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वो गलतियां जो पड़ी मुकेश सहनी पर भारी... जानें 'किंग मेकर' से 'कंगाली' तक का सफर - तीन वीआईपी विधायक बीजेपी में शामिल

वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने कई ऐसी गलतियां की जिसका खामियाजा उन्हें आज उठाना पड़ रहा है. बीजेपी ने सौ सुनार की एक लोहार की कहावत को चरितार्थ करते हुए सहनी को कंगाल बना दिया है. पढ़िए वो वजहें जिसने मुकेश सहनी को किंग मेकर से कंगाल (Mukesh Sahni Turned Pauper From King Maker) बना दिया. पढ़ें बिहार ब्यूरो चीफ अमित भेलारी की स्पेशल रिपोर्ट-

The mistakes that fell on Mukesh Sahni
वो गलतियां जो पड़ी मुकेश सहनी पर भारी
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Published : Mar 24, 2022, 7:31 PM IST

पटना: ठीक एक हफ्ते पहले, बिहार में 'मल्लाह के बेटे' के रूप में जाने जाने वाले मुकेश सहनी (Mistakes That Cost VIP Supremo Mukesh Sahni ) ने तेजस्वी यादव से कहा था कि अगर राजद नेता को उनके समर्थन की जरूरत है तो वे समान अवधि के लिए सीएम का पद साझा करें. किंग मेकर बनने की चाहत रखने वाले सहनी अपने तीनों विधायकों- राजू कुमार सिंह (साहेबगंज), मिश्री लाल यादव (अलीनगर) और स्वर्ण सिंह (गौरा बौराम) के बुधवार को भाजपा में शामिल (three vip mla supported bjp ) होने के बाद कंगाल हो गए हैं.

सहनी की रणनीति उनपर ही पड़ी भारी: बीजेपी के इस राजनीतिक कदम से सहनी के पास बिहार विधानसभा में कोई प्रतिनिधि नहीं बचा है. यह कृत्य होना ही था क्योंकि भाजपा वीआईपी सुप्रीमो के फैसले से नाराज थी. जिन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार खड़े किए थे. इससे बेहतर शब्दों में इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि सहनी ने खुद बीजेपी को सामने से टक्कर देकर मुसीबत को न्यौता दिया था. भाजपा नेता यह दावा करते हुए नाराज थे कि यद्यपि वह बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान अपनी सीट हार गए, लेकिन भगवा पार्टी ने उन्हें विधान परिषद में भेजने के बाद नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में शामिल होने में मदद की.

लालू-तेजस्वी की तारीफ ने किया आग में घी का काम: बीजेपी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में वीआईपी को 11 सीटें दी थी और सहनी की पार्टी ने चार सीटें जीती थीं. उनके बोचहां विधायक के निधन के बाद वीआईपी के पास सिर्फ तीन विधायक रह गए थे. यह घटना साबित करती है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा में बीजेपी से भिड़ना सहनी को महंगा पड़ गया है क्योंकि बीजेपी ने अब उन्हें नकार दिया है. भाजपा के सूत्रों ने बताया कि इस हरकत के लिए मंच तभी बनाया गया था जब सहनी ने भाजपा नेताओं पर हमला करना शुरू कर दिया था और लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी की तारीफ की थी. दरअसल, उनके हालिया बयान ने बिहार में उस वक्त राजनीतिक उथल-पुथल मचा दी थी, जब उन्होंने कहा था कि उन्हें लालू का विजन पसंद है और तेजस्वी उनके छोटे भाई की तरह हैं.

यूपी चुनाव लड़ने से बीजेपी नाराज: इसके अलावा, उन्होंने यूपी चुनाव में 50 उम्मीदवार खड़े किए और एनडीए का हिस्सा होने और बिहार में मंत्री होने के बावजूद पीएम नरेंद्र मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ पर हमला किया. उन्होंने बहाना दिया कि नीतीश के जदयू ने भी भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार खड़े किए, लेकिन यह मापने में विफल रहे कि भाजपा के सामने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक महत्व 'सन ऑफ मल्लाह' मुकेश सहनी से अधिक है.

