वाराणसी: दो दशक पहले तक सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल में फिल्में उस समय हिट मानी जाती थीं, जब फिल्म टिकट के लिए लंबी लाइन लगती हो. सीटियों और शोर से गूंजने वाले थिएटरों का जादू मल्टिप्लेक्स कल्चर ने खत्म कर दिया. शहरों के सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल या तो बंद हो गए या मल्टिप्लेक्स में तब्दील हो गए. मगर वाराणसी का आनंद मंदिर शान से दर्शकों को फिल्में दिखा रहा है. भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री को जीवनदान देने वाले आनंद मंदिर में कभी भी दर्शक कम नहीं पड़े. अपने 57 साल के इतिहास में आनंद मंदिर ने कई सिल्वर और गोल्डन जुबली फिल्मों को दर्शकों तक पहुंचाया. अब यह भोजपुरी फिल्मों के जरिये लोगों का मनोरंजन कर रहा है. बीते 20 सालों से वाराणसी के आनंद मंदिर की स्क्रीन पर सिर्फ और सिर्फ भोजपुरी सिनेमा का कब्जा है. हालत यह है कि भोजपुरी सिनेमा के कलाकार और निर्माता भी चाहते हैं कि उनकी फिल्म का शो आनंद मंदिर में हो.
वाराणसी के तेलियाबाग इलाके में संचालित होने वाले आनंद मंदिर के प्रति सिनेमा के मुरीदों की श्रद्धा है. 1965 में शुरू हुआ यह सिनेमा हॉल किसी वक्त हिंदी सिनेमा जगत की बड़ी बड़ी फिल्मों के लिए महत्वपूर्ण हॉल माना जाता था. वाराणसी के इस सिंगल स्क्रीन थिएटर में शोले, खिलौना, याराना समेत हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की बड़ी-बड़ी फिल्मों को सिल्वर जुबली मनाई थी. 2004 में जब मल्टिप्लेक्स की शुरुआत होने के बाद सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल पर संकट गहराने लगा तो आनंद मंदिर सिनेमा हॉल के संचालकों ने अपनी रणनीति बदल दी. उस वक्त भोजपुरी सिनेमा में सिर्फ एक दो बड़े कलाकार मौजूद थे. मनोज तिवारी और रवि किशन. 2004 में आई ससुरा बड़ा पईसा वाला मनोज तिवारी की जिंदगी में एक महत्वपूर्ण ब्रेक साबित हुई. इस फिल्म ने मनोज तिवारी को स्टार बनाया तो भोजपुरी फिल्म को दशकों बाद दोबारा दर्शकों का प्यार मिला. ससुरा बड़ा पैइसा वाला आनंद मंदिर सिनेमा हॉल में 32 हफ्ते तक चली और भोजपुरी सिनेमा के लिए यह सिनेमा हॉल एक मंदिर बन गया.
आनंद मंदिर को चलाने वाले ललित अग्रवाल का भी मानना है कि लोगों की सोच में बदलाव नहीं आया है. बस जरूरत बदल गई है. भोजपुरी सिनेमा को मल्टिप्लेक्स में जगह नहीं मिलती. हम उसे जगह देते हैं. मल्टीप्लेक्स में चलने वाली फिल्मों को लोग ज्यादा आराम और पैसा खर्च करके देखना चाहते हैं. उनके लिए खरीददार हैं, लेकिन भोजपुरी सिनेमा के लिए अब भी खरीदारों की कमी है. जिसकी वजह से आनंद मंदिर को पूरी तरह से भोजपुरी सिनेमा के लिए समर्पित किया गया है. आज भी यहां पर बालकनी, नॉर्मल और स्पेशल जैसी दर्शक दीर्घा है. टिकट का दर भी नॉमिनल है. पहले टिकट का रेट 10 रुपये 20 रुपये था. अब नॉर्मल का 50 और स्पेशल 60 रुपये में लोग भोजपुरी सिनेमा का मजा ले पाते हैं.
दर्शकों का मानना है कि आज भी आनंद मंदिर सिनेमा हॉल का साउंड सिस्टम और तमाम सुविधाएं अच्छी हैं. यह है कि बनारस में ऐसा कोई सिनेमा हॉल नहीं है, जहां 75 एमएम का इतना बड़ा पर्दा मौजूद हो. मल्टीप्लेक्स में 40 एमएम के पर्दे पर सिनेमा दिखाई जाती है लेकिन आज भी आनंद मंदिर में इस 70 एमएम के बड़े स्क्रीन पर फिल्में संचालित की जाती हैं. लोगों की आने वाली भीड़ आनंद मंदिर के साथ भोजपुरी सिनेमा के सफलता की कहानी को बयां करने के लिए काफी है.
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