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Himachal Pradesh Election 2022 : 'भाजपा रचेगी इतिहास या कांग्रेस देगी सरप्राइज', एक विश्लेषण - sanjay kapoor himachal pradesh election 2022

हिमाचल प्रदेश में शनिवार को मतदान है. भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला दिख रहा है. आम आदमी पार्टी ने शुरू में इसे त्रिकोणीय मुकाबला बनाने की कोशिश की, लेकिन समय के साथ पार्टी ने यह प्रयास छोड़ दिया. कांग्रेस की ओर से प्रियंका और सचिन पायलट ने मोर्चा संभाला. और जाहिर है, भाजपा की ओर से स्टार प्रचारक खुद पीएम मोदी ही रहे. अब देखना यह है कि हिमाचल में भाजपा इतिहास रचती है, या फिर कांग्रेस उसे सरप्राइज देने के लिए तैयार है. एक विश्लेषण वरिष्ठ पत्रकार संजय कपूर का.

himachal pradesh election
हिमाचल प्रदेश चुनाव में प्रियंका गांधी वाड्रा
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Published : Nov 11, 2022, 4:55 PM IST

Updated : Nov 16, 2022, 4:09 PM IST

नई दिल्ली : हिमाचल प्रदेश में कल मतदान है. मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है. भाजपा सत्ता में है. चुनाव विश्लेषकों की मानें तो भाजपा को कड़ी चुनौती मिल रही है. हालांकि, कई पर्यवेक्षकों का मानना ​​है कि भाजपा चुनाव जीतना जानती है. वह कई ऐसे चुनाव जीत चुकी है, जिसे उसके लिए हारा हुआ माना जा रहा था. फिर भी सत्ताधारी दल में एक अजीब 'बेचैनी' तो जरूर देखी जा सकती है.

पार्टी के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैसे ही प्रचार का जिम्मा उठाया, उसे एक नई गति मिल गई. राज्य सरकार के खिलाफ बढ़ती सत्ता विरोधी लहर और टिकट वितरण के प्रति गहरी नाराजगी को देखते हुए, पीएम मोदी ने पार्टी को होने वाले नुकसान को सीमित करने का फैसला किया. सोलन में एक भाषण के दौरान उन्होंने कहा कि राज्य के लोगों को उम्मीदवार को नजरअंदाज करना है और केवल 'कमल' चुनाव चिन्ह को याद रखना है और विश्वास करना है कि 'मोदीजी आपके पास आए हैं.'

2014 में केंद्र में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से पार्टी पीएम मोदी के करिश्मे पर बहुत निर्भर है, लेकिन यह सुझाव देकर कि जो भी मतदाताओं द्वारा चुना जाता है वह अप्रासंगिक है, यह बयान अपने आप में बहुत कुछ संदेश दे जाता है. उन्होंने एक तरीके से यह संदेश दे दिया कि कोई भी जीते, फैसला उन्हीं के हाथों होना है.

लेकिन पीएम को ऐसा क्यों कहना पड़ा, यह बहुत विचारणीय सवाल है. आखिर उन्होंने उम्मीदवारों को नजरअंदाज करने की बात ही क्यों की ? कहीं इसके पीछे किसी सर्वे की रिपोर्ट तो नहीं है ? दरअसल, कुछ सर्वे ने भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला बताया है. सर्वे में यह भी दावा किया गया है कि राज्य के सीएम जयराम ठाकुर और पार्टी, दोनों ही अपनी ऊर्जा खो रहे हैं. यहां यह भी जानना जरूरी है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, दोनों यहीं से आते हैं. खुद पीएम ने यहां पर लंबा समय व्यतीत किया है. वह यहां की राजनीति में गहरी दिलचस्पी रखते हैं.

इस राज्य में 'उच्च' जाति का 'वर्चस्व' रहा है. पार्टी ने अपने हिंदू बेस को भी मजबूत करने की बात कही है. उत्तराखंड राज्य की तरह, पार्टी ने सत्ता में आने पर राज्य में समान नागरिक संहिता को लागू करने का वादा किया है. वैसे, यहां यूसीसी बड़ा मुद्दा नहीं है, लेकिन पार्टी नेतृत्व को लगता है कि इस तरह का कदम उसकी हिंदूवादी छवि को मजबूत करेगा. मंदिरों को लेकर पार्टी हर कार्यक्रम का पूरा प्रचार करती है. मंदिरों के दौरों के समय छवि ऐसी 'गढ़ी' जाती है, जिससे यह संदेश जाए कि पार्टी हिंदुओं की 'रक्षक' है.

पार्टी नेतृत्व को उम्मीद है कि इन मुद्दों को उठाने से बढ़ती कीमतों, नौकरियों के नुकसान और इसकी लोकप्रियता में जो भी गिरावट आई है, उसकी भरपाई हो सकेगी. वास्तव में अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वाली एक एजेंसी के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में बेरोजगारी दूसरे राज्यों के मुकाबले अधिक व्यापक है. इसका एक कारण केंद्र सरकार द्वारा 2 साल से अधिक समय से रक्षा बलों में युवाओं की भर्ती करने में विफलता है. हर साल लगभग 5000 युवा सेना में शामिल होते हैं, जिसका अर्थ है कि लगभग 10,000 को रक्षा बलों में नौकरी से वंचित कर दिया गया है. इसी तरह से सीआईएसएफ और अर्धसैनिक बलों में बहाली पर रोक लगी हुई है, तो युवा कहां जाएंगे.

दूसरी ओर, कांग्रेस पार्टी भी इस बार 'मंदिर दर्शन' की राजनीति से नहीं बच सकी. फिर भी, प्रियंका गांधी ने नौकरी का मुद्दा उछाला. कई पार्टियों ने बुजुर्ग पेंशन योजना को जोर-शोर से उठाया. जाहिर है, इससे जो लोग प्रभावित रहे हैं, उन्होंने इन विषयों से सहमति जताई. सरकारी कर्मचारियों के लिए तो यह मुद्दा काफी भावनात्मक रहा है. प्रदेश में करीब ढाई लाख सेवानिवृत्त और करीब दो लाख सेवारत कर्मचारी हैं. 55 लाख के छोटे से निर्वाचन क्षेत्र में इन कर्मचारियों और उनकी मांगों का राज्य की राजनीति पर काफी प्रभाव है. वैसे कहा तो ये जा रहा है कि हर घर का कोई न कोई सदस्य या तो केंद्र या फिर राज्य सरकार में काम करता है, और उनके परिवार के सदस्य सरकारी योजनाओं का फायदा जरूर उठाते हैं.

यही वजह है कि पुरानी पेंशन योजना की मांग जनता के बीच खूब गूंजी. इसकी मांग जोर पकड़ने पर भाजपा ने 'रक्षात्मक' रवैया अपना लिया. दिलचस्प बात यह है कि राज्य सरकार का दावा है कि उसने कोविड -19 महामारी के खिलाफ राज्य की आबादी के लिए मुफ्त टीकाकरण का बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन लोग कुछ और मानते हैं. पिछले दो वर्षों में हिमाचल में पर्यटन प्रभावित रहा है. होटल बंद हो गए. वैसे, महामारी के बाद धीरे-धीरे कर स्थितियां अनुकूल हो रहीं हैं, लेकिन अभी भी कोविड के पहले का स्तर तक नहीं पहुंचा है.

पंजाब चुनाव के बाद सबने उम्मीद की थी कि यहां पर आप त्रिकोणीय मुकाबल बना सकता है. शुरू में आप ने ऐसी घोषणा भी की. लेकिन बाद में अचानक ही वह परिदृश्य से गायब हो गई. यह देखा जाना बाकी है कि इसका क्या असर होगा.

हालांकि, 68 विधानसभा सीटों पर करीब 400 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन बीजेपी के सीधे कांग्रेस से मुकाबला होने की संभावना है. कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी वाड्रा और सचिन पायलट ने मोर्चा संभाला है. उन्हें उम्मीद है कि जनता उनका साथ देगी और कांग्रेस की सरकार बनाएगी. प्रियंका की रैलियों में भीड़ भी देखने को मिली. उनका मानना है कि उन्हें अच्छा रिस्पॉंस मिला. वह केंद्र और राज्य सरकार पर लगातार हमले करती रहीं. एक प्रचारक के रूप में उनकी प्रतिष्ठा अब इस बात पर निर्भर करती है कि पार्टी हिमाचल प्रदेश में कैसा प्रदर्शन करती है. उन्होंने 3,700 किलोमीटर लंबी भारत जोड़ी यात्रा (बीजेवाई) पर अपने भाई राहुल गांधी की अनुपस्थिति में अभियान चलाने का भार उठाने का फैसला किया था.

कई मतदाताओं के लिए वास्तव में हैरान करने वाली बात यह है कि राहुल ने राज्य छोड़ने का फैसला क्यों किया ? हिमाचल प्रदेश में उनके आंदोलन पर नज़र रखने वाले एक सर्वेक्षणकर्ता के अनुसार भारत जोड़ो यात्रा के कारण हिमाचल में उनकी लोकप्रियता बढ़ गई है. साथ ही, यह पहला चुनाव है जो नवनिर्वाचित पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है, जिन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि अभियान का नेतृत्व करने वाला एक सामूहिक नेतृत्व हो. इसमें आनंद शर्मा जैसे असंतुष्ट कांग्रेसी नेताओं का भी पार्टी से बाहर निकलना और प्रचार करना शामिल है. जनमत सर्वेक्षणों और विपक्षी दलों में उत्साह के बावजूद शिमला में उथल-पुथल की संभावना के बावजूद, भाजपा मौजूदा मिसालों और कुछ मतदाताओं की उम्मीदों को उलट सकती है.