बड़ा वोट बैंक अब किसके साथ?: सहनी वर्तमान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में पशु और मछली संसाधन विभाग के मंत्री हैं. बहुत ही कम समय के भीतर वह मल्लाह समुदाय (मछुआरे) के नेता के रूप में उभरे हैं, जो बिहार की आबादी का लगभग 8 प्रतिशत है. वर्तमान में यह समुदाय अत्यंत पिछड़े वर्ग (ईबीसी) के अंतर्गत आता है, जो बिहार की आबादी का लगभग 30 प्रतिशत है. सबसे बड़ा वोट बैंक जिस पर हर राजनीतिक दल की निगाहें हमेशा टिकी रहती हैं. 2018 में सहनी ने ऐतिहासिक गांधी मैदान में निषाद आरक्षण महारैला के नाम पर एक विशाल रैली का आयोजन किया था जिसमें मछुआरा समुदाय के आरक्षण की मांग को लेकर कम से कम 2 लाख लोग जमा हुए थे. यह किसी एकल नेता द्वारा बुलाई गई सबसे बड़ी रैली थी जिसमें इतने सारे लोग एकत्र हुए थे.

ये भी पढ़ें - सब तो यही कहेंगे.. राजनीति के अनाड़ी निकले मुकेश सहनी

कठिन होगी सहनी की राजनीतिक डगर: उनकी पार्टी ने 2019 के आम चुनाव में महागठबंधन के साथ 3 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन एक भी सीट नहीं जीती थी. लेकिन 2020 में उन्होंने बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले अपनी वफादारी एनडीए के प्रति दिखाई. दूसरी ओर राजनीतिक विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा कि बिहार की राजनीति में सहनी के लिए आगे की राह कठिन होने वाली है और उनके पास जो कुछ था अब खत्म हो गया है.

वरिष्ठ पत्रकार नलिन वर्मा की राय: लेखक और वरिष्ठ पत्रकार नलिन वर्मा ने कहा 'यह कहना जल्दबाजी होगी कि इस प्रकरण के बाद सहनी का राजनीतिक भविष्य समाप्त हो गया है. यह निश्चित है कि सहनी के लिए आगे की राह अब कठिन है. यह सब उन पर निर्भर करता है कि वह अब स्थिति से कैसे निपटते हैं क्योंकि उनकी सारी पूंजी और हिस्सेदारी भाजपा द्वारा गटक ली गई है. राम मनोहर लोहिया ने एक किताब लिखी थी कि निराशा के समय क्या कर्तव्य होना चाहिए. वर्तमान में सबसे महत्वपूर्ण कारक यह है कि वह अपने कर्तव्यों का पालन कैसे करते हैं. अब सब कुछ उनके हाथ में है. वह अपने वोट बैंक को एक साथ कैसे रखेंगे? वह या तो अपना पुराना व्यवसाय शुरू करने के लिए मुंबई जा सकते हैं या वह बिहार के नेताओं के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर बिहार की राजनीति में सक्रिय रह सकते हैं.'

खतरे में मंत्री पद: सहनी के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण समय है और उन्हें तय करना है कि वह बिहार की राजनीति में बने रहेंगे और भाजपा के खिलाफ लड़ेंगे या राजनीति छोड़ देंगे. उन्होंने जिस तरह की राजनीति की है, उनके पास कुछ नहीं बचा है. यहां तक कि उनका मंत्री पद भी अब खतरे में है और वे इसे कभी भी खो सकते हैं. हालांकि राजनीति में कोई कभी नहीं जानता कि कौन बड़ा नेता बन सकता है और कौन नष्ट हो सकता है. एक समय था जब बीजेपी के पास सिर्फ दो सांसद थे.

