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BJP और प्रधानमंत्री मोदी के लिए मुख्य संकटमोचक थे जेटली

अरुण जेटली नहीं रहे. वह देश के ऐसे नेता थे, जिन्हें हर कोई सुनता था. भारतीय जनता पार्टी ने इसे अपूरणीय क्षति बताया है. सत्ता पार्टी के अलावा विपक्षी भी उनका सम्मान करते थे. पार्टी जब भी किसी प्रकार के संकट का सामना करती थी, तब जेटली एक संकटमोचक की भूमिका निभाने आ जाते थे.

अरुण जेटली
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Published : Aug 24, 2019, 1:55 PM IST

Updated : Sep 28, 2019, 2:46 AM IST

नई दिल्ली: पूर्व केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे अरुण जेटली के लिए राजनीतिक हलकों में अनौपचारिक तौर पर माना जाता था कि वह ‘पढ़े लिखे विद्वान मंत्री’ हैं. पिछले तीन दशक से अधिक समय तक अपनी तमाम तरह की काबिलियत के चलते जेटली लगभग हमेशा सत्ता तंत्र के पसंदीदा लोगों में रहे, सरकार चाहे जिसकी भी रही हो.

अति शिष्ट, विनम्र और राजनीतिक तौर पर उत्कृष्ट रणनीतिकार रहे जेटली भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मुख्य संकटमोचक थे जिनकी चार दशक की शानदार राजनीतिक पारी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के चलते समय से पहले समाप्त हो गई.

खराब सेहत के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दूसरी बार बनी सरकार से खुद को बाहर रखने वाले 66 वर्षीय जेटली का शनिवार को यहां एम्स में निधन हो गया. सांस लेने में तकलीफ और बेचैनी की शिकायत के बाद उन्हें यहां भर्ती कराया गया था.

पढ़ें: अरुण जेटली नहीं रहे, लंबे समय से बीमार थे

सर्वसम्मति बनाने में महारत प्राप्त जेटली को कुछ लोग मोदी का ऑरिजनल ‘चाणक्य’ भी मानते थे जो 2002 से मोदी के लिए मुख्य तारणहार साबित होते रहे. मोदी तब मुख्यमंत्री थे और उनपर गुजरात दंगे के काले बादल मंडरा रहे थे. जेटली न सिर्फ मोदी, बल्कि अमित शाह के लिए भी उस वक्त में मददगार साबित हुए थे जब उन्हें गुजरात से बाहर कर दिया गया था. शाह को उस वक्त अक्सर जेटली के कैलाश कॉलोनी दफ्तर में देखा जाता था और दोनों हफ्ते में कई बार साथ भोजन करते देखे जाते थे.

मोदी को 2014 में भाजपा के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की औपचारिक घोषणा से पहले के कुछ महीनों में, जेटली ने राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान और नितिन गडकरी को साथ लाने के लिए उन्होंने पर्दे के पीछे बहुत चौकस रह कर काम किया.

पढ़ें: LIVE: जेटली के निधन पर पीएम मोदी ने जताया दुख

प्रशिक्षण से वकील रहे जेटली अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री थे और जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अरुण शौरी और सुब्रमण्यम स्वामी की संभावनाओं को अनदेखा करते हुए उन्हें वित्त मंत्री के सभी महत्त्वपूर्ण कार्य सौंपे. मोदी एक बार जेटली को “अनमोल हीरा” भी बता चुके हैं. यहां तक कि जेटली को रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया था जब मनोहर पर्रिकर की सेहत बिगड़ी थी.

सत्ता संचालन के दांव पेंच से भली-भांति परिचित जेटली 1990 के दशक के अंतिम सालों के बाद से नयी दिल्ली में वह मोदी के भरोसेमंद बन चुके थे और बीते कुछ सालों में 2002 दंगों के बाद अदालती मुश्किलों को हल करने वाले कानूनी दिमाग से आगे बढ़ कर वह उनके मुख्य योद्धा, सूचना प्रदाता और उनका पक्ष रखने वाले बन चुके थे.

बहुआयामी अनुभव और अपनी कुशाग्रता के साथ जेटली मोदी सरकार के पहले कार्यकाल 2014 से 2019 तक उनके साथ थे. सरकार की उपलब्धियों को गिनाने या विवादित नीतियों के बचाव में उतरने की बात हो या कांग्रेस पर आक्रामक हमला बोलने या 2019 के चुनाव को स्थिरता या अव्यवस्था के बीच चुनने की परीक्षा बताना हो, जेटली समेत कुछ ही लोग इस संबंध में प्रभावी नजर आए.

