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उत्तराखंड में आधुनिकता और विकास की बाट जोह रहा है टिहरी शहर - उत्तराखंड न्यूज

आज पुरानी टिहरी को डूबे हुए 15 साल पूरे हो चुके हैं. पानी में पूरी तरह से डूबा ये शहर आज भी लोगों की यादों में ताजा है. यहां की ऐतिहासिक इमारतें, कहानियां किस्से और बहुत सी यादें इतिहास के पन्नों में खो से गए हैं.

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Published : Jul 31, 2019, 10:38 PM IST

देहरादून: जैसे-जैसे समय के साथ हम आगे बढ़ते जाते हैं, वैसे-वैसे यादों का शोर हमारे जहन में उतरने लगता है. पुराने दिन, स्कूल, दोस्त और शहर ये सब उनमें शामिल होता है, जो हमें दुनिया से बेखबर अपनी ही एक दुनिया में ले जाता है. पुरानी टिहरी से जुड़ी यादें कुछ ऐसी ही हैं.

आज पुरानी टिहरी को डूबे हुए 15 साल पूरे हो चुके हैं. पानी में पूरी तरह से डूबा ये शहर आज भी लोगों की यादों में तैर रहा है. यहां की ऐतिहासिक इमारतें, कहानियां किस्से और बहुत सी यादें दस्तावेजों में दर्ज हो चुकी हैं.

यादों में टिहरी, स्पेशल रिपोर्ट

एक खंडहर हो चुका शहर जो बीते 15 सालों से टिहरी झील में समाया है. इस शहर में दफ्न हैं कई यादें जो आज भी रह-रह कर कम होते पानी के साथ उभर आती हैं. जिनमें कहीं बचपन की शैतानियां, कहीं नौजवानी के किस्से तो कहीं बुढ़ापे की कहानियां शामिल हैं. पुरानी टिहरी यादों का एक ऐसा शहर है, जिसमें रहने वाले हर एक रहवासी के पास अपनी ही अलग कहानी है.

पढ़ें-यादों में टिहरी: तारीखों में पुरानी टिहरी की एक झलक
खेत खलिहान, गली-चौबारों पर बसने वाले इस शहर की शामें बच्चों की किलकारी और टपरी की चाय की दुकान पर बैठे नौजवानों के ठहाकों से गुलजार हुआ करती थी. वहीं, रातें परिवार के साथ सुकून से एक छत के नीचे बैठकर खाना खाने के साथ खत्म होती थी. 31 जुलाई 2005 की तारीख को एक दिन ऐसा आया जब यहां के रहवासियों को अपनी उम्मीदें, सपने और यादों की गठरी में बांधकर यहां से जाना पड़ा. यहां के लोगों को आधुनिकता और विकास की कीमत अपने शहर को खोकर चुकानी पड़ी.

पढ़ें- 'टिहरी' के बलिदान से राज्य बना ऊर्जा प्रदेश, विश्व भी मान रहा लोहा
29 जुलाई 2005 वो तारीख थी जब यादों के इस शहर में पानी घुसना शुरू हुआ. करीब सौ परिवारों को ये शहर छोड़ना पड़ा. 29 अक्टूबर, 2005 को बांध की टनल-2 बन्द हुई. जिसके बाद टिहरी में जल भराव शुरू हुआ और देखते ही देखते एक भरा-पूरा शहर पानी में कहीं गुम सा हो गया.

देहरादून: जैसे-जैसे समय के साथ हम आगे बढ़ते जाते हैं, वैसे-वैसे यादों का शोर हमारे जहन में उतरने लगता है. पुराने दिन, स्कूल, दोस्त और शहर ये सब उनमें शामिल होता है, जो हमें दुनिया से बेखबर अपनी ही एक दुनिया में ले जाता है. पुरानी टिहरी से जुड़ी यादें कुछ ऐसी ही हैं.

आज पुरानी टिहरी को डूबे हुए 15 साल पूरे हो चुके हैं. पानी में पूरी तरह से डूबा ये शहर आज भी लोगों की यादों में तैर रहा है. यहां की ऐतिहासिक इमारतें, कहानियां किस्से और बहुत सी यादें दस्तावेजों में दर्ज हो चुकी हैं.