राजनीतिक अनुभव और परिपक्वता की कमी: एक अन्य राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ संजय कुमार ने कहा कि अत्यधिक महत्वाकांक्षा पार्टी और व्यक्ति को कमजोर करती है. उन्होंने कहा कि 'इस तथ्य को जानने के बावजूद कि उनके तीनों विधायक वास्तव में भाजपा के थे. सिर्फ कागजों पर ही वे वीआईपी के विधायक थे. सब कुछ जानकर वह बीजेपी पर हमला करते रहे और राजद और नीतीश की तारीफ करते रहे. जो बीजेपी को पसंद नहीं आया. उन्होंने अपने राजनीतिक अनुभव और परिपक्वता की कमी दिखाई. उन्हें सार्वजनिक रूप से भाजपा पर हमला नहीं करना चाहिए था. जहां तक उनके भविष्य की बात है तो उनकी पार्टी सक्रिय रहेगी और अब गेंद जदयू के पाले में है. क्योंकि भाजपा और राजद ने उन्हें पहले ही खारिज कर दिया है. क्या नीतीश उन्हें अपने फोल्डर में लाएंगे? ऐसा होता है तो वह मंत्री बने रहेंगे और उनका एमएलसी कार्यकाल भी नवीनीकृत किया जाएगा जो इस जुलाई में समाप्त होने जा रहा है.

अब गेंद जदयू के पाले में : डॉ संजय कुमार ने आगे कहा कि 'अब सहनी भरोसेमंद व्यक्ति नहीं रहे. जब वह राजद के साथ थे तो उन्होंने यह कहते हुए पार्टी पर हमला किया कि राजद ने उनकी पीठ में छुरा घोंपा है. भाजपा के साथ रहते हुए उन्होंने पीएम और योगी के खिलाफ पोस्टर वार शुरू किया था. यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि जदयू उन पर कितना भरोसा करता है और बिहार में ईबीसी वोट बैंक की सोच रखने वाले इस निषाद नेता का नीतीश कैसे इस्तेमाल करेंगे.'

ये भी पढ़ें - पार्टी में फूट के बाद 'पुष्पा' स्टाइल में बोले सहनी- नहीं मानता किसी को शहंशाह, झुकुंगा नहीं मैं...

बीजेपी का मुकेश सहनी पर हमला जारी: भाजपा बिहार विधानसभा में 77 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन गई है. राजद के पास सदन में 75 विधायक हैं. आज सहनी ने कहा कि वह निषाद समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे और अपने तीन विधायकों को लेने के लिए भाजपा पर जमकर भड़ास निकाली. उन्होंने यह भी कहा कि नीतीश तय करेंगे कि वह कैबिनेट में बने रहें या नहीं. भाजपा ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री सह बिहार भाजपा प्रवक्ता डॉक्टर निखिल आनंद ने वीआईपी नेता मुकेश सहनी पर बयान देते हुए कहा है कि भारतीय जनता पार्टी एनडीए गठबंधन में शामिल दलों और उनके शीर्ष नेताओं का दिल से सम्मान करती है. किसी भी गठबंधन में सभी गठबंधन दलों का फर्ज बनता है कि इसे मजबूत बनाने में समान भूमिका निभाएं. लेकिन वीआईपी पार्टी नेता मुकेश सहनी ने गठबंधन धर्म की मर्यादा को तोड़ा है.

बोली बीजेपी- माफी मांगें सहनी: निखिल आनंद आगे कहते हैं कि मुकेश सहनी ने उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ा वो कोई बड़ी बात थोड़े ही थी. लेकिन उन्होनें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ लगातार विद्वेषपूर्ण प्रचार और दुर्भाग्यपूर्ण व्यक्तिगत टिप्पणियां कीं. क्या प्रधानमंत्री अति पिछड़ा समाज के बेटे नहीं है? भारत के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित कर रहे एक अति पिछड़ा समाज के बेटे नरेंद्र मोदी से आखिर मुकेश सहनी को क्या तकलीफ या दुश्मनी है? क्या मुकेश सहनी नहीं मानते की नरेंद्र मोदी अति पिछड़ा समाज के लिए एक राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक हैं? उनको उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान पीएम मोदी और यूपी सीएम योगी के खिलाफ अपशब्दों के प्रयोग के लिए नैतिक तौर पर माफी मांगनी चाहिए.

