वाराणसी: भगवान शिव की नगरी काशी अनोखी ही नहीं बल्कि सभी शहर से अलग है. सावन में तो यहां के शिवालयों का महत्व तो और भी बढ़ जाता है. आज ईटीवी भारत आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगा, जो पुराणों के साथ-साथ उसकी आकृति भी भारत के कई परंपराओं को प्रदर्शित करता है. काशी की प्रसिद्ध पंचकोशी यात्रा (panchkoshi yatra varanasi) का यह पहला पड़ाव है. इसे कर्मदेश्वर महादेव (kardmeshwar mahadev mandir) के नाम से जाना जाता है. पुरातत्व विभाग के अनुसार यह काशी का सबसे प्राचीन मंदिर (varanasi oldest temple) है.
मंदिर का शिखर बेहद ही खूबसूरत है. जिस पर नक्काशी द्वारा सजावट किया गया है. मंदिर का मुख्य द्वार 3 फीट 5 इंच चौड़ा और 6 फीट ऊंचा है. मंदिर के गर्भ गृह में भगवान कर्मदेश्वर विराजमान है, जिसे शिवलिंग पर लगातार जलधारा गिरती रहती है. वास्तु शिल्प और मूर्ति शिल्प के आधार पर यह मंदिर बहुत ही रोचक हैं. मंदिर के विखंडित कुर्सी या खंभों की स्थिति देखकर यह प्रतीत होता है कि मंदिर का अखंड मंडप एक बेहतर निर्माण रहा होगा. लकड़ियों के आधार पर सादे पत्थरों द्वारा तैयार शिखर भी इस तथ्य को और स्पष्ट करता है. खंभों पर पत्तियों की नक्काशी सजावट में काफी है.15 वी शताब्दी में पाए जाते 2 स्तंभों पर अभिलेख हैं. जो 14वीं और 15वीं शताब्दी से हैं. जिनके स्पष्ट होता है कि अर्ध मंडप का निर्माण पुरानी सामग्री को पुनः प्रयोग में लाया गया है.
खजुराहो के मंदिर की झलक
प्राचीन कर्मदेश्वर महादेव मंदिर की कुछ आकृतियां दक्षिणी पर बनी उमा महेश्वर की मूर्ति, खजुराहो के मंदिर में बनी आकृतियों की तरह है. पहली बार जब आप मंदिर को देखेंगे, तो लगेगा यह खजुराहो के मंदिर का हिस्सा है. विश्व के प्राचीनतम शहर में कई बार मुगल शासकों द्वारा आक्रमण करके यहां के विश्वपति श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त किया गया. उसके बाद भी 12 वीं सदी का यह जीवन मंदिर आज भी अपनी पुरानी आकृति के साथ मौजूद है. यह मंदिर आज तक सुरक्षित और संरक्षित है.
चंदेल वंश के राजाओं ने कराया होगा निर्माण
इतिहासकारों के अनुसार, चंदेल वंश के राजाओं ने यहां मंदिर का निर्माण कराया था. मंदिर के पास एक कुंड है, जिसमें लोग स्नान करने के बाद ही महादेव के दर्शन करते हैं. सावन में महाशिवरात्रि पर यहां पर भारी संख्या में भीड़ उमड़ती है.
यह भी पढ़ें: ज्ञानवापी मस्जिद-श्रृंगार गौरी केस की सुनवाई आज, पोषणीयता पर हिंदू पक्ष पेश करेगा दलीलें
आंसू से हुआ सरोवर का निर्माण
मान्यता है कि कर्मदे ऋषि ने यहां तपस्या की. उनकी तपस्या से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए. मंदिर से जुड़े लोग यह बताते हैं कि कमलेश्वर ऋषि जब तपस्या में लीन थे. तो किसी बात पर उनकी आंखों में आंसू आ गए और उन आंसुओं ने ही सरोवर का रूप ले लिया. ऐसी मान्यता है कि जब भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था, तो उन्हें ब्रह्म हत्या का पाल लग गया था. जिसके बाद गुरु वशिष्ठ के आज्ञा से उन्होंने पंचकोशी यात्रा कर यहां पर अपने परिवार के साथ दर्शन पूजन किया.
12 वीं सदी का मंदिर
डॉक्टर सुभाष चंद्र यादव ने बताया कि अभी तक हम लोगों को ज्ञात है कि बनारस में सबसे पुराना मंदिर कर्मदेश्वर महादेव का मंदिर है, जो कंदवा गांव में स्थित है. यह मंदिर पंचकोशी यात्रा का प्रथम पड़ाव है. 12 वीं सदी में बना हुआ यह मंदिर काशी के धार्मिक परंपरा का बड़ा ही महत्वपूर्ण मंदिर है. इस मंदिर के बाहरी दीवारों पर शैव, वैष्णव, शाक्य, सभी देवी देवताओं के मूर्ति आकृति है. यह मंदिर अभी पूरी तरीके से सुरक्षित है और सबसे प्राचीन भी है.
भगवान राम ने किया दर्शन
पंडित हरेंद्र उपाध्याय ने बताया कि यह कर्मद ऋषि की तपोस्थली है. इसी वजह से कर्मदेश्वर महादेव मंदिर का नाम पड़ा है. काशी खंड पुस्तक में इसका वर्णन है. काशी की प्रसिद्ध पंचकोशी यात्रा का यह पहला पड़ाव है. मान्यता यह है कि लंका विजय के बाद भगवान श्रीराम ने काशी में पंचकोशी यात्रा की थी. साथ ही, अपने इष्ट महादेव को प्रसन्नता करने के लिए यहां पर दर्शन करने के लिए आए थे. कर्मदेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से पापों का नाश होता है. कहते हैं यहां भगवान राम को मिली थी ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति मिली थी.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप