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छावला गैंगरेप-मर्डर केस : आरोपी बरी, SC ने कहा-जज से निष्क्रिय अंपायर की अपेक्षा नहीं की जाती

19 वर्षीय लड़की से गैंगरेप और हत्या के आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया. निचली अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया था. कोर्ट ने कहा कि ट्रायल ठीक से नहीं किया गया, यहां तक कि 10 गवाहों से जिरह तक नहीं की गई. कोर्ट ने टिप्पणी की कि कानून इस बात की इजाजत नहीं देता है कि किसी को सिर्फ नैतिक विश्वास के आधार पर या केवल संदेह के आधार पर सजा दी जाए.

chhawla rape case
सुप्रीम कोर्ट
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Published : Nov 8, 2022, 3:18 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को उन तीन आरोपियों को बरी कर दिया, जिन्हें 2012 में एक 19 वर्षीय लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था. उन्हें 'संदेह का लाभ' दिया गया, क्योंकि 'ट्रायल (trial) ठीक से नहीं किया गया था. सीजेआई यूयू ललित (CJI UU Lalit), न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ ने छावला दुष्कर्म और हत्या मामले में फैसला सुनाया (chhawla rape case).

अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में विफल रहा. जिस कारण अदालत के पास आरोपी को बरी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा.

कोर्ट ने ये की टिप्पणी : आदेश के मुताबिक 'ये सच है कि अगर जघन्य अपराध में शामिल को दंडित नहीं किया जाता है या बरी कर दिया जाता है तो सामान्य रूप से समाज और विशेष रूप से संलिप्तता हो पीड़ित के परिवार के लिए एक प्रकार की पीड़ा और निराशा हो सकती है. लेकिन कानून इस बात की इजाजत नहीं देता है कि किसी को सिर्फ नैतिक विश्वास के आधार पर या केवल संदेह के आधार पर सजा दी जाए. कोई भी दोषसिद्धि केवल दिए गए निर्णय पर अभियोग या निंदा की आशंका पर आधारित नहीं होनी चाहिए. किसी भी प्रकार के बाहरी नैतिक दबाव या अन्यथा से प्रभावित हुए बिना प्रत्येक मामले को न्यायालयों द्वारा कड़ाई से योग्यता और कानून के अनुसार तय किया जाना है.'

कोर्ट ने कहा कि उसने मुकदमे के दौरान हुई कई 'खामियां' देखीं. 49 गवाहों में से 10 से जिरह नहीं की गई और कई अन्य की पर्याप्त रूप से जिरह नहीं की गई.

कोर्ट ने कहा कि न्यायाधीश से निष्क्रिय अंपायर की अपेक्षा नहीं की जाती है, लेकिन उसे मुकदमे में सक्रिय रूप से भाग लेना होता है और सही निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए गवाहों से सवाल करना पड़ता है. अदालत ने कहा कि उसने पाया कि आरोपी निष्पक्ष सुनवाई के अपने अधिकारों से वंचित थे. हालांकि, अदालत ने कहा कि भले ही उन्होंने आरोपी को बरी कर दिया हो, लेकिन पीड़िता का परिवार मुआवजे का हकदार है.

पढ़ें- 2012 छावला बलात्कार मामला : SC ने तीन दोषियों को बरी किया, दिल्ली कोर्ट ने सुनाई थी सजा-ए-मौत

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को उन तीन आरोपियों को बरी कर दिया, जिन्हें 2012 में एक 19 वर्षीय लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था. उन्हें 'संदेह का लाभ' दिया गया, क्योंकि 'ट्रायल (trial) ठीक से नहीं किया गया था. सीजेआई यूयू ललित (CJI UU Lalit), न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ ने छावला दुष्कर्म और हत्या मामले में फैसला सुनाया (chhawla rape case).

अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में विफल रहा. जिस कारण अदालत के पास आरोपी को बरी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा.

कोर्ट ने ये की टिप्पणी : आदेश के मुताबिक 'ये सच है कि अगर जघन्य अपराध में शामिल को दंडित नहीं किया जाता है या बरी कर दिया जाता है तो सामान्य रूप से समाज और विशेष रूप से संलिप्तता हो पीड़ित के परिवार के लिए एक प्रकार की पीड़ा और निराशा हो सकती है. लेकिन कानून इस बात की इजाजत नहीं देता है कि किसी को सिर्फ नैतिक विश्वास के आधार पर या केवल संदेह के आधार पर सजा दी जाए. कोई भी दोषसिद्धि केवल दिए गए निर्णय पर अभियोग या निंदा की आशंका पर आधारित नहीं होनी चाहिए. किसी भी प्रकार के बाहरी नैतिक दबाव या अन्यथा से प्रभावित हुए बिना प्रत्येक मामले को न्यायालयों द्वारा कड़ाई से योग्यता और कानून के अनुसार तय किया जाना है.'

कोर्ट ने कहा कि उसने मुकदमे के दौरान हुई कई 'खामियां' देखीं. 49 गवाहों में से 10 से जिरह नहीं की गई और कई अन्य की पर्याप्त रूप से जिरह नहीं की गई.

कोर्ट ने कहा कि न्यायाधीश से निष्क्रिय अंपायर की अपेक्षा नहीं की जाती है, लेकिन उसे मुकदमे में सक्रिय रूप से भाग लेना होता है और सही निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए गवाहों से सवाल करना पड़ता है. अदालत ने कहा कि उसने पाया कि आरोपी निष्पक्ष सुनवाई के अपने अधिकारों से वंचित थे. हालांकि, अदालत ने कहा कि भले ही उन्होंने आरोपी को बरी कर दिया हो, लेकिन पीड़िता का परिवार मुआवजे का हकदार है.

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