ये भी पढ़ें : हिमाचल विधानसभा चुनाव : जीत के लिए कांग्रेस का फोकस अब बूथ लेवल रणनीति पर

नई दिल्ली : हिमाचल प्रदेश में कल मतदान है. मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है. भाजपा सत्ता में है. चुनाव विश्लेषकों की मानें तो भाजपा को कड़ी चुनौती मिल रही है. हालांकि, कई पर्यवेक्षकों का मानना ​​है कि भाजपा चुनाव जीतना जानती है. वह कई ऐसे चुनाव जीत चुकी है, जिसे उसके लिए हारा हुआ माना जा रहा था. फिर भी सत्ताधारी दल में एक अजीब 'बेचैनी' तो जरूर देखी जा सकती है.

पार्टी के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैसे ही प्रचार का जिम्मा उठाया, उसे एक नई गति मिल गई. राज्य सरकार के खिलाफ बढ़ती सत्ता विरोधी लहर और टिकट वितरण के प्रति गहरी नाराजगी को देखते हुए, पीएम मोदी ने पार्टी को होने वाले नुकसान को सीमित करने का फैसला किया. सोलन में एक भाषण के दौरान उन्होंने कहा कि राज्य के लोगों को उम्मीदवार को नजरअंदाज करना है और केवल 'कमल' चुनाव चिन्ह को याद रखना है और विश्वास करना है कि 'मोदीजी आपके पास आए हैं.'

2014 में केंद्र में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से पार्टी पीएम मोदी के करिश्मे पर बहुत निर्भर है, लेकिन यह सुझाव देकर कि जो भी मतदाताओं द्वारा चुना जाता है वह अप्रासंगिक है, यह बयान अपने आप में बहुत कुछ संदेश दे जाता है. उन्होंने एक तरीके से यह संदेश दे दिया कि कोई भी जीते, फैसला उन्हीं के हाथों होना है.

लेकिन पीएम को ऐसा क्यों कहना पड़ा, यह बहुत विचारणीय सवाल है. आखिर उन्होंने उम्मीदवारों को नजरअंदाज करने की बात ही क्यों की ? कहीं इसके पीछे किसी सर्वे की रिपोर्ट तो नहीं है ? दरअसल, कुछ सर्वे ने भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला बताया है. सर्वे में यह भी दावा किया गया है कि राज्य के सीएम जयराम ठाकुर और पार्टी, दोनों ही अपनी ऊर्जा खो रहे हैं. यहां यह भी जानना जरूरी है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, दोनों यहीं से आते हैं. खुद पीएम ने यहां पर लंबा समय व्यतीत किया है. वह यहां की राजनीति में गहरी दिलचस्पी रखते हैं.

इस राज्य में 'उच्च' जाति का 'वर्चस्व' रहा है. पार्टी ने अपने हिंदू बेस को भी मजबूत करने की बात कही है. उत्तराखंड राज्य की तरह, पार्टी ने सत्ता में आने पर राज्य में समान नागरिक संहिता को लागू करने का वादा किया है. वैसे, यहां यूसीसी बड़ा मुद्दा नहीं है, लेकिन पार्टी नेतृत्व को लगता है कि इस तरह का कदम उसकी हिंदूवादी छवि को मजबूत करेगा. मंदिरों को लेकर पार्टी हर कार्यक्रम का पूरा प्रचार करती है. मंदिरों के दौरों के समय छवि ऐसी 'गढ़ी' जाती है, जिससे यह संदेश जाए कि पार्टी हिंदुओं की 'रक्षक' है.

पार्टी नेतृत्व को उम्मीद है कि इन मुद्दों को उठाने से बढ़ती कीमतों, नौकरियों के नुकसान और इसकी लोकप्रियता में जो भी गिरावट आई है, उसकी भरपाई हो सकेगी. वास्तव में अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वाली एक एजेंसी के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में बेरोजगारी दूसरे राज्यों के मुकाबले अधिक व्यापक है. इसका एक कारण केंद्र सरकार द्वारा 2 साल से अधिक समय से रक्षा बलों में युवाओं की भर्ती करने में विफलता है. हर साल लगभग 5000 युवा सेना में शामिल होते हैं, जिसका अर्थ है कि लगभग 10,000 को रक्षा बलों में नौकरी से वंचित कर दिया गया है. इसी तरह से सीआईएसएफ और अर्धसैनिक बलों में बहाली पर रोक लगी हुई है, तो युवा कहां जाएंगे.

