नई दिल्ली : आधुनिक दुनिया (modern world) को बहतर बनाने के लिए प्राचीन ज्ञान (ancient wisdom) का पालन किया जाता है. चीन ने भी भारत के साथ सीमा मुद्दे को लेकर 2,500 साल पुराने विचार का सहारा लिया है, जिसे छठी शताब्दी ईसा पूर्व विचारक कन्फ्यूशियस (Confucius) 'जियाओकांग' समाज विकसित करके दिया था.
कन्फ्यूशियस जियाओकांग (Confucius Xiaokang) का अर्थ है सभी समावेशी और 'मध्यम रूप से समृद्ध' समाज, जहां लोग अभाव और परिश्रम से मुक्त हों, लेकिन भारत के साथ लगभग 3,500 किलोमीटर लंबी सीमा पर, जो काराकोरम और शक्तिशाली हिमालय में दुनिया के सबसे कठिन और दूरदराज के क्षेत्रों में से एक है. यहां चीन ने 'जियाओकांग' गांव की योजना (Xiaokang village policy) को अंजाम दिया था.
गौरतलब है कि पश्चिम में लद्दाख से लेकर पूर्व में अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) चीन 2017 से लगातार 'जियाओकांग' गांव नीति का पालन कर रहा था.
वहीं, भारत के लद्दाख से मिलने वाली कठिनाईयों और धुंधली सीमा के साथ-साथ निर्वासन और अल्प आवास की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.
चीन की सीमावर्ती गांव की योजना में 21 सीमावर्ती क्षेत्रों में 628 अच्छी तरह से स्थापित आधुनिक गांवों की स्थापना करना शामिल था. जिसमें तिब्बती सीमांत में कुल 62,160 घर और 241,835 लोगों की आबादी वाले गांव बनाने थे. यह लद्दाख के के नगारी से लेकर निंगची तक, मेचुका के पार तक और अरुणाचल प्रदेश से म्यांमार तक फैला हुआ है.
पिछले साल तक 30 बिलियन युआन (4.6 बिलियन डॉलर) की लागत से 604 गांवों का निर्माण किया गया था, जिसमें से 24 के 2021 में ही पूरा होने की उम्मीद है. यह पैसा तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (Tibet Autonomous Region) के सीमा रक्षा, सार्वजनिक सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन विभागों से लिया गया है.
चीन को हिमालय के दक्षिण में भारत के सीमावर्ती हिस्सों में आबादी कम होने की बढ़ती समस्या का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि अधिक से अधिक लोग कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों (people migrate to lower altitude ) और शहरी केंद्रों की ओर पलायन कर रहे हैं.
हिमाचल प्रदेश से अरुणाचल प्रदेश तक भारत-चीन सीमा (India-China border) की ओर बढ़ते हुए विकास के साथ सीमावर्ती आबादी का कम होना है चिंता का कारण है, जहां लोग बेहतर अवसरों की तलाश में निचली ऊंचाइयों पर आ जाते हैं,
इस बीच भारत सरकार द्वारा सीमा विकास योजनाओं (border development plans) को सक्रिय कर दिया गया है, जिससे चीन द्वारा शुरू की गई महत्वाकांक्षी योजना फीकी पड़ गई है.
अप्रैल-मई 2020 में सीमा रेखा पर हिंसा भड़कने के बाद दोनों पक्षों द्वारा लगभग 1,00,000 सैनिकों की तैनाती के साथ पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में पहले से ही अभूतपूर्व सैन्य लामबंदी देखी जा रही है.
पढ़ें - जानें कश्मीर का जिक्र करने वाले तुर्की की हकीकत, भारत ने दिया मुंहतोड़ जवाब
यहां कई हिस्से सीमांकित नहीं है. इसके अलावा चीन, अरुणाचल प्रदेश पर भी दावा करता है, जिसे वह 'दक्षिणी तिब्बत' कहता है, जिससे यह भविष्य के टकराव के लिए एक संभावित फ्लैशपॉइंट (flashpoint for a future confrontation) बन जाता है.
चीन ने इन आरोपों का जोरदार खंडन किया कि लोगों को 'ज़ियाओकांग' गांवों में बसाने का उद्देश्य उन्हें बीजिंग की 'आंख और कान' बनने और भारत के खिलाफ सीमा प्रहरी बनने में सक्षम बनाना है.
तिब्बती आबादी वाले क्षेत्र के 'जियाओकांग' गांवों में बसने वाले भी भारत में निर्वासन में रहने वाले तिब्बती बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के समर्थकों की गतिविधियों पर नजर रख सकेंगे.
चीनी-सरकार के मुखपत्र 'ग्लोबल टाइम्स' में सोमवार को एक लेख ने इन गांवों के खुफिया अभियान होने के आरोपों का खंडन किया और कहा कि सीमा मुद्दे का प्रचार"(भारतीय) घरेलू संघर्षों से ध्यान हटाने का एक तरीका है.'