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वाराणसी: लकड़ी के खिलौने पर खतरा, कभी मंदी ने सताया तो कभी जीएसटी ने मारा!

काशी में मॉडर्न टेक्नोलॉजी और चाइनीज प्रोडक्ट के बाजार में लकड़ी के खिलौनों की पहचान खोती जा रही है. मॉडर्न टेक्नोलॉजी के आने से लकड़ी के खिलौने बनाने वाले कारोबारियों पर इसका असर पड़ा है. इसके साथ ही जीएसटी की मार से उनका कारोबार खत्म होने की कगार पर है.

लकड़ी की बनी सिंदूरदानी
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Published : Jun 21, 2019, 8:21 PM IST

वाराणसी: बदलते वक्त के साथ मॉडर्न टेक्नोलॉजी और चाइनीज प्रोडक्ट मार्केट में छा रहे हैं. ऐसे में लकड़ी के खिलौनों के बाजार पर काफी बुरा असर पड़ा है. लकड़ी का खिलौना बनाने वाले कारोबारियों के आगे एक और बड़ा संकट पैदा हो गया है. वह है जीएसटी. कारोबारियों का कहना है कि पहले बिना किसी टैक्स के यह कारोबार आगे बढ़ रहा था. अब 12 फीसदी जीएसटी का बोझ चार अलग-अलग जगहों से उन पर पड़ रहा है. इस वजह से बनारस का लकड़ी खिलौने का यह कारोबार अब दम तोड़ रहा है.

लकड़ी के खिलौने पर मंडरा रहा खतरा

लकड़ी के तोहफे पीएम को मिले, फिर कारोबार सिमटा..

लकड़ी के सुंदर-सुंदर खिलौनों के साथ सिंदूरदानी पूरे देश-दुनिया में अपनी-अलग पहचान के लिए जानी जाती है. बदलते वक्त के कारण अब लकड़ी के खिलौने का कारोबार सिमटता जा रहा है. पहले कश्मीरी गंज इलाके में 400 से 600 परिवार इस उद्योग से जुड़े हुए थे. अब महज 120 से 125 परिवार ही लकड़ी के खिलौने बनाने का काम कर रहे हैं. लकड़ी के खिलौने के तोहफे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की रैलियों में दिए जाते रहे हैं. इसके बावजूद कारोबार रफ्तार पकड़ने की जगह पीछे ही खिसकता जा रहा है.

जीएसटी की मार ने लकड़ी के खिलौनों का बंद कराया कारोबार..

लकड़ी का खिलौना बनाने वाले कारीगरों के आगे एक के बाद एक कई मुश्किलें पैदा होती जा रही हैं. लकड़ी मिलने में हो रही परेशानी की वजह से यह उद्योग धीरे-धीरे खत्म होने की कगार पर है. अब जीएसटी लगने के बाद इस उद्योग पर चौतरफा मार पड़ रही है. लकड़ी का खिलौना बनाने के लिए पहले लकड़ी 300 से 400 क्विंटल मिलती थी. अब 12 से 14 सौ रुपये कुंतल है. इसमें जीएसटी का भुगतान ट्रांसपोर्ट पर करना पड़ता है. बाजार में जब व्यापारियों तक कारीगर यह खिलौना पहुंचाते हैं तो भी जीएसटी काटकर इसका भुगतान करते हैं. इसके बाद बिचौलिए भी किसी न किसी माध्यम से जीएसटी निकाल कर ही कारीगरों को पेमेंट देते हैं. लकड़ी का खिलौना बनाने के एक काम में चार अलग-अलग माध्यम से जीएसटी देने की वजह से कारोबारी इसे छोड़ने पर मजबूर हैं. कारोबारियों का कहना है कि मुनाफा घटता ही जा रहा है. इस कारण अब उनकी अगली पीढ़ी इस कारोबार में आना भी चाहे तो वह उन्हें दूर ही रखेंगे. बनारस का कास्ट उद्योग अब जीएसटी और बदहाली की वजह से बंद होने की कगार पर है.

