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कच्चे तेल की कीमतों में कमी, लेकिन भारतीयों को नहीं मिल रहा इसका लाभ - तेल की कीमतों में कमी

कोरोना काल में वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में लगातार कमी आई है. वहीं भारत में इस दौरान तेल की कीमतों पर वैट बढ़ा दिया गया, जिसकी वजह से भारतीयों को इसका लाभ नहीं मिल पाया. बता दें कि पेट्रोल और डीजल से केंद्र और राज्य सरकारों को भारी भरकम राजस्व प्राप्त होता है, जिसकी वजह से वे तेल को जीएसटी के अंतर्गत नहीं लाना चाहतीं. पढ़ें पूरी खबर.....

oil price
प्रतीकात्मक तस्वीर
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Published : Jun 22, 2020, 6:17 PM IST

हैदराबाद : आम आदमी हमेशा पेट्रोल और डीजल के दामों से प्रभावित होता है. तेलों की दैनिक मूल्य संशोधन प्रणाली के तहत तेल विपणन कंपनियां (ओएमसी) इनकी कीमतों में कमी और वृद्धि करती हैं. 2018 में कच्चे तेल की कीमत 81.03 डॉलर प्रति बैरल थी. उस समय भारत में पेट्रोल की कीमत करीब 80 रुपये प्रति लीटर थी और डीजल की कीमत लगभग 75 रुपये प्रति लीटर थी.

भले ही वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमत गिरकर 40 डॉलर प्रति बैरल हो गई, लेकिन भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें अब भी आसमान छू रही हैं.

जाहिर है कि राज्य स्वामित्व वाली तेल कंपनिया लॉकडाउन के दौरान हुए नुकसान की भरपाई कर रही हैं. कोरोना महामारी के दौरान कच्चे तेल की मांग में कमी आई है. इसके अलावा मार्च में रूस ने तेल के उत्पादन में कमी करने से इनकार कर दिया. इसके बाद रूस और और सऊदी अरब में तेल की कीमतों को लेकर युद्ध छिड़ गया. नतीजा यह हुआ कि कच्चे तेल की कीमत 15.98 डॉलर प्रति बैरल हो गई, जो दशकों में सबसे कम है.

वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के बावजूद राज्य की तेल विपणन कंपनियों ने सात जून से घरेलू पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि कर दी.

इसके अलावा केंद्र सरकार ने भी पेट्रोल और डीजल पर उत्पादन शुल्क बढ़ा दिया है. कर्नाटक, तमिलनाडु, दिल्ली और झारखंड जैसे राज्यों में वैट बढ़ाने से तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं. कोरोना महामारी में वैसे ही व्यवसाय और आजीविका चलाने में संघर्ष करना पड़ रहा है, उसपर से पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतें हानिकारक साबित हो रही हैं.

पढ़ें : विशेष : कोरोना के चलते कॉर्पोरेट आय सहित जीडीपी में आ सकती है गिरावट

बता दें कि इस वर्ष की शुरुआत में कच्चे तेल की कीमत 70 डॉलर प्रति बैरल थी, लेकिन तीन महीने में यह कीमत लगभग आधी हो गई. हालांकि, इस वैश्विक विकास का भारत के लोग लाभ नहीं उठा सके. इसके लिए टैक्स को धन्यवाद.

वास्तव में, भारत के लोग पेट्रोल और डीजल पर सबसे ज्यादा टैक्स देते हैं. रंगराजन समिति ने अनुमान लगाया कि जो कर विस्तार किया गया, उसमें पेट्रोल पर 56 फीसदी और डीजल पर 36 फीसदी कर लगाया गया था.

एक विश्लेषण से पता चला कि केंद्रीय खजाने को कर राजस्व का लगभग 52 प्रतिशत मिला, जबकि राज्यों को 48 प्रतिशत मिला. इस बीच वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आने के बाद नई दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 75 रुपये प्रति लीटर कर दी गई.

पढ़ें : विशेष : सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है चीन की आक्रामकता

पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल की रिपोर्ट के अनुसार 2014 में पेट्रोलियम क्षेत्र में केंद्र और राज्य सरकारों का संयुक्त राजस्व 3.32 लाख करोड़ रुपये था, जो 2019 में बढ़कर 5.95 लाख करोड़ रुपये हो गया. हालिया मूल्य वृद्धि से केंद्र को उम्मीद है कि 1.7 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त राजस्व प्राप्ति होगी.

