हैदराबाद : 25 सितंबर को चौधरी देवीलाल की 107वीं जयंती पर जींद में ओमप्रकाश चौटाला रैली करने जा रहे हैं. इस रैली में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, अकाली दल के अध्यक्ष और पंजाब के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल और टीडीपी अध्यक्ष एन चंद्रबाबू नायडू के शामिल होने की संभावना है. रैली में शामिल होने वाले ये सभी नेता कभी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए का हिस्सा रहे हैं.
1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी ने13 दिन की सरकार की सरकार बनाई थी. उस समय समता पार्टी, शिरोमणि अकाली दल और शिवसेना उन गिनी-चुनी पार्टियों में शामिल थी, जो बीजेपी को किसी भी सूरत में समर्थन देने को तैयार रहते थे. जब यह सरकार बहुमत के अभाव में चली गई तो बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने एनडीए बनाया और सहयोगी दलों के लिए कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पेश किया. 1998 में एनडीए का विधिवत गठन किया गया और अटल बिहारी वाजपेयी पहले चेयरमैन हुए. 2004 तक एनडीए की सरकार रही, तबतक अटल बिहारी ही एनडीए के अध्यक्ष बने रहे. जार्ज फर्नांडीस इसके पहले कन्वीनर बने.
एनडीए के संस्थापकों में भाजपा समेत 13 दल शामिल थे. इनमें भाजपा, तमिलनाडु से अन्नाद्रमुक (AIDMK), बिहार की समता पार्टी, ओडिशा का बीजू जनता दल (BJD), पंजाब का शिरोमणि अकाली दल, पश्चिम बंगाल की राष्ट्रीय तृणमूल कांग्रेस, महाराष्ट्र की शिवसेना के अलावा पीएमके, लोक शक्ति, एमडीएमके, हरियाणा विकास पार्टी, जनता पार्टी, मिजो नेशनल फ्रंट, एनटीआर तेलगूदेशम शामिल थी. इसके बाद यह कुनबा घटता-बढ़ता रहा. इन 22 सालों में 30 पार्टियां एनडीए छोड़कर बाहर निकल चुकी हैं. अभी संस्थापक दलों में सिर्फ जेडी-यू और एआईडीएमके बीजेपी के साथ है. हालांकि ये दोनों पार्टियां बीच-बीच में एनडीए से नाता तोड़ चुकी है.
जान लें कि एनडीए के मुख्य संस्थापक दल कहां है
शिवसेना - एनडीए की पहली मेंबर शिवसेना अब कांग्रेस के साथ है. अभी घोषित तौर से वह कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए का हिस्सा नहीं है. 2019 के आम चुनाव तक वह एनडीए के साथ थी. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद सीएम पद पर मतभेद के बाद वह एनडीए से अलग हो गई.
समता पार्टी - समता पार्टी अब जेडी यू बन चुकी है. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान वह एनडीए से अलग हो गई थी. अभी बिहार में एनडीए की सरकार नीतीश कुमार के नेतृत्व में चल रही है.
बीजू जनता दल - बीजू जनता दल एनडीए से निकलने वाली बड़ी पार्टी थी. दस साल तक एनडीए के साथ रहने वाला बीजेडी 2009 में अलायंस से अलग हो गया. तब केंद्र में भाजपा विपक्ष में थी. इसके बाद भाजपा को ओडिशा में कोई दूसरा पार्टनर नहीं मिला.
शिरोमणि अकाली दल- NDA यानी नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस को छोड़ने वाला शिरोमणि अकाली दल अंतिम फाउंडर पार्टी थी. किसान आंदोलन को समर्थन देने के कारण 2021 में पहले सिमरनजीत कौर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया फिर अकाली एनडीए से अलग हो गया.
राष्ट्रीय तृणमूल कांग्रेस - तृणमूल कांग्रेस भी एनडीए के संस्थापकों में शामिल रहीं. हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रेलमंत्री रहने के दौरान ही ममता बनर्जी के मतभेद हुए. 2000 में वह एनडीए से अलग होकर कांग्रेस के साथ गईं. 2003 में फिर एनडीए में लौटीं और कोयला मंत्री बनीं. 2009 में यूपीए का हिस्सा बनीं. फिलहाल तृणमूल कांग्रेस पिछले 15 साल से पश्चिम बंगाल की सत्ता में है.
टीडीपी - 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले तेलुगू देशम ने बीजेपी पर जगनमोहन रेड्डी की अगुआई वाली वाईएसआर कांग्रेस से हाथ मिलाने का आरोप लगाते हुए एनडीए को बाय-बाय कर दिया. इसके अलावा रालोसपा और जीतनराम मांझी के हम ने एनडीए का साथ छोड़ा था. टीडीपी का भी 20 सालों के बीच एनडीए में आना-जाना लगा रहा. हरियाणा विकास पार्टी अभी हरियाणा में संघर्ष कर रही है.
एनडीए का संयोजक का पद खाली है
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के साथ 29 छोटी-बड़ी पार्टियां एनडीए NDA यानी नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस में शामिल थीं. 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के बैनर तले 21 पार्टियों ने चुनाव लड़ा था. बीजेपी का दावा है कि फिलहाल एनडीए में 25 पार्टियां हैं. अभी एनडीए के चेयरमैन गृहमंत्री अमित शाह हैं मगर कन्वीनर के पद पर कोई नहीं है. संयोजक का पद बड़े सहयोगी दल के नेता को दिया जाता है. जार्ज फर्नांडीस, शरद यादव और प्रकाश सिंह बादल बतौर संयोजक संसद के भीतर और बाहर वाजपेयी सरकार को कई मुश्किलों से निकालते रहे.
अभी कोई दमदार सहयोगी नहीं
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अभी एनडीए में जेडी-यू के अलावा कोई भी ऐसा दल नहीं है, जिसे एनडीए के कन्वीनर के तौर पर रखा जाए. जेडी यू के नीतीश कुमार कई बार मोदी सरकार पर सवाल खड़े कर चुके हैं, इसलिए भाजपा उन्हें कन्वीनर बनाना नहीं चाहती. अभी भाजपा के 303 लोकसभा सदस्य हैं जबकि एनडीए कुनबे के 11 दलों के पास 48 सीटें हैं. अभी के एनडीए में शामिल अन्य दल अपने बूते सरकार नहीं बना सकते. उनकी सीटों की संख्या भी सीमित ही रहती है, मगर वह क्षेत्रीय स्तर पर जातीय के समीकरण में फिट बैठते हैं. पॉलिटिकल एक्सपर्ट मानते हैं कि अभी एनडीए के घटक दल बीजेपी की बी टीम के तौर पर काम कर रहे हैं. अभी एनडीए की नियमित मीटिंग नहीं होती है और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम जैसा कोई डॉक्युमेंट नहीं है.
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