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भोजन की आस व पति के इंतजार में बैठीं राभा जनजाति की महिलाएं

पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार जिले के लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर बसे गांव पोरोबस्ती में राभा जनजाति की महिलाएं लॉकडाउन के चलते काफी परेशान हैं और भोजन की आस में पति की राह देख रही हैं, जो मजदूरी के लिए दूसरे राज्यों में गए हुए हैं...पढ़ें खबर विस्तार से...

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खाने पीने की आस में पति के इंतजार में बैठी राभा जनजाति की महिलांए...
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Published : May 11, 2020, 3:47 PM IST

अलीपुरद्वार/पश्चिम बंगाल : अलीपुरद्वार जिले से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर पोरोबस्ती गांव है. कालचीनी ब्लॉक में बसा यह स्थान घने जंगलों से घिरा हुआ है. टोटो, बोरो और अन्य जनजातियों के साथ-साथ राभस के मंगोलिया समुदाय को भी यहां प्रमुख स्थान मिला है और पोरोबस्ती में ही रहकर यह लोग घर के काम-काज करते हैं.

खाने-पीने की आस में पति के इंतजार में बैठीं राभा जनजाति की महिलाएं

देशभर में फैली कोरोना महामारी से लोग काफी परेशान हैं. यहां पर अब अधिकतर राभा जनजाति की महिलाएं ही हैं, क्योंकि पुरुष काम की तलाश में केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में गए हैं और लॉकडाउन के चलते वह दूसरे राज्यों से यहां वापस नहीं आ पाए.

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विलाप करती पीड़ित महिला

राज्य सरकार ने यहां पर राशन की कुछ व्यवस्था की है, लेकिन इतने कम राशन से इनको भरपूर मदद नहीं मिल पाती है. इसलिए महिलाएं अब जंगल जा रही हैं और अपने लिए जंगली फलों की व्यवस्था खुद ही कर रही हैं.

वहीं इस पर यहां रहने वाली एक महिला रूपाली राभा का कहना है कि मेरे पति कुछ महीने पहले केरल गए थे और वह राजमिस्त्री का काम करते हैं. अब कोरोना की वजह से सब कुछ बंद है और उसके पास कोई काम नहीं है और वह वहां से वापस भी नहीं आ पा रहे हैं. हमें खिलाने के लिए यहां कोई भी नहीं है. कुछ भी नहीं बचा है. जैसे-तैसे हम जंगली फल लाकर बच्चों को खिलाने की कोशिश करते हैं. यह एक बुरे सपने जैसा है.

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पीड़ित महिला

पढे़ं : गृह मंत्रालय का राज्यों को पत्र- श्रमिक ट्रेन चलाने के लिए मांगा सहयोग

वहीं एक अन्य महिला रंजोला राभा का कहना है कि उनका बेटा भी केरल में है. उनके पास एक खराब मोबाइल फोन है और कभी-कभी उसी से बेटे से बात हो जाती है. वह कहती हैं कि मुझे नहीं पता आगे क्या होगा. बेटा बोलता है कि वह मुझे देखना चाहता है, लेकिन वापस आने का कोई रास्ता ही नहीं है, मैं बिल्कुल टूट गई हूं और मैंने सोचना भी बंद कर दिया है.

अलीपुरद्वार के जिला मजिस्ट्रेट सुरेंद्र कुमार मीणा ने कहा, 'यह मुद्दा हमारे सामने नहीं लाया गया है, लेकिन मैंने खंड विकास अधिकारी से जरूरतमंदों के मदद के लिए निर्देश दिए हैं और वह जरूरतमंदों को जरूर मदद पहुंचाएंगे.

वहीं बेबस महिलाएं बस पोरोबस्ती बस स्टैंड की तरफ टकटकी लगाकर देखती हैं कि कब उनके पति वापस आएंगे. उनका कहना है कि वह नहीं जानती कि जिला प्रशासन कब उनको मदद मुहैया कराएगा.

अलीपुरद्वार/पश्चिम बंगाल : अलीपुरद्वार जिले से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर पोरोबस्ती गांव है. कालचीनी ब्लॉक में बसा यह स्थान घने जंगलों से घिरा हुआ है. टोटो, बोरो और अन्य जनजातियों के साथ-साथ राभस के मंगोलिया समुदाय को भी यहां प्रमुख स्थान मिला है और पोरोबस्ती में ही रहकर यह लोग घर के काम-काज करते हैं.

खाने-पीने की आस में पति के इंतजार में बैठीं राभा जनजाति की महिलाएं

देशभर में फैली कोरोना महामारी से लोग काफी परेशान हैं. यहां पर अब अधिकतर राभा जनजाति की महिलाएं ही हैं, क्योंकि पुरुष काम की तलाश में केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में गए हैं और लॉकडाउन के चलते वह दूसरे राज्यों से यहां वापस नहीं आ पाए.

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विलाप करती पीड़ित महिला

राज्य सरकार ने यहां पर राशन की कुछ व्यवस्था की है, लेकिन इतने कम राशन से इनको भरपूर मदद नहीं मिल पाती है. इसलिए महिलाएं अब जंगल जा रही हैं और अपने लिए जंगली फलों की व्यवस्था खुद ही कर रही हैं.

वहीं इस पर यहां रहने वाली एक महिला रूपाली राभा का कहना है कि मेरे पति कुछ महीने पहले केरल गए थे और वह राजमिस्त्री का काम करते हैं. अब कोरोना की वजह से सब कुछ बंद है और उसके पास कोई काम नहीं है और वह वहां से वापस भी नहीं आ पा रहे हैं. हमें खिलाने के लिए यहां कोई भी नहीं है. कुछ भी नहीं बचा है. जैसे-तैसे हम जंगली फल लाकर बच्चों को खिलाने की कोशिश करते हैं. यह एक बुरे सपने जैसा है.

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पढे़ं : गृह मंत्रालय का राज्यों को पत्र- श्रमिक ट्रेन चलाने के लिए मांगा सहयोग

वहीं एक अन्य महिला रंजोला राभा का कहना है कि उनका बेटा भी केरल में है. उनके पास एक खराब मोबाइल फोन है और कभी-कभी उसी से बेटे से बात हो जाती है. वह कहती हैं कि मुझे नहीं पता आगे क्या होगा. बेटा बोलता है कि वह मुझे देखना चाहता है, लेकिन वापस आने का कोई रास्ता ही नहीं है, मैं बिल्कुल टूट गई हूं और मैंने सोचना भी बंद कर दिया है.

अलीपुरद्वार के जिला मजिस्ट्रेट सुरेंद्र कुमार मीणा ने कहा, 'यह मुद्दा हमारे सामने नहीं लाया गया है, लेकिन मैंने खंड विकास अधिकारी से जरूरतमंदों के मदद के लिए निर्देश दिए हैं और वह जरूरतमंदों को जरूर मदद पहुंचाएंगे.

वहीं बेबस महिलाएं बस पोरोबस्ती बस स्टैंड की तरफ टकटकी लगाकर देखती हैं कि कब उनके पति वापस आएंगे. उनका कहना है कि वह नहीं जानती कि जिला प्रशासन कब उनको मदद मुहैया कराएगा.

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