वीआईपी चीफ मुकेश सहनी को लगा झटका: गौरतलब है कि (VIP Chief Mukesh Sahni) को बड़ा झटका लगा है. पार्टी के तीनों विधायक बीजेपी में औपचारिक तौर पर शामिल हो गए (All three VIP MLA supported BJP in Bihar) हैं. दरअसल, राजू सिंह, स्वर्णा सिंह और मिश्रीलाल यादव ने विधानसभा अध्यक्ष के पास पहुंचकर उन्हें पत्र सौंपा है. जिसके बाद विधानसभा में वीआईपी के तीनों विधायकों को बीजेपी विधायक दल में विलय को मंजूरी दे दी गई. इसके साथ ही बिहार विधानसभा में बीजेपी के विधायकों की संख्या में इजाफा हो गया है. अब बीजेपी बिहार में 77 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन गई है.

पटना: ठीक एक हफ्ते पहले, बिहार में 'मल्लाह के बेटे' के रूप में जाने जाने वाले मुकेश सहनी (Mistakes That Cost VIP Supremo Mukesh Sahni ) ने तेजस्वी यादव से कहा था कि अगर राजद नेता को उनके समर्थन की जरूरत है तो वे समान अवधि के लिए सीएम का पद साझा करें. किंग मेकर बनने की चाहत रखने वाले सहनी अपने तीनों विधायकों- राजू कुमार सिंह (साहेबगंज), मिश्री लाल यादव (अलीनगर) और स्वर्ण सिंह (गौरा बौराम) के बुधवार को भाजपा में शामिल (three vip mla supported bjp ) होने के बाद कंगाल हो गए हैं.

सहनी की रणनीति उनपर ही पड़ी भारी: बीजेपी के इस राजनीतिक कदम से सहनी के पास बिहार विधानसभा में कोई प्रतिनिधि नहीं बचा है. यह कृत्य होना ही था क्योंकि भाजपा वीआईपी सुप्रीमो के फैसले से नाराज थी. जिन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार खड़े किए थे. इससे बेहतर शब्दों में इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि सहनी ने खुद बीजेपी को सामने से टक्कर देकर मुसीबत को न्यौता दिया था. भाजपा नेता यह दावा करते हुए नाराज थे कि यद्यपि वह बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान अपनी सीट हार गए, लेकिन भगवा पार्टी ने उन्हें विधान परिषद में भेजने के बाद नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में शामिल होने में मदद की.

लालू-तेजस्वी की तारीफ ने किया आग में घी का काम: बीजेपी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में वीआईपी को 11 सीटें दी थी और सहनी की पार्टी ने चार सीटें जीती थीं. उनके बोचहां विधायक के निधन के बाद वीआईपी के पास सिर्फ तीन विधायक रह गए थे. यह घटना साबित करती है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा में बीजेपी से भिड़ना सहनी को महंगा पड़ गया है क्योंकि बीजेपी ने अब उन्हें नकार दिया है. भाजपा के सूत्रों ने बताया कि इस हरकत के लिए मंच तभी बनाया गया था जब सहनी ने भाजपा नेताओं पर हमला करना शुरू कर दिया था और लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी की तारीफ की थी. दरअसल, उनके हालिया बयान ने बिहार में उस वक्त राजनीतिक उथल-पुथल मचा दी थी, जब उन्होंने कहा था कि उन्हें लालू का विजन पसंद है और तेजस्वी उनके छोटे भाई की तरह हैं.

यूपी चुनाव लड़ने से बीजेपी नाराज: इसके अलावा, उन्होंने यूपी चुनाव में 50 उम्मीदवार खड़े किए और एनडीए का हिस्सा होने और बिहार में मंत्री होने के बावजूद पीएम नरेंद्र मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ पर हमला किया. उन्होंने बहाना दिया कि नीतीश के जदयू ने भी भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार खड़े किए, लेकिन यह मापने में विफल रहे कि भाजपा के सामने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक महत्व 'सन ऑफ मल्लाह' मुकेश सहनी से अधिक है.

