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एक बड़ी राजनीतिक जीत जिसने श्रीलंका में वंशवाद की राजनीति को गहरा किया

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Published : Aug 10, 2020, 8:55 AM IST

Updated : Aug 10, 2020, 9:29 AM IST

राजपक्षे भाइयों ने मतदाताओं को सही तरह से पढ़ लिया है और सुरक्षा की चिंता के समाधान के साथ ही महत्वपूर्ण संवैधानिक सुधारों को वादा किया है. इसके बाद नवंबर में महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई गोटाबाया राजपक्षे राष्ट्रपति के रूप में चुने गए और देश के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में काम कर रहे हैं. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि बासिल राजपक्षे के बारे में ज्यादा संभावना है कि वह एसएलपीपी के मनोनीत सदस्य के रूप में अभिनेता से नेता बने जयंत केटागोड़ा का संसद में स्थान लें.

Sri Lankas dynastic politics
श्रीलंका में वंशवाद की राजनीति

कोलंबोः श्रीलंका में पांच अगस्त को हुए संसदीय चुनाव में शक्तिशाली राजपक्षे परिवार का अभूतपूर्व जीत हासिल करना और संसद की 225 सीटों में से 145 पर कब्जा जमाना राजनीतिक एजेंडा सेटिंग में केवल पहला कदम था.

राजपक्षे की पारिवारिक राजनीतिक पार्टी श्रीलंका पोडुजाना पेरमुना (एसएलपीपी) अब इस लोकप्रिय जनमत का व्यापक चुनावी सुधारों के रूप में उपयोग करने के लिए दृढ़ संकल्प कर चुकी है, इसके तहत इसके पहले की सरकार द्वारा किए गए कई उपायों को बदला जाना है जिनमें संविधान का 19 वां संशोधन भी शामिल है. नए प्रशासनिक तंत्र के गठन के लिए राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे ने दो बार राष्ट्रपति रहे अपने बड़े भाई महिंदा राजपक्षे को 9 अगस्त को प्रधानमंत्री के पद की शपथ दिलाई. नया मंत्रिमंडल भी आज शपथ ग्रहण करनेवाला है.

मंत्रिमंडल में 26 से अधिक मंत्रियों के शामिल होने की संभावना नहीं है. हालांकि तीन दर्जन उपमंत्री और राज्यमंत्री खास काम करने के लिए नए प्रशासन में शामिल किए जाएंगे. नई सरकार की दोहरी प्राथमिकता है. पहला है संवैधानिक सुधार और दूसरा कोविड-19 से प्रभावित देश की अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करना.

श्रीलंका के 19 वें संविधान संशोधन के तहत 45 मंत्रियों तक को राष्ट्रीय सरकार के गठन में शामिल किया जा सकता है. इस संविधान संशोधन को पूरी तरह से रद्द करने के लिए चुनाव अभियान चला चुकी एसएलपीपी चाहती है कि या तो इसे पूरी तरह से रद्द कर दिया जाए या इसके प्रावधानों को कम करके शून्य तक ला दिया जाए. वह इसके प्रावधानों का इस्तेमाल करने की जगह इसमें व्यापक बदलाव लाना चाह रही है. एसएलपीपी इसकी जगह चाहती है कि मंत्रिमंडल का आकार छोटा रहे और जिसमें सहयोगी राजनीतिक दल शामिल नहीं रहें जिससे दूसरों से स्वतंत्र रहकर फैसले ले सके और प्रभावी विपक्ष के अभाव वाली संसद में अपने एजेंडे को आगे बढ़ा सके.

परिवार का शासन

एसएलपीपी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, सबसे बड़ी राजनीति ताकत यह है कि राजपक्षे बंधु मतदाताओं को यह समझाने में सफल रहे कि प्रतिनिधियों वाले लोकतंत्र पर कब्जा करने के बावजूद परिवार का शासन राष्ट्रीय और बहुमत के हित में है. श्रीलंका के चुनाव परिणामों से दक्षिणपंथी राजनीति के वैश्विक उभार दिख सकता है जिसमें चुनावी फैसलों में राष्ट्रवाद बड़ी भूमिका अदा करता है और राष्ट्रीय सुरक्षा शीर्ष प्राथमिकता हो जाती है.

