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भावनात्मक स्वास्थ्य की बेहतरी के लिये प्रयास जरूरी

भावनात्मक अस्वस्थता हमारे शरीर में विभिन्न शारीरिक और मानसिक समस्याओं का केन बन सकती है। इसलिए बहुत जरूरी है की लोग अपने शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के साथ भावनात्मक स्वास्थ्य को लेकर भी सचेत रहें।

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भावनात्मक स्वास्थ्य
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Published : Aug 26, 2021, 12:23 PM IST

न्यूयॉर्क शहर के टौरो कॉलेज में व्यवहार चिकित्सा (ऑस्टियोपेटिक मेडिसिन) में सहायक प्रोफेसर (पी.एच.डी) और नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिक डॉ. जेफ गार्डेरे भावनात्मक स्वास्थ्य से संबंधित एक पत्र में बताते हैं की भावनात्मक स्वास्थ्य की देखभाल करना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि आपके भौतिक शरीर की देखभाल करना। यदि आपका भावनात्मक स्वास्थ्य असंतुलित है, तो आपको उच्च रक्तचाप, अल्सर, सीने में दर्द या कई अन्य शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है| वहीँ जब आप अपने बारे में अच्छे यानी भावनात्मक रूप से स्वस्थ महसूस करते हैं, तो जीवन के छोटे-बड़े उतार-चढ़ाव का सामना बेहतर तरीके से कर पाते हैं।

बेहतर भावनात्मक स्वास्थ्य की जरूरत को लेकर ETV भारत सुखीभवा को ज्यादा जानकारी देते हुए रिलेशनशीप काउन्सलर और मनोवैज्ञानिक डॉ. रचना सेठी बताती हैं की भावनात्मक स्वास्थ्य व्यक्ति की मानसिक स्थिति, उसके विचार, भावनाओं तथा व्यवहार से जुड़ा होता है। जिस तरह शारीरिक और मानसिक अस्वस्थता व्यक्ति के समक्ष सामान्य जीवन जीने में समस्याएं उत्पन्न करती है, उसी तरह व्यक्ति का भावनात्मक स्वास्थ्य न सिर्फ व्यक्ति की सोच और उसकी मनोदशा बल्कि उसके जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है। इसलिए बहुत जरूरी है की भावनात्मक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिये प्रयास किया जाये। डॉ. रचना के साथ बातचीत के आधार पर हम अपने पाठकों के साथ कुछ सुझाव साँझा कर रहे हैं, जिन्हे अपनाकर न सिर्फ आप भावनात्मक स्वास्थ्य को बेहतर बल्कि जीवन को सुखद बनाया जा सकता है।

  • दोस्त बनाएं और उनके साथ समय बिताएं

हमारे दोस्त हमारे लिये उस स्तम्भ की तरह होते हैं जो हर परिस्तिथि में हमें स्नेह, संबल और सहारा देते हैं। इसलिए बहुत जरूरी है की हमारे पास मित्रों और परिवार का एक सहायता समूह हो, जिनसे हम ज़रूरत पड़ने पर अपनी समस्याएं, मन की पीड़ा, अपनी खुशी और दुख बाँट सकें और यह महसूस कर सकें की हम अकेले नहीं हैं।

  • अनजाने डर को करें दूर

हमारे भावनात्मक स्वास्थ्य को अनिश्चितता, भविष्य की चिंता और कुछ गलत होने का डर काफी प्रभावित करता है। इसलिए बहुत जरूरी है की अपने डर को पहचाने और उसे दूर करने के लिये हर संभव प्रयास करें।