दूसरी ओर, कांग्रेस पार्टी भी इस बार 'मंदिर दर्शन' की राजनीति से नहीं बच सकी. फिर भी, प्रियंका गांधी ने नौकरी का मुद्दा उछाला. कई पार्टियों ने बुजुर्ग पेंशन योजना को जोर-शोर से उठाया. जाहिर है, इससे जो लोग प्रभावित रहे हैं, उन्होंने इन विषयों से सहमति जताई. सरकारी कर्मचारियों के लिए तो यह मुद्दा काफी भावनात्मक रहा है. प्रदेश में करीब ढाई लाख सेवानिवृत्त और करीब दो लाख सेवारत कर्मचारी हैं. 55 लाख के छोटे से निर्वाचन क्षेत्र में इन कर्मचारियों और उनकी मांगों का राज्य की राजनीति पर काफी प्रभाव है. वैसे कहा तो ये जा रहा है कि हर घर का कोई न कोई सदस्य या तो केंद्र या फिर राज्य सरकार में काम करता है, और उनके परिवार के सदस्य सरकारी योजनाओं का फायदा जरूर उठाते हैं.

यही वजह है कि पुरानी पेंशन योजना की मांग जनता के बीच खूब गूंजी. इसकी मांग जोर पकड़ने पर भाजपा ने 'रक्षात्मक' रवैया अपना लिया. दिलचस्प बात यह है कि राज्य सरकार का दावा है कि उसने कोविड -19 महामारी के खिलाफ राज्य की आबादी के लिए मुफ्त टीकाकरण का बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन लोग कुछ और मानते हैं. पिछले दो वर्षों में हिमाचल में पर्यटन प्रभावित रहा है. होटल बंद हो गए. वैसे, महामारी के बाद धीरे-धीरे कर स्थितियां अनुकूल हो रहीं हैं, लेकिन अभी भी कोविड के पहले का स्तर तक नहीं पहुंचा है.

पंजाब चुनाव के बाद सबने उम्मीद की थी कि यहां पर आप त्रिकोणीय मुकाबल बना सकता है. शुरू में आप ने ऐसी घोषणा भी की. लेकिन बाद में अचानक ही वह परिदृश्य से गायब हो गई. यह देखा जाना बाकी है कि इसका क्या असर होगा.

हालांकि, 68 विधानसभा सीटों पर करीब 400 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन बीजेपी के सीधे कांग्रेस से मुकाबला होने की संभावना है. कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी वाड्रा और सचिन पायलट ने मोर्चा संभाला है. उन्हें उम्मीद है कि जनता उनका साथ देगी और कांग्रेस की सरकार बनाएगी. प्रियंका की रैलियों में भीड़ भी देखने को मिली. उनका मानना है कि उन्हें अच्छा रिस्पॉंस मिला. वह केंद्र और राज्य सरकार पर लगातार हमले करती रहीं. एक प्रचारक के रूप में उनकी प्रतिष्ठा अब इस बात पर निर्भर करती है कि पार्टी हिमाचल प्रदेश में कैसा प्रदर्शन करती है. उन्होंने 3,700 किलोमीटर लंबी भारत जोड़ी यात्रा (बीजेवाई) पर अपने भाई राहुल गांधी की अनुपस्थिति में अभियान चलाने का भार उठाने का फैसला किया था.

कई मतदाताओं के लिए वास्तव में हैरान करने वाली बात यह है कि राहुल ने राज्य छोड़ने का फैसला क्यों किया ? हिमाचल प्रदेश में उनके आंदोलन पर नज़र रखने वाले एक सर्वेक्षणकर्ता के अनुसार भारत जोड़ो यात्रा के कारण हिमाचल में उनकी लोकप्रियता बढ़ गई है. साथ ही, यह पहला चुनाव है जो नवनिर्वाचित पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है, जिन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि अभियान का नेतृत्व करने वाला एक सामूहिक नेतृत्व हो. इसमें आनंद शर्मा जैसे असंतुष्ट कांग्रेसी नेताओं का भी पार्टी से बाहर निकलना और प्रचार करना शामिल है. जनमत सर्वेक्षणों और विपक्षी दलों में उत्साह के बावजूद शिमला में उथल-पुथल की संभावना के बावजूद, भाजपा मौजूदा मिसालों और कुछ मतदाताओं की उम्मीदों को उलट सकती है.

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Last Updated : Nov 16, 2022, 4:09 PM IST
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