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नवरात्र के चौथे दिन मां कुष्मांडा का ऐसे करें पूजन

शुक्रवार को नवरात्र का चौथा दिन है. आज शक्ति के कुष्मांडा रूप के पूजन का विधान है. माता कुष्मांडा के दर्शन मात्र से ही भय से मुक्ति मिलती है. देवी कुष्मांडा को अष्टभुजी भी कहा जाता है. वाराणसी के ज्योतिषाचार्य शशि शेखर त्रिवेदी के अनुसार सिंह पर सवार माता कुष्मांडा की उपासना करने से भय से मुक्ति मिलती है.

मां कुष्मांडा.
मां कुष्मांडा.
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Published : Apr 15, 2021, 9:35 PM IST

Updated : Apr 16, 2021, 6:52 AM IST

वाराणसी: शुक्रवार को नवरात्र का चौथा दिन है. आज शक्ति के कुष्मांडा रूप के पूजन का विधान है. माता कुष्मांडा के दर्शन मात्र से ही भय से मुक्ति मिलती है. देवी कुष्मांडा को अष्टभुजी भी कहा जाता है. इनके हाथों में कमंडल, धनुष-बाण, कमल, पुष्प, शंख चक्र, गदा, हस्त और सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला है. इनके अलावा मां के हाथों में एक कलश भी विराजमान होता है, जिसमें असुरों का रक्त भरा होता है.

ज्योतिषाचार्य शशि शेखर त्रिवेदी.
शुभफलदायी मां कुष्मांडा

काशी के ज्योतिषाचार्य शशि शेखर त्रिवेदी के अनुसार सिंह पर सवार माता कुष्मांडा की उपासना करने से भय से मुक्ति मिलती है. माता को कुष्मांड का भोग अतिप्रिय है और इन्हें कुष्मांड (कोहड़ा) की बलि दी जाती है. इसके कारण माता के इस स्वरूप का नाम कुष्मांडा पड़ा. माता को स्वेत पुष्प और कुष्मांड का भोग लगाने से मां प्रसन्न होकर भक्त को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं. चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए माता कुष्मांडा को सभी दुखों से हरने वाली मां भी कहा जाता है. मां का ये इकलौता स्वरूप है, जिन्हें सूर्यलोक में रहने की शक्ति प्राप्त है.

पढ़ें: चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन भक्तों ने किए माता चंद्रघंटा के दर्शन

ऐसे करें पूजा, मिलेगा मनोवांछित फल

पं शशि शेखर त्रिवेदी ने बताया कि नवरात्र के चौथे दिन यदि मनुष्य सुबह स्नान ध्यान से निर्वित होकर हरे रंग का वस्त्र धारण करें और माता की मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाएं और माता को तिलक करें. माता कुष्मांडा को भोग में हरि इलाइची, सौंफ और कुम्भडा अतिप्रिय है, इसलिए इनका भोग लगाकर माता के मंत्र का 108 बार जप करें और किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान दें. इससे मां प्रसन्न होकर मनोवांक्षित फल देती हैं.

वाराणसी: शुक्रवार को नवरात्र का चौथा दिन है. आज शक्ति के कुष्मांडा रूप के पूजन का विधान है. माता कुष्मांडा के दर्शन मात्र से ही भय से मुक्ति मिलती है. देवी कुष्मांडा को अष्टभुजी भी कहा जाता है. इनके हाथों में कमंडल, धनुष-बाण, कमल, पुष्प, शंख चक्र, गदा, हस्त और सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला है. इनके अलावा मां के हाथों में एक कलश भी विराजमान होता है, जिसमें असुरों का रक्त भरा होता है.

ज्योतिषाचार्य शशि शेखर त्रिवेदी.
शुभफलदायी मां कुष्मांडा

काशी के ज्योतिषाचार्य शशि शेखर त्रिवेदी के अनुसार सिंह पर सवार माता कुष्मांडा की उपासना करने से भय से मुक्ति मिलती है. माता को कुष्मांड का भोग अतिप्रिय है और इन्हें कुष्मांड (कोहड़ा) की बलि दी जाती है. इसके कारण माता के इस स्वरूप का नाम कुष्मांडा पड़ा. माता को स्वेत पुष्प और कुष्मांड का भोग लगाने से मां प्रसन्न होकर भक्त को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं. चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए माता कुष्मांडा को सभी दुखों से हरने वाली मां भी कहा जाता है. मां का ये इकलौता स्वरूप है, जिन्हें सूर्यलोक में रहने की शक्ति प्राप्त है.

पढ़ें: चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन भक्तों ने किए माता चंद्रघंटा के दर्शन

ऐसे करें पूजा, मिलेगा मनोवांछित फल

पं शशि शेखर त्रिवेदी ने बताया कि नवरात्र के चौथे दिन यदि मनुष्य सुबह स्नान ध्यान से निर्वित होकर हरे रंग का वस्त्र धारण करें और माता की मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाएं और माता को तिलक करें. माता कुष्मांडा को भोग में हरि इलाइची, सौंफ और कुम्भडा अतिप्रिय है, इसलिए इनका भोग लगाकर माता के मंत्र का 108 बार जप करें और किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान दें. इससे मां प्रसन्न होकर मनोवांक्षित फल देती हैं.

Last Updated : Apr 16, 2021, 6:52 AM IST
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