देहरादून(उत्तराखंड): उत्तराखंड में राजा जी नेशनल पार्क और कॉर्बेट नेशनल पार्क के भीतर बने अवैध धार्मिक स्थलों, अतिक्रमण पर धामी सरकार सख्त है. राज्य सरकार हाईकोर्ट के निर्देश के बाद ऐसे तमाम अतिक्रमणों को हटा रही है जो फॉरेस्ट के क्षेत्र में किये गये हैं. इसमें ना केवल लोगों के घर शामिल हैं बल्कि धार्मिक गतिविधियां बढ़ाने के लिए मंदिर, मस्जिद, मजारें भी शामिल हैं. राजधानी देहरादून में ही 15 से अधिक मजारों पर कार्रवाई की गई है. सरकार की सख्ती के बीच अब इसमें एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है. वन विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार विश्व प्रसिद्ध कॉर्बेट नेशनल पार्क में एक कब्रिस्तान की पुष्टि हुई है. यह कब्रिस्तान कॉर्बेट नेशनल पार्क के ढिकुली रेंज में है. यहां बाकायदा हाल ही में कब्रिस्तान का बोर्ड भी लगाया गया है. इसके अलावा वन विभाग से मिले आंकडों के हिसाब से राजा जी नेशनल पार्क में भी 3 कब्रिस्तान हैं.
कॉर्बेट में कब्रिस्तान: उत्तराखंड में टाइगर रिजर्व पार्क हो या अन्य फॉरेस्ट इलाके, इन सभी जगहों पर मानवीय हस्तक्षेप प्रतिबंधित होता है. यहां बिना इजाजत परिंदा भी पर नहीं मार सकता है. ऐसे में विश्व प्रसिद्ध कॉर्बेट नेशनल पार्क में कब्रिस्तान का मिलना बड़े सवाल खड़े करता है. इस कब्रिस्तान के पास हाल ही में कुछ अवशेष मिले हैं. जिसके बाद ये मामला और भी गंभीर हो जाता है. कहा जाता है कि ये कब्रिसतान 40 साल पुराना है. कार्बेट क्षेत्र में आने से पहले यहां कब्रिस्तान था. कॉर्बेट में क्षेत्र के शामिल होने के बाद कब्रिस्तान बंद कर दिया गया, मगर यहां हाल में मिले अवशेष कई सवाल खड़े कर रहे हैं. इतना ही नहीं यहां बाकायदा एक पेड़ पर इसका एक बड़ा बोर्ड आज भी लगा है. इस बोर्ड पर यहां गंदगी न करने और जुर्माने की बात लिखी गई है. अगर ये कब्रिस्तान बंद हो गया है तो यहां ये बोर्ड अभी क्या कर रहा है ये भी अपने आप में एक सवाल है.
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40 साल से अधिक पुराना है कब्रिस्तान: मामले में कॉर्बेट के डायरेक्टर धीरज पांडे से बात की गई. उन्होंने कहा कॉर्बेट में कब्रिस्तान की जानकारी मिली थी. उन्होंने बताया ये कब्रिस्तान आज या कल का नहीं है. यह लगभग 40 साल से भी अधिक पुराना है. उन्होंने भी मौके से कुछ अवशेष मिलने की पुष्टि की है. उन्होंने कहा जब ये क्षेत्र कॉर्बेट का हिस्सा नहीं था तब यहां कब्रिस्तान था, लेकिन कॉर्बेट में शामिल होने के बाद यहां कोई मानवीय गतिविधि नहीं होती है. उन्होंने कहा यहां जो बोर्ड लगा मिला है वो हाल में ही लगाया गया है. ऐसे में फिर सवाल उठता है कि अगर यहां अब कब्रिस्तान नहीं है तो फिर यहां कब्रिस्तान के नाम से बोर्ड कैसे लगाने दिया गया. जब विभाग को ये जानकारी है कि ये बोर्ड हाल में लगाया गया है तो इस पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई.
जानवर खाते हैं मुर्दे, बनते हैं आदमखोर: यह कब्रिस्तान सड़क से करीब 100 मीटर अंदर है. अब सवाल यह खड़ा होता है कि क्या इस कब्रिस्तान को बनाने के लिए कॉर्बेट टाइगर रिजर्व पार्क से परमिशन ली गई थी, या इसे यूं ही बना दिया गया. सबसे बड़ी बात है कि इस क्षेत्र में जंगली जानवरों का आवागमन बड़े स्तर पर होता है. टाइगर, बाघ और अन्य खतरनाक जीव जंतु इस पूरे क्षेत्र में भ्रमण करते दिखाई देते हैं. राजा जी टाइगर रिजर्व पार्क के पूर्व निदेशक सनातन सोनकर कहते हैं इस तरह के कब्रिस्तान हो या धार्मिक स्थल, ये जानवरों और जंगल दोनों के लिए सही नहीं है. अगर कब्रिस्तान है तो उसमे दफनाई जा रही लाशें और उनकी स्मैल से जंगली इस ओर आकर्षित होते हैं. वे क्रबों को खोद कर यहां दफनाये गये मुर्दों को खाते हैं. जिसके कारण वे आदमखोर बन जाते हैं. उन्होंने कहा अगर एक बार कोई जानवर इंसानी मास को खा ले तो फिर वो शिकार नहीं करता. उसके बाद उस जानवर को इंसानी मांस ही चाहिए होता है. इसलिए इस तरह की गतिविधि को तुरंत बंद करना चाहिए.
राजाजी टाइगर रिजर्व में धार्मिक गतिविधियां
मजार | मस्जिद | कब्रिस्तान | मंदिर | गुफाएं | समाधि |
14 | 01 | 03 | 10 | 00 | 00 |
कार्बेट टाइगर रिजर्व में धार्मिक गतिविधियां
मजार | मस्जिद | कब्रिस्तान | मंदिर | गुफाएं | समाधि |
19 | 00 | 01 | 00 | 00 | 01 |