  • शरीर, मन और भावनाओं को दुरुस्त रखेगा नियमित व्यायाम

भावनात्मक अस्वस्थता का सबसे ज्यादा असर हमारे मूड पर पड़ता है। व्यवहार में चिड़चिड़ापन, गुस्से पर नियंत्रण ना होना, कुछ भी ना करने की इच्छा जैसे बहुत से असर हैं जो शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक अस्वस्थता के परिणाम के रूप में हमारे व्यवहार पर नजर आते हैं। ऐसे में नियमित व्यायाम काफी फायदा कर सकता है। नियमित व्यायाम के शरीर और मन पर प्रभाव स्वरूप ना सिर्फ स्वास्थ्य बेहतर होता है, किन्तु जीवन में अनुशासन आता है, आवेगों व उद्वेगों पर नियंत्रण रखने की क्षमता बढ़ती है और तनाव प्रबंधन में मदद मिलती है।

  • मूड को खुशनुमा बनाने में सेक्स भी होता है मददगार

आमतौर पर वयस्क लोगों में अलग-अलग कारणों से भावनात्मक उथल-पुथल ज्यादा देखने में आती है। ऐसे में साथी के साथ अंतरंगता या सेक्स संबंध उनके भावनात्मक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सक्षम होते हैं। इससे न सिर्फ तनाव दूर होता है, मन प्रसन्न होता है साथ ही आत्मविश्वास भी बढ़ता है।

  • हॉबी को भी समय दें

हॉबी होने के संज्ञानात्मक लाभों के अलावा स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं। यदि हम अपनी दिनचर्या का कुछ समय अपने शौक पूरे करने में बिताते हैं, तो सोच में सकरात्मकता और जीवन में खुशी, संतुष्टि, तथा आत्मविश्वास बढ़ने में काफी मदद मिलती है। विशेषकर रचनात्मकता शौक के लिये समय निकालने से मूड बेहतर होता है व घबराहट कम हो जाती है, साथ ही संज्ञानात्मक कार्य गतिविधियां बढ़ जाती हैं और पुरानी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है।

  • संयम में रहकर स्वस्थ खाएं और पिएं

वैसे तो चाहे भोजन या और कोई आदत हो, अतिरेकता सबकी बुरी होती है। लेकिन यदि संयम और अनुशासन के साथ शौक का मजा लिया जाय तो वह मूड को खुशनुमा रखने में मदद करता है। यहाँ तक की नियंत्रित मात्रा में शराब भी तनाव कम करने में मददगार हो सकती है। वहीं सीमित मात्रा में जायका बदलने के लिये कभी-कभी बाहर का चटपटा खाना भी मन को प्रसन्न करता है।

  • तनाव दूर करने में मददगार- ध्यान व योग

ध्यान व योग जैसी गतिविधियाँ तनाव प्रबंधन के लिए प्रभावी होती हैं। इससे रक्तचाप नियंत्रित होता है, व्यवहार में उद्वेग या व्याकुलता कम होती है, तथा तनाव जनित सिरदर्द, घाव, अनिद्रा, मांशपेशियों एवं जोड़ों के दर्द से राहत मिलती है। दरअसल ध्यान व योग के दौरान शरीर में सेरोटोनिन हार्मोन का अधिक उत्पादन होता है। जिससे मन में खुशी का भाव बढ़ता है, प्रतिरक्षा तंत्र में सुधार आता है। जब भी आप व्यग्र, अस्थिर और भावनात्मक रूप से परेशान होते हैं तब ध्यान आपको शांत करता है।

  • पर्याप्त नींद लें

जो लोग अच्छी रात की नींद लेते हैं वे अधिक ऊर्जा के साथ जागते हैं, बेहतर तरीके से सभी कार्य करने में सक्षम होते हैं। यदि आप अत्यधिक थके हुए हैं, तो हर कार्य और जिम्मेदारी अतिरंजित लग सकती है, ऐसे में छोटी-छोटी समस्याएं भी बड़ी लगने लगेंगी।

  • ना कहना सीखें

यदि आप अपनी क्षमता से अधिक कोई भी कार्य करने की कोशिश करते हैं, तो आप केवल निराश और तनावग्रस्त होंगे। अगर कोई आपसे कुछ ऐसा करने के लिए कहता है जो आप बिल्कुल नहीं कर सकते, तो उसे साफ और दृढ़ता से ना कहें।