यादों में टिहरी, स्पेशल रिपोर्ट

एक खंडहर हो चुका शहर जो बीते 15 सालों से टिहरी झील में समाया है. इस शहर में दफ्न हैं कई यादें जो आज भी रह-रह कर कम होते पानी के साथ उभर आती हैं. जिनमें कहीं बचपन की शैतानियां, कहीं नौजवानी के किस्से तो कहीं बुढ़ापे की कहानियां शामिल हैं. पुरानी टिहरी यादों का एक ऐसा शहर है, जिसमें रहने वाले हर एक रहवासी के पास अपनी ही अलग कहानी है.

पढ़ें-यादों में टिहरी: तारीखों में पुरानी टिहरी की एक झलक
खेत खलिहान, गली-चौबारों पर बसने वाले इस शहर की शामें बच्चों की किलकारी और टपरी की चाय की दुकान पर बैठे नौजवानों के ठहाकों से गुलजार हुआ करती थी. वहीं, रातें परिवार के साथ सुकून से एक छत के नीचे बैठकर खाना खाने के साथ खत्म होती थी. 31 जुलाई 2005 की तारीख को एक दिन ऐसा आया जब यहां के रहवासियों को अपनी उम्मीदें, सपने और यादों की गठरी में बांधकर यहां से जाना पड़ा. यहां के लोगों को आधुनिकता और विकास की कीमत अपने शहर को खोकर चुकानी पड़ी.

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29 जुलाई 2005 वो तारीख थी जब यादों के इस शहर में पानी घुसना शुरू हुआ. करीब सौ परिवारों को ये शहर छोड़ना पड़ा. 29 अक्टूबर, 2005 को बांध की टनल-2 बन्द हुई. जिसके बाद टिहरी में जल भराव शुरू हुआ और देखते ही देखते एक भरा-पूरा शहर पानी में कहीं गुम सा हो गया.

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यादों का एक शहर 'टिहरी', कम होते पानी में दिखता है 'संसार' और आंखों में आंसू

 

देहरादून: जैसे-जैसे समय के साथ हम आगे बढ़ते जाते हैं, वैसे-वैसे यादों का शोर हमारे जहन में उतरने लगता है. पुराने दिन, स्कूल, दोस्त और शहर ये सब उनमें शामिल होता है जो हमें दुनिया से बेखबर अपनी ही एक दुनिया में ले जाता है. पुरानी टिहरी से जुड़ी यादें कुछ ऐसी ही हैं. आज पुरानी टिहरी को डूबे हुए 15 साल पूरे हो चुके हैं. पानी में पूरी तरह से डूबा ये शहर आज भी लोगों की यादों में तैर रहा है. यहां की ऐतिहासिक इमारतें, कहानियां किस्से और बहुत सी यादें दस्तावेजों में दर्ज हो चुकी हैं.

एक खंडहर हो चुका शहर जो बीते 15 सालों से टिहरी झील में समाया है. इस शहर में दफ्न हैं कई यादें जो आज भी रह-रह कर कम होते पानी के साथ उभर आती हैं. जिनमें कहीं बचपन की शैतानियां, कहीं नौजावानी के किस्से तो कहीं बुढ़ापे की कहानियां शामिल हैं. पुरानी टिहरी यादों का एक ऐसा शहर है, जिसमें रहने वाले हर एक रहवासी के पास अपनी ही अलग कहानी है.

खेत खलिहान, गलियों और चौबारों पर बसने वाले इस शहर की शामें बच्चों की किलकारी और टपरी की चाय की दुकान पर बैठे नौजवानों के ठहाकों से गुलजार हुआ करती थी. वहीं, रातें परिवार के साथ सुकुन से एक छत के नीचे बैठकर खाना खाने के साथ खत्म होती थी. 31 जुलाई 2005 की तारीख को एक दिन ऐसा आया जब यहां के रहवासियों को अपनी उम्मीदें, सपने, यादें सब गठरी में बांध कर यहां से जाना पड़ा. यहां के लोगों को आधुनिकता और विकास की कीमत अपने शहर को खोकर चुकानी पड़ी.

29 जुलाई 2005 वो तारीख थी जब यादों के इस शहर में पानी घुसना शुरू हुआ. करीब सौ परिवारों को ये शहर छोड़ना पड़ा. 29 अक्टूबर, 2005 को बांध की टनल-2 बन्द हुई. जिसके बाद टिहरी में जल भराव शुरू हुआ और देखते ही देखते एक भरा-पूरा शहर पानी में कहीं गुम सा हो गया.



 

 


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