वाराणसी: बदलते वक्त के साथ मॉडर्न टेक्नोलॉजी और चाइनीज प्रोडक्ट मार्केट में छा रहे हैं. ऐसे में लकड़ी के खिलौनों के बाजार पर काफी बुरा असर पड़ा है. लकड़ी का खिलौना बनाने वाले कारोबारियों के आगे एक और बड़ा संकट पैदा हो गया है. वह है जीएसटी. कारोबारियों का कहना है कि पहले बिना किसी टैक्स के यह कारोबार आगे बढ़ रहा था. अब 12 फीसदी जीएसटी का बोझ चार अलग-अलग जगहों से उन पर पड़ रहा है. इस वजह से बनारस का लकड़ी खिलौने का यह कारोबार अब दम तोड़ रहा है.
लकड़ी के तोहफे पीएम को मिले, फिर कारोबार सिमटा..
लकड़ी के सुंदर-सुंदर खिलौनों के साथ सिंदूरदानी पूरे देश-दुनिया में अपनी-अलग पहचान के लिए जानी जाती है. बदलते वक्त के कारण अब लकड़ी के खिलौने का कारोबार सिमटता जा रहा है. पहले कश्मीरी गंज इलाके में 400 से 600 परिवार इस उद्योग से जुड़े हुए थे. अब महज 120 से 125 परिवार ही लकड़ी के खिलौने बनाने का काम कर रहे हैं. लकड़ी के खिलौने के तोहफे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की रैलियों में दिए जाते रहे हैं. इसके बावजूद कारोबार रफ्तार पकड़ने की जगह पीछे ही खिसकता जा रहा है.
जीएसटी की मार ने लकड़ी के खिलौनों का बंद कराया कारोबार..
लकड़ी का खिलौना बनाने वाले कारीगरों के आगे एक के बाद एक कई मुश्किलें पैदा होती जा रही हैं. लकड़ी मिलने में हो रही परेशानी की वजह से यह उद्योग धीरे-धीरे खत्म होने की कगार पर है. अब जीएसटी लगने के बाद इस उद्योग पर चौतरफा मार पड़ रही है. लकड़ी का खिलौना बनाने के लिए पहले लकड़ी 300 से 400 क्विंटल मिलती थी. अब 12 से 14 सौ रुपये कुंतल है. इसमें जीएसटी का भुगतान ट्रांसपोर्ट पर करना पड़ता है. बाजार में जब व्यापारियों तक कारीगर यह खिलौना पहुंचाते हैं तो भी जीएसटी काटकर इसका भुगतान करते हैं. इसके बाद बिचौलिए भी किसी न किसी माध्यम से जीएसटी निकाल कर ही कारीगरों को पेमेंट देते हैं. लकड़ी का खिलौना बनाने के एक काम में चार अलग-अलग माध्यम से जीएसटी देने की वजह से कारोबारी इसे छोड़ने पर मजबूर हैं. कारोबारियों का कहना है कि मुनाफा घटता ही जा रहा है. इस कारण अब उनकी अगली पीढ़ी इस कारोबार में आना भी चाहे तो वह उन्हें दूर ही रखेंगे. बनारस का कास्ट उद्योग अब जीएसटी और बदहाली की वजह से बंद होने की कगार पर है.