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राफेल निर्माता ने पूरा नहीं किया वादा, समीक्षा करे रक्षा मंत्रालय : कैग रिपोर्ट

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कहा गया है कि रक्षा मंत्रालय को अपनी नीतियों की समीक्षा करने की जरूरत है. कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, ऑफसेट सौदे में शामिल शर्तों को पूरा करने में नाकाम रहा है. पढ़ें विस्तार से....

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Published : Sep 23, 2020, 11:13 PM IST

Updated : Sep 24, 2020, 2:53 PM IST

नई दिल्ली : देश के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि वेंडर ऑफसेट में तय शर्तों को पूरा करने में नाकाम रहा है. कैग ने कहा कि रक्षा मंत्रालय को अपनी नीतियों की समीक्षा करने की जरूरत है.

दरअसल, 36 राफेल विमानों के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट की शुरूआत में प्रस्ताव था कि डीआरडीओ को हाई टेक्नोलॉजी देकर वेंडर अपना 30 प्रतिशत ऑफसेट पूरा करेगा, लेकिन अब तक वेंडर ने टेक्नोलॉजी ट्रांसफर सुनिश्चित नहीं की है.

डीआरडीओ को यह तकनीक स्वदेशी तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के लिए इंजन बनाने के लिए चाहिए थी.

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, ऑफसेट पॉलिसी से मनमाफिक नतीजे नहीं निकल रहे हैं, इसलिए मंत्रालय को पॉलिसी और इसे लागू करने के तरीके की समीक्षा करने की जरूरत है. इसके साथ ही जहां भी दिक्कत आ रही है, उसकी पहचान कर उसका समाधान ढूंढने की जरूरत है.

बता दें, फ्रांस की दसॉल्ट एविएशन ने राफेल विमान बनाए हैं और एमबीडीए ने इसमें मिसाइल सिस्टम लगाए हैं. संसद में पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि कोई ऐसा केस नहीं मिला है, जिसमें कोई विदेशी वेंडर बड़ी टेक्नोलॉजी भारत को दे रहा हो.

यह भी पढ़ें- जी-4 देशों की बैठक, लंबित सुधारों के लिए निर्णायक कदम का आह्वान

बता दें, 29 जुलाई को भारत को पांच राफेल विमान मिले हैं. फ्रांस के साथ 36 विमानों की डील 59 हजार करोड़ रुपये में की गई थी.

इस डील में ऑफसेट पॉलिसी के मुताबिक, विदेशी कंपनी को अनुबंध का 30 प्रतिशत भारत में रिसर्च या उपकरणों में खर्च करना होगा. यह हर 300 करोड़ से अधिक के आयात पर लागू होता है.

नई दिल्ली : देश के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि वेंडर ऑफसेट में तय शर्तों को पूरा करने में नाकाम रहा है. कैग ने कहा कि रक्षा मंत्रालय को अपनी नीतियों की समीक्षा करने की जरूरत है.

दरअसल, 36 राफेल विमानों के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट की शुरूआत में प्रस्ताव था कि डीआरडीओ को हाई टेक्नोलॉजी देकर वेंडर अपना 30 प्रतिशत ऑफसेट पूरा करेगा, लेकिन अब तक वेंडर ने टेक्नोलॉजी ट्रांसफर सुनिश्चित नहीं की है.

डीआरडीओ को यह तकनीक स्वदेशी तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के लिए इंजन बनाने के लिए चाहिए थी.

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, ऑफसेट पॉलिसी से मनमाफिक नतीजे नहीं निकल रहे हैं, इसलिए मंत्रालय को पॉलिसी और इसे लागू करने के तरीके की समीक्षा करने की जरूरत है. इसके साथ ही जहां भी दिक्कत आ रही है, उसकी पहचान कर उसका समाधान ढूंढने की जरूरत है.

बता दें, फ्रांस की दसॉल्ट एविएशन ने राफेल विमान बनाए हैं और एमबीडीए ने इसमें मिसाइल सिस्टम लगाए हैं. संसद में पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि कोई ऐसा केस नहीं मिला है, जिसमें कोई विदेशी वेंडर बड़ी टेक्नोलॉजी भारत को दे रहा हो.

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बता दें, 29 जुलाई को भारत को पांच राफेल विमान मिले हैं. फ्रांस के साथ 36 विमानों की डील 59 हजार करोड़ रुपये में की गई थी.

इस डील में ऑफसेट पॉलिसी के मुताबिक, विदेशी कंपनी को अनुबंध का 30 प्रतिशत भारत में रिसर्च या उपकरणों में खर्च करना होगा. यह हर 300 करोड़ से अधिक के आयात पर लागू होता है.

Last Updated : Sep 24, 2020, 2:53 PM IST
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