पढ़ें: तस्वीरों में देखिए अरुण जेटली की जीवन यात्रा

देश और दुनिया के लिए उन्होंने ईंधन की बढ़ती कीमतों का वैश्विक संदर्भ समझाया, जटिल राफेल लड़ाकू विमान सौदेको आसान शब्दों में बताया, माल एवं सेवा कर (जीएसटी) जैसे बड़े आर्थिक कानून को संसद की मंजूरी दिलवाई जो करीब दो दशकों से लटका हुआ था. जब न्यायपालिका में हस्तक्षेप को लेकर सरकार की आलोचना की जा रही थी तब वकील से नेता बने जेटली ने अपने रिकॉर्ड और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता का बचाव किया. यही नहीं जेटली ही वही शख्स थे जिन्होंने ‘ट्रिपल तलाक’ पर सरकार की स्थिति समझाई थी. भाजपा सरकार के प्रमुख राजनीतिक रणनीतिकार से लेकर अत्यंत महत्त्वपूर्ण, संवेदनशील मंत्रालय - वित्त- संभालने वाले जेटली ने अपनी भौतिकदावादी पसंदों जैसे महंगे पेन, घड़ियों और लक्जरी गाड़ियां रखने के शौक पूरा करते हुए कई भूमिकाएं निभाईं.

अगर पदक्रम के हिसाब से देखा जाए तो वह पहली मोदी सरकार में बेशक नंबर दो पर थे. कई नियुक्तियां उनके कहने पर हुईं. पार्टी के सभी प्रवक्ता सलाह के लिए उनके चक्कर लगाते. राजधानी के सियासी गलियारों की झलक पाने के सर्वोत्कृष्ट अंदरूनी सूत्र के लिहाज से वह मीडिया के चहेते थे.

पढ़ें: ऐसी थी अरुण जेटली की जीवन यात्रा...एक नज़र

मोदी और जेटली का साथ बहुत पुराना है जब आरएसएस प्रचारक मोदी को दिल्ली में 1990 के दशक के अंतिम दौर में भाजपा का महासचिव नियुक्त किया गया था, वह 9 अशोक रोड के जेटली के आधिकारिक बंगले के उपभवन में ठहरे थे. उस वक्त जेटली अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री थे. उन्हें उस कदम का भी हिस्सा माना जाता है जो गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को हटा कर मोदी को उस पद पर बिठाने को लेकर उठाया गया.

विभाजन के बाद लाहौर से भारत आए एक सफल वकील के बेट जेटली ने कानून की पढ़ाई की और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष उस वक्त बने जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल घोषित कर दिया था. विश्वविद्यालय परिसर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के लिए उन्होंने 19 महीने जेल में बिताए.

पढ़ें: वित्त मंत्री के रूप में अरुण जेटली के कार्यकाल की हाइलाइट्स

आपातकाल हटने के बाद उन्होंने वकालत शुरू की और 1980 में दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल द्वारा इंडियन एक्सप्रेस की इमारत को गिराने के फैसले को चुनौती दी. इस दौरान वह रामनाथ गोयनका, अरुण शौरी और फली नरीमन के करीब से संपर्क में आए. उनके इस साथ पर विश्वनाथ प्रताप सिंह की नजर पड़ी जिन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद जेटली को अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया. वह इस पद पर काबिज होने वाले सबसे युवा व्यक्ति हैं.

वह 2006 में राज्यसभा में विपक्ष के नेता बने और अपनी स्पष्टता, बेहतरीन याद्दाश्त और त्वरित विचारों के जरिए उन्होंने कई कांग्रेस सदस्यों का भी सम्मान हासिल किया.

नई दिल्ली: पूर्व केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे अरुण जेटली के लिए राजनीतिक हलकों में अनौपचारिक तौर पर माना जाता था कि वह ‘पढ़े लिखे विद्वान मंत्री’ हैं. पिछले तीन दशक से अधिक समय तक अपनी तमाम तरह की काबिलियत के चलते जेटली लगभग हमेशा सत्ता तंत्र के पसंदीदा लोगों में रहे, सरकार चाहे जिसकी भी रही हो.

अति शिष्ट, विनम्र और राजनीतिक तौर पर उत्कृष्ट रणनीतिकार रहे जेटली भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मुख्य संकटमोचक थे जिनकी चार दशक की शानदार राजनीतिक पारी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के चलते समय से पहले समाप्त हो गई.

खराब सेहत के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दूसरी बार बनी सरकार से खुद को बाहर रखने वाले 66 वर्षीय जेटली का शनिवार को यहां एम्स में निधन हो गया. सांस लेने में तकलीफ और बेचैनी की शिकायत के बाद उन्हें यहां भर्ती कराया गया था.