आखिर ऐसा क्या है जो श्रीलंका को इससे अलग करता है, यह देश मजबूती से सांस्कृतिक-धार्मिक लाइन पर बंटा हुआ है. वहां यह एक राजनीतिक परिवार किस तरह इतनी तेजी से सत्ता पाता है और बहुमत की यह इच्छा है कि बगैर किसी सवाल के राजनीतिक वर्चस्व कायम करने दिया जाए इसका प्रतीक है. बढ़ते राष्ट्रवाद और भेदभाव के बीच सिर्फ 1977 के यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) की जीत के अपवाद को छोड़कर यह श्रीलंका के आम चुनावों के दौरान मतदाताओं व्यवहार के बिल्कुल विपरीत है.

श्रीलंका की जनता अब तक केवल सरकार चलाने के लिए साधारण बहुमत देती आई है लेकिन 2020 में घोर राष्ट्रवाद और 2019 के ईस्टर रविवार को हुए बम धमाकों के बाद उपजे सुरक्षा की चिंता और उसके परिणास्वरूप विपक्ष की राजनीति को खारिज कर देने की उग्रता ने एसएलपीपी को यह अभूतपूर्व विजय दिलाई.

परिवार के शासन के लिए राह

प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी महिंदा राजपक्षे अगस्त के चुनाव में सर्वाधिक सफल होकर उभरे. उन्होंने अब तक का सर्वाधिक 5, 27,364 शीर्ष वरीयता वाला वोट हासिल कर रिकॉर्ड कायम किया. इस तरह से उन्होंने देश में सर्वाथिक लोकप्रिय राजनीतिक व्यक्तित्व के अपने दर्जे की फिर से पुष्टि की.

इस बार संसद के लिए राजपक्षे परिवार के पांच सदस्यों को चुना गया है, उनमें से चार वरीयता सूची में शीर्ष पर हैं. महिंद्रा राजपक्षे (उत्तर पश्चिम में कुरुनगला से), उनके बेटे नामल ( देश के अंदरूनी दक्षिणी हिस्से हंबनटोटा से) और पहली बार चुनाव लड़े भतीजे शशिधर्रा राजपक्षे (दक्षिणपूर्वी में मोनरागला से) और निपुण रणवाका (दक्षिण में मतारा से).

राजपक्षे भाइयों ने मतदाताओं को सही तरह से पढ़ लिया है और सुरक्षा की चिंता के समाधान के साथ ही महत्वपूर्ण संवैधानिक सुधारों को वादा किया है. इसके बाद नवंबर में महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई गोटाबाया राजपक्षे राष्ट्रपति के रूप में चुने गए और देश के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में काम कर रहे हैं. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि बासिल राजपक्षे के बारे में ज्यादा संभावना है कि वह एसएलपीपी के मनोनीत सदस्य के रूप में अभिनेता से नेता बने जयंत केटागोड़ा का संसद में स्थान लें.

यह आश्चर्य की बात नहीं है राजपक्षे परिवार को भारी लोकप्रियता हासिल है. इस राजनीतिक परिवार ने हाल के कुछ वर्षों में चुनावी जनाधार वाले विभिन्न क्षेत्रों से परिवार के कमजोर सदस्यों को उतार कर आगे बढ़ाया. इस तरह से परिवार और एसएलपीपी की राजनीति के लिए समर्थन की अच्छी जमीन तैयार हुई.

सबसे विचलित करने वाली प्रवृत्ति यह है कि मतदाताओं ने एक ही परिवार को पूरी राजनीतिक शक्ति सौंपने का फैसला किया. लोकतंत्र में प्रतिनिधित्व में एक परिवार को पूरी सत्ता सौंप देने के डर को दरकिनार कर देने और कार्यपालिका और विधायिका के बीच एक स्वस्थ संतुलन बना रहे इसकी नाकामी की एशियाई राजनीति में एक जानी-मानी परंपरा है.