वाराणसी: बदलते वक्त के साथ मॉडर्न टेक्नोलॉजी और चाइनीज प्रोडक्ट मार्केट में छा रहे हैं. ऐसे में लकड़ी के खिलौनों के बाजार पर काफी बुरा असर पड़ा है. लकड़ी का खिलौना बनाने वाले कारोबारियों के आगे एक और बड़ा संकट पैदा हो गया है. वह है जीएसटी. कारोबारियों का कहना है कि पहले बिना किसी टैक्स के यह कारोबार आगे बढ़ रहा था. अब 12 फीसदी जीएसटी का बोझ चार अलग-अलग जगहों से उन पर पड़ रहा है. इस वजह से बनारस का लकड़ी खिलौने का यह कारोबार अब दम तोड़ रहा है.

लकड़ी के खिलौने पर मंडरा रहा खतरा

लकड़ी के तोहफे पीएम को मिले, फिर कारोबार सिमटा..

लकड़ी के सुंदर-सुंदर खिलौनों के साथ सिंदूरदानी पूरे देश-दुनिया में अपनी-अलग पहचान के लिए जानी जाती है. बदलते वक्त के कारण अब लकड़ी के खिलौने का कारोबार सिमटता जा रहा है. पहले कश्मीरी गंज इलाके में 400 से 600 परिवार इस उद्योग से जुड़े हुए थे. अब महज 120 से 125 परिवार ही लकड़ी के खिलौने बनाने का काम कर रहे हैं. लकड़ी के खिलौने के तोहफे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की रैलियों में दिए जाते रहे हैं. इसके बावजूद कारोबार रफ्तार पकड़ने की जगह पीछे ही खिसकता जा रहा है.

जीएसटी की मार ने लकड़ी के खिलौनों का बंद कराया कारोबार..

लकड़ी का खिलौना बनाने वाले कारीगरों के आगे एक के बाद एक कई मुश्किलें पैदा होती जा रही हैं. लकड़ी मिलने में हो रही परेशानी की वजह से यह उद्योग धीरे-धीरे खत्म होने की कगार पर है. अब जीएसटी लगने के बाद इस उद्योग पर चौतरफा मार पड़ रही है. लकड़ी का खिलौना बनाने के लिए पहले लकड़ी 300 से 400 क्विंटल मिलती थी. अब 12 से 14 सौ रुपये कुंतल है. इसमें जीएसटी का भुगतान ट्रांसपोर्ट पर करना पड़ता है. बाजार में जब व्यापारियों तक कारीगर यह खिलौना पहुंचाते हैं तो भी जीएसटी काटकर इसका भुगतान करते हैं. इसके बाद बिचौलिए भी किसी न किसी माध्यम से जीएसटी निकाल कर ही कारीगरों को पेमेंट देते हैं. लकड़ी का खिलौना बनाने के एक काम में चार अलग-अलग माध्यम से जीएसटी देने की वजह से कारोबारी इसे छोड़ने पर मजबूर हैं. कारोबारियों का कहना है कि मुनाफा घटता ही जा रहा है. इस कारण अब उनकी अगली पीढ़ी इस कारोबार में आना भी चाहे तो वह उन्हें दूर ही रखेंगे. बनारस का कास्ट उद्योग अब जीएसटी और बदहाली की वजह से बंद होने की कगार पर है.

