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चैत्र नवरात्रि 2022ः काशी में इस जगह मां पार्वती ने त्यागा था काली रूप, गोरी होने के लिए की थी विशेष तपस्या... - Mata Parvati penance place

काशी में एक स्थान ऐसा भी है जहां मान्यता है कि वहां माता पार्वती ने रक्तबीज के संहार के बाद माता काली के रूप का परित्याग किया था. इसके बाद गौर वर्ण के लिए विशेष तपस्या भी की थी. चलिए आपको बताते हैं इसके बारे में. पेश है एक विशेष रिपोर्ट.

काशी में इसी स्थान पर माता पार्वती ने की थी विशेष तपस्या.
काशी में इसी स्थान पर माता पार्वती ने की थी विशेष तपस्या.
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Published : Apr 8, 2022, 7:50 PM IST

Updated : Apr 8, 2022, 7:56 PM IST

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी को बाबा विश्वनाथ की नगरी के नाम से जाना जाता है, लेकिन बाबा विश्वनाथ की नगरी में आदि शक्ति जगदंबा मां दुर्गा के कई ऐसे प्राचीन मंदिर हैं जो इतिहास में अपने अनोखेपन के लिए जाने जाते हैं. ऐसा ही आदि शक्ति मां काली का एक मंदिर वाराणसी के कालिका गली इलाके में स्थित है. माता का मंदिर अति प्राचीन है. जब काशी आनंदवन के नाम से विख्यात था तभी माता ने काशी में आकर यहां पर अपने उस रौद्र रूप को स्थापित किया था जिसने दुष्टों का संहार किया. जी हां, हम बात कर रहे हैं महाकाली की. महाकाली यानी मां का वह रौद्र रूप जिसमें धरती पर राक्षसों और दुष्टों के संहार के लिए इस रूप को धारण किया. माता पार्वती का यह रौद्र रूप संहार का प्रतीक माना जाता है. काशी का यह काली मंदिर पुरातन धार्मिक यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है जो काशी खंड में वर्णित है.


बड़ी बड़ी आंखें, लंबी जीभ और तेज और तपिश से पूरे शरीर का काला पड़ जाना, आंखों से तेज प्रकाश और अग्नि का निकलना, गले में मुंडमाला और राक्षसों के कटे हुए हाथ और अन्य अंग धारण किए मां काली का यह रौद्र रूप सनातन धर्म में सभी देवी देवताओं में सबसे विकराल माना जाता है. माता काली ने दुष्टों के संहार और राक्षस रक्तबीज के नाश के लिए इस रूप को धारण किया था. मां आदिशक्ति काली मंदिर के महंत सुरेंद्र नाथ तिवारी ने बताया कि काशी में विश्वनाथ मंदिर के निकट मां काली का यह प्राचीन मंदिर काशी में अनंत समय से मौजूद है. जब काशी को आनंदवन के नाम से भगवान भोलेनाथ ने स्थापित किया था उस वक्त काशी में माता पार्वती ने अपने काली रूप को छोड़ा था.

काशी में इसी स्थान पर माता पार्वती ने की थी विशेष तपस्या.

महंत सुरेंद्र तिवारी का कहना है धर्म ग्रंथों में वर्णित है कि जब माता काली अपने रौद्र रूप से वापस पार्वती के रूप में गई तो उनके गुस्से और तपिश की वजह से उनका रंग काला पड़ गया था. इसे लेकर भगवान भोलेनाथ कई बार उनको इस बात के लिए टोकते भी थे कि तुम पार्वती के रूप में आ तो गई हो लेकिन अभी भी काली हो. इस बात से मां नाराज होकर कैलाश छोड़कर काशी में आ गई और उन्होंने मिट्टी से भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग का निर्माण करके उनका पूजन शुरू किया.

भगवान भोलेनाथ उस पूजन से प्रसन्न होकर केदारेश्वर के रूप में प्रकट हुए और माता पार्वती को उनके पुराने रूप में वापस लाने का आशीर्वाद दिया. इसके बाद माता को गौरा के नाम से जाना गया, क्योंकि मां अपने काले रूप से निखर कर गोरी हो चुकी थी, लेकिन जब माता यहां से भोलेनाथ के साथ प्रस्थान करने लगी तो उनका काली का यह रूप काशी के इसी स्थान पर स्थापित हुआ और तभी से माता आदि शक्ति काली का यह मंदिर काशी में स्थापित है और नवरात्रों में सातवें दिन मां के इस रूप का दर्शन करने का विधान बताया गया है.

ये भी पढ़ेंः चैत्र नवरात्रि 2022: इस देवी शक्तिपीठ में पांडवों ने किया था विश्राम...ये है खासियत



माता काली के इस भव्य प्रतिमा में माता भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग अपने दोनों हाथों से पकड़े हुए हैं. यह स्वयंभू प्रतिमा तंत्र और साधना का बड़ा केंद्र मानी जाती है. माता काली के उपासक दूर-दूर से वाराणसी के इस प्राचीन काली मंदिर में आराधना अनुष्ठान करने के लिए पहुंचते हैं. यहां आने वाले भक्त भी मानते हैं कि माता से जो मुराद मांगी है वह पूरी जरूर होती है.

