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बिहार : ऑक्सफोर्ड में पढ़ाई, मंत्रालय की नौकरी छोड़ चुनावी अखाड़े में मनीष

बिहार चुनाव 2020 में राजनीतिक धुरंधरों के अलावा कुछ ऐसे भी चेहरे हैं, जिनके पास दुनिया की सर्वश्रेष्ठ यूनिवर्सिटी की डिग्री है. वह विकास करने के लिए इस चुनाव में खड़े हुए हैं और कुछ बदलाव की चाहत रखते हैं. ऐसा ही एक चेहरा हैं मनीष बरियार, जो बांकीपुर से चुनावी ताल ठोक रहे हैं.

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Published : Oct 16, 2020, 6:00 AM IST

Updated : Oct 16, 2020, 7:35 AM IST

पटना : बिहार चुनाव में कई लोग ऐसे हैं जो ये कहते हैं कि उनके पास कोई विकल्प नहीं है उन्हें खराब और सबसे खराब में एक को चुनना है. इन सारी चीजों को सोच कर मनीष बरियार ने बांकीपुर विधानसभा सीट से पर्चा भरा है. ऑक्सफोर्ड से पढ़े मनीष ने चुनाव लड़ने के लिए वाणिज्य मंत्रालय में ए ग्रेड की नौकरी भी छोड़ दी.

बांकीपुर से चुनावी मैदान में मनीष
पटना के रहने वाले मनीष बरियार का दावा है कि उनको लोगों का समर्थन भी मिल रहा है. वह कहते हैं कि लोग सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों से किसी न किसी कारण नाराज हैं, यही कारण है कि वह ऐसे विकल्प की तलाश में हैं जो, राजनीति से नहीं, बल्कि आम लोगों के बीच से आया व्यक्ति हो.

जन्मभूमि की सेवा ही मकसद
मनीष कहते हैं, पिछले काफी दिनों से वह शिक्षक का काम कर रहे हैं. उनका मन नौकरी में कभी नहीं लगा. शुरू से ही उनकी तमन्ना अपनी जन्मभूमि की सेवा करने की रही है और जब वह गंगा के किनारे हो, तो कोई भी चाहेगा उनकी अंतिम यात्रा भी इसी स्थान से निकले.

कॉन्ट्रैक्ट पर हैं अधिकांश प्रोफेसर
मनीष बरियार राज्य में शिक्षा के स्तर पर बात करते हुए कहते हैं कि राज्य में प्राथमिक शिक्षा और उच्चतर शिक्षा दोनों में गुणवत्ता की घोर कमी है. उच्चतर शिक्षा में बात करें, तो राज्य में प्राइवेट यूनिवर्सिटी की संख्या न के बराबर है. राज्य में जो यूनिवर्सिटी हैं उनमें पिछले कई सालों से लेक्चरर और प्रोफेसर की वैकेंसी नहीं निकली है. अभी के समय में अधिकांश प्रोफेसर कॉन्ट्रैक्ट पर एक लेबर की तरह काम कर रहे हैं.

कैंडिडेट के साथ धोखा
निर्दलीय प्रत्याशी मनीष बरियार का कहना है कि सरकार ने चुनाव के समय 4500 प्रोफेसर की वैकेंसी लाने की घोषणा की है, लेकिन इसमें भी राज्य के कैंडिडेट के साथ धोखा हुआ है. इस बहाली में राज्य के कैंडिडेट न के बराबर ही सिलेक्ट होंगे. सरकार ने 10 नंबर एक्सपीरियंस का क्राइटेरिया रखा है. बिहार के विश्वविद्यालयों में हाल के दिनों से बतौर गेस्ट फैकेल्टी शिक्षकों ने पढ़ाना शुरू किया है और उनका साल में 11 महीने का कॉन्ट्रैक्ट रहता है. एक साल पढ़ाने पर दो नंबर दिया जाता है.

नौकरियों में डोमिसाइल नीति
मनीष बरियार मानते हैं कि अन्य राज्यों में प्राइवेट यूनिवर्सिटी की संख्या काफी अधिक है. ऐसे कैंडिडेट जो सालों से शैक्षणिक सेवा दे रहे होंगे उनका चयन अनुभव के आधार पर हो जाएगा. उन्होंने कहा कि दूसरे राज्यों की तरह बिहार में भी नौकरियों में डोमिसाइल नीति लागू करनी चाहिए.

छात्रों का दूसरे राज्यों में पढ़ाई करना दुर्भाग्यपूर्ण
निर्दलीय प्रत्याशी मनीष कहते हैं कि चुनाव के समय सरकार ने कई नौकरियों की घोषणा की है. उन्होंने कहा कि इस सरकार का इतिहास रहा है कि चुनाव के पहले वैकेंसी लेकर आते हैं और चुनाव संपन्न होते ही सभी रिक्तियों पर कोर्ट केसेस लग जाते हैं. उन्होंने कहा कि बिहार की जितने भी इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेज हैं उनके अधिकांश छात्र अच्छी शिक्षा के लिए दूसरे राज्यों में जाकर कोचिंग करते हैं, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.

औद्योगिकरण के लिए नहीं है विशेष नीति
औद्योगिकरण के बारे में बात करते हुए मनीष कहते है कि इसके लिए बिहार में कोई विशेष नीति नहीं है. चुनाव में अपने मुद्दे के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि रोटी, कपड़ा और मकान सभी राजनीतिक दलों का मुद्दा होता है, लेकिन उनका मुद्दा इससे और आगे जाकर है.

