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काशी में बसते हैं पाकिस्तानी महादेव, जानें क्या है इनकी महिमा - पाकिस्तानी महादेव मंदिर

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में विराजमान है पाकिस्तानी महादेव. इस मंदिर में सावन के समय भक्तों की काफी भीड़ देखने को मिलती है और लोगों की काफी मान्यता भी इस मंदिर से जुड़ी हुई है. आइये जानते हैं पाकिस्तानी महादेव मंदिर का इतिहास.

पाकिस्तानी महादेव मंदिर
पाकिस्तानी महादेव मंदिर
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Published : Jul 13, 2020, 10:46 AM IST

Updated : Jul 13, 2020, 11:04 AM IST

वाराणसी: काशी के कण-कण में शंकर हैं. काशीपुराधिपति की नगरी में शिव विभिन्न रूपों में विराजमान हैं. इसमें सबसे खास आदि विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग श्री काशी विश्वनाथ हैं जो स्वयंभू ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां विराजमान हैं. हालांकि इन सब में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न स्वरूपों में विराजे महादेव का सबसे अनोखा स्वरूप शीतला घाट पर देखने को मिलता है. उस स्थान और नाम के कारण वहां महादेव के विराजे रूप के बारे में सुनकर हर कोई अचरज के भंवर में खो जाता है.

एक ओर पाकिस्तान का नाम सुनते ही हम सबका मन कौंध उठता है तो वहीं यहां पर विराजे पाकिस्तानी महादेव के ऊपर सभी लोग श्रद्धा के पुष्पों की वर्षा करते हैं और महादेव की आराधना करते हैं. सफेद संगमरमर से बना महादेव का यह रूप सभी को बेहद ही आकर्षित करता है.

शीतला घाट पर विराजमान पाकिस्तानी महादेव
कहते हैं देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो लाहौर से एक हिंदू परिवार अपने आराध्य को अपने सीने से लगाकर के काशी के शीतला घाट पर आया. काशी आने पर उनके सिर पर छत नहीं थी. उसका ख्याल करते हुए उन्होंने शिवलिंग को गंगा में प्रवाहित करने का सोचा. जैसे ही वह शिवलिंग गंगा में प्रवाहित करने जा रहे थे वैसे ही मल्लाहों ने उन्हें भगवान का तर्पण करने से रोक दिया. उसके बाद वह शीतला घाट पर महादेव को स्थापित किए. इसके बाद महादेव पाकिस्तानी महादेव हो गए. सभी लोगों ने महादेव की आराधना शुरू कर दी.

बाबा पर लोगों की काफी आस्था
मंदिर के पुजारी अजय शर्मा ने बताया कि श्रद्धालु महादेव की पूजा अर्चना करने आते हैं. सावन के महीने में बाबा की पूजा अर्चना का विशेष महत्व है. उन्होंने बताया कि शीतला घाट पर स्नान करने के बाद बाबा में जल अर्पित करने से सभी की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. सावन महीने में सोमवार को बाबा के विभिन्न रूपों का श्रृंगार होता है. उसके साथ ही सुबह-शाम बाबा का अभिषेक करने के साथ आरती की जाती है. इसके साथ ही महाशिवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा पर बाबा के विशेष पूजा अर्चना कर भव्य श्रृंगार किया जाता है.

उन्होंने बताया कि हर बार सावन में हजारों संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ होती थी. मगर इस बार कोरोना की वजह से सिर्फ परंपरागत रूप से सुबह शाम महादेव की आरती उतारकर पट बंद कर दिया जा रहा है.

काशी में है पाकिस्तानी महादेव का मंदिर.

महादेव की अनोखी महिमा
वहीं श्रद्धालुओं का कहना है कि महादेव की बड़ी अनोखी महिमा है. वे सभी इन्हें पाकिस्तानी महादेव के नाम से जानते हैं और इनकी पूजा अर्चना करते हैं. महादेव से जो भी मनोकामना मांगता है वो उसे पूरा करते हैं. एक हिंदू परिवार ने लाहौर से लाकर शीतला घाट पर महादेव की इस अनोखे शिवलिंग को स्थापित किया था. इस बारे में काशी विश्वनाथ मंदिर के महन्त कुलपति तिवारी ने बताया कि बंटवारे का दंश आज भी हिंदुस्तान और पाकिस्तान की आम जनता झेल रही है.

पाकिस्तान से काशी पहुंचा शिवलिंग
वहीं इसे बंटवारे के दंश को झेलते हुए महादेव का यह अनोखा शिवलिंग पाकिस्तान से हिंदुस्तान उनकी सबसे प्रिय नगरी काशी पहुंचा. जब देश का बंटवारा हुआ तो लाहौर में रहने वाले सीताराम मोहनी काशी पहुंचे. उनके पास एक सफेद संगमरमर का शिवलिंग था, जिसे वह गंगा में प्रवाहित करना चाहते थे. मगर नाविकों ने देखा और उन्हें शिवलिंग प्रवाहित करने से रोक दिया. रोकने पर सीताराम ने उसे शीतला घाट पर स्थापित करवा दिया.

इसी नाम से दर्ज है मंदिर का विवरण
उसके बाद उनके रिश्तेदार यमुना दास जो कि घाट के ऊपर रहते थे. उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया जो आज भी पाकिस्तानी शिव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. उन्होंने बताया कि यह सिर्फ कहावतों में नहीं हैं बल्कि नगर निगम और विकास प्राधिकरण में भी महादेव पाकिस्तानी महादेव के नाम से ही दर्ज हैं. भले ही महादेव के शिवलिंग को लाहौर से काशी लाया गया हो और यह महादेव पाकिस्तानी महादेव के नाम से जाने जाते हों, मगर सभी लोग उन्हें इष्ट ही मानते हैं.