चुनावी सशक्तिकरण कि कवायद यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) मतदान के जरिए चुनाव से बाहर कर देने की मतदाताओं की तीव्र इच्छा को भी दर्शाती है जो अपने स्थापनाकाल से ही परेशानियों से घिरी है. यह खराब तरीके से बना एक ऐसा गठबंधन है जो अक्सर अपने उद्देश्यों के विपरीत चला जाता है. श्रीलंका का बहु सांस्कृतिक समाज सुरक्षा में चूक के लिए इसकी आलोचना करता है.

वर्ष 2019 के अप्रैल में ईस्टर संडे के दिन हुई बमबारी संभवतः शायद इस पार्टी के वजूद में आने के बाद से सबसे बड़ी अपमानजनक हार का कारण था. भ्रष्टाचार के बहुत सारे लगे आरोपों के बावजूद अपने शासनकाल में यूएनपी ने अपने को सही साबित करने के लिए लगभग कुछ नहीं किया, जिसकी वजह से राजपक्षे परिवार ने जनता भरोसा हासिल किया. राजपक्षे परिवार को अलगाववादी लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) के खिलाफ 2009 युद्ध जीत और सुरक्षा को लेकर सचेत रहने का भी श्रेय है.

राजपक्षे सरकार का मुख्य आह्वान जया जयवर्धने के1978 के संविधान को संशोधित करने का है. पहले इच्छा यह है कि पिछली सरकारद्वारा लाए गएसंविधान के 19 में संशोधन को निरस्त कर दिया जाएया उसमें सुधार किया जाए.
उस संशोधन में प्रभावी रूप सेकई कार्यकारी शक्तियां जोड़ी गई थीं और प्रमुख सार्वजनिक संस्थानों को स्वतंत्र रूप सेस्थापित करने कामार्ग प्रशस्त किया गया थाजिन्हेंउसके पहलेराष्ट्रपति के अधिकारों के तहत रखा गया था.

इस तरह के कदम के तहत पिछली सरकार द्वारा किए गए कुछ प्रगतिशील उपायों को कमजोर किया जाएगा जिसमें संशोधन के जरिए प्रमुख सार्वजनिक संस्थानों को राजनीति से अलग करने की बात कही गई थी. इसमें यह भी संभावना है कि13 में संशोधन की संभावना को कम करने के लिए दायरे को बढ़ाया जाए जिसके तहत प्रांतीय परिषदों का गठन किया गया है जो श्रीलंका में शुरू कर गई एकमात्र समय धानी मान्यता प्राप्त राज्यों को केंद्र द्वारा दिया गया एकमात्र तंत्र है.

यह भी पढ़ें - महिंदा राजपक्षे ने श्रीलंकाई प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली

सरकार के इस कदम के गंभीर राजनीतिक निहितार्थ होंगे. या संवैधानिक संशोधन जिसकी जड़ें1987 के भारत श्रीलंका शांति समझौते से जुड़ी हैं. एक और कानून जिस में बदलाव होने की बहुत अधिक संभावना है ,वह सूचना के अधिकार का कानून. यह कानून मात्र 4 साल पहले लागू हुआ था और यह दुनिया के सर्वाधिक प्रमुख आरटीआई कानून के रूप में मान्यता प्राप्त है.

विपक्ष की भूमिका
अपनी जीत का आनंद लेते हुए एसएलपीपी जल्दी और सुगमता से संविधान में बदलाव करने को तैयार है. महिंदा राजपक्षे ने कोलंबो के ऐतिहासिक बौद्ध मंदिर के लानी राजा महाविहारया में नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. 10 नए अगस्त को नए मंत्रिमंडल का शपथ ग्रहण होना है और 20 अगस्त को नई संसद का गठन किया जाएगा.

राजनीतिक एजेंडा-सेटिंग लेकिन आर्थिक सुधार के काम से बहुत अधिक प्रभावित होगा, क्योंकि कर्ज के बोझ से दबे श्रीलंका को अपने वर्तमान कर्ज के भार को कम करके कोविड 19 से बुरी तरह प्रभावित उन लोगों के आर्थिक बोझ को कम करने की आवश्यकता होगी जिन्होंने राहत उपायों की उम्मीद से सरकार का समर्थन किया है. यह श्रीलंका को एक गंभीर स्थिति में डाल देगा, श्रीलंका और कर्ज में डूबेगा चीन का प्रभाव बढ़ता जाएगा.