पढ़ें: अरुण जेटली नहीं रहे, लंबे समय से बीमार थे

सर्वसम्मति बनाने में महारत प्राप्त जेटली को कुछ लोग मोदी का ऑरिजनल ‘चाणक्य’ भी मानते थे जो 2002 से मोदी के लिए मुख्य तारणहार साबित होते रहे. मोदी तब मुख्यमंत्री थे और उनपर गुजरात दंगे के काले बादल मंडरा रहे थे. जेटली न सिर्फ मोदी, बल्कि अमित शाह के लिए भी उस वक्त में मददगार साबित हुए थे जब उन्हें गुजरात से बाहर कर दिया गया था. शाह को उस वक्त अक्सर जेटली के कैलाश कॉलोनी दफ्तर में देखा जाता था और दोनों हफ्ते में कई बार साथ भोजन करते देखे जाते थे.

मोदी को 2014 में भाजपा के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की औपचारिक घोषणा से पहले के कुछ महीनों में, जेटली ने राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान और नितिन गडकरी को साथ लाने के लिए उन्होंने पर्दे के पीछे बहुत चौकस रह कर काम किया.

पढ़ें: LIVE: जेटली के निधन पर पीएम मोदी ने जताया दुख

प्रशिक्षण से वकील रहे जेटली अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री थे और जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अरुण शौरी और सुब्रमण्यम स्वामी की संभावनाओं को अनदेखा करते हुए उन्हें वित्त मंत्री के सभी महत्त्वपूर्ण कार्य सौंपे. मोदी एक बार जेटली को “अनमोल हीरा” भी बता चुके हैं. यहां तक कि जेटली को रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया था जब मनोहर पर्रिकर की सेहत बिगड़ी थी.

सत्ता संचालन के दांव पेंच से भली-भांति परिचित जेटली 1990 के दशक के अंतिम सालों के बाद से नयी दिल्ली में वह मोदी के भरोसेमंद बन चुके थे और बीते कुछ सालों में 2002 दंगों के बाद अदालती मुश्किलों को हल करने वाले कानूनी दिमाग से आगे बढ़ कर वह उनके मुख्य योद्धा, सूचना प्रदाता और उनका पक्ष रखने वाले बन चुके थे.

बहुआयामी अनुभव और अपनी कुशाग्रता के साथ जेटली मोदी सरकार के पहले कार्यकाल 2014 से 2019 तक उनके साथ थे. सरकार की उपलब्धियों को गिनाने या विवादित नीतियों के बचाव में उतरने की बात हो या कांग्रेस पर आक्रामक हमला बोलने या 2019 के चुनाव को स्थिरता या अव्यवस्था के बीच चुनने की परीक्षा बताना हो, जेटली समेत कुछ ही लोग इस संबंध में प्रभावी नजर आए.

पढ़ें: तस्वीरों में देखिए अरुण जेटली की जीवन यात्रा

देश और दुनिया के लिए उन्होंने ईंधन की बढ़ती कीमतों का वैश्विक संदर्भ समझाया, जटिल राफेल लड़ाकू विमान सौदेको आसान शब्दों में बताया, माल एवं सेवा कर (जीएसटी) जैसे बड़े आर्थिक कानून को संसद की मंजूरी दिलवाई जो करीब दो दशकों से लटका हुआ था. जब न्यायपालिका में हस्तक्षेप को लेकर सरकार की आलोचना की जा रही थी तब वकील से नेता बने जेटली ने अपने रिकॉर्ड और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता का बचाव किया. यही नहीं जेटली ही वही शख्स थे जिन्होंने ‘ट्रिपल तलाक’ पर सरकार की स्थिति समझाई थी. भाजपा सरकार के प्रमुख राजनीतिक रणनीतिकार से लेकर अत्यंत महत्त्वपूर्ण, संवेदनशील मंत्रालय - वित्त- संभालने वाले जेटली ने अपनी भौतिकदावादी पसंदों जैसे महंगे पेन, घड़ियों और लक्जरी गाड़ियां रखने के शौक पूरा करते हुए कई भूमिकाएं निभाईं.

अगर पदक्रम के हिसाब से देखा जाए तो वह पहली मोदी सरकार में बेशक नंबर दो पर थे. कई नियुक्तियां उनके कहने पर हुईं. पार्टी के सभी प्रवक्ता सलाह के लिए उनके चक्कर लगाते. राजधानी के सियासी गलियारों की झलक पाने के सर्वोत्कृष्ट अंदरूनी सूत्र के लिहाज से वह मीडिया के चहेते थे.