वाराणसी: काशी के कण-कण में शंकर हैं. काशीपुराधिपति की नगरी में शिव विभिन्न रूपों में विराजमान हैं. इसमें सबसे खास आदि विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग श्री काशी विश्वनाथ हैं जो स्वयंभू ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां विराजमान हैं. हालांकि इन सब में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न स्वरूपों में विराजे महादेव का सबसे अनोखा स्वरूप शीतला घाट पर देखने को मिलता है. उस स्थान और नाम के कारण वहां महादेव के विराजे रूप के बारे में सुनकर हर कोई अचरज के भंवर में खो जाता है.

एक ओर पाकिस्तान का नाम सुनते ही हम सबका मन कौंध उठता है तो वहीं यहां पर विराजे पाकिस्तानी महादेव के ऊपर सभी लोग श्रद्धा के पुष्पों की वर्षा करते हैं और महादेव की आराधना करते हैं. सफेद संगमरमर से बना महादेव का यह रूप सभी को बेहद ही आकर्षित करता है.

शीतला घाट पर विराजमान पाकिस्तानी महादेव
कहते हैं देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो लाहौर से एक हिंदू परिवार अपने आराध्य को अपने सीने से लगाकर के काशी के शीतला घाट पर आया. काशी आने पर उनके सिर पर छत नहीं थी. उसका ख्याल करते हुए उन्होंने शिवलिंग को गंगा में प्रवाहित करने का सोचा. जैसे ही वह शिवलिंग गंगा में प्रवाहित करने जा रहे थे वैसे ही मल्लाहों ने उन्हें भगवान का तर्पण करने से रोक दिया. उसके बाद वह शीतला घाट पर महादेव को स्थापित किए. इसके बाद महादेव पाकिस्तानी महादेव हो गए. सभी लोगों ने महादेव की आराधना शुरू कर दी.

बाबा पर लोगों की काफी आस्था
मंदिर के पुजारी अजय शर्मा ने बताया कि श्रद्धालु महादेव की पूजा अर्चना करने आते हैं. सावन के महीने में बाबा की पूजा अर्चना का विशेष महत्व है. उन्होंने बताया कि शीतला घाट पर स्नान करने के बाद बाबा में जल अर्पित करने से सभी की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. सावन महीने में सोमवार को बाबा के विभिन्न रूपों का श्रृंगार होता है. उसके साथ ही सुबह-शाम बाबा का अभिषेक करने के साथ आरती की जाती है. इसके साथ ही महाशिवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा पर बाबा के विशेष पूजा अर्चना कर भव्य श्रृंगार किया जाता है.

उन्होंने बताया कि हर बार सावन में हजारों संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ होती थी. मगर इस बार कोरोना की वजह से सिर्फ परंपरागत रूप से सुबह शाम महादेव की आरती उतारकर पट बंद कर दिया जा रहा है.

काशी में है पाकिस्तानी महादेव का मंदिर.

महादेव की अनोखी महिमा
वहीं श्रद्धालुओं का कहना है कि महादेव की बड़ी अनोखी महिमा है. वे सभी इन्हें पाकिस्तानी महादेव के नाम से जानते हैं और इनकी पूजा अर्चना करते हैं. महादेव से जो भी मनोकामना मांगता है वो उसे पूरा करते हैं. एक हिंदू परिवार ने लाहौर से लाकर शीतला घाट पर महादेव की इस अनोखे शिवलिंग को स्थापित किया था. इस बारे में काशी विश्वनाथ मंदिर के महन्त कुलपति तिवारी ने बताया कि बंटवारे का दंश आज भी हिंदुस्तान और पाकिस्तान की आम जनता झेल रही है.

पाकिस्तान से काशी पहुंचा शिवलिंग
वहीं इसे बंटवारे के दंश को झेलते हुए महादेव का यह अनोखा शिवलिंग पाकिस्तान से हिंदुस्तान उनकी सबसे प्रिय नगरी काशी पहुंचा. जब देश का बंटवारा हुआ तो लाहौर में रहने वाले सीताराम मोहनी काशी पहुंचे. उनके पास एक सफेद संगमरमर का शिवलिंग था, जिसे वह गंगा में प्रवाहित करना चाहते थे. मगर नाविकों ने देखा और उन्हें शिवलिंग प्रवाहित करने से रोक दिया. रोकने पर सीताराम ने उसे शीतला घाट पर स्थापित करवा दिया.

इसी नाम से दर्ज है मंदिर का विवरण
उसके बाद उनके रिश्तेदार यमुना दास जो कि घाट के ऊपर रहते थे. उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया जो आज भी पाकिस्तानी शिव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. उन्होंने बताया कि यह सिर्फ कहावतों में नहीं हैं बल्कि नगर निगम और विकास प्राधिकरण में भी महादेव पाकिस्तानी महादेव के नाम से ही दर्ज हैं. भले ही महादेव के शिवलिंग को लाहौर से काशी लाया गया हो और यह महादेव पाकिस्तानी महादेव के नाम से जाने जाते हों, मगर सभी लोग उन्हें इष्ट ही मानते हैं.

Last Updated : Jul 13, 2020, 11:04 AM IST
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