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कंडेल सत्याग्रह में शामिल होने छत्तीसगढ़ आए थे गांधी, अधिकारियों ने डर से आदेश वापस ले लिया था

आजादी के आंदोलन के दौरान गांधीजी ने देश के अलग-अलग हिस्सों का दौरा किया था. जहां-जहां भी बापू जाते थे, वे वहां के लोगों पर अमिट छाप छोड़ जाते थे. वहां के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना घर कर जाती थी. ईटीवी भारत ऐसे ही जगहों से गांधी से जुड़ी कई यादें आपको प्रस्तुत कर रहा है. पेश है आज 29वीं कड़ी.

गांधी की फाइल फोटो
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Published : Sep 14, 2019, 7:02 AM IST

Updated : Sep 30, 2019, 1:18 PM IST

रायपुर : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, जिनके बारे में लिखने और कहने के लिए शब्द कम हैं. गांधी वो हैं जो हर भारतीय की आत्मा में बसते हैं. भारत को आजादी दिलाने वाले महात्मा के कदम दो बार छत्तीसगढ़ में भी पड़े.

महात्मा गांधी की यादें किताबों, फोटोग्राफ में सहेज कर रख ली गई हैं. हर पीढ़ी उन्हें पढ़ती और सहेजती आ रही है. गांधी जी ने हरिजनोद्धार कार्यक्रम की शुरुआत छत्तीसगढ़ से की थी. खास बात ये है कि इस कार्यक्रम को लेकर उन्होंने जितना वक्त यहां बिताया, उतना पूरे देश में कहीं नहीं बिताया.

महात्मा गांधी पहली बार 1920 में कंडेल सत्याग्रह में हिस्सा लेने छत्तीसगढ़ आए थे. वहीं दूसरी बार 1933 में गांधी छत्तीसगढ़ पधारे. उनकी इन यात्राओं के दौरान कई दिलचस्प वाकये हुए, जो आज भी इतिहासकार याद करते हैं. चलिए हम आपको इन यात्राओं के दौरान हुई दिलचस्प घटनाओं से रूबरू कराते हैं.

धमतरी में किसानों ने की थी बगावत
1920 के आसपास महात्मा गांधी भारत के सबसे बड़े नेता को तौर पर स्थापित हो चुके थे. देश के लोग अपनी आवाज गांधी में खोजने लगे थी. इसी दौरान धमतरी के पास अंग्रेज सरकार की दमनकारी नीति के खिलाफ किसानों ने बगावत कर दी. प्रशासन किसानों पर पानी चुराने का आरोप लगा कर लगान वसूली कर रहा था और उनके मवेशियों को जब्त कर रहा था. इससे इलाके के किसान बेहद दुखी थे. तंग आकर छत्तीसगढ़ के स्थानीय नेताओं ने इस आंदोलन में गांधी जी को शामिल करने का फैसला किया. पंडित सुंदरलाल शर्मा गांधी जी को लेने कोलकाता गए.

छत्तीसगढ़ के साथ गांधी के रिश्ते ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट

जहां गांधी ने जनसभा की, उस मैदान का नाम गांधी मैदान पड़ा
20 दिसंबर, 1920 को रायपुर रेलवे स्टेशन पर गांधी जी का भव्य स्वागत हुआ. उनकी एक झलक पाने के लिए जन सैलाब उमड़ पड़ा था उसी शाम गांधी जी ने एक जनसभा को संबोधित किया जिसे आज भी रायपुर में गांधी मैदान के नाम से जाना जाता है. अगले दिन सुबह वे धमतरी के लिए रवाना हुए.

गांधी को सुनने के लिए उमड़ी भीड़
धमतरी में भी गांधी की सभा में शामिल होने के लिए अपार जन समूह मौजूद था. हालात कुछ इस तरह के बन गए कि गांधी मंच तक ही नहीं पहुंच पा रहे थे, तब उन्हें गुरुर के उमर सेठ अपने कंधे पर बैठाकर मंच तक लेकर आए.

आदेश वापस लेने को मजबूर हुए अधिकारी
इधर कंडेल सत्याग्रह में गांधी जी के आने की खबर सुनकर सिंचाई विभाग के अधिकारियों के हाथ-पैर फूल गए उन्होंने किसानों के खिलाफ दिए आदेश को वापस ले लिया.

गांधीजी की स्मृति साथ ले गए थे लोग
धमतरी से लौटने के बाद शाम को गांधी जी ने कंकाली पारा स्थित आनंद समाज लाइब्रेरी के पास एक विशाल सभा को संबोधित किया था. उस दौरान मोहन दास करमचंद गांधी की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस चबूतरे से उन्होंने सभा को संबोधित किया था, उस चबूतरे के ईंटों को निकालकर लोग अपने साथ बतौर स्मृति ले गए.

लोगों ने दिल खोलकर तिलक स्वराज फंड में दान दिया
गांधी जी की इस यात्रा के दौरान छत्तीसगढ़ के लोगों ने दिल खोलकर तिलक स्वराज फंड में दान दिया. महात्मा गांधी रायपुर से सीधे नागपुर रवाना हुए, जहां कांग्रेस के सम्मेलन में वे असहयोग आंदोलन का ऐलान करने वाले थे. इस घोषणा को सुनने के लिए रायपुर से पंडित सुंदरलाल शर्मा और रविशंकर शुक्ल समेत कई नेता नागपुर गए थे.

