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वाराणसी: धनवंतरि जयंती के अवसर पर बीएचयू में दिखी गुरु-शिष्य परंपरा - वाराणसी की खबरें

यूपी के वाराणसी में शुक्रवार को धनवंतरि जयंती मनाई गई. इस अवसर पर बीएचयू के धनवंतरि हॉल में नए एडमिशन लेने वाले छात्रों के उपनयन संस्कार का कार्यक्रम आयोजित किया गया.

धनवंतरी हॉल में दिखी गुरु-शिष्य परंपरा.
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Published : Oct 25, 2019, 11:45 PM IST

वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय में धनतेरस के दिन धनवंतरि जयंती का आयोजन किया गया. आज का दिन आयुर्वेद के छात्र और शिक्षकों के लिए बेहद खास होता है, क्योंकि आज ही आयुर्वेद के देवता भगवान धनवंतरि जी की जयंती मनाई जाती है.

धनवंतरि जयंती के अवसर पर बीएचयू में दिखी गुरु-शिष्य परंपरा.

भले ही गुरु-शिष्य परंपरा का निर्वहन हर शैक्षिक संस्थान में न किया जा रहा हो, लेकिन देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी के बीएचयू में शुक्रवार को गुरु-शिष्य परंपरा का एक अनोखा संगम देखने को मिला.

पढे़ं-वाराणसीः नगर आयुक्त ने ठेला व्यापारियों को दिलाया 'पॉलीथिन मुक्त काशी' का संकल्प

धनवंतरि हॉल में दिखी गुरु-शिष्य परंपरा
बीएचयू में शुक्रवार को आयुर्वेद संकाय के धनवंतरि हॉल में धनवंतरि जयंती पर वह पुरानी परंपरा दिखी, जब आज के दिन गुरु अपने शिष्य का उपनयन संस्कार करते हैं. इसके साथ ही वह उन्हें संकाय, विश्वविद्यालय और समाज के प्रति सही आचरण करने के लिए संकल्पित कराते हैं. इस दिन आयुर्वेद के छात्र यह संकल्प लेते हैं कि वह जो भी कार्य करेंगें वह समाज के हित में करेंगे.

धनवंतरि जयंती मनाई गई

  • बीएचयू में शुक्रवार को आयुर्वेद संकाय के धनवंतरि हॉल में धनवंतरि जयंती मनाई गई.
  • इस मौके पर नए एडमिशन लेने वाले छात्रों के उपनयन संस्कार का कार्यक्रम भी आयोजित किया गया.
  • आयुर्वेदिक जूनियर चिकित्सकों के उपनयन संस्कार में बीएचयू के कुलगुरु वी.के. शुक्ला और सर सुंदरलाल चिकित्सालय के एमएस एसके. माथुर बतौर मुख्य अतिथि मौजूद रहे.
  • इस अवसर पर बीएचयू आयुर्वेद संकाय में आयुर्वेद के प्रचार प्रसार के लिए भी छात्रों को शपथ भी दिलाई गई.

जो नए छात्र एडमिशन लेते हैं, उनका उपनयन कराते हैं. इस दौरान उनको संकाय, विश्वविद्यालय और समाज के प्रति सही आचरण करने के लिए संकल्पित कराते हैं. उनको यह बताते हैं, कि वह आने वाले दिनों में कैसे वैद्य बनेंगे. हम गुरु-शिष्य प्राचीन परंपरा का निर्वहन करते हैं. 1981से इस परंपरा का हम अभी तक निर्वहन करते आ रहे हैं.
-प्रो. यामिनी भूषण त्रिपाठी, आयुर्वेद संकाय प्रमुख, बीएचयू

वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय में धनतेरस के दिन धनवंतरि जयंती का आयोजन किया गया. आज का दिन आयुर्वेद के छात्र और शिक्षकों के लिए बेहद खास होता है, क्योंकि आज ही आयुर्वेद के देवता भगवान धनवंतरि जी की जयंती मनाई जाती है.

धनवंतरि जयंती के अवसर पर बीएचयू में दिखी गुरु-शिष्य परंपरा.

भले ही गुरु-शिष्य परंपरा का निर्वहन हर शैक्षिक संस्थान में न किया जा रहा हो, लेकिन देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी के बीएचयू में शुक्रवार को गुरु-शिष्य परंपरा का एक अनोखा संगम देखने को मिला.

