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reverse migration : क्या फेल हुई सरकार ? पहाड़ों में नहीं टिक रही जवानी, तीन साल में 59 गांव खाली - रिवर्स पलायन

सीमांत जनपद पिथौरागढ़ में पिछले तीन में होने वाले पलायन के आंकड़े चौकाने वाले हैं. जल-जीवन मिशन के ताजा सर्वे के अनुसार पिछले तीन साल में पिथौरागढ़ जनपद से 59 गांव खाली हुए हैं. अब पूरे जनपद में 1,542 गांव ही ऐसे बचे हैं, जो आबाद हैं.

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रिवर्स पलायन
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Published : Dec 12, 2021, 5:34 PM IST

पिथौरागढ़ : कहते हैं पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ में नहीं टिकती, ये सिर्फ एक कहावत नहीं बल्कि पहाड़ का सच है. पहाड़ से पलायन को रोकने के सरकार के लाख दावों के बावजूद हकीकत एकदम जुदा है. अगर बात करने चीन और नेपाल बॉर्डर से लगे सीमांत जनपद पिथौरागढ़ की तो यहां पिछले 3 सालों में पलायन का ग्राफ घटने के बजाए लगातार बढ़ता जा रहा है. पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार यहां पहले से ही 41 गांवों में 50 फीसदी से अधिक पयालन हो चुका है.

पिथौरागढ़ के गांव हुए खाली

वहीं, अब जल-जीवन मिशन के ताजा सर्वे में जो आंकड़े सामने आए हैं. वो बेहद चौकाने वाले हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक, जिले में वर्तमान में कुल 1,542 गांव ही आबाद हैं, जबकि तीन साल पहले तक जिले में 1,601 गांव आबाद थे. जल जीवन मिशन के आंकड़ों के मुताबिक बीते 3 साल में जिले के 59 गांव और खाली हो चुके हैं. ये हाल तब है, जब रिवर्स पलायन को लेकर सरकार तमाम तरह की योजनाएं चला रही है.

पिथौरागढ़ जिले के 59 गांव हुए वीरान: उत्तराखंड राज्य बने 21 साल हो गए हैं. बीते दो दशकों में सरकार ने सीमांत जिले पिथौरागढ़ में विकास के नाम पर करोड़ों रुपया खर्च कर दिया है, लेकिन आज भी सीमांत के लोग विभिन्न मूलभूत सुविधा से वंचित हैं. आज भी सीमांत के कई गांवों में सड़क सुविधा नहीं है, जबकि बिजली, पानी, संचार, स्वास्थ्य और रोजगार के भी बुरे हाल हैं, जिस कारण पलायन लगातार जारी है.

वर्तमान में पिथौरागढ़ जिले में 59 गांव ऐसे हैं, जहां अब कोई भी नहीं रहता यानि की ये गांव वीरान हो चुके हैं. इनमें सबसे अधिक 15 गांव पिथौरागढ़ तहसील के हैं. इसके बाद 13 गांव गंगोलीहाट, डीडीहाट और बेरीनाग के छह-छह, धारचूला के चार, गणाई-गंगोली, पांखू और थल के तीन-तीन गांव शामिल हैं. इन गांवों में अब कोई नहीं रहता. हालांकि इनमें कुछ गांव ऐसे हैं, जहां अभी भी खेती की जाती है.

ये गांव हुए वीरान: सीमांत पिथौरागढ़ जिले के रौलियागांव, थली, घटपाथर, कपतड़, पंतखेत, रौलियागांव, तैनखोला, शालीबोटी, खुरियागांव, भेतकुड़ी, किरखंडे, सरड़ा, दांगड़, चिटगलिया, गिंडीगांव, दुविधा, कुठेरी, कालावन, ग्यालभाट, चौड़ा, भैसढुंगा, ढोलीढुंगा, सैनकनला, मनथला, भांतड, खिमलिंग, गुमकाना, लूम, कंडेरा पोखरी, गरसोली, नामक, वलना, किरमोलिया, ननैत, कसाडी, गडस्यारी आदि गांव जनशून्य हो गए हैं.