छत्तीसगढ़ के कई नेता मसलन पंडित रविशंकर शुक्ल, पंडित सुंदरलाल शर्मा, बैरिस्टर छेदीलाल और घनश्याम गुप्ता जैसे नेता लगातार गांधीजी के संपर्क में रहे.

रायपुर : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, जिनके बारे में लिखने और कहने के लिए शब्द कम हैं. गांधी वो हैं जो हर भारतीय की आत्मा में बसते हैं. भारत को आजादी दिलाने वाले महात्मा के कदम दो बार छत्तीसगढ़ में भी पड़े.

महात्मा गांधी की यादें किताबों, फोटोग्राफ में सहेज कर रख ली गई हैं. हर पीढ़ी उन्हें पढ़ती और सहेजती आ रही है. गांधी जी ने हरिजनोद्धार कार्यक्रम की शुरुआत छत्तीसगढ़ से की थी. खास बात ये है कि इस कार्यक्रम को लेकर उन्होंने जितना वक्त यहां बिताया, उतना पूरे देश में कहीं नहीं बिताया.

महात्मा गांधी पहली बार 1920 में कंडेल सत्याग्रह में हिस्सा लेने छत्तीसगढ़ आए थे. वहीं दूसरी बार 1933 में गांधी छत्तीसगढ़ पधारे. उनकी इन यात्राओं के दौरान कई दिलचस्प वाकये हुए, जो आज भी इतिहासकार याद करते हैं. चलिए हम आपको इन यात्राओं के दौरान हुई दिलचस्प घटनाओं से रूबरू कराते हैं.

धमतरी में किसानों ने की थी बगावत
1920 के आसपास महात्मा गांधी भारत के सबसे बड़े नेता को तौर पर स्थापित हो चुके थे. देश के लोग अपनी आवाज गांधी में खोजने लगे थी. इसी दौरान धमतरी के पास अंग्रेज सरकार की दमनकारी नीति के खिलाफ किसानों ने बगावत कर दी. प्रशासन किसानों पर पानी चुराने का आरोप लगा कर लगान वसूली कर रहा था और उनके मवेशियों को जब्त कर रहा था. इससे इलाके के किसान बेहद दुखी थे. तंग आकर छत्तीसगढ़ के स्थानीय नेताओं ने इस आंदोलन में गांधी जी को शामिल करने का फैसला किया. पंडित सुंदरलाल शर्मा गांधी जी को लेने कोलकाता गए.

छत्तीसगढ़ के साथ गांधी के रिश्ते ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट

जहां गांधी ने जनसभा की, उस मैदान का नाम गांधी मैदान पड़ा
20 दिसंबर, 1920 को रायपुर रेलवे स्टेशन पर गांधी जी का भव्य स्वागत हुआ. उनकी एक झलक पाने के लिए जन सैलाब उमड़ पड़ा था उसी शाम गांधी जी ने एक जनसभा को संबोधित किया जिसे आज भी रायपुर में गांधी मैदान के नाम से जाना जाता है. अगले दिन सुबह वे धमतरी के लिए रवाना हुए.

गांधी को सुनने के लिए उमड़ी भीड़
धमतरी में भी गांधी की सभा में शामिल होने के लिए अपार जन समूह मौजूद था. हालात कुछ इस तरह के बन गए कि गांधी मंच तक ही नहीं पहुंच पा रहे थे, तब उन्हें गुरुर के उमर सेठ अपने कंधे पर बैठाकर मंच तक लेकर आए.

आदेश वापस लेने को मजबूर हुए अधिकारी
इधर कंडेल सत्याग्रह में गांधी जी के आने की खबर सुनकर सिंचाई विभाग के अधिकारियों के हाथ-पैर फूल गए उन्होंने किसानों के खिलाफ दिए आदेश को वापस ले लिया.

गांधीजी की स्मृति साथ ले गए थे लोग
धमतरी से लौटने के बाद शाम को गांधी जी ने कंकाली पारा स्थित आनंद समाज लाइब्रेरी के पास एक विशाल सभा को संबोधित किया था. उस दौरान मोहन दास करमचंद गांधी की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस चबूतरे से उन्होंने सभा को संबोधित किया था, उस चबूतरे के ईंटों को निकालकर लोग अपने साथ बतौर स्मृति ले गए.

लोगों ने दिल खोलकर तिलक स्वराज फंड में दान दिया
गांधी जी की इस यात्रा के दौरान छत्तीसगढ़ के लोगों ने दिल खोलकर तिलक स्वराज फंड में दान दिया. महात्मा गांधी रायपुर से सीधे नागपुर रवाना हुए, जहां कांग्रेस के सम्मेलन में वे असहयोग आंदोलन का ऐलान करने वाले थे. इस घोषणा को सुनने के लिए रायपुर से पंडित सुंदरलाल शर्मा और रविशंकर शुक्ल समेत कई नेता नागपुर गए थे.

छत्तीसगढ़ के कई नेता मसलन पंडित रविशंकर शुक्ल, पंडित सुंदरलाल शर्मा, बैरिस्टर छेदीलाल और घनश्याम गुप्ता जैसे नेता लगातार गांधीजी के संपर्क में रहे.

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Last Updated : Sep 30, 2019, 1:18 PM IST
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