वाराणसी: सड़क रेल और हवाई यातायात के साथ जल परिवहन को सशक्त बनाने और एक नए रास्ते से व्यापार और यात्री सुविधाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल के हल्दिया से लेकर उत्तर प्रदेश के वाराणसी तक इनलैंड वॉटरवे का एक सपना देखा. सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने पहली सरकार में इस पर काम शुरू करते हुए अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के रामनगर स्थित राल्हुपुर स्थित गंगा पर बने देश के पहले मल्टीमॉडल टर्मिनल की शुरुआत 2018 में की. इस टर्मिनल के बनाए जाने के बाद यह उम्मीद थी कि गंगा के रास्ते शुरू हुए इस वाटर से देश और यूपी की तकदीर व तस्वीर दोनों बदलेगी. पानी, सड़क, रेल और हवाई चारों यातायात एक साथ मिलकर उत्तर प्रदेश की प्रगति में बड़ी भूमिका निभाएंगे. प्रधानमंत्री के इस प्रयास के बाद जब 2018 नवंबर में कोलकाता से कार्गो लेकर रवींद्र नाथ टैगोर मालवाहक गंगा के रास्ते बनारस पहुंचा, तो उम्मीदों को पंख लग गए. इसके बाद उम्मीद यही जगी कि अब एक नई रेखा खींचेगी, लेकिन समय बीतने के साथ यह मल्टी मॉडल टर्मिनल सिर्फ हाथी के दांत साबित हो रहे हैं. 2018 से लेकर 2020 यानी 2 साल का वक्त बीत चुका है, लेकिन इस मल्टी मॉडल टर्मिनल का इस्तेमाल उस तरह नहीं हो पाया, जिस तरह उम्मीद थी.
फेल हो गया 184 करोड़ का वाराणसी बंदरगाह, 3 साल में आए मात्र 3 जहाज
प्रधानमंत्री के हाथों शुरू हुआ वाराणसी इनलैंड वॉटरवे हाथी का दांत साबित हो रहा है. बनारस में बने मल्टी मॉडल टर्मिनल में महीनों से कोई जहाज न आया है और न ही गया है. रामनगर में नवंबर 2018 में बंदरगाह की शुरुआत हुई थी, जिसके बाद तीन जहाज इस बंदरगाह पर आए, लेकिन कोई जहाज यहां से आज तक गया नहीं. देखिए वाराणसी के इस इनलैंड वॉटरवे पर स्पेशल रिपोर्ट...
वाराणसी: सड़क रेल और हवाई यातायात के साथ जल परिवहन को सशक्त बनाने और एक नए रास्ते से व्यापार और यात्री सुविधाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल के हल्दिया से लेकर उत्तर प्रदेश के वाराणसी तक इनलैंड वॉटरवे का एक सपना देखा. सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने पहली सरकार में इस पर काम शुरू करते हुए अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के रामनगर स्थित राल्हुपुर स्थित गंगा पर बने देश के पहले मल्टीमॉडल टर्मिनल की शुरुआत 2018 में की. इस टर्मिनल के बनाए जाने के बाद यह उम्मीद थी कि गंगा के रास्ते शुरू हुए इस वाटर से देश और यूपी की तकदीर व तस्वीर दोनों बदलेगी. पानी, सड़क, रेल और हवाई चारों यातायात एक साथ मिलकर उत्तर प्रदेश की प्रगति में बड़ी भूमिका निभाएंगे. प्रधानमंत्री के इस प्रयास के बाद जब 2018 नवंबर में कोलकाता से कार्गो लेकर रवींद्र नाथ टैगोर मालवाहक गंगा के रास्ते बनारस पहुंचा, तो उम्मीदों को पंख लग गए. इसके बाद उम्मीद यही जगी कि अब एक नई रेखा खींचेगी, लेकिन समय बीतने के साथ यह मल्टी मॉडल टर्मिनल सिर्फ हाथी के दांत साबित हो रहे हैं. 2018 से लेकर 2020 यानी 2 साल का वक्त बीत चुका है, लेकिन इस मल्टी मॉडल टर्मिनल का इस्तेमाल उस तरह नहीं हो पाया, जिस तरह उम्मीद थी.