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Hindi Diwas 2023 : उत्तर भारत का अनूठा पुस्तकालय, 450 वर्ष पुरानी 1500 से अधिक पांडुलिपियां सुरक्षित, यहां टैगोर ने लिखी थी 'नीलमणि'

हिंदी दिवस विशेष, राजस्थान के भरतपुर में 5 पुस्तकों से शुरू हुई हिंदी साहित्य समिति आज उत्तर भारत का प्रमुख ज्ञान का भंडार बन गया है. यहां 450 वर्ष पुरानी 1500 से अधिक पांडुलिपियां सुरक्षित हैं. इतना ही नहीं, रविंद्र नाथ टैगोर ने यहां 'नीलमणि' लिखी थी.

Hindi Sahitya Samiti of Bharatpur
उत्तर भारत का अनूठा पुस्तकालय
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 14, 2023, 2:23 PM IST

Updated : Sep 14, 2023, 2:41 PM IST

हिंदी दिवस विशेष, देखिए ये रिपोर्ट...

भरतपुर. लोहागढ़ का इतिहास साहस और वीरता के लिए ही नहीं, बल्कि ज्ञान के लिए भी जाना जाता है. आज से 111 साल पहले यानी आजादी से भी पहले भरतपुर में महज 5 पुस्तकों से एक पुस्तकालय शुरू किया गया था, लेकिन आज यह पुस्तकालय हिंदी साहित्य समिति के रूप में उत्तर भारत के प्रमुख पुस्तकालय के रूप में पहचाना जाता है.

यह पुस्तकालय अपने अंदर न केवल तमाम पुस्तकों और पांडुलिपियों को सहेजे हुए है, बल्कि देश और विदेश की तमाम हस्तियों की यादों को भी समेटे हुए है. यहां 33 हजार से अधिक पुस्तक सुरक्षित हैं, जिनमें 450 वर्ष पुरानी बेशकीमती 1500 पांडुलिपियां भी शामिल हैं. आज हिंदी दिवस के अवसर पर ज्ञान के अनूठे भंडार के बारे में बताते हैं.

Unique Library of North India
उत्तर भारत का अनूठा पुस्तकालय

पढ़ें : Hindi Diwas 2023: हिंदी दिवस मनाने की ये है मुख्य वजह, मशहूर कवि से भी है संबंध

1500 से अधिक पांडुलिपियां : हिंदी साहित्य समिति के पूर्व उपाध्यक्ष गंगा राम पाराशर और लिपिक त्रिलोकीनाथ शर्मा ने बताया कि 13 अगस्त 1912 को पूर्व राजमाता मांजी गिर्राज कौर की प्रेरणा से अधिकारी जगन्नाथ के नेतृत्व में हिंदी साहित्य समिति की स्थापना की गई थी. जिस समय यह समिति शुरू की गई थी, उस समय शहर के ही लोगों ने अपने घरों से पांच पुस्तक लाकर यहां पर रखी थीं, लेकिन उसे समय किसी को यह अंदाजा नहीं था कि भविष्य में यह पुस्तकालय उत्तर भारत का इतना अनूठा पुस्तकालय बन जाएगा. गंगाराम पाराशर ने बताया कि हिंदी साहित्य समिति पुस्तकालय में फिलहाल 44 विषयों की 33, 363 पुस्तकें उपलब्ध हैं, जिनमें 450 वर्ष पुरानी 1500 से अधिक बेशकीमती पांडुलिपियां शामिल हैं.

त्रिलोकीनाथ शर्मा ने बताया कि समिति में 44 विषयों की पुस्तक हैं, जिनमें वेद, संस्कृत, ज्ञान, उपनिषद, कर्मकांड, दर्शन शास्त्र, तंत्र मंत्र, पुराण, प्रवचन, रामायण, महाभारत, ज्योतिष, राजनीति शास्त्र, भूदान, अर्थशास्त्र, प्रश्न शास्त्र, पर्यावरण, ऋतिक ग्रंथ, काव्य, भूगोल, विदेशी इतिहास और भारतीय इतिहास समेत तमाम विषय शामिल हैं.

Nilmani of Rabindranath Tagore
450 वर्ष पुरानी 1500 से अधिक पांडुलिपियां सुरक्षित

रविंद्र नाथ टैगोर ने लिखी थी कविता : त्रिलोकीनाथ शर्मा ने बताया कि वर्ष 1927 में हिंदी साहित्य समिति में प्रथम अधिवेशन आयोजित हुआ था. उसे समय राष्ट्रकवि रविंद्र नाथ टैगोर भी यहां पर आए थे. बताते हैं कि रविंद्र नाथ टैगोर को सेवर फोर्ट में शाही मेहमान के रूप में ठहराया गया था. टैगोर यहां दो दिन रुके और यहां नीलमणि शीर्षक से कविता भी लिखी, जो उनकी पुस्तक वनवाणी में शामिल है.

अंग्रेजों ने 2 साल तक बंद रखा : त्रिलोकीनाथ शर्मा ने बताया कि आजादी की लड़ाई के समय पुस्तकालय का बड़ा योगदान रहा. उसे समय लोग पुस्तकालय में आकर अखबार पढ़ते, जिससे पूरे देश में चल रही आजादी की जंग की जानकारी मिलती. इस बात से नाराज होकर अंग्रेज सरकार ने पुस्तकालय को 2 साल के लिए बंद कर दिया था.

Rabindranath Tagore Story
यहां टैगोर ने लिखी थी 'नीलमणि'

शर्मा ने बताया कि हिंदी साहित्य समिति में राष्ट्रकवि रविंद्र नाथ टैगोर के अलावा मदन मोहन मालवीय, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, मोरारजी देसाई, डॉ. राममनोहर लोहिया, रूस के हिंदी विद्वान बारान्निकोव और पाकिस्तानी नाटककार अली अहमद भी आ चुके हैं. फिलहाल, यह समिति आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रही है. 2003 से यहां के दो कर्मचारियों को वेतन भी नहीं मिल पाया है. राज्य सरकार ने इसके लिए 5 करोड़ रुपये की घोषणा भी की थी, लेकिन अभी तक उस बजट का भी इंतजार है.

हिंदी दिवस विशेष, देखिए ये रिपोर्ट...

भरतपुर. लोहागढ़ का इतिहास साहस और वीरता के लिए ही नहीं, बल्कि ज्ञान के लिए भी जाना जाता है. आज से 111 साल पहले यानी आजादी से भी पहले भरतपुर में महज 5 पुस्तकों से एक पुस्तकालय शुरू किया गया था, लेकिन आज यह पुस्तकालय हिंदी साहित्य समिति के रूप में उत्तर भारत के प्रमुख पुस्तकालय के रूप में पहचाना जाता है.

यह पुस्तकालय अपने अंदर न केवल तमाम पुस्तकों और पांडुलिपियों को सहेजे हुए है, बल्कि देश और विदेश की तमाम हस्तियों की यादों को भी समेटे हुए है. यहां 33 हजार से अधिक पुस्तक सुरक्षित हैं, जिनमें 450 वर्ष पुरानी बेशकीमती 1500 पांडुलिपियां भी शामिल हैं. आज हिंदी दिवस के अवसर पर ज्ञान के अनूठे भंडार के बारे में बताते हैं.

Unique Library of North India
उत्तर भारत का अनूठा पुस्तकालय

पढ़ें : Hindi Diwas 2023: हिंदी दिवस मनाने की ये है मुख्य वजह, मशहूर कवि से भी है संबंध

1500 से अधिक पांडुलिपियां : हिंदी साहित्य समिति के पूर्व उपाध्यक्ष गंगा राम पाराशर और लिपिक त्रिलोकीनाथ शर्मा ने बताया कि 13 अगस्त 1912 को पूर्व राजमाता मांजी गिर्राज कौर की प्रेरणा से अधिकारी जगन्नाथ के नेतृत्व में हिंदी साहित्य समिति की स्थापना की गई थी. जिस समय यह समिति शुरू की गई थी, उस समय शहर के ही लोगों ने अपने घरों से पांच पुस्तक लाकर यहां पर रखी थीं, लेकिन उसे समय किसी को यह अंदाजा नहीं था कि भविष्य में यह पुस्तकालय उत्तर भारत का इतना अनूठा पुस्तकालय बन जाएगा. गंगाराम पाराशर ने बताया कि हिंदी साहित्य समिति पुस्तकालय में फिलहाल 44 विषयों की 33, 363 पुस्तकें उपलब्ध हैं, जिनमें 450 वर्ष पुरानी 1500 से अधिक बेशकीमती पांडुलिपियां शामिल हैं.

त्रिलोकीनाथ शर्मा ने बताया कि समिति में 44 विषयों की पुस्तक हैं, जिनमें वेद, संस्कृत, ज्ञान, उपनिषद, कर्मकांड, दर्शन शास्त्र, तंत्र मंत्र, पुराण, प्रवचन, रामायण, महाभारत, ज्योतिष, राजनीति शास्त्र, भूदान, अर्थशास्त्र, प्रश्न शास्त्र, पर्यावरण, ऋतिक ग्रंथ, काव्य, भूगोल, विदेशी इतिहास और भारतीय इतिहास समेत तमाम विषय शामिल हैं.

Nilmani of Rabindranath Tagore
450 वर्ष पुरानी 1500 से अधिक पांडुलिपियां सुरक्षित

रविंद्र नाथ टैगोर ने लिखी थी कविता : त्रिलोकीनाथ शर्मा ने बताया कि वर्ष 1927 में हिंदी साहित्य समिति में प्रथम अधिवेशन आयोजित हुआ था. उसे समय राष्ट्रकवि रविंद्र नाथ टैगोर भी यहां पर आए थे. बताते हैं कि रविंद्र नाथ टैगोर को सेवर फोर्ट में शाही मेहमान के रूप में ठहराया गया था. टैगोर यहां दो दिन रुके और यहां नीलमणि शीर्षक से कविता भी लिखी, जो उनकी पुस्तक वनवाणी में शामिल है.

अंग्रेजों ने 2 साल तक बंद रखा : त्रिलोकीनाथ शर्मा ने बताया कि आजादी की लड़ाई के समय पुस्तकालय का बड़ा योगदान रहा. उसे समय लोग पुस्तकालय में आकर अखबार पढ़ते, जिससे पूरे देश में चल रही आजादी की जंग की जानकारी मिलती. इस बात से नाराज होकर अंग्रेज सरकार ने पुस्तकालय को 2 साल के लिए बंद कर दिया था.

Rabindranath Tagore Story
यहां टैगोर ने लिखी थी 'नीलमणि'

शर्मा ने बताया कि हिंदी साहित्य समिति में राष्ट्रकवि रविंद्र नाथ टैगोर के अलावा मदन मोहन मालवीय, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, मोरारजी देसाई, डॉ. राममनोहर लोहिया, रूस के हिंदी विद्वान बारान्निकोव और पाकिस्तानी नाटककार अली अहमद भी आ चुके हैं. फिलहाल, यह समिति आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रही है. 2003 से यहां के दो कर्मचारियों को वेतन भी नहीं मिल पाया है. राज्य सरकार ने इसके लिए 5 करोड़ रुपये की घोषणा भी की थी, लेकिन अभी तक उस बजट का भी इंतजार है.

Last Updated : Sep 14, 2023, 2:41 PM IST
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