नई दिल्ली : पिछले नौ साल में सरकार ने निजी क्षेत्र को विकास में अपना साझेदार बनाने के साथ ही विनिवेश प्रक्रिया से करीब 4.07 लाख करोड़ रुपये जुटाए हैं. आर्थिक समीक्षा 2022-23 में विनिवेश के बारे में यह आकलन पेश किया गया है. संसद में मंगलवार को पेश आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष के लिए निर्धारित विनिवेश लक्ष्य का 48 प्रतिशत ही हासिल किया जा सका है. गत 18 जनवरी तक विनिवेश से 31,000 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाया गया है जबकि बजट में इसका अनुमान 65,000 करोड़ रुपये का है.
आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, एयर इंडिया का निजीकरण होने से सार्वजनिक परिसंपत्तियों की विनिवेश पहल में नई जान आई. साक्ष्यों के हवाले से कहा गया है कि 1990-2015 के दौरान विनिवेश वाले सार्वजनिक उद्यमों की श्रम उत्पादकता और कुल सक्षमता में सुधार हुआ है. समीक्षा के मुताबिक वित्त वर्ष 2014-15 से लेकर 18 जनवरी, 2023 तक 154 विनिवेश सौदों से करीब 4.07 लाख करोड़ रुपये की राशि जुटाई गई है. इसमें से 3.02 लाख करोड़ रुपये अल्पांश हिस्सेदारी बिक्री से मिले जबकि 69,412 करोड़ रुपये 10 केंद्रीय उपक्रमों में रणनीतिक विनिवेश से आए हैं.
रणनीतिक विनिवेश वाले उपक्रमों में एचपीसीएल, आरईसी, डीसीआईएल, एचएससीसी, एनपीसीसी, नीप्को, टीएचडीसी, कामराजार पोर्ट, एयर इंडिया और एनआईएनएल शामिल हैं. आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, सरकार भारतीय पोत परिवहन निगम, एनएमडीसी स्टील लिमिटेड, बीईएमएल, एचएलएल लाइफकेयर, भारतीय कंटेनर निगम, विजाग स्टील और आईडीबीआई बैंक में भी अपनी हिस्सेदारी बेचने की कोशिश में है. ये रणनीतिक बिक्री प्रक्रियाएं अलग-अलग चरणों में हैं और इनके अगले वित्त वर्ष में पूरा हो जाने की उम्मीद है.
इस सरकारी दस्तावेज में कहा गया कि वर्ष 2014 के बाद के दौर में सरकार की नीति के पीछे बुनियादी सिद्धांत निजी क्षेत्र को विकास प्रक्रिया में साझेदार बनाने का रहा है. बीते आठ साल में सरकार की विनिवेश नीति बहाल हुई है और शेयर बाजार में सार्वजनिक कंपनियों को सफलता से सूचीबद्ध किया गया है.
हालांकि, पिछले तीन वर्षों में महामारी से जुड़ी अनिश्चितता और भू-राजनीतिक तनाव से जुड़े जोखिमों की वजह से सरकार की विनिवेश संभावनाओं एवं प्राप्तियों पर असर पड़ा है. इसके बावजूद सरकार ने नई पीएसई नीति और परिसंपत्ति मौद्रीकरण रणनीति लागू कर निजीकरण एवं रणनीतिक विनिवेश की प्रतिबद्धता दोहराई है. आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, सार्वजनिक क्षेत्र की परिसंपत्तियों की मौद्रीकरण योजना को सफल बनाने के लिए प्रतिबद्ध प्रयास किए जाने चाहिए. इस राजस्व का इस्तेमाल सार्वजनिक क्षेत्र के ऋण को कम करने में किया जाता है तो सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग सुधरेगा और पूंजी की लागत भी कम होगी.
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