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कार्तिक पूर्णिमा पर काशी के घाटों पर हुई गंगा पुत्र भीष्म की पूजा

कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा में डुबकी लगाकर पुण्य के भागी बनने को हर कोई आतुर होता है. इस मौके पर धर्म नगरी वाराणसी में गंगापुत्र भीष्म की पूजा की जाती है.

काशी के घाटों पर हुआ गंगा पुत्र भीष्म की पूजा.
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Published : Nov 12, 2019, 10:14 AM IST

वाराणसी: शिव की नगरी काशी में एकादशी के बाद 5 दिन यानी कार्तिक पूर्णिमा तक गंगापुत्र भीष्म की पूजा की जाती है. भीष्म गंगापुत्र हैं. लिहाजा घाट किनारे मिट्टी की अस्थाई बनी मूर्ति को आकार दिया जाता है. सुबह सवेरे गंगा स्नान के बाद महिलाएं पूजन करती हैं.

काशी के घाटों पर हुआ गंगा पुत्र भीष्म की पूजा.

मान्यता के अनुसार ऐसा करने से तमाम पूर्ण लाभ प्राप्त होता है. बनारस की केदार घाट, अस्सी घाट, रामघाट, पांच घाट के किनारे गंगापुत्र भीष्म की प्रतिमा को गंगा माटी से आकार दिया गया. जो कार्तिक मास में गंगा स्नान नहीं कर पाते, वह पंचक के पांच दिन स्नान और भीष्म दर्शन कर पूरे मास का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं. इसके लिए भीष्म के अलग-अलग शरीर के अंगों के छूने से अलग-अलग फल की प्राप्ति होती है.

ये भी पढ़ें- कार्तिक पूर्णिमा पर काशी के घाटों पर उमड़ा जनसैलाब, श्रद्धालुओं ने गंगा में लगाई आस्था की डुबकी

विमला देवी ने बताया यह भीष्म की प्रतिमा है. श्रद्धालु एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक गंगा स्नान करते हैं. विभिन्न घाटों पर भीष्म की पूजा करते हैं. मान्यता यह है कि पूजा करने से और इनके शरीर के विभिन्न अंगों का अलग से पूजा अलग-अलग वरदान मिलते हैं. एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक स्नान के बाद भीष्म की पूजा करने से फल की प्राप्ति होती है.

वाराणसी: शिव की नगरी काशी में एकादशी के बाद 5 दिन यानी कार्तिक पूर्णिमा तक गंगापुत्र भीष्म की पूजा की जाती है. भीष्म गंगापुत्र हैं. लिहाजा घाट किनारे मिट्टी की अस्थाई बनी मूर्ति को आकार दिया जाता है. सुबह सवेरे गंगा स्नान के बाद महिलाएं पूजन करती हैं.

काशी के घाटों पर हुआ गंगा पुत्र भीष्म की पूजा.

मान्यता के अनुसार ऐसा करने से तमाम पूर्ण लाभ प्राप्त होता है. बनारस की केदार घाट, अस्सी घाट, रामघाट, पांच घाट के किनारे गंगापुत्र भीष्म की प्रतिमा को गंगा माटी से आकार दिया गया. जो कार्तिक मास में गंगा स्नान नहीं कर पाते, वह पंचक के पांच दिन स्नान और भीष्म दर्शन कर पूरे मास का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं. इसके लिए भीष्म के अलग-अलग शरीर के अंगों के छूने से अलग-अलग फल की प्राप्ति होती है.

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विमला देवी ने बताया यह भीष्म की प्रतिमा है. श्रद्धालु एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक गंगा स्नान करते हैं. विभिन्न घाटों पर भीष्म की पूजा करते हैं. मान्यता यह है कि पूजा करने से और इनके शरीर के विभिन्न अंगों का अलग से पूजा अलग-अलग वरदान मिलते हैं. एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक स्नान के बाद भीष्म की पूजा करने से फल की प्राप्ति होती है.

Intro: शिव की नगरी काशी, जहां तमाम तीज पर्व के बीच एकादशी के अगले 5 दिन यानी कार्तिक पूर्णिमा तक मां गंगापुत्र भीष्म की पूजा की जाती है। भीष्म गंगापुत्र है लिहाजा घाट किनारे मिट्टी की अस्थाई बनी मूर्ति को आकार दिया जाता है।सुबह सवेरे गंगा स्नान के बाद श्रद्धालु महिलाए पूजन करती है।


Body: मान्यता के अनुसार ऐसा करने से तमाम पूर्ण लाभ प्राप्त होता है। बनारस की केदार घाट,अस्सी घाट,रामघाट,पांच गंगा घाट के किनारे गंगापुत्र भीष्म की प्रतिमा को गंगा माटी से आकर दिया गया। भीष्म पितामह को भीमसेन भी कहा जाता है। जो कार्तिक मास में गंगा स्नान नहीं कर पाते। वे पंचक के पाँच दिन स्नान और भीष्म दर्शन का पूरे मास का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए भीष्म के अलग-अलग शरीर के अंगो के छूने से अलग-अलग फल की प्राप्ति होती है।


Conclusion: विमला देवी ने बताया यह भीम सेन की प्रतिमा है।जो लोग एकादशी से लेकर आज कार्तिक पूर्णिमा तक गंगा स्नान करते हैं। विभिन्न घाटों पर व भीमसेन की पूजा करते हैं मान्यता यह है कि इनके पूजा करने से और इनके शरीर के विभिन्न अंगों का अलग से पूजा करके उस पर धूप दीप फूल पत्र अर्पित करने से अलग-अलग वरदान मिलते हैं। एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक जो भी श्रद्धालु स्नान करता है उन्हें भीमसेन की पूजा करनी चाहिए अन्यथा उन्हें स्नान का फल नहीं मिलता।

बाईट :-- विमला देवी,श्रद्धालु

आशुतोष उपाध्याय

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