देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड में साक्षात भगवान विराजमान हैं. ऐसी परंपरा सदियों से चली आ रही है, क्योंकि उत्तराखंड में ना सिर्फ बदरी विशाल मौजूद हैं. बल्कि केदारनाथ धाम समेत मां गंगा और मां यमुना भी यहीं मौजूद है. यही वजह है कि उत्तराखंड को देवों की भूमि के नाम से जाना जाता है. कहा यह भी जाता है कि जहां विज्ञान खत्म होता है, वहां से आस्था और परंपराएं शुरू होती हैं. प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में कई ऐसे पौराणिक मंदिर मौजूद हैं, जो कई रहस्य को समेटे हुए हैं. ऐसा ही कुछ रहस्य उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित भविष्य बदरी से जुड़ा हुआ है.
टूटेगी भगवान नरसिंह की कलाई, आएगी बड़ी तबाही: उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित भगवान बदरी विशाल से जुड़ा एक पौराणिक मान्यता सदियों से चली आ रही है. मान्यता है कि जोशीमठ में स्थित भगवान नरसिंह के दाहिने हाथ की कलाई पर भगवान बदरी विशाल मंदिर का भविष्य टिका हुआ है. कहा जाता है कि नरसिंह मंदिर में मौजूद भगवान नरसिंह के दाहिने हाथ की कलाई, एक बाल के बराबर हिस्से से जुड़ी हुई है. कहा यह भी जाता है कि करीब एक हजार साल बाद यह कलाई भगवान नरसिंह की प्रतिमा से अलग हो जाएगी. जिसके बाद हिमालय से बड़ी तबाही आएगी.
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पांच हजार साल पहले शंकराचार्य ने की भविष्यवाणी: इस तबाही से चमोली जिले में मौजूद नर और नारायण पर्वत आपस में टकरा जाएंगे. जिससे बदरी विशाल के मंदिर से भगवान विष्णु चले जाएंगे. इसके बाद भगवान विष्णु के दर्शन भविष्य बदरी में होंगे. दरअसल, मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने करीब 5 हजार साल पहले बदरी विशाल मंदिर की स्थापना की थी. उस दौरान ही उन्होंने इस बात की भविष्यवाणी कर दी थी.
केदारनाथ आपदा के बाद बननी शुरू हुई प्रतिमा: भविष्य बदरी के पुजारी कालू महाराज ने बताया भविष्य में भगवान बदरीनाथ की पूजा भविष्य बदरी में होगी. उन्होंने बताया साल 2013 में केदार घाटी में आई आपदा के बाद से ही भविष्य बदरी में भगवान की प्रतिमा बननी शुरू हो गई है. पुजारी कालू महाराज ने कहा हजारों वर्षो के बाद बदरीनाथ धाम विलुप्त हो जाएगा. यानी जो मान्यता है कि नर और नारायण पर्वत आपस से मिल जाएंगे. जिसके बाद बदरीनाथ धाम का रास्ता बंद हो जाएगा. इस तरह की घटनाएं हजारों साल बाद होंगी. इस घटना के बाद भगवान बदरीनाथ की पूजा भविष्य बदरी में होगी.
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धर्माचार्य भी मानते हैं यही बात: धर्माचार्य संतोष खंडूड़ी बताते हैं बदरी विशाल का मंदिर नर और नारायण पर्वत के बीच अलकनंदा नदी के तट पर मौजूद है. आदि गुरु शंकराचार्य ने जब बदरी विशाल मंदिर की स्थापना की थी, उस दौरान ही उनको यह आभास हो गया था कि आने वाले समय में बदरी विशाल जाने का रास्ता बंद हो जाएगा. लिहाजा, उन्होंने भविष्य बदरी में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की बात कही.
गाय आकर चढ़ाती थी दूध, फिर बना भविष्य बदरी मंदिर: स्थानीय निवासियों का भी मानना है कि यहां एक शिला में भगवान विष्णु अवतरित हो रहे हैं. समय के अनुसार भगवान वहां अवतरित हो रहे हैं. यही नहीं, भगवान बदरीनाथ धाम में हैं उतने ही भगवान इस जगह पर अवतरित हो रहे हैं. जिसमे कुबेर, लक्ष्मी, गणेश, शेषनाग शामिल हैं. यही नहीं, जहां भगवान विष्णु अवतरित हो रहे हैं उसके नीचे ही अपने तप्त कुंड भी बन रहा है. स्थानीय निवासी सिताब सिंह ने बताया पूर्वजों से सुनते आए हैं कि यहां गाय आती थी. वह अपने आप ही वहां पर दूध चढ़ाती थी. जिसके बाद इस जगह की जानकारी मिली. तब ग्रामीणों ने भविष्य बदरी मंदिर का निर्माण करवाया.
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वहीं, धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज ने बताया भविष्य बदरी को लेकर मान्यता है कि जोशीमठ में जो भगवान नरसिंह का मंदिर है, उस मंदिर में स्थापित भगवान नरसिंह के हाथ के कलाई टूट जाएगी. जिसके बाद बदरीनाथ धाम के पीछे मौजूद नर नारायण मंदिर आपस में मिल जाएंगे. जिसके बाद बदरीनाथ मंदिर अगम्य में हो जाएगा. लिहाजा, भविष्य बदरी मंदिर में भगवान बदरीनाथ प्रकट होंगे.
भविष्य बदरी को लेकर तमाम मान्यताएं हैं. इन तमाम मान्यताओं के सवाल पर वाडिया से रिटायर्ड हिमनद वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने बताया उत्तराखंड का हिमालय सबसे यंगेस्ट हिमालय है. दो कॉन्टिनेंट के बीच का जो मैटेरियल है वह ऊपर उठकर आया है, जिससे पहाड़ बने हैं. ऐसे में ये अभी यंगेस्ट पर्वत हैं, लिहाजा इनमें हलचल लगातार हो रही है. इसके साथ ही सेस्मोलॉजिकली भी काफी एक्टिव है. साथ ही कहा स्टडी यह भी बताती है कि हिमालय में जमीनी हलचल के चलते पहाड़ नॉर्थ की तरफ उठ रहा है.