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वाराणसी: अनोखी होती है यहां की रामलीला, 31 दिनों तक होता है मंचन - रामनगर किला में विश्व प्रसिद्ध रामलीला का आयोजन

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित रामनगर किला में विश्व प्रसिद्ध रामलीला का आयोजन किया जा रहा है. यह रामलीला अपने आप में बेहद खास होता है क्योंकि इस कार्यक्रम में लाइट और साउंड बाक्स का प्रयोग न करके लोग ढोल-मजीरा के साथ गाना-बजाना करते हैं और साथ ही दूसरी ओर रामलीला चलती रहती है.

रामलीला का आयोजन
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Published : Oct 11, 2019, 2:12 PM IST

Updated : Oct 11, 2019, 3:29 PM IST

वाराणसी: काशी सभ्यता और संस्कृति का शहर है ऐसे में आज एक-दो नहीं बल्कि लगभग 165 वर्ष पुरानी विश्व प्रसिद्ध रामनगर के किला में रामलीला का आयोजन किया जा रहा है. यहां का रामलीला अपने आप में बेहद खास है. यह रामलीला 1835 ई. में शुरू की गई थी और अनवरत अपने उसी स्थान और उसी समय पर होती आ रही है. इस परंपरा को आने वाली हर पीढ़ी संजोकर रखती है.

रामलीला का आयोजन

'गलती करना मानव का स्वभाव है, ऐसा कोई भी नहीं है जिसने कभी कोई गलती न की हो'.

रामायण
रामनगर में शुरू हुई रामलीला
विश्व प्रसिद्ध रामलीला कई मायनों में खास है. आज भी इस रामलीला में लाइट और साउंड का प्रयोग नहीं किया जाता है. पात्र को 2 महीने पहले से शिक्षा दी जाती है जिससे कि लोग इसके और आकर्षित हो सके. इस लीला में रामचरितमानस के दोहे को पढ़ा जाता है और साथ ही साथ लीला में भी दिखाई जाती है. यह दोहा वहां उपस्थित सभी लोग एक स्वर में पढ़ते है. विश्व प्रसिद्ध रामलीला अब अपने अंतिम दौर में हैं. यह अनंत चतुर्दशी से शुरू होकर 31 दिन तक चलती है और पूर्णमासी के दिन इसकी समाप्ति की जाती है.

अपना जीवन त्याग देना कोई अच्छा फल नहीं देता, जीना जारी रखना आनंद और प्रसन्नता का मार्ग है.

रामायण
31 दिन तक रहते है भगवान में लीन
इस 31 दिनों तक चलने वाले रामलीला में लोग हाथों में ढोल-मजीरा लेकर रामायण पढ़ते हैं. इस लीला में एक ऐसा परिवार भी उपस्थित रहता है जो कि चौथी पीढ़ी इस आधुनिकता के युग में और भागदौड़ की जिंदगी में अपने इस परंपरा को संजो कर रखा है. ऐसे तो बहुत से लोग हैं जो रामायण का पाठ करते हैं लेकिन वह परिवार इसलिए खास है क्योंकि तीन पीढ़ी एक साथ बैठकर रामायण का पाठ करती है. यह परिवार बनारस का जौहरी परिवार है जो अपना सारा काम छोड़ कर भगवान के दर्शन में 31 दिनों तक लीन हो जाते हैं.

इसे भी पढ़ें:- वाराणसी के राघवेंद्र शर्मा इसरो में देंगे संगीत की प्रस्तुति, पीएम भी रहेंगे मौजूद

वे जो हेमशा सच्चाई का पालन करते हैं गलत वचन नहीं देते. अपना वचन निभाना, निश्चित रूप से एक महान व्यक्ति की निशानी है. -रामायण


वर्षों से चली आ रही है यह परम्परा
वहीं संजीव जौहरी बताते हैं कि यह उनकी चौथी पीढ़ी है. रामायण पढ़कर अपने पिता, दादा की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. सारा काम छोड़कर वह भगवान की अराधना में लीन हो जाते है. उनकी कहना है कि यदि इस पुरानी परंपरा को हम नहीं आगे बढ़ाएंगे तो कौन बढ़ाएगा. पिछले 20 सालों से लगातार विश्व प्रसिद्ध रामलीला में रामायण का पाठ करते आ रहे हैं. संजीव कहते है कि इस रामलीला में आनंद नहीं बल्कि परमानंद की प्राप्ति होती है और भगवान का साक्षात दर्शन होता है.

बच्चों के लिए उस कर्ज को चुकाना मुश्किल है जो उनके माता-पिता ने उन्हें बड़ा करने के लिए किया है. - रामायण

मधुर संगीतों से गूंज उठती है किला
लखनलाल जौहरी बताते हैं कि वह अपने पिताजी के साथ आते थे. आज वह अपने बेटों के साथ रामायण का पाठ करने आ रहे हैं. पिछले 60 वर्षों से 31 दिनों तक भगवान के दर्शन के लिए आते हैं और गीत-संगीत के साथ रामायण का पाठ करते हैं. इस रामलीला के कार्यक्रम से 31 दिनों तक वहां का वातावरण काफी अच्छा बना रहता है और साथ ही किला संगीत के ध्वनि सो गूंज उठती है.