(दिलरुक्षी हंडुन्नेत्ती कोलंबो की राजनीतिक टिप्पणीकार और खोजी पत्रकार हैं)

कोलंबोः श्रीलंका में पांच अगस्त को हुए संसदीय चुनाव में शक्तिशाली राजपक्षे परिवार का अभूतपूर्व जीत हासिल करना और संसद की 225 सीटों में से 145 पर कब्जा जमाना राजनीतिक एजेंडा सेटिंग में केवल पहला कदम था.

राजपक्षे की पारिवारिक राजनीतिक पार्टी श्रीलंका पोडुजाना पेरमुना (एसएलपीपी) अब इस लोकप्रिय जनमत का व्यापक चुनावी सुधारों के रूप में उपयोग करने के लिए दृढ़ संकल्प कर चुकी है, इसके तहत इसके पहले की सरकार द्वारा किए गए कई उपायों को बदला जाना है जिनमें संविधान का 19 वां संशोधन भी शामिल है. नए प्रशासनिक तंत्र के गठन के लिए राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे ने दो बार राष्ट्रपति रहे अपने बड़े भाई महिंदा राजपक्षे को 9 अगस्त को प्रधानमंत्री के पद की शपथ दिलाई. नया मंत्रिमंडल भी आज शपथ ग्रहण करनेवाला है.

मंत्रिमंडल में 26 से अधिक मंत्रियों के शामिल होने की संभावना नहीं है. हालांकि तीन दर्जन उपमंत्री और राज्यमंत्री खास काम करने के लिए नए प्रशासन में शामिल किए जाएंगे. नई सरकार की दोहरी प्राथमिकता है. पहला है संवैधानिक सुधार और दूसरा कोविड-19 से प्रभावित देश की अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करना.

श्रीलंका के 19 वें संविधान संशोधन के तहत 45 मंत्रियों तक को राष्ट्रीय सरकार के गठन में शामिल किया जा सकता है. इस संविधान संशोधन को पूरी तरह से रद्द करने के लिए चुनाव अभियान चला चुकी एसएलपीपी चाहती है कि या तो इसे पूरी तरह से रद्द कर दिया जाए या इसके प्रावधानों को कम करके शून्य तक ला दिया जाए. वह इसके प्रावधानों का इस्तेमाल करने की जगह इसमें व्यापक बदलाव लाना चाह रही है. एसएलपीपी इसकी जगह चाहती है कि मंत्रिमंडल का आकार छोटा रहे और जिसमें सहयोगी राजनीतिक दल शामिल नहीं रहें जिससे दूसरों से स्वतंत्र रहकर फैसले ले सके और प्रभावी विपक्ष के अभाव वाली संसद में अपने एजेंडे को आगे बढ़ा सके.

परिवार का शासन

एसएलपीपी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, सबसे बड़ी राजनीति ताकत यह है कि राजपक्षे बंधु मतदाताओं को यह समझाने में सफल रहे कि प्रतिनिधियों वाले लोकतंत्र पर कब्जा करने के बावजूद परिवार का शासन राष्ट्रीय और बहुमत के हित में है. श्रीलंका के चुनाव परिणामों से दक्षिणपंथी राजनीति के वैश्विक उभार दिख सकता है जिसमें चुनावी फैसलों में राष्ट्रवाद बड़ी भूमिका अदा करता है और राष्ट्रीय सुरक्षा शीर्ष प्राथमिकता हो जाती है.

आखिर ऐसा क्या है जो श्रीलंका को इससे अलग करता है, यह देश मजबूती से सांस्कृतिक-धार्मिक लाइन पर बंटा हुआ है. वहां यह एक राजनीतिक परिवार किस तरह इतनी तेजी से सत्ता पाता है और बहुमत की यह इच्छा है कि बगैर किसी सवाल के राजनीतिक वर्चस्व कायम करने दिया जाए इसका प्रतीक है. बढ़ते राष्ट्रवाद और भेदभाव के बीच सिर्फ 1977 के यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) की जीत के अपवाद को छोड़कर यह श्रीलंका के आम चुनावों के दौरान मतदाताओं व्यवहार के बिल्कुल विपरीत है.