भारत सरकार राजस्व में नकदी के लिए उत्सुक है. यही वजह है कि वह वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में गिरावट के बाद भी आम जनता को इसके लाभ से दूर रखना चाहती है.

सरकार लोगों और उनकी आजीविका को कच्चे तेलों की कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रभाव से बचाने की बजाय इस व्यवस्था का आंनद ले रही है.

इस पर रोक लगाने का एकमात्र तरीका पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाना है!

हैदराबाद : आम आदमी हमेशा पेट्रोल और डीजल के दामों से प्रभावित होता है. तेलों की दैनिक मूल्य संशोधन प्रणाली के तहत तेल विपणन कंपनियां (ओएमसी) इनकी कीमतों में कमी और वृद्धि करती हैं. 2018 में कच्चे तेल की कीमत 81.03 डॉलर प्रति बैरल थी. उस समय भारत में पेट्रोल की कीमत करीब 80 रुपये प्रति लीटर थी और डीजल की कीमत लगभग 75 रुपये प्रति लीटर थी.

भले ही वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमत गिरकर 40 डॉलर प्रति बैरल हो गई, लेकिन भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें अब भी आसमान छू रही हैं.

जाहिर है कि राज्य स्वामित्व वाली तेल कंपनिया लॉकडाउन के दौरान हुए नुकसान की भरपाई कर रही हैं. कोरोना महामारी के दौरान कच्चे तेल की मांग में कमी आई है. इसके अलावा मार्च में रूस ने तेल के उत्पादन में कमी करने से इनकार कर दिया. इसके बाद रूस और और सऊदी अरब में तेल की कीमतों को लेकर युद्ध छिड़ गया. नतीजा यह हुआ कि कच्चे तेल की कीमत 15.98 डॉलर प्रति बैरल हो गई, जो दशकों में सबसे कम है.

वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के बावजूद राज्य की तेल विपणन कंपनियों ने सात जून से घरेलू पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि कर दी.

इसके अलावा केंद्र सरकार ने भी पेट्रोल और डीजल पर उत्पादन शुल्क बढ़ा दिया है. कर्नाटक, तमिलनाडु, दिल्ली और झारखंड जैसे राज्यों में वैट बढ़ाने से तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं. कोरोना महामारी में वैसे ही व्यवसाय और आजीविका चलाने में संघर्ष करना पड़ रहा है, उसपर से पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतें हानिकारक साबित हो रही हैं.

पढ़ें : विशेष : कोरोना के चलते कॉर्पोरेट आय सहित जीडीपी में आ सकती है गिरावट

बता दें कि इस वर्ष की शुरुआत में कच्चे तेल की कीमत 70 डॉलर प्रति बैरल थी, लेकिन तीन महीने में यह कीमत लगभग आधी हो गई. हालांकि, इस वैश्विक विकास का भारत के लोग लाभ नहीं उठा सके. इसके लिए टैक्स को धन्यवाद.

वास्तव में, भारत के लोग पेट्रोल और डीजल पर सबसे ज्यादा टैक्स देते हैं. रंगराजन समिति ने अनुमान लगाया कि जो कर विस्तार किया गया, उसमें पेट्रोल पर 56 फीसदी और डीजल पर 36 फीसदी कर लगाया गया था.

एक विश्लेषण से पता चला कि केंद्रीय खजाने को कर राजस्व का लगभग 52 प्रतिशत मिला, जबकि राज्यों को 48 प्रतिशत मिला. इस बीच वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आने के बाद नई दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 75 रुपये प्रति लीटर कर दी गई.

पढ़ें : विशेष : सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है चीन की आक्रामकता

पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल की रिपोर्ट के अनुसार 2014 में पेट्रोलियम क्षेत्र में केंद्र और राज्य सरकारों का संयुक्त राजस्व 3.32 लाख करोड़ रुपये था, जो 2019 में बढ़कर 5.95 लाख करोड़ रुपये हो गया. हालिया मूल्य वृद्धि से केंद्र को उम्मीद है कि 1.7 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त राजस्व प्राप्ति होगी.

भारत सरकार राजस्व में नकदी के लिए उत्सुक है. यही वजह है कि वह वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में गिरावट के बाद भी आम जनता को इसके लाभ से दूर रखना चाहती है.

सरकार लोगों और उनकी आजीविका को कच्चे तेलों की कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रभाव से बचाने की बजाय इस व्यवस्था का आंनद ले रही है.

इस पर रोक लगाने का एकमात्र तरीका पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाना है!

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