केवल डरपोक और कमजोर ही चीजों को भाग्य पर छोड़ते हैं लेकिन जो मजबूत और खुद पर भरोसा करने वाले होते हैं वे कभी भी नियति या भाग्य पर निर्भर नही करते.

रामायण

वाराणसी: काशी सभ्यता और संस्कृति का शहर है ऐसे में आज एक-दो नहीं बल्कि लगभग 165 वर्ष पुरानी विश्व प्रसिद्ध रामनगर के किला में रामलीला का आयोजन किया जा रहा है. यहां का रामलीला अपने आप में बेहद खास है. यह रामलीला 1835 ई. में शुरू की गई थी और अनवरत अपने उसी स्थान और उसी समय पर होती आ रही है. इस परंपरा को आने वाली हर पीढ़ी संजोकर रखती है.

रामलीला का आयोजन

'गलती करना मानव का स्वभाव है, ऐसा कोई भी नहीं है जिसने कभी कोई गलती न की हो'.

रामायण
रामनगर में शुरू हुई रामलीला
विश्व प्रसिद्ध रामलीला कई मायनों में खास है. आज भी इस रामलीला में लाइट और साउंड का प्रयोग नहीं किया जाता है. पात्र को 2 महीने पहले से शिक्षा दी जाती है जिससे कि लोग इसके और आकर्षित हो सके. इस लीला में रामचरितमानस के दोहे को पढ़ा जाता है और साथ ही साथ लीला में भी दिखाई जाती है. यह दोहा वहां उपस्थित सभी लोग एक स्वर में पढ़ते है. विश्व प्रसिद्ध रामलीला अब अपने अंतिम दौर में हैं. यह अनंत चतुर्दशी से शुरू होकर 31 दिन तक चलती है और पूर्णमासी के दिन इसकी समाप्ति की जाती है.

अपना जीवन त्याग देना कोई अच्छा फल नहीं देता, जीना जारी रखना आनंद और प्रसन्नता का मार्ग है.

रामायण
31 दिन तक रहते है भगवान में लीन
इस 31 दिनों तक चलने वाले रामलीला में लोग हाथों में ढोल-मजीरा लेकर रामायण पढ़ते हैं. इस लीला में एक ऐसा परिवार भी उपस्थित रहता है जो कि चौथी पीढ़ी इस आधुनिकता के युग में और भागदौड़ की जिंदगी में अपने इस परंपरा को संजो कर रखा है. ऐसे तो बहुत से लोग हैं जो रामायण का पाठ करते हैं लेकिन वह परिवार इसलिए खास है क्योंकि तीन पीढ़ी एक साथ बैठकर रामायण का पाठ करती है. यह परिवार बनारस का जौहरी परिवार है जो अपना सारा काम छोड़ कर भगवान के दर्शन में 31 दिनों तक लीन हो जाते हैं.

इसे भी पढ़ें:- वाराणसी के राघवेंद्र शर्मा इसरो में देंगे संगीत की प्रस्तुति, पीएम भी रहेंगे मौजूद

वे जो हेमशा सच्चाई का पालन करते हैं गलत वचन नहीं देते. अपना वचन निभाना, निश्चित रूप से एक महान व्यक्ति की निशानी है. -रामायण


वर्षों से चली आ रही है यह परम्परा
वहीं संजीव जौहरी बताते हैं कि यह उनकी चौथी पीढ़ी है. रामायण पढ़कर अपने पिता, दादा की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. सारा काम छोड़कर वह भगवान की अराधना में लीन हो जाते है. उनकी कहना है कि यदि इस पुरानी परंपरा को हम नहीं आगे बढ़ाएंगे तो कौन बढ़ाएगा. पिछले 20 सालों से लगातार विश्व प्रसिद्ध रामलीला में रामायण का पाठ करते आ रहे हैं. संजीव कहते है कि इस रामलीला में आनंद नहीं बल्कि परमानंद की प्राप्ति होती है और भगवान का साक्षात दर्शन होता है.

बच्चों के लिए उस कर्ज को चुकाना मुश्किल है जो उनके माता-पिता ने उन्हें बड़ा करने के लिए किया है. - रामायण

मधुर संगीतों से गूंज उठती है किला
लखनलाल जौहरी बताते हैं कि वह अपने पिताजी के साथ आते थे. आज वह अपने बेटों के साथ रामायण का पाठ करने आ रहे हैं. पिछले 60 वर्षों से 31 दिनों तक भगवान के दर्शन के लिए आते हैं और गीत-संगीत के साथ रामायण का पाठ करते हैं. इस रामलीला के कार्यक्रम से 31 दिनों तक वहां का वातावरण काफी अच्छा बना रहता है और साथ ही किला संगीत के ध्वनि सो गूंज उठती है.

