वाराणसी: काशी सभ्यता और संस्कृति का शहर है ऐसे में आज एक-दो नहीं बल्कि लगभग 165 वर्ष पुरानी विश्व प्रसिद्ध रामनगर के किला में रामलीला का आयोजन किया जा रहा है. यहां का रामलीला अपने आप में बेहद खास है. यह रामलीला 1835 ई. में शुरू की गई थी और अनवरत अपने उसी स्थान और उसी समय पर होती आ रही है. इस परंपरा को आने वाली हर पीढ़ी संजोकर रखती है.
'गलती करना मानव का स्वभाव है, ऐसा कोई भी नहीं है जिसने कभी कोई गलती न की हो'.
रामायण
रामनगर में शुरू हुई रामलीला
विश्व प्रसिद्ध रामलीला कई मायनों में खास है. आज भी इस रामलीला में लाइट और साउंड का प्रयोग नहीं किया जाता है. पात्र को 2 महीने पहले से शिक्षा दी जाती है जिससे कि लोग इसके और आकर्षित हो सके. इस लीला में रामचरितमानस के दोहे को पढ़ा जाता है और साथ ही साथ लीला में भी दिखाई जाती है. यह दोहा वहां उपस्थित सभी लोग एक स्वर में पढ़ते है. विश्व प्रसिद्ध रामलीला अब अपने अंतिम दौर में हैं. यह अनंत चतुर्दशी से शुरू होकर 31 दिन तक चलती है और पूर्णमासी के दिन इसकी समाप्ति की जाती है.
अपना जीवन त्याग देना कोई अच्छा फल नहीं देता, जीना जारी रखना आनंद और प्रसन्नता का मार्ग है.
रामायण
31 दिन तक रहते है भगवान में लीन
इस 31 दिनों तक चलने वाले रामलीला में लोग हाथों में ढोल-मजीरा लेकर रामायण पढ़ते हैं. इस लीला में एक ऐसा परिवार भी उपस्थित रहता है जो कि चौथी पीढ़ी इस आधुनिकता के युग में और भागदौड़ की जिंदगी में अपने इस परंपरा को संजो कर रखा है. ऐसे तो बहुत से लोग हैं जो रामायण का पाठ करते हैं लेकिन वह परिवार इसलिए खास है क्योंकि तीन पीढ़ी एक साथ बैठकर रामायण का पाठ करती है. यह परिवार बनारस का जौहरी परिवार है जो अपना सारा काम छोड़ कर भगवान के दर्शन में 31 दिनों तक लीन हो जाते हैं.
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वे जो हेमशा सच्चाई का पालन करते हैं गलत वचन नहीं देते. अपना वचन निभाना, निश्चित रूप से एक महान व्यक्ति की निशानी है. -रामायण
वर्षों से चली आ रही है यह परम्परा
वहीं संजीव जौहरी बताते हैं कि यह उनकी चौथी पीढ़ी है. रामायण पढ़कर अपने पिता, दादा की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. सारा काम छोड़कर वह भगवान की अराधना में लीन हो जाते है. उनकी कहना है कि यदि इस पुरानी परंपरा को हम नहीं आगे बढ़ाएंगे तो कौन बढ़ाएगा. पिछले 20 सालों से लगातार विश्व प्रसिद्ध रामलीला में रामायण का पाठ करते आ रहे हैं. संजीव कहते है कि इस रामलीला में आनंद नहीं बल्कि परमानंद की प्राप्ति होती है और भगवान का साक्षात दर्शन होता है.
बच्चों के लिए उस कर्ज को चुकाना मुश्किल है जो उनके माता-पिता ने उन्हें बड़ा करने के लिए किया है. - रामायण
मधुर संगीतों से गूंज उठती है किला
लखनलाल जौहरी बताते हैं कि वह अपने पिताजी के साथ आते थे. आज वह अपने बेटों के साथ रामायण का पाठ करने आ रहे हैं. पिछले 60 वर्षों से 31 दिनों तक भगवान के दर्शन के लिए आते हैं और गीत-संगीत के साथ रामायण का पाठ करते हैं. इस रामलीला के कार्यक्रम से 31 दिनों तक वहां का वातावरण काफी अच्छा बना रहता है और साथ ही किला संगीत के ध्वनि सो गूंज उठती है.
केवल डरपोक और कमजोर ही चीजों को भाग्य पर छोड़ते हैं लेकिन जो मजबूत और खुद पर भरोसा करने वाले होते हैं वे कभी भी नियति या भाग्य पर निर्भर नही करते.
रामायण