41 गांवों में 50 फीसदी से अधिक पलायन: पलायन आयोग के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो पिथौरागढ़ जिले में 41 गांव ऐसे हैं, जहां 50 फीसदी से अधिक लोग पलायन कर चुके हैं. पलायन की सबसे अधिक मार गंगोलीहाट विकासखंड पर पड़ी है, गंगोलीहाट विकासखण्ड में 25 गांव ऐसे हैं, जो 50 फीसदी से अधिक खाली हो चुके हैं. इसी तरह बेरीनाग विकासखण्ड में 12 गांव, कनालीछीना और मूनाकोट विकासखंड में 2-2 गांव ऐसे है, जो आधे खाली हो गए हैं. ये बात और है कि खाली हो चुके गांवों में रिवर्स पलायन के लिए सरकार कई योजनाओं को भी संचालित कर रही है.

पलायन का बड़ा कारण: पिथौरागढ़ जिले के सीमांत क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के बुरे हाल हैं. राज्य गठन के बाद भले ही यहां अस्पतालों और चिकित्सकों की संख्या बढ़ी हो लेकिन हकीकत ये है कि आज भी लोग इलाज के लिए मैदानी क्षेत्रों पर ही निर्भर हैं, जिले के एकमात्र महिला अस्पताल में गर्भवती महिलाओं के अल्ट्रासाउंड के लिए एक रेडियोलॉजिस्ट तक नहीं है. जिला और महिला अस्पताल दोनों में विशेषज्ञ चिकित्सकों और आधुनिक इलाज की तकनीकों का अभाव है.

40 से अधिक गांवों में सड़क सुविधा नहीं: आजादी के 75 साल बाद भी पिथौरागढ़ जिले में 40 से अधिक गांव सड़क सुविधा से वंचित हैं. इन गांवों की कुल आबादी 50 हजार से अधिक है, ये गांव अति दुर्गम इलाके में हैं. इन गांवों की सड़क से दूरी 5 किलोमीटर से लेकर 27 किलोमीटर तक है. यहां जब भी कोई बीमार होता है, तो मरीज को डोली में बैठाकर ही लोग सड़क तक उठाकर लाते हैं. लोगों को उम्मीद थी कि अलग राज्य बनने के बाद उनके गांव तक सड़क पहुंचेगी लेकिन उन्हें मायूसी ही मिली है.

400 परिवार बिजली से वंचित: पिथौरागढ़ जिले में करीब 400 परिवार ऐसे हैं, जो आज तक रोशन नहीं हो पाए हैं सरकार की ओर से तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं, मगर ये योजनाएं सरकारी फाइलों में दम तोड़ रही हैं. आज भी इन परिवारों के हजारों लोग रोशनी का इंतजार कर रहे हैं. इनमें से अधिकांश परिवार चीन और नेपाल बॉर्डर पर स्थित दारमा और व्यास घाटी के हैं.

पानी की भी किल्लत: पिथौरागढ़ जिले में वर्तमान में पानी की 205 योजनाएं संचालित हैं. इसके बाद भी नगर से लेकर गांवों तक पानी के लिए हाहाकार मचा रहता है, जिन इलाकों में पेयजल योजनाएं पहुंच गई है. वहां भी लोगों को पेयजल की समस्या से दो-चार होना पड़ता है, जबकि ग्रामीण इलाकों में हालात और बदतर हैं. यहां लोगों की जवानी दो बूंद पानी के जुगाड़ में बर्बाद हो रही है. लोगों को कई किलोमीटर पैदल चलकर प्राकृतिक जलस्त्रोतों से अपनी प्यास बुझानी पड़ती है.

पढ़ें :- उत्तर प्रदेश : प्रवासी मजदूरों की समस्या, पलायन और संपत्ति विवाद

संचार सुविधा से महरूम कई सीमांत गांव: आज डिजिटल युग में भी सीमांत जनपद पिथौरागढ़ में 100 से अधिक गांव ऐसे हैं, जो संचार सेवा से पूरी तरह महरूम है. यहां लोगों को संचार से जुड़ने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. यहां तक कि सिलेंडर बुक करने के लिए भी लोगों को 10 से 30 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है.

गांव से शहर और शहर से महानगरों की ओर हो रहा पलायन: मूलभूत सुविधाओं और रोजगार के तलाश में गांव के गांव खाली हो रहे हैं. अब केवल कमजोर तबका ही गांव में टिका हुआ है, जबकि सम्पन्न लोग बेहतर सुविधाओं की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. गांव से लोग जहां शहरों का रुख कर रहे हैं. वहीं, शहरों से लोग महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं.

ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनाने की है जरूरत: गांव में जो लोग अभी भी टिके हुए हैं, उनकी आय का मुख्य जरिया खेती और पशुपालन है, मगर जंगली-जानवरों के आतंक के कारण खेती से भी ग्रामीणों का मोहभंग हो रहा है. अगर सरकार पलायन को रोकने के लिए वाकई में संवेदनशील हैं, तो ग्रामीणों की आजीविका में सुधार लाने के लिए ठोस प्रयास करने होंगे.

खेती और पशुपालन को बढ़ावा दे सरकार: अगर सरकार ऑर्गेनिक खेती के साथ ही पशुपालन को बढ़ावा दे तो लोगों को अपनी जड़ों से दूर होने से रोका जा सकता है. हालांकि, सरकार कई योजनाएं कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में चला रही है मगर इन योजनाओं का लाभ प्रगतिशील किसानों को ही मिल पा रहा है, जबकि कम भूमि वाले और भूमिहीन किसानों को इन योजनाओं का कम ही लाभ मिल पा रहा है. गरीब तबका गांव में मेहनत-मजदूरी के दम पर ही गुजर बसर करने को मजबूर हैं. ऐसे कमजोर तबके को भी सामूहिक खेती और उत्पादन में शामिल करने की जरूरत है. साथ ही गांव में हस्तशिल्प, कुटीर और लघु उद्योगों को भी बढ़ावा देने की जरूरत है.

होम स्टे और पर्यटन सर्किट विकसित करने की जरूरत: पिथौरागढ़ जिला प्राकृतिक पर्यटन के साथ ही धार्मिक और साहसिक पर्यटन का भी केंद्र है. ऐसे में सरकार ग्रामीण इलाकों में होम स्टे को बढ़ावा देने के साथ ही धार्मिक और पर्यटन स्थलों को विकसित करें, तो ये ग्रामीणों की आजीविका को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है.

सरकार की पर्वतीय नीति पर उठ रहे सवाल: बीते 3 सालों में जिस तेजी से पिथौरागढ़ में पलायन बढ़ा है, उससे साफ साबित हो रहा है कि लोगों का गांव से लगातार मोहभंग हो रहा है. बेहतर सुविधाओं और रोजगार की तलाश में गांव मानव विहीन होते जा रहे हैं. चीन और नेपाल बॉर्डर से लगे पिथौरागढ़ जिले में बढ़ता पलायन देश की सुरक्षा के नजरिये से भी खतरा है. पलायन की ये व्यथा सरकारों की पर्वतीय नीति पर भी सवाल खड़े कर रही है. ऐसे में सरकार को अब गंभीर कदम उठाने की भी जरूरत है.

पिथौरागढ़ : कहते हैं पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ में नहीं टिकती, ये सिर्फ एक कहावत नहीं बल्कि पहाड़ का सच है. पहाड़ से पलायन को रोकने के सरकार के लाख दावों के बावजूद हकीकत एकदम जुदा है. अगर बात करने चीन और नेपाल बॉर्डर से लगे सीमांत जनपद पिथौरागढ़ की तो यहां पिछले 3 सालों में पलायन का ग्राफ घटने के बजाए लगातार बढ़ता जा रहा है. पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार यहां पहले से ही 41 गांवों में 50 फीसदी से अधिक पयालन हो चुका है.

पिथौरागढ़ के गांव हुए खाली

वहीं, अब जल-जीवन मिशन के ताजा सर्वे में जो आंकड़े सामने आए हैं. वो बेहद चौकाने वाले हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक, जिले में वर्तमान में कुल 1,542 गांव ही आबाद हैं, जबकि तीन साल पहले तक जिले में 1,601 गांव आबाद थे. जल जीवन मिशन के आंकड़ों के मुताबिक बीते 3 साल में जिले के 59 गांव और खाली हो चुके हैं. ये हाल तब है, जब रिवर्स पलायन को लेकर सरकार तमाम तरह की योजनाएं चला रही है.

पिथौरागढ़ जिले के 59 गांव हुए वीरान: उत्तराखंड राज्य बने 21 साल हो गए हैं. बीते दो दशकों में सरकार ने सीमांत जिले पिथौरागढ़ में विकास के नाम पर करोड़ों रुपया खर्च कर दिया है, लेकिन आज भी सीमांत के लोग विभिन्न मूलभूत सुविधा से वंचित हैं. आज भी सीमांत के कई गांवों में सड़क सुविधा नहीं है, जबकि बिजली, पानी, संचार, स्वास्थ्य और रोजगार के भी बुरे हाल हैं, जिस कारण पलायन लगातार जारी है.