श्रीलंका की जनता अब तक केवल सरकार चलाने के लिए साधारण बहुमत देती आई है लेकिन 2020 में घोर राष्ट्रवाद और 2019 के ईस्टर रविवार को हुए बम धमाकों के बाद उपजे सुरक्षा की चिंता और उसके परिणास्वरूप विपक्ष की राजनीति को खारिज कर देने की उग्रता ने एसएलपीपी को यह अभूतपूर्व विजय दिलाई.

परिवार के शासन के लिए राह

प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी महिंदा राजपक्षे अगस्त के चुनाव में सर्वाधिक सफल होकर उभरे. उन्होंने अब तक का सर्वाधिक 5, 27,364 शीर्ष वरीयता वाला वोट हासिल कर रिकॉर्ड कायम किया. इस तरह से उन्होंने देश में सर्वाथिक लोकप्रिय राजनीतिक व्यक्तित्व के अपने दर्जे की फिर से पुष्टि की.

इस बार संसद के लिए राजपक्षे परिवार के पांच सदस्यों को चुना गया है, उनमें से चार वरीयता सूची में शीर्ष पर हैं. महिंद्रा राजपक्षे (उत्तर पश्चिम में कुरुनगला से), उनके बेटे नामल ( देश के अंदरूनी दक्षिणी हिस्से हंबनटोटा से) और पहली बार चुनाव लड़े भतीजे शशिधर्रा राजपक्षे (दक्षिणपूर्वी में मोनरागला से) और निपुण रणवाका (दक्षिण में मतारा से).

राजपक्षे भाइयों ने मतदाताओं को सही तरह से पढ़ लिया है और सुरक्षा की चिंता के समाधान के साथ ही महत्वपूर्ण संवैधानिक सुधारों को वादा किया है. इसके बाद नवंबर में महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई गोटाबाया राजपक्षे राष्ट्रपति के रूप में चुने गए और देश के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में काम कर रहे हैं. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि बासिल राजपक्षे के बारे में ज्यादा संभावना है कि वह एसएलपीपी के मनोनीत सदस्य के रूप में अभिनेता से नेता बने जयंत केटागोड़ा का संसद में स्थान लें.

यह आश्चर्य की बात नहीं है राजपक्षे परिवार को भारी लोकप्रियता हासिल है. इस राजनीतिक परिवार ने हाल के कुछ वर्षों में चुनावी जनाधार वाले विभिन्न क्षेत्रों से परिवार के कमजोर सदस्यों को उतार कर आगे बढ़ाया. इस तरह से परिवार और एसएलपीपी की राजनीति के लिए समर्थन की अच्छी जमीन तैयार हुई.

सबसे विचलित करने वाली प्रवृत्ति यह है कि मतदाताओं ने एक ही परिवार को पूरी राजनीतिक शक्ति सौंपने का फैसला किया. लोकतंत्र में प्रतिनिधित्व में एक परिवार को पूरी सत्ता सौंप देने के डर को दरकिनार कर देने और कार्यपालिका और विधायिका के बीच एक स्वस्थ संतुलन बना रहे इसकी नाकामी की एशियाई राजनीति में एक जानी-मानी परंपरा है.

चुनावी सशक्तिकरण कि कवायद यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) मतदान के जरिए चुनाव से बाहर कर देने की मतदाताओं की तीव्र इच्छा को भी दर्शाती है जो अपने स्थापनाकाल से ही परेशानियों से घिरी है. यह खराब तरीके से बना एक ऐसा गठबंधन है जो अक्सर अपने उद्देश्यों के विपरीत चला जाता है. श्रीलंका का बहु सांस्कृतिक समाज सुरक्षा में चूक के लिए इसकी आलोचना करता है.