केवल डरपोक और कमजोर ही चीजों को भाग्य पर छोड़ते हैं लेकिन जो मजबूत और खुद पर भरोसा करने वाले होते हैं वे कभी भी नियति या भाग्य पर निर्भर नही करते.

रामायण

Intro:बनारस मंदिर गली घाटो और सभ्यता और संस्कृति का शहर है ऐसे में हम आज आपको बताते है।एक-दो नहीं बल्कि लगभग 165 वर्ष पुरानी विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला में यह लीला अपने आप में बेहद खास है और हम कहे तो यह बनारस की परंपरा है कि यह लीला आज भी इतना लंबा सफर तय करके जीवित है। 1835 में शुरू हुई और रामलीला अनवरत अपने उसी स्थान और उसी समय पर होती आ रही है। परंपरा जब भी चलती है आने वाली पीढ़ियों जब उसे संजोकर रखता है तभी चलती है.


Body:रामनगर विश्व प्रसिद्ध रामलीला कई मायनों में खास है ईटीवी भारत आपको पहले ही बता चुका है 4 कोस की दूरी में या लीला संपन्न होती है आज भी इस लीला में लाइट और साउंड का प्रयोग नहीं होता पात्र को 2 महीने पहले से शिक्षा दी जाती है और लीला देखने वाले भी अनोखे होते हैं. इस लीला में एक और खास बात है राम चरित्र मानस के दोहे को पढ़ा जाता है और जो चीज दोहे में पढ़ा जाता है वही चीज लीला में दिखाई जाती है। जब अब यह दोहा पढ़ा जाता है तो कोई एक दो नहीं बल्कि जितने भी लोग वहां रामलीला देखने आते हैं जिन्हें हम नियमित कहते हैं यह सब लोग एक स्वर में दोहा पढ़ते हैं। विश्व प्रसिद्ध रामलीला अब अपने अंतिम दौर में हैं। अनंत चतुर्दशी से शुरू होकर 31 दिनों तक चलती है रामलीला पूर्णमासी को समाप्त होती है।

विश्व प्रसिद्ध रामलीला में कुछ लोग नियम ही कहे जाते हैं जो लोग नियम से रामलीला देखते हैं तो वहीं कुछ लोग रामायणी कहे जाते हैं रामायणी का अर्थ यह है कि यह लोग 31 दिनों तक चलने वाली भगवान श्री राम की भव्य लीला में प्रतिदिन अपने निश्चित समय पर रामायण का पाठ सस्वर में करते हैं हाथों में ढोल मजीरा लेकर रामायण पढ़ते हैं। आज हम आपको एक ऐसे परिवार से मिलाएंगे जिसकी चौथी पीढ़ी इस आधुनिकता के युग में इस आधुनिक भागदौड़ की जिंदगी में अपने इस परंपरा को संजो कर रखा है।

ऐसे तो बहुत से लोग हैं जो रामायण का पाठ करते हैं लेकिन इनमें इसलिए खास है कि जहां तीन पीढ़ी एक साथ बैठकर रामायण का पाठ करती है यह बनारस के हैं जौहरी परिवार है जो अपना सारा काम छोड़ कर भगवान के दर्शन में 31 दिनों तक रम जाते हैं।


Conclusion:संजीव जौहरी बताते हैं कि यह उनकी चौथी पीढ़ी रामायण पढ़ कर अपने बाप दादा की परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं यह सारा काम छोड़कर भगवान का दर्शन करते हैं यह मान्यता है कि इस पुरानी परंपरा को हम नहीं आगे बढ़ाएंगे तो कौन बनाएगा पिछले 20 सालों से लगातार विश्व प्रसिद्ध रामलीला में रामायण का पाठ करते हैं। संजीव कई अभी कहना या आनंद नहीं बल्कि परमानंद का प्राप्त होता है यहां भगवान का साक्षात दर्शन होता है।

बाईट:-- संजीव जौहरी, रामायणी

लखनलाल जौहरी बताते हैं कि वह अपने पिताजी के साथ आते थे आज वह अपने बेटों के साथ रामायण का पाठ करते हैं पिछले 60 वर्षों से 31 दिनों तक भगवान के दर्शन के लिए आते हैं और यहां पर गीत संगीत के साथ रामायण का पाठ करते हैं।

बाईट :-- लखनलाल जौहरी, रामायणी

नोट या खबर विश्वनाथ सुमन सर के निर्देश पर किया गया है एडिटिंग ऑफिस होगा

अशुतोष उपाध्याय
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Last Updated : Oct 11, 2019, 3:29 PM IST
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