वर्तमान में पिथौरागढ़ जिले में 59 गांव ऐसे हैं, जहां अब कोई भी नहीं रहता यानि की ये गांव वीरान हो चुके हैं. इनमें सबसे अधिक 15 गांव पिथौरागढ़ तहसील के हैं. इसके बाद 13 गांव गंगोलीहाट, डीडीहाट और बेरीनाग के छह-छह, धारचूला के चार, गणाई-गंगोली, पांखू और थल के तीन-तीन गांव शामिल हैं. इन गांवों में अब कोई नहीं रहता. हालांकि इनमें कुछ गांव ऐसे हैं, जहां अभी भी खेती की जाती है.

ये गांव हुए वीरान: सीमांत पिथौरागढ़ जिले के रौलियागांव, थली, घटपाथर, कपतड़, पंतखेत, रौलियागांव, तैनखोला, शालीबोटी, खुरियागांव, भेतकुड़ी, किरखंडे, सरड़ा, दांगड़, चिटगलिया, गिंडीगांव, दुविधा, कुठेरी, कालावन, ग्यालभाट, चौड़ा, भैसढुंगा, ढोलीढुंगा, सैनकनला, मनथला, भांतड, खिमलिंग, गुमकाना, लूम, कंडेरा पोखरी, गरसोली, नामक, वलना, किरमोलिया, ननैत, कसाडी, गडस्यारी आदि गांव जनशून्य हो गए हैं.

41 गांवों में 50 फीसदी से अधिक पलायन: पलायन आयोग के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो पिथौरागढ़ जिले में 41 गांव ऐसे हैं, जहां 50 फीसदी से अधिक लोग पलायन कर चुके हैं. पलायन की सबसे अधिक मार गंगोलीहाट विकासखंड पर पड़ी है, गंगोलीहाट विकासखण्ड में 25 गांव ऐसे हैं, जो 50 फीसदी से अधिक खाली हो चुके हैं. इसी तरह बेरीनाग विकासखण्ड में 12 गांव, कनालीछीना और मूनाकोट विकासखंड में 2-2 गांव ऐसे है, जो आधे खाली हो गए हैं. ये बात और है कि खाली हो चुके गांवों में रिवर्स पलायन के लिए सरकार कई योजनाओं को भी संचालित कर रही है.

पलायन का बड़ा कारण: पिथौरागढ़ जिले के सीमांत क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के बुरे हाल हैं. राज्य गठन के बाद भले ही यहां अस्पतालों और चिकित्सकों की संख्या बढ़ी हो लेकिन हकीकत ये है कि आज भी लोग इलाज के लिए मैदानी क्षेत्रों पर ही निर्भर हैं, जिले के एकमात्र महिला अस्पताल में गर्भवती महिलाओं के अल्ट्रासाउंड के लिए एक रेडियोलॉजिस्ट तक नहीं है. जिला और महिला अस्पताल दोनों में विशेषज्ञ चिकित्सकों और आधुनिक इलाज की तकनीकों का अभाव है.

40 से अधिक गांवों में सड़क सुविधा नहीं: आजादी के 75 साल बाद भी पिथौरागढ़ जिले में 40 से अधिक गांव सड़क सुविधा से वंचित हैं. इन गांवों की कुल आबादी 50 हजार से अधिक है, ये गांव अति दुर्गम इलाके में हैं. इन गांवों की सड़क से दूरी 5 किलोमीटर से लेकर 27 किलोमीटर तक है. यहां जब भी कोई बीमार होता है, तो मरीज को डोली में बैठाकर ही लोग सड़क तक उठाकर लाते हैं. लोगों को उम्मीद थी कि अलग राज्य बनने के बाद उनके गांव तक सड़क पहुंचेगी लेकिन उन्हें मायूसी ही मिली है.

400 परिवार बिजली से वंचित: पिथौरागढ़ जिले में करीब 400 परिवार ऐसे हैं, जो आज तक रोशन नहीं हो पाए हैं सरकार की ओर से तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं, मगर ये योजनाएं सरकारी फाइलों में दम तोड़ रही हैं. आज भी इन परिवारों के हजारों लोग रोशनी का इंतजार कर रहे हैं. इनमें से अधिकांश परिवार चीन और नेपाल बॉर्डर पर स्थित दारमा और व्यास घाटी के हैं.