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धनवंतरि हॉल में दिखी गुरु-शिष्य परंपरा
बीएचयू में शुक्रवार को आयुर्वेद संकाय के धनवंतरि हॉल में धनवंतरि जयंती पर वह पुरानी परंपरा दिखी, जब आज के दिन गुरु अपने शिष्य का उपनयन संस्कार करते हैं. इसके साथ ही वह उन्हें संकाय, विश्वविद्यालय और समाज के प्रति सही आचरण करने के लिए संकल्पित कराते हैं. इस दिन आयुर्वेद के छात्र यह संकल्प लेते हैं कि वह जो भी कार्य करेंगें वह समाज के हित में करेंगे.

धनवंतरि जयंती मनाई गई

  • बीएचयू में शुक्रवार को आयुर्वेद संकाय के धनवंतरि हॉल में धनवंतरि जयंती मनाई गई.
  • इस मौके पर नए एडमिशन लेने वाले छात्रों के उपनयन संस्कार का कार्यक्रम भी आयोजित किया गया.
  • आयुर्वेदिक जूनियर चिकित्सकों के उपनयन संस्कार में बीएचयू के कुलगुरु वी.के. शुक्ला और सर सुंदरलाल चिकित्सालय के एमएस एसके. माथुर बतौर मुख्य अतिथि मौजूद रहे.
  • इस अवसर पर बीएचयू आयुर्वेद संकाय में आयुर्वेद के प्रचार प्रसार के लिए भी छात्रों को शपथ भी दिलाई गई.

जो नए छात्र एडमिशन लेते हैं, उनका उपनयन कराते हैं. इस दौरान उनको संकाय, विश्वविद्यालय और समाज के प्रति सही आचरण करने के लिए संकल्पित कराते हैं. उनको यह बताते हैं, कि वह आने वाले दिनों में कैसे वैद्य बनेंगे. हम गुरु-शिष्य प्राचीन परंपरा का निर्वहन करते हैं. 1981से इस परंपरा का हम अभी तक निर्वहन करते आ रहे हैं.
-प्रो. यामिनी भूषण त्रिपाठी, आयुर्वेद संकाय प्रमुख, बीएचयू

Intro:वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय में धन्वंतरी जयंती का आयोजन किया गया आज के दिन आयुर्वेद के छात्र और शिक्षकों के लिए यह दिन बेहद खास होता है क्योंकि आयुर्वेद के देवता भगवान धनवंतरी की आज जयंती है। भले ही गुरु शिष्य परंपरा का निर्वहन हर जगह ना रहा हो लेकिन देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी के बीएचयू में गुरु शिष्य परंपरा का एक अनोखा संगम देखने को मिला।


Body:बीएचयू का आयुर्वेद संकाय के धन्वंतरी हॉल में धनवंतरी जयंती पर वह पुरानी परंपरा दिखी। जब आज के दिन गुरु अपने शिष्य का उपनयन संस्कार करते हैं। अर्थात वह उन्हें संकाय और विश्वविद्यालय और समाज के प्रति सही आदर्श करने के लिए संकल्पित कराते हैं। क्योंकि आयुर्वेद के छात्र भविष्य में आयुर्वेद के डॉक्टर बनते हैं। यह संकल्प लिया जाता है कि आप जो भी कार्य करें देश और समाज के हित में करें।

आयुर्वेदिक जूनियर चिकित्सकों के इस उपनयन संस्कार में बीएचयू के कुलगुरु बीके शुक्ला और सर सुंदरलाल चिकित्सालय के एम एस एसके के माथुर बतौर मुख्य अतिथि मौजूद रहे।

बीएचयू आयुर्वेद संकाय जो मेडिकल इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस के तहत चलता है इसमें आयुर्वेद के प्रचार प्रसार के लिए भी छात्रों को शपथ दिलाया गया और उन्हें जागरूक किया गया।


Conclusion:प्रोसेसर यामिनी त्रिपाठी ने बताया पहली बार 1981 में पूरे देश में आयुर्वेदिक छात्रों का उपनयन संस्कार। जो नए छात्र एडमिशन लेते हैं।उनका उपनयन करते हैं। जिससे कि अब वह आयुर्वेद के छात्र हैं। उनको यह संकल्प दिलाते हैं।उनको यह शपथ दिलाते हैं। कैसे रहेंगे करते हैं। उनको यह बताते हैं वह आने वाले दिनों में कैसे वैद्य बनेंगे। इस परंपरा के हम शुरुआत करते हैं। गुरु शिष्य प्राचीन परंपरा का निर्वहन करते हैं। 1981 इस परंपरा को हम अभी तक निर्वहन करते आ रहे हैं।

बाईट :-- प्रोफ़ेसर यामिनी भूषण त्रिपाठी, आयुर्वेद संकाय प्रमुख, बीएचयू

आशुतोष वाराणसी
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