फील्ड मार्शल सर स्लिप चेटवुड से लेकर पाकिस्तान के दो हिस्से करने वाले 1971 युद्ध के महानायक फील्ड मार्शल सैम मानेकश की पुरानी तस्वीरें और उनसे जुड़ी यादें भी यहां रखी हुई है. इस बिल्डिंग का नाम भी फिलिप चेटवुड के नाम से ही रखा गया है.
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