पढ़ें: भावनात्मक स्वास्थ्य को बेहतर करती है “इ.एफ.टी”

न्यूयॉर्क शहर के टौरो कॉलेज में व्यवहार चिकित्सा (ऑस्टियोपेटिक मेडिसिन) में सहायक प्रोफेसर (पी.एच.डी) और नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिक डॉ. जेफ गार्डेरे भावनात्मक स्वास्थ्य से संबंधित एक पत्र में बताते हैं की भावनात्मक स्वास्थ्य की देखभाल करना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि आपके भौतिक शरीर की देखभाल करना। यदि आपका भावनात्मक स्वास्थ्य असंतुलित है, तो आपको उच्च रक्तचाप, अल्सर, सीने में दर्द या कई अन्य शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है| वहीँ जब आप अपने बारे में अच्छे यानी भावनात्मक रूप से स्वस्थ महसूस करते हैं, तो जीवन के छोटे-बड़े उतार-चढ़ाव का सामना बेहतर तरीके से कर पाते हैं।

बेहतर भावनात्मक स्वास्थ्य की जरूरत को लेकर ETV भारत सुखीभवा को ज्यादा जानकारी देते हुए रिलेशनशीप काउन्सलर और मनोवैज्ञानिक डॉ. रचना सेठी बताती हैं की भावनात्मक स्वास्थ्य व्यक्ति की मानसिक स्थिति, उसके विचार, भावनाओं तथा व्यवहार से जुड़ा होता है। जिस तरह शारीरिक और मानसिक अस्वस्थता व्यक्ति के समक्ष सामान्य जीवन जीने में समस्याएं उत्पन्न करती है, उसी तरह व्यक्ति का भावनात्मक स्वास्थ्य न सिर्फ व्यक्ति की सोच और उसकी मनोदशा बल्कि उसके जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है। इसलिए बहुत जरूरी है की भावनात्मक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिये प्रयास किया जाये। डॉ. रचना के साथ बातचीत के आधार पर हम अपने पाठकों के साथ कुछ सुझाव साँझा कर रहे हैं, जिन्हे अपनाकर न सिर्फ आप भावनात्मक स्वास्थ्य को बेहतर बल्कि जीवन को सुखद बनाया जा सकता है।

  • दोस्त बनाएं और उनके साथ समय बिताएं

हमारे दोस्त हमारे लिये उस स्तम्भ की तरह होते हैं जो हर परिस्तिथि में हमें स्नेह, संबल और सहारा देते हैं। इसलिए बहुत जरूरी है की हमारे पास मित्रों और परिवार का एक सहायता समूह हो, जिनसे हम ज़रूरत पड़ने पर अपनी समस्याएं, मन की पीड़ा, अपनी खुशी और दुख बाँट सकें और यह महसूस कर सकें की हम अकेले नहीं हैं।

  • अनजाने डर को करें दूर

हमारे भावनात्मक स्वास्थ्य को अनिश्चितता, भविष्य की चिंता और कुछ गलत होने का डर काफी प्रभावित करता है। इसलिए बहुत जरूरी है की अपने डर को पहचाने और उसे दूर करने के लिये हर संभव प्रयास करें।

  • शरीर, मन और भावनाओं को दुरुस्त रखेगा नियमित व्यायाम

भावनात्मक अस्वस्थता का सबसे ज्यादा असर हमारे मूड पर पड़ता है। व्यवहार में चिड़चिड़ापन, गुस्से पर नियंत्रण ना होना, कुछ भी ना करने की इच्छा जैसे बहुत से असर हैं जो शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक अस्वस्थता के परिणाम के रूप में हमारे व्यवहार पर नजर आते हैं। ऐसे में नियमित व्यायाम काफी फायदा कर सकता है। नियमित व्यायाम के शरीर और मन पर प्रभाव स्वरूप ना सिर्फ स्वास्थ्य बेहतर होता है, किन्तु जीवन में अनुशासन आता है, आवेगों व उद्वेगों पर नियंत्रण रखने की क्षमता बढ़ती है और तनाव प्रबंधन में मदद मिलती है।

