वाराणसीः नवरात्र के चौथे दिन भक्त माता के चौथे रूप "मां कूष्मांडा" की पूजा का विधान हैं. देवी कूष्मांडा को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है, क्योंकि देवी कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं. इनमें कमंडल, धनुष-बाण, कमल पुष्प, शंख चक्र, गदा, हस्त और सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला है. मां के हाथों में इन सभी चीजों के अलावा कलश भी होता है, जो असुरों के रक्त से भरा होता है. मां कूष्मांडा का वाहन सिंह है और इनके स्वरूप की पूजा करने से भय से मुक्ति मिलती है.
संसार में फैले अंधकार को दूर किया
शास्त्रों के अनुसार, मां कूष्मांडा ने अपनी दिव्य मुस्कान से संसार में फैले अंधकार को दूर किया था. चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए माता कूष्मांडा को सभी दुखों को हरने वाली मां भी कहा जाता है. मां दुर्गा का यह इकलौता ऐसा रूप है, जिन्हें सूर्यलोक में रहने की शक्ति प्राप्त है.
शुभफलदायी मां कूष्मांडा
मां कूष्मांडा की पूजा करने से सभी भक्तों के कष्ट दूर होते हैं. कहा जाता है कि मां कूष्मांडा को कुम्हड़े की बलि अतिप्रिय है. इसलिए नवरात्र के चौथे दिन सुबह सवेरे उठकर स्नान कर हरे रंग के वस्त्र धारण करें. मां की मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाएं और माता को तिलक लगाएं, फिर देवी को हरी इलायची, सौंफ और कुम्हड़े का भोग लगाकर मां कूष्मांडा के मंत्र का जाप 108 बार करें. मां कूष्मांडा की आरती उतारें और किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं या दान दें. इससे मां प्रसन्न होकर मनोवांछित फल देती हैं.