प्राचीन काली मंदिर अपने आप में महत्वपूर्ण इसलिए भी माना जाता है क्योंकि यहां पर नेत्र विकार उदर विकार की समस्या से परेशान लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. यहां के महंत का कहना है कि माता बड़े-बड़े नैनो वाली हैं इसलिए लोगों के आंखों की तकलीफ और पेट में होने वाली तकलीफ का विनाश करती हैं. माता के मंदिर परिसर में नीलगिरी सरस्वती माता का भी मंदिर है. इसके अतिरिक्त कई और देव विग्रह भी यहां पर विराजमान हैं जो अनादि काल से काशी में मौजूद हैं.

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वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी को बाबा विश्वनाथ की नगरी के नाम से जाना जाता है, लेकिन बाबा विश्वनाथ की नगरी में आदि शक्ति जगदंबा मां दुर्गा के कई ऐसे प्राचीन मंदिर हैं जो इतिहास में अपने अनोखेपन के लिए जाने जाते हैं. ऐसा ही आदि शक्ति मां काली का एक मंदिर वाराणसी के कालिका गली इलाके में स्थित है. माता का मंदिर अति प्राचीन है. जब काशी आनंदवन के नाम से विख्यात था तभी माता ने काशी में आकर यहां पर अपने उस रौद्र रूप को स्थापित किया था जिसने दुष्टों का संहार किया. जी हां, हम बात कर रहे हैं महाकाली की. महाकाली यानी मां का वह रौद्र रूप जिसमें धरती पर राक्षसों और दुष्टों के संहार के लिए इस रूप को धारण किया. माता पार्वती का यह रौद्र रूप संहार का प्रतीक माना जाता है. काशी का यह काली मंदिर पुरातन धार्मिक यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है जो काशी खंड में वर्णित है.


बड़ी बड़ी आंखें, लंबी जीभ और तेज और तपिश से पूरे शरीर का काला पड़ जाना, आंखों से तेज प्रकाश और अग्नि का निकलना, गले में मुंडमाला और राक्षसों के कटे हुए हाथ और अन्य अंग धारण किए मां काली का यह रौद्र रूप सनातन धर्म में सभी देवी देवताओं में सबसे विकराल माना जाता है. माता काली ने दुष्टों के संहार और राक्षस रक्तबीज के नाश के लिए इस रूप को धारण किया था. मां आदिशक्ति काली मंदिर के महंत सुरेंद्र नाथ तिवारी ने बताया कि काशी में विश्वनाथ मंदिर के निकट मां काली का यह प्राचीन मंदिर काशी में अनंत समय से मौजूद है. जब काशी को आनंदवन के नाम से भगवान भोलेनाथ ने स्थापित किया था उस वक्त काशी में माता पार्वती ने अपने काली रूप को छोड़ा था.

काशी में इसी स्थान पर माता पार्वती ने की थी विशेष तपस्या.

महंत सुरेंद्र तिवारी का कहना है धर्म ग्रंथों में वर्णित है कि जब माता काली अपने रौद्र रूप से वापस पार्वती के रूप में गई तो उनके गुस्से और तपिश की वजह से उनका रंग काला पड़ गया था. इसे लेकर भगवान भोलेनाथ कई बार उनको इस बात के लिए टोकते भी थे कि तुम पार्वती के रूप में आ तो गई हो लेकिन अभी भी काली हो. इस बात से मां नाराज होकर कैलाश छोड़कर काशी में आ गई और उन्होंने मिट्टी से भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग का निर्माण करके उनका पूजन शुरू किया.

भगवान भोलेनाथ उस पूजन से प्रसन्न होकर केदारेश्वर के रूप में प्रकट हुए और माता पार्वती को उनके पुराने रूप में वापस लाने का आशीर्वाद दिया. इसके बाद माता को गौरा के नाम से जाना गया, क्योंकि मां अपने काले रूप से निखर कर गोरी हो चुकी थी, लेकिन जब माता यहां से भोलेनाथ के साथ प्रस्थान करने लगी तो उनका काली का यह रूप काशी के इसी स्थान पर स्थापित हुआ और तभी से माता आदि शक्ति काली का यह मंदिर काशी में स्थापित है और नवरात्रों में सातवें दिन मां के इस रूप का दर्शन करने का विधान बताया गया है.

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माता काली के इस भव्य प्रतिमा में माता भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग अपने दोनों हाथों से पकड़े हुए हैं. यह स्वयंभू प्रतिमा तंत्र और साधना का बड़ा केंद्र मानी जाती है. माता काली के उपासक दूर-दूर से वाराणसी के इस प्राचीन काली मंदिर में आराधना अनुष्ठान करने के लिए पहुंचते हैं. यहां आने वाले भक्त भी मानते हैं कि माता से जो मुराद मांगी है वह पूरी जरूर होती है.

प्राचीन काली मंदिर अपने आप में महत्वपूर्ण इसलिए भी माना जाता है क्योंकि यहां पर नेत्र विकार उदर विकार की समस्या से परेशान लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. यहां के महंत का कहना है कि माता बड़े-बड़े नैनो वाली हैं इसलिए लोगों के आंखों की तकलीफ और पेट में होने वाली तकलीफ का विनाश करती हैं. माता के मंदिर परिसर में नीलगिरी सरस्वती माता का भी मंदिर है. इसके अतिरिक्त कई और देव विग्रह भी यहां पर विराजमान हैं जो अनादि काल से काशी में मौजूद हैं.

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Last Updated : Apr 8, 2022, 7:56 PM IST
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