पढ़ें: ऐसी थी अरुण जेटली की जीवन यात्रा...एक नज़र

मोदी और जेटली का साथ बहुत पुराना है जब आरएसएस प्रचारक मोदी को दिल्ली में 1990 के दशक के अंतिम दौर में भाजपा का महासचिव नियुक्त किया गया था, वह 9 अशोक रोड के जेटली के आधिकारिक बंगले के उपभवन में ठहरे थे. उस वक्त जेटली अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री थे. उन्हें उस कदम का भी हिस्सा माना जाता है जो गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को हटा कर मोदी को उस पद पर बिठाने को लेकर उठाया गया.

विभाजन के बाद लाहौर से भारत आए एक सफल वकील के बेट जेटली ने कानून की पढ़ाई की और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष उस वक्त बने जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल घोषित कर दिया था. विश्वविद्यालय परिसर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के लिए उन्होंने 19 महीने जेल में बिताए.

पढ़ें: वित्त मंत्री के रूप में अरुण जेटली के कार्यकाल की हाइलाइट्स

आपातकाल हटने के बाद उन्होंने वकालत शुरू की और 1980 में दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल द्वारा इंडियन एक्सप्रेस की इमारत को गिराने के फैसले को चुनौती दी. इस दौरान वह रामनाथ गोयनका, अरुण शौरी और फली नरीमन के करीब से संपर्क में आए. उनके इस साथ पर विश्वनाथ प्रताप सिंह की नजर पड़ी जिन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद जेटली को अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया. वह इस पद पर काबिज होने वाले सबसे युवा व्यक्ति हैं.

वह 2006 में राज्यसभा में विपक्ष के नेता बने और अपनी स्पष्टता, बेहतरीन याद्दाश्त और त्वरित विचारों के जरिए उन्होंने कई कांग्रेस सदस्यों का भी सम्मान हासिल किया.

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  • भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मुख्य संकटमोचक थे जेटली



नयी दिल्ली, अगस्त (भाषा) पूर्व केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे अरुण जेटली के लिए राजनीतिक हलकों में अनौपचारिक तौर पर माना जाता था कि वह ‘पढ़े लिखे विद्वान मंत्री’ हैं। पिछले तीन दशक से अधिक समय तक अपनी तमाम तरह की काबिलियत के चलते जेटली लगभग हमेशा सत्ता तंत्र के पसंदीदा लोगों में रहे, सरकार चाहे जिसकी भी रही हो।



अति शिष्ट, विनम्र और राजनीतिक तौर पर उत्कृष्ट रणनीतिकार रहे जेटली भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मुख्य संकटमोचक थे जिनकी चार दशक की शानदार राजनीतिक पारी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के चलते समय से पहले समाप्त हो गई।



खराब सेहत के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दूसरी बार बनी सरकार से खुद को बाहर रखने वाले 66 वर्षीय जेटली का शनिवार को यहां एम्स में निधन हो गया। सांस लेने में तकलीफ और बेचैनी की शिकायत के बाद उन्हें यहां भर्ती कराया गया था।



सर्वसम्मति बनाने में महारत प्राप्त जेटली को कुछ लोग मोदी का ऑरिजनल ‘चाणक्य’ भी मानते थे जो 2002 से मोदी के लिए मुख्य तारणहार साबित होते रहे। मोदी तब मुख्यमंत्री थे और उनपर गुजरात दंगे के काले बादल मंडरा रहे थे। जेटली न सिर्फ मोदी, बल्कि अमित शाह के लिए भी उस वक्त में मददगार साबित हुए थे जब उन्हें गुजरात से बाहर कर दिया गया था। शाह को उस वक्त अक्सर जेटली के कैलाश कॉलोनी दफ्तर में देखा जाता था और दोनों हफ्ते में कई बार साथ भोजन करते देखे जाते थे। 



मोदी को 2014 में भाजपा के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की औपचारिक घोषणा से पहले के कुछ महीनों में, जेटली ने राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान और नितिन गडकरी को साथ लाने के लिए उन्होंने पर्दे के पीछे बहुत चौकस रह कर काम किया। 



प्रशिक्षण से वकील रहे जेटली अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री थे और जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अरुण शौरी और सुब्रमण्यम स्वामी की संभावनाओं को अनदेखा करते हुए उन्हें वित्त मंत्री के सभी महत्त्वपूर्ण कार्य सौंपे। मोदी एक बार जेटली को “अनमोल हीरा” भी बता चुके हैं। यहां तक कि जेटली को रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया था जब मनोहर पर्रिकर की सेहत बिगड़ी थी।



