वाराणसी: काशी में अध्यात्म का एक अलग ही नजारा है. यहां की परंपरा श्रद्धा और भक्ति दुनिया के शायद ही किसी शहर में देखने को मिले. यूं तो यह शहर नगरी है बाबा भोले की, पर यहां उन्हीं के आराध्य भगवान विष्णु के अवतारों को भी दिल में श्रद्धा भाव लेकर पूजा जाता है. काशी की महिमा कुछ यूं समझी जा सकती है कि जिस शहर में 12 ज्योतिर्लिंग हों, उसी शहर में भगवान विष्णु के श्री राम रूप की रामचरितमानस रचित हुई है.
रामचरितमानस लिखने के दौरान तुलसी घाट पर ही तुलसीदास जी ने बजरंगबली की चाय प्रतिमाओं को स्थापित किया था और कई-कई दिनों तक घाट के ऊपर ही बैठकर रामचरितमानस लिखा करते थे.
महंत प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्र ने जानकारी देते हुए बताया कि
गोस्वामी तुलसीदास अध्ययन करने के लिए काशी आए थे और यही वह जगह है, जहां उन्होंने अपने प्राण त्यागे थे. इस दौरान काशी के तुलसी घाट पर बैठकर ही उन्हें बजरंगबली के दर्शन हुए थे. जिसके बाद उन्होंने रामचरितमानस का भी निर्माण किया और बजरंग बली की प्रतिमाओं को भी स्थापित किया.
वाल्मीकि रामायण के कठिन होने के कारण तुलसीदास जी की रामचरितमानस को लोगों ने बखूबी पढ़ा और समझा. यह रामचरितमानस रामायण के साथ ही प्रचलित होती चली गई. महंत विशंभर नाथ मिश्रा का कहना है कि तुलसीदास एक ऐसे कवि थे, जिन्होंने रामचरितमानस में आम शब्दों का प्रयोग कर भगवान को आम इंसान के करीब पहुंचा दिया है.