Intro:वाराणसी: बनारस अपने आप में बहुत अलग-अलग चीजों के लिए जाना जाता है यहां का पानी यहां की साड़ी यहां की गलियां घाट और यहां के लकड़ी के खिलौने देश ही नहीं विदेशों में भी अपनी पहचान बना चुके हैं लेकिन बदलते वक्त के साथ मॉडर्न टेक्नोलॉजी और चाइनीज प्रोडक्ट के मार्केट में आने के बाद बनारस के लकड़ी खिलौने के बाजार पर काफी बड़ा असर पड़ा है इन सबके बीच लकड़ी खिलौना बनाने वाले कारोबारियों के आगे एक और बड़ा संकट पैदा हो गया है वह है जीएसटी कारोबारियों का कहना है कि जहां पहले बिना किसी टैक्स की है कारोबार आगे बढ़ रहा था वहीं अब 12 परसेंट जीएसटी का बोझ चार अलग-अलग जगहों से उन पर पड़ रहा है जिसकी वजह से बनारस का लकड़ी खिलौने का यह कारोबार अब दम तोड़ रहा है.

ओपनिंग पीटीसी- गोपाल मिश्र


Body:वीओ-01 बनारस के कश्मीरी गंज इलाके में लकड़ी का खिलौना घर घर बनाने का काम होता है छोटे-छोटे घरों के कमरों में मशीनों की आवाज और लकड़ी के सुंदर-सुंदर खिलौनों के साथ सिंदूर रखने के लिए बनाई जाने वाली सिंदूरदानी पूरे देश दुनिया में अपनी अलग पहचान के लिए जानी जाती है लेकिन वक्त के साथ अब लकड़ी खिलौने का यह कारोबार सिमर ताजा रहा है. जहां पहले कश्मीरी गंज खोजवा समेत आसपास के इलाकों में 400 से 600 परिवार इस उद्योग से जुड़े हुए थे. वहीं अब महेश 120 से 125 परिवार ही लकड़ी के खिलौने बनाने का काम कर रहे हैं सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि लकड़ी के खिलौने के तोहफे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की रैलियों में उनको भी दिए जा चुके हैं लेकिन यह कारोबार रफ्तार पकड़ने की जगह पीछे ही खिसकता जा रहा है.

बाईट- ज्ञानेश्वर सिंह, लकड़ी खिलौना कारीगर


Conclusion:वीओ-02 दरअसल लकड़ी का खिलौना बनाने वाले कारीगरों के आगे एक के बाद एक कई मुश्किलें पैदा होती जा रही है एक तरफ जहां लकड़ी मिलने में हो रही परेशानी की वजह से यह उद्योग धीरे-धीरे खत्म होने की कगार पर था वहीं अब जीएसटी लगने के बाद इस उद्योग पर चौतरफा मार पड़ रही है लकड़ी खिलौना बनाने वाले कारीगरों का कहना है कि पहले लकड़ी जहां 300 से 400 कुंटल मिलती थी वहीं अब 12 से 14 सो रुपए कुंतल है जिसमें जीएसटी का भुगतान ट्रांसपोर्ट पर करना पड़ता है उसके बाद जिस रंग का इस्तेमाल इस खिलौने को तैयार करने में होता है उस पर भी जीएसटी की बाजार में जब व्यापारियों तक कारीगर यह खिलौना पहुंचाते हैं तो अभी जीएसटी काटकर इसका भुगतान करते हैं उसके बाद बिचौलिए में भी किसी न किसी माध्यम से जीएसटी निकाल कर ही कारीगरों को पेमेंट देते हैं. यानी लकड़ी का खिलौना बनाने के एक काम में चार अलग-अलग माध्यम से जीएसटी देने की वजह से अब या खिलौना बनाने वाले कारोबारी इसे छोड़ने पर मजबूर हैं कारोबारियों का कहना है कि मुनाफा घटता ही जा रहा है जिसकी वजह से अब उनकी अगली पीढ़ी इस कारोबार में आना भी चाहे तो वह उसे इससे दूर ही रखेंगे यानी बनारस का कास्ट उद्योग अब जीएसटी और बदहाली की वजह से बंद होने की कगार पर है.

बाईट- मदन लाल गुप्ता, कारीगर

क्लोजिंग पीटीसी- गोपाल मिश्र
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