वर्ष 2019 के अप्रैल में ईस्टर संडे के दिन हुई बमबारी संभवतः शायद इस पार्टी के वजूद में आने के बाद से सबसे बड़ी अपमानजनक हार का कारण था. भ्रष्टाचार के बहुत सारे लगे आरोपों के बावजूद अपने शासनकाल में यूएनपी ने अपने को सही साबित करने के लिए लगभग कुछ नहीं किया, जिसकी वजह से राजपक्षे परिवार ने जनता भरोसा हासिल किया. राजपक्षे परिवार को अलगाववादी लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) के खिलाफ 2009 युद्ध जीत और सुरक्षा को लेकर सचेत रहने का भी श्रेय है.

राजपक्षे सरकार का मुख्य आह्वान जया जयवर्धने के1978 के संविधान को संशोधित करने का है. पहले इच्छा यह है कि पिछली सरकारद्वारा लाए गएसंविधान के 19 में संशोधन को निरस्त कर दिया जाएया उसमें सुधार किया जाए.
उस संशोधन में प्रभावी रूप सेकई कार्यकारी शक्तियां जोड़ी गई थीं और प्रमुख सार्वजनिक संस्थानों को स्वतंत्र रूप सेस्थापित करने कामार्ग प्रशस्त किया गया थाजिन्हेंउसके पहलेराष्ट्रपति के अधिकारों के तहत रखा गया था.

इस तरह के कदम के तहत पिछली सरकार द्वारा किए गए कुछ प्रगतिशील उपायों को कमजोर किया जाएगा जिसमें संशोधन के जरिए प्रमुख सार्वजनिक संस्थानों को राजनीति से अलग करने की बात कही गई थी. इसमें यह भी संभावना है कि13 में संशोधन की संभावना को कम करने के लिए दायरे को बढ़ाया जाए जिसके तहत प्रांतीय परिषदों का गठन किया गया है जो श्रीलंका में शुरू कर गई एकमात्र समय धानी मान्यता प्राप्त राज्यों को केंद्र द्वारा दिया गया एकमात्र तंत्र है.

यह भी पढ़ें - महिंदा राजपक्षे ने श्रीलंकाई प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली

सरकार के इस कदम के गंभीर राजनीतिक निहितार्थ होंगे. या संवैधानिक संशोधन जिसकी जड़ें1987 के भारत श्रीलंका शांति समझौते से जुड़ी हैं. एक और कानून जिस में बदलाव होने की बहुत अधिक संभावना है ,वह सूचना के अधिकार का कानून. यह कानून मात्र 4 साल पहले लागू हुआ था और यह दुनिया के सर्वाधिक प्रमुख आरटीआई कानून के रूप में मान्यता प्राप्त है.

विपक्ष की भूमिका
अपनी जीत का आनंद लेते हुए एसएलपीपी जल्दी और सुगमता से संविधान में बदलाव करने को तैयार है. महिंदा राजपक्षे ने कोलंबो के ऐतिहासिक बौद्ध मंदिर के लानी राजा महाविहारया में नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. 10 नए अगस्त को नए मंत्रिमंडल का शपथ ग्रहण होना है और 20 अगस्त को नई संसद का गठन किया जाएगा.

राजनीतिक एजेंडा-सेटिंग लेकिन आर्थिक सुधार के काम से बहुत अधिक प्रभावित होगा, क्योंकि कर्ज के बोझ से दबे श्रीलंका को अपने वर्तमान कर्ज के भार को कम करके कोविड 19 से बुरी तरह प्रभावित उन लोगों के आर्थिक बोझ को कम करने की आवश्यकता होगी जिन्होंने राहत उपायों की उम्मीद से सरकार का समर्थन किया है. यह श्रीलंका को एक गंभीर स्थिति में डाल देगा, श्रीलंका और कर्ज में डूबेगा चीन का प्रभाव बढ़ता जाएगा.

(दिलरुक्षी हंडुन्नेत्ती कोलंबो की राजनीतिक टिप्पणीकार और खोजी पत्रकार हैं)

Last Updated : Aug 10, 2020, 9:29 AM IST
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