पानी की भी किल्लत: पिथौरागढ़ जिले में वर्तमान में पानी की 205 योजनाएं संचालित हैं. इसके बाद भी नगर से लेकर गांवों तक पानी के लिए हाहाकार मचा रहता है, जिन इलाकों में पेयजल योजनाएं पहुंच गई है. वहां भी लोगों को पेयजल की समस्या से दो-चार होना पड़ता है, जबकि ग्रामीण इलाकों में हालात और बदतर हैं. यहां लोगों की जवानी दो बूंद पानी के जुगाड़ में बर्बाद हो रही है. लोगों को कई किलोमीटर पैदल चलकर प्राकृतिक जलस्त्रोतों से अपनी प्यास बुझानी पड़ती है.

पढ़ें :- उत्तर प्रदेश : प्रवासी मजदूरों की समस्या, पलायन और संपत्ति विवाद

संचार सुविधा से महरूम कई सीमांत गांव: आज डिजिटल युग में भी सीमांत जनपद पिथौरागढ़ में 100 से अधिक गांव ऐसे हैं, जो संचार सेवा से पूरी तरह महरूम है. यहां लोगों को संचार से जुड़ने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. यहां तक कि सिलेंडर बुक करने के लिए भी लोगों को 10 से 30 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है.

गांव से शहर और शहर से महानगरों की ओर हो रहा पलायन: मूलभूत सुविधाओं और रोजगार के तलाश में गांव के गांव खाली हो रहे हैं. अब केवल कमजोर तबका ही गांव में टिका हुआ है, जबकि सम्पन्न लोग बेहतर सुविधाओं की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. गांव से लोग जहां शहरों का रुख कर रहे हैं. वहीं, शहरों से लोग महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं.

ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनाने की है जरूरत: गांव में जो लोग अभी भी टिके हुए हैं, उनकी आय का मुख्य जरिया खेती और पशुपालन है, मगर जंगली-जानवरों के आतंक के कारण खेती से भी ग्रामीणों का मोहभंग हो रहा है. अगर सरकार पलायन को रोकने के लिए वाकई में संवेदनशील हैं, तो ग्रामीणों की आजीविका में सुधार लाने के लिए ठोस प्रयास करने होंगे.

खेती और पशुपालन को बढ़ावा दे सरकार: अगर सरकार ऑर्गेनिक खेती के साथ ही पशुपालन को बढ़ावा दे तो लोगों को अपनी जड़ों से दूर होने से रोका जा सकता है. हालांकि, सरकार कई योजनाएं कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में चला रही है मगर इन योजनाओं का लाभ प्रगतिशील किसानों को ही मिल पा रहा है, जबकि कम भूमि वाले और भूमिहीन किसानों को इन योजनाओं का कम ही लाभ मिल पा रहा है. गरीब तबका गांव में मेहनत-मजदूरी के दम पर ही गुजर बसर करने को मजबूर हैं. ऐसे कमजोर तबके को भी सामूहिक खेती और उत्पादन में शामिल करने की जरूरत है. साथ ही गांव में हस्तशिल्प, कुटीर और लघु उद्योगों को भी बढ़ावा देने की जरूरत है.

होम स्टे और पर्यटन सर्किट विकसित करने की जरूरत: पिथौरागढ़ जिला प्राकृतिक पर्यटन के साथ ही धार्मिक और साहसिक पर्यटन का भी केंद्र है. ऐसे में सरकार ग्रामीण इलाकों में होम स्टे को बढ़ावा देने के साथ ही धार्मिक और पर्यटन स्थलों को विकसित करें, तो ये ग्रामीणों की आजीविका को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है.

सरकार की पर्वतीय नीति पर उठ रहे सवाल: बीते 3 सालों में जिस तेजी से पिथौरागढ़ में पलायन बढ़ा है, उससे साफ साबित हो रहा है कि लोगों का गांव से लगातार मोहभंग हो रहा है. बेहतर सुविधाओं और रोजगार की तलाश में गांव मानव विहीन होते जा रहे हैं. चीन और नेपाल बॉर्डर से लगे पिथौरागढ़ जिले में बढ़ता पलायन देश की सुरक्षा के नजरिये से भी खतरा है. पलायन की ये व्यथा सरकारों की पर्वतीय नीति पर भी सवाल खड़े कर रही है. ऐसे में सरकार को अब गंभीर कदम उठाने की भी जरूरत है.

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