बड़ा वोट बैंक अब किसके साथ?: सहनी वर्तमान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में पशु और मछली संसाधन विभाग के मंत्री हैं. बहुत ही कम समय के भीतर वह मल्लाह समुदाय (मछुआरे) के नेता के रूप में उभरे हैं, जो बिहार की आबादी का लगभग 8 प्रतिशत है. वर्तमान में यह समुदाय अत्यंत पिछड़े वर्ग (ईबीसी) के अंतर्गत आता है, जो बिहार की आबादी का लगभग 30 प्रतिशत है. सबसे बड़ा वोट बैंक जिस पर हर राजनीतिक दल की निगाहें हमेशा टिकी रहती हैं. 2018 में सहनी ने ऐतिहासिक गांधी मैदान में निषाद आरक्षण महारैला के नाम पर एक विशाल रैली का आयोजन किया था जिसमें मछुआरा समुदाय के आरक्षण की मांग को लेकर कम से कम 2 लाख लोग जमा हुए थे. यह किसी एकल नेता द्वारा बुलाई गई सबसे बड़ी रैली थी जिसमें इतने सारे लोग एकत्र हुए थे.

ये भी पढ़ें - सब तो यही कहेंगे.. राजनीति के अनाड़ी निकले मुकेश सहनी

कठिन होगी सहनी की राजनीतिक डगर: उनकी पार्टी ने 2019 के आम चुनाव में महागठबंधन के साथ 3 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन एक भी सीट नहीं जीती थी. लेकिन 2020 में उन्होंने बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले अपनी वफादारी एनडीए के प्रति दिखाई. दूसरी ओर राजनीतिक विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा कि बिहार की राजनीति में सहनी के लिए आगे की राह कठिन होने वाली है और उनके पास जो कुछ था अब खत्म हो गया है.

वरिष्ठ पत्रकार नलिन वर्मा की राय: लेखक और वरिष्ठ पत्रकार नलिन वर्मा ने कहा 'यह कहना जल्दबाजी होगी कि इस प्रकरण के बाद सहनी का राजनीतिक भविष्य समाप्त हो गया है. यह निश्चित है कि सहनी के लिए आगे की राह अब कठिन है. यह सब उन पर निर्भर करता है कि वह अब स्थिति से कैसे निपटते हैं क्योंकि उनकी सारी पूंजी और हिस्सेदारी भाजपा द्वारा गटक ली गई है. राम मनोहर लोहिया ने एक किताब लिखी थी कि निराशा के समय क्या कर्तव्य होना चाहिए. वर्तमान में सबसे महत्वपूर्ण कारक यह है कि वह अपने कर्तव्यों का पालन कैसे करते हैं. अब सब कुछ उनके हाथ में है. वह अपने वोट बैंक को एक साथ कैसे रखेंगे? वह या तो अपना पुराना व्यवसाय शुरू करने के लिए मुंबई जा सकते हैं या वह बिहार के नेताओं के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर बिहार की राजनीति में सक्रिय रह सकते हैं.'

खतरे में मंत्री पद: सहनी के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण समय है और उन्हें तय करना है कि वह बिहार की राजनीति में बने रहेंगे और भाजपा के खिलाफ लड़ेंगे या राजनीति छोड़ देंगे. उन्होंने जिस तरह की राजनीति की है, उनके पास कुछ नहीं बचा है. यहां तक कि उनका मंत्री पद भी अब खतरे में है और वे इसे कभी भी खो सकते हैं. हालांकि राजनीति में कोई कभी नहीं जानता कि कौन बड़ा नेता बन सकता है और कौन नष्ट हो सकता है. एक समय था जब बीजेपी के पास सिर्फ दो सांसद थे.

राजनीतिक अनुभव और परिपक्वता की कमी: एक अन्य राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ संजय कुमार ने कहा कि अत्यधिक महत्वाकांक्षा पार्टी और व्यक्ति को कमजोर करती है. उन्होंने कहा कि 'इस तथ्य को जानने के बावजूद कि उनके तीनों विधायक वास्तव में भाजपा के थे. सिर्फ कागजों पर ही वे वीआईपी के विधायक थे. सब कुछ जानकर वह बीजेपी पर हमला करते रहे और राजद और नीतीश की तारीफ करते रहे. जो बीजेपी को पसंद नहीं आया. उन्होंने अपने राजनीतिक अनुभव और परिपक्वता की कमी दिखाई. उन्हें सार्वजनिक रूप से भाजपा पर हमला नहीं करना चाहिए था. जहां तक उनके भविष्य की बात है तो उनकी पार्टी सक्रिय रहेगी और अब गेंद जदयू के पाले में है. क्योंकि भाजपा और राजद ने उन्हें पहले ही खारिज कर दिया है. क्या नीतीश उन्हें अपने फोल्डर में लाएंगे? ऐसा होता है तो वह मंत्री बने रहेंगे और उनका एमएलसी कार्यकाल भी नवीनीकृत किया जाएगा जो इस जुलाई में समाप्त होने जा रहा है.

