वाराणसी: पितरों को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पितृपक्ष के 15 दिन विशेष महत्व रखते हैं. गरुण पुराण के मुताबिक पितृपक्ष के 15 दिनों में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान, ब्राह्मणों को भोजन करने से पितरों को प्रसन्न किया जाता है, ताकि उनका आशीर्वाद बना रहे और जीवन सुखमय बीते. लेकिन कई बार किसी घर में अकाल मृत्यु होने के बाद अक्सर प्रेत बाधा की बातें सामने आती हैं, क्योंकि अकाल मृत्यु के बाद आत्मा की शांति नहीं हो पाती. जिसके लिए वाराणसी के पिशाच मोचन पर नारायण बलि और त्रिपिंडी श्राद्ध का विधान बताया गया है, लेकिन इन सबसे परे वाराणसी के इसी स्थान पर एक ऐसा पेड़ भी है, जिसमें लोग प्रेत आत्मा की शांति के लिए सिक्के और कील का सहारा लेते हैं.
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कील वाले पर पेड़ पर श्रद्धालु गाड़ते हैं सिक्के
जिले के पिशाच मोचन कुंड पर कुंड के किनारे पीपल का पेड़ मौजूद है. इस पेड़ में नीचे से लेकर ऊपर तक आपको सिर्फ सिक्के और कील ही नजर आएंगे. इसलिए इसे सिक्कों और कील वाला पेड़ के नाम से भी जाना जाता है. माना जाता है कि पिशाच मोचन पर जो लोग अकाल मृत्यु के बाद अपनों का पिंडदान और तर्पण करने आते हैं. वह इस क्रिया के पूरा होने के बाद उक्त व्यक्ति की एक तस्वीर या उसकी किसी पसंदीदा चीज के साथ उसके नाम से एक सिक्का गाड़ देते हैं.ऐसा माना जाता है कि अकाल मृत्यु पाने वाले व्यक्ति को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए इस क्रिया को किया जाता है. जिसकी वजह से यह पेड़ पूरी तरह से सिक्के की और मृत लोगों की फोटो व पसंदीदा चीजों से भरा हुआ है.
पिशाचमोचन कुंड पर तर्पण क्रिया और अन्य कर्म-कांड कराने वाले पंडा मुन्ना महाराज ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि यह बहुत पुरानी परंपरा है. जिसका निर्वहन आज भी लोग कर रहे हैं. पिशाचमोचन पर अकाल मृत्यु पाने वाले लोगों का श्राद्ध कर्म करने के बाद लोग उनके नाम से सिक्के में छेद करने के बाद उसे कील के सहारे पेड़ पर लगाते हैं. वहीं मृतक के परिजन मरने वाले की तस्वीर या उसकी कोई पसंदीदा चीज साथ लेकर आते हैं और उसे भी यहां पर लटका कर चले जाते हैं,.
पेड़ पर सिक्के गाड़ने से खत्म होती है प्रेत-बाधा
पंडा मुन्ना महाराज ने जानकारी देते हुए बताया कि लोगों का ऐसा मानना है कि ऐसा करने से उन पर आई प्रेत-बाधा खत्म हो जाती है और घर में सुख शांति बनी रहती है. यही वजह है कि यह पेड़ आज से नहीं बल्कि सदियों से ऐसी स्थिति में ही खड़ा है और लोग प्रेत-आत्मा की शांति के लिए सिक्के और कील का सहारा लेते आ रहे हैं.