सत्ता संचालन के दांव पेंच से भली-भांति परिचित जेटली 1990 के दशक के अंतिम सालों के बाद से नयी दिल्ली में वह मोदी के भरोसेमंद बन चुके थे और बीते कुछ सालों में 2002 दंगों के बाद अदालती मुश्किलों को हल करने वाले कानूनी दिमाग से आगे बढ़ कर वह उनके मुख्य योद्धा, सूचना प्रदाता और उनका पक्ष रखने वाले बन चुके थे।



बहुआयामी अनुभव और अपनी कुशाग्रता के साथ जेटली मोदी सरकार के पहले कार्यकाल 2014 से 2019 तक उनके साथ थे। सरकार की उपलब्धियों को गिनाने या विवादित नीतियों के बचाव में उतरने की बात हो या कांग्रेस पर आक्रामक हमला बोलने या 2019 के चुनाव को स्थिरता या अव्यवस्था के बीच चुनने की परीक्षा बताना हो, जेटली समेत कुछ ही लोग इस संबंध में प्रभावी नजर आए। 



देश और दुनिया के लिए उन्होंने ईंधन की बढ़ती कीमतों का वैश्विक संदर्भ समझाया, जटिल राफेल लड़ाकू विमान सौदेको आसान शब्दों में बताया, माल एवं सेवा कर (जीएसटी) जैसे बड़े आर्थिक कानून को संसद की मंजूरी दिलवाई जो करीब दो दशकों से लटका हुआ था। जब न्यायपालिका में हस्तक्षेप को लेकर सरकार की आलोचना की जा रही थी तब वकील से नेता बने जेटली ने अपने रिकॉर्ड और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता का बचाव किया। यही नहीं जेटली ही वही शख्स थे जिन्होंने ‘ट्रिपल तलाक’ पर सरकार की स्थिति समझाई थी. भाजपा सरकार के प्रमुख राजनीतिक रणनीतिकार से लेकर अत्यंत महत्त्वपूर्ण, संवेदनशील मंत्रालय - वित्त- संभालने वाले जेटली ने अपनी भौतिकदावादी पसंदों जैसे महंगे पेन, घड़ियों और लक्जरी गाड़ियां रखने के शौक पूरा करते हुए कई भूमिकाएं निभाईं। 



अगर पदक्रम के हिसाब से देखा जाए तो वह पहली मोदी सरकार में बेशक नंबर दो पर थे। कई नियुक्तियां उनके कहने पर हुईं। पार्टी के सभी प्रवक्ता सलाह के लिए उनके चक्कर लगाते। राजधानी के सियासी गलियारों की झलक पाने के सर्वोत्कृष्ट अंदरूनी सूत्र के लिहाज से वह मीडिया के चहेते थे। 



मोदी और जेटली का साथ बहुत पुराना है जब आरएसएस प्रचारक मोदी को दिल्ली में 1990 के दशक के अंतिम दौर में भाजपा का महासचिव नियुक्त किया गया था, वह 9 अशोक रोड के जेटली के आधिकारिक बंगले के उपभवन में ठहरे थे। उस वक्त जेटली अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री थे। उन्हें उस कदम का भी हिस्सा माना जाता है जो गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को हटा कर मोदी को उस पद पर बिठाने को लेकर उठाया गया। 



विभाजन के बाद लाहौर से भारत आए एक सफल वकील के बेट जेटली ने कानून की पढ़ाई की और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष उस वक्त बने जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल घोषित कर दिया था। विश्वविद्यालय परिसर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के लिए उन्होंने 19 महीने जेल में बिताए। 



आपातकाल हटने के बाद उन्होंने वकालत शुरू की और 1980 में दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल द्वारा इंडियन एक्सप्रेस की इमारत को गिराने के फैसले को चुनौती दी। इस दौरान वह रामनाथ गोयनका, अरुण शौरी और फली नरीमन के करीब से संपर्क में आए। उनके इस साथ पर विश्वनाथ प्रताप सिंह की नजर पड़ी जिन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद जेटली को अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया। वह इस पद पर काबिज होने वाले सबसे युवा व्यक्ति हैं। 



वह 2006 में राज्यसभा में विपक्ष के नेता बने और अपनी स्पष्टता, बेहतरीन याद्दाश्त और त्वरित विचारों के जरिए उन्होंने कई कांग्रेस सदस्यों का भी सम्मान हासिल किया।


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Last Updated : Sep 28, 2019, 2:46 AM IST
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