अब गेंद जदयू के पाले में : डॉ संजय कुमार ने आगे कहा कि 'अब सहनी भरोसेमंद व्यक्ति नहीं रहे. जब वह राजद के साथ थे तो उन्होंने यह कहते हुए पार्टी पर हमला किया कि राजद ने उनकी पीठ में छुरा घोंपा है. भाजपा के साथ रहते हुए उन्होंने पीएम और योगी के खिलाफ पोस्टर वार शुरू किया था. यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि जदयू उन पर कितना भरोसा करता है और बिहार में ईबीसी वोट बैंक की सोच रखने वाले इस निषाद नेता का नीतीश कैसे इस्तेमाल करेंगे.'

ये भी पढ़ें - पार्टी में फूट के बाद 'पुष्पा' स्टाइल में बोले सहनी- नहीं मानता किसी को शहंशाह, झुकुंगा नहीं मैं...

बीजेपी का मुकेश सहनी पर हमला जारी: भाजपा बिहार विधानसभा में 77 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन गई है. राजद के पास सदन में 75 विधायक हैं. आज सहनी ने कहा कि वह निषाद समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे और अपने तीन विधायकों को लेने के लिए भाजपा पर जमकर भड़ास निकाली. उन्होंने यह भी कहा कि नीतीश तय करेंगे कि वह कैबिनेट में बने रहें या नहीं. भाजपा ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री सह बिहार भाजपा प्रवक्ता डॉक्टर निखिल आनंद ने वीआईपी नेता मुकेश सहनी पर बयान देते हुए कहा है कि भारतीय जनता पार्टी एनडीए गठबंधन में शामिल दलों और उनके शीर्ष नेताओं का दिल से सम्मान करती है. किसी भी गठबंधन में सभी गठबंधन दलों का फर्ज बनता है कि इसे मजबूत बनाने में समान भूमिका निभाएं. लेकिन वीआईपी पार्टी नेता मुकेश सहनी ने गठबंधन धर्म की मर्यादा को तोड़ा है.

बोली बीजेपी- माफी मांगें सहनी: निखिल आनंद आगे कहते हैं कि मुकेश सहनी ने उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ा वो कोई बड़ी बात थोड़े ही थी. लेकिन उन्होनें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ लगातार विद्वेषपूर्ण प्रचार और दुर्भाग्यपूर्ण व्यक्तिगत टिप्पणियां कीं. क्या प्रधानमंत्री अति पिछड़ा समाज के बेटे नहीं है? भारत के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित कर रहे एक अति पिछड़ा समाज के बेटे नरेंद्र मोदी से आखिर मुकेश सहनी को क्या तकलीफ या दुश्मनी है? क्या मुकेश सहनी नहीं मानते की नरेंद्र मोदी अति पिछड़ा समाज के लिए एक राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक हैं? उनको उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान पीएम मोदी और यूपी सीएम योगी के खिलाफ अपशब्दों के प्रयोग के लिए नैतिक तौर पर माफी मांगनी चाहिए.

वीआईपी चीफ मुकेश सहनी को लगा झटका: गौरतलब है कि (VIP Chief Mukesh Sahni) को बड़ा झटका लगा है. पार्टी के तीनों विधायक बीजेपी में औपचारिक तौर पर शामिल हो गए (All three VIP MLA supported BJP in Bihar) हैं. दरअसल, राजू सिंह, स्वर्णा सिंह और मिश्रीलाल यादव ने विधानसभा अध्यक्ष के पास पहुंचकर उन्हें पत्र सौंपा है. जिसके बाद विधानसभा में वीआईपी के तीनों विधायकों को बीजेपी विधायक दल में विलय को मंजूरी दे दी गई. इसके साथ ही बिहार विधानसभा में बीजेपी के विधायकों की संख्या में इजाफा हो गया है. अब बीजेपी बिहार में 77 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन गई है.

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