वाराणसी: कुष्ठ रोग समाज की एक ऐसी भयावह बीमारी है जो समाज से इंसान के रिश्ते को भी खत्म कर देती है, यही वजह है कि कुष्ठ रोगियों से लोग अछूतों जैसा व्यवहार करते हैं और उनके परिवार को असहाय छोड़ देते हैं. लेकिन पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी ने नवप्रयोग और सतत निगरानी के बल पर न केवल कुष्ठ रोग यानि कि लेप्रोसी पर काबू पाया है बल्कि उस नवप्रयोग को 'रोल मॉडल' भी बना दिया है. वाराणसी में हुए इस नायाब प्रयोग को आज पूरे प्रदेश में अपनाया गया है. इस मॉडल पर ही कुष्ठ रोग के संक्रमण को रोकने की दिशा में काम चल रहा है.
2016 के अभियान में अचानक बढ़ी संख्या
जिला कुष्ठ रोग अधिकारी डॉ. राहुल सिंह ने बताया कि एक दौर ऐसा भी था जब कुष्ठ को लाइलाज रोग माना जाता था. इसके रोगियों को लोग अछूत मानते हुए उनसे दूरी बना लेते थे. यहां तक कि कुष्ठ रोगियों को घर-परिवार से दूर कर उन्हें असहाय हालत में छोड़ दिया जाता था. इस गंभीर समस्या को देखते हुए ही सरकार ने इस रोग के खिलाफ अभियान चलाया. नतीजा यह रहा कि वर्ष 2005 में कुष्ठ रोग पर काफी हद तक काबू पा लिया गया लेकिन, सरकार ने इस रोग से अपनी लड़ाई निरंतर जारी रखी. कुष्ठ रोग के रोकथाम और नियंत्रण के लिए सरकार ने वर्ष 2016 में इसके रोगियों को खोजने के लिए अभियान शुरू किया. उस समय वाराणसी में हुए सर्वे के दौरान चिरईगांव-कमौली के 42 घरों वाले पुरवे में 27 नए रोगी मिले.
काशी का रोल मॉडल प्रदेश के लिए बना नजीर
डॉ. राहुल सिंह ने बताया कि रोग पर काबू पाने के बावजूद एक ही स्थान पर इतनी बड़ी संख्या में कुष्ठ रोगियों का मिलना आश्चर्यजनक तो था ही, लेकिन एक चुनौती भी थी. तब हमने कुष्ठ रोगियों का उपचार करने के साथ ही एक नया प्रयोग भी किया. रोगी को कुष्ठ रोग की दवा खिलाने के साथ ही उसके परिवार और आस-पास के घरों में तपेदिक (टीबी) के उपचार में इस्तेमाल होने वाली दवा की सिंगल खुराक दी और इसके सार्थक परिणाम आने शुरू हो गए. कुष्ठ रोगी तो ठीक हुआ ही रोगी के संपर्क में आने वाले उसके परिवार और पड़ोसियों का भी संक्रमित होना बंद हो गया, यह एक बड़ी सफलता थी. फिर इस प्रयोग को पूरे जिले में उन सभी जगहों पर किया गया जहां-जहां सर्वे के दौरान कुष्ठ रोगियों का पता चलता था. नतीजा हुआ कि कुष्ठ रोग का संक्रमण पूरी तरह रुक गया. उन्होंने बताया कि काशी में हुए इस नव प्रयोग की प्रदेश भर में जमकर सराहना हुई और उप महानिदेशक कुष्ठ डॉ. अनिल कुमार ने अक्टूबर 2018 में इसे पूरे प्रदेश में लागू करने का निर्देश दिया. अब बनारस ही नहीं पूरे प्रदेश में कुष्ठ के संक्रमण को रोकने के लिए इस मॉडल पर काम चल रहा है.
ये हैं इस रोग के लक्षण
वर्ष 2016-17 में बनारस में कुष्ठ रोगियों की संख्या 303 थी. वर्ष 2017-18 में 226, वर्ष 2018-19 में 133, वर्ष 2019-20 में 128 और वर्ष 2020-21 में यह संख्या घट कर महज 79 पहुंच चुकी है. जिला कुष्ठ रोग अधिकारी बताते हैं कि अन्य रोगों की तरह कुष्ठ रोग भी एक प्रकार के सूक्ष्म कीटाणु से होता है. इस रोग में रोगी की त्वचा पर हल्के पीले, लाल अथवा तांबे के रंग के धब्बे हो जाते है. इसके साथ ही उस स्थान पर सुन्नपन होना, बाल का न होना, हाथ-पैर में झनझनाहट आदि कुष्ठ रोग के लक्षण हो सकते हैं.
मुफ्त जांच और उपचार
डॉ. सिंह कहते हैं कि कुष्ठ रोग अब असाध्य नहीं रहा, इससे भयभीत होने की जरूरत नहीं है. प्रारम्भिक अवस्था में उपचार से ही इसके रोगी ठीक हो जाते हैं और उनमें दिव्यांगता नहीं हो पाती. वह बताते हैं कि सभी सरकारी अस्पतालों, स्वास्थ्य केन्द्रों में इसकी जांच और उपचार की मुफ्त व्यवस्था है. इसके उपचार में यदि कहीं किसी को दिक्कत आ रही हो तो वह उनसे सीधे भी सम्पर्क कर सकता है. उन्होंने बताया कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय चिकित्सालय के कमरा नम्बर- 321 में प्रत्येक कार्यदिवस प्रातः 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक निःशुल्क ओपीडी की जाती है.