  • मूड को खुशनुमा बनाने में सेक्स भी होता है मददगार

आमतौर पर वयस्क लोगों में अलग-अलग कारणों से भावनात्मक उथल-पुथल ज्यादा देखने में आती है। ऐसे में साथी के साथ अंतरंगता या सेक्स संबंध उनके भावनात्मक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सक्षम होते हैं। इससे न सिर्फ तनाव दूर होता है, मन प्रसन्न होता है साथ ही आत्मविश्वास भी बढ़ता है।

  • हॉबी को भी समय दें

हॉबी होने के संज्ञानात्मक लाभों के अलावा स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं। यदि हम अपनी दिनचर्या का कुछ समय अपने शौक पूरे करने में बिताते हैं, तो सोच में सकरात्मकता और जीवन में खुशी, संतुष्टि, तथा आत्मविश्वास बढ़ने में काफी मदद मिलती है। विशेषकर रचनात्मकता शौक के लिये समय निकालने से मूड बेहतर होता है व घबराहट कम हो जाती है, साथ ही संज्ञानात्मक कार्य गतिविधियां बढ़ जाती हैं और पुरानी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है।

  • संयम में रहकर स्वस्थ खाएं और पिएं

वैसे तो चाहे भोजन या और कोई आदत हो, अतिरेकता सबकी बुरी होती है। लेकिन यदि संयम और अनुशासन के साथ शौक का मजा लिया जाय तो वह मूड को खुशनुमा रखने में मदद करता है। यहाँ तक की नियंत्रित मात्रा में शराब भी तनाव कम करने में मददगार हो सकती है। वहीं सीमित मात्रा में जायका बदलने के लिये कभी-कभी बाहर का चटपटा खाना भी मन को प्रसन्न करता है।

  • तनाव दूर करने में मददगार- ध्यान व योग

ध्यान व योग जैसी गतिविधियाँ तनाव प्रबंधन के लिए प्रभावी होती हैं। इससे रक्तचाप नियंत्रित होता है, व्यवहार में उद्वेग या व्याकुलता कम होती है, तथा तनाव जनित सिरदर्द, घाव, अनिद्रा, मांशपेशियों एवं जोड़ों के दर्द से राहत मिलती है। दरअसल ध्यान व योग के दौरान शरीर में सेरोटोनिन हार्मोन का अधिक उत्पादन होता है। जिससे मन में खुशी का भाव बढ़ता है, प्रतिरक्षा तंत्र में सुधार आता है। जब भी आप व्यग्र, अस्थिर और भावनात्मक रूप से परेशान होते हैं तब ध्यान आपको शांत करता है।

  • पर्याप्त नींद लें

जो लोग अच्छी रात की नींद लेते हैं वे अधिक ऊर्जा के साथ जागते हैं, बेहतर तरीके से सभी कार्य करने में सक्षम होते हैं। यदि आप अत्यधिक थके हुए हैं, तो हर कार्य और जिम्मेदारी अतिरंजित लग सकती है, ऐसे में छोटी-छोटी समस्याएं भी बड़ी लगने लगेंगी।

  • ना कहना सीखें

यदि आप अपनी क्षमता से अधिक कोई भी कार्य करने की कोशिश करते हैं, तो आप केवल निराश और तनावग्रस्त होंगे। अगर कोई आपसे कुछ ऐसा करने के लिए कहता है जो आप बिल्कुल नहीं कर सकते, तो उसे साफ और दृढ़ता से ना कहें।

पढ़ें: भावनात्मक स्वास्थ्य को बेहतर करती है “इ.एफ.टी”

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