बेहतर हो सके हालात
निर्दलीय प्रत्याशी ने कहा कि पटना में प्रदूषण एक गंभीर समस्या है. इसके अलावा यहां ट्रांसपोर्ट की अच्छी सुविधा नहीं है. राजधानी होने के बावजूद यहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए बसों की अच्छी सुविधा नहीं है और पूरा पटना तीन पहिया पर आश्रित है. उन्होंने कहा कि वह सदन में बेहतर नीति निर्माण के लिए जाना चाहते हैं, ताकि राज्य के हालात बेहतर हो सके.

पटना : बिहार चुनाव में कई लोग ऐसे हैं जो ये कहते हैं कि उनके पास कोई विकल्प नहीं है उन्हें खराब और सबसे खराब में एक को चुनना है. इन सारी चीजों को सोच कर मनीष बरियार ने बांकीपुर विधानसभा सीट से पर्चा भरा है. ऑक्सफोर्ड से पढ़े मनीष ने चुनाव लड़ने के लिए वाणिज्य मंत्रालय में ए ग्रेड की नौकरी भी छोड़ दी.

बांकीपुर से चुनावी मैदान में मनीष
पटना के रहने वाले मनीष बरियार का दावा है कि उनको लोगों का समर्थन भी मिल रहा है. वह कहते हैं कि लोग सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों से किसी न किसी कारण नाराज हैं, यही कारण है कि वह ऐसे विकल्प की तलाश में हैं जो, राजनीति से नहीं, बल्कि आम लोगों के बीच से आया व्यक्ति हो.

जन्मभूमि की सेवा ही मकसद
मनीष कहते हैं, पिछले काफी दिनों से वह शिक्षक का काम कर रहे हैं. उनका मन नौकरी में कभी नहीं लगा. शुरू से ही उनकी तमन्ना अपनी जन्मभूमि की सेवा करने की रही है और जब वह गंगा के किनारे हो, तो कोई भी चाहेगा उनकी अंतिम यात्रा भी इसी स्थान से निकले.

कॉन्ट्रैक्ट पर हैं अधिकांश प्रोफेसर
मनीष बरियार राज्य में शिक्षा के स्तर पर बात करते हुए कहते हैं कि राज्य में प्राथमिक शिक्षा और उच्चतर शिक्षा दोनों में गुणवत्ता की घोर कमी है. उच्चतर शिक्षा में बात करें, तो राज्य में प्राइवेट यूनिवर्सिटी की संख्या न के बराबर है. राज्य में जो यूनिवर्सिटी हैं उनमें पिछले कई सालों से लेक्चरर और प्रोफेसर की वैकेंसी नहीं निकली है. अभी के समय में अधिकांश प्रोफेसर कॉन्ट्रैक्ट पर एक लेबर की तरह काम कर रहे हैं.

कैंडिडेट के साथ धोखा
निर्दलीय प्रत्याशी मनीष बरियार का कहना है कि सरकार ने चुनाव के समय 4500 प्रोफेसर की वैकेंसी लाने की घोषणा की है, लेकिन इसमें भी राज्य के कैंडिडेट के साथ धोखा हुआ है. इस बहाली में राज्य के कैंडिडेट न के बराबर ही सिलेक्ट होंगे. सरकार ने 10 नंबर एक्सपीरियंस का क्राइटेरिया रखा है. बिहार के विश्वविद्यालयों में हाल के दिनों से बतौर गेस्ट फैकेल्टी शिक्षकों ने पढ़ाना शुरू किया है और उनका साल में 11 महीने का कॉन्ट्रैक्ट रहता है. एक साल पढ़ाने पर दो नंबर दिया जाता है.

नौकरियों में डोमिसाइल नीति
मनीष बरियार मानते हैं कि अन्य राज्यों में प्राइवेट यूनिवर्सिटी की संख्या काफी अधिक है. ऐसे कैंडिडेट जो सालों से शैक्षणिक सेवा दे रहे होंगे उनका चयन अनुभव के आधार पर हो जाएगा. उन्होंने कहा कि दूसरे राज्यों की तरह बिहार में भी नौकरियों में डोमिसाइल नीति लागू करनी चाहिए.

छात्रों का दूसरे राज्यों में पढ़ाई करना दुर्भाग्यपूर्ण
निर्दलीय प्रत्याशी मनीष कहते हैं कि चुनाव के समय सरकार ने कई नौकरियों की घोषणा की है. उन्होंने कहा कि इस सरकार का इतिहास रहा है कि चुनाव के पहले वैकेंसी लेकर आते हैं और चुनाव संपन्न होते ही सभी रिक्तियों पर कोर्ट केसेस लग जाते हैं. उन्होंने कहा कि बिहार की जितने भी इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेज हैं उनके अधिकांश छात्र अच्छी शिक्षा के लिए दूसरे राज्यों में जाकर कोचिंग करते हैं, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.

औद्योगिकरण के लिए नहीं है विशेष नीति
औद्योगिकरण के बारे में बात करते हुए मनीष कहते है कि इसके लिए बिहार में कोई विशेष नीति नहीं है. चुनाव में अपने मुद्दे के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि रोटी, कपड़ा और मकान सभी राजनीतिक दलों का मुद्दा होता है, लेकिन उनका मुद्दा इससे और आगे जाकर है.

बेहतर हो सके हालात
निर्दलीय प्रत्याशी ने कहा कि पटना में प्रदूषण एक गंभीर समस्या है. इसके अलावा यहां ट्रांसपोर्ट की अच्छी सुविधा नहीं है. राजधानी होने के बावजूद यहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए बसों की अच्छी सुविधा नहीं है और पूरा पटना तीन पहिया पर आश्रित है. उन्होंने कहा कि वह सदन में बेहतर नीति निर्माण के लिए जाना चाहते हैं, ताकि राज्य के हालात बेहतर हो सके.

Last Updated : Oct